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2022-03-07

रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी क्या है - Radiofrequency Neurotomy Kya Hota Hai | Spinal Pain Treatment In Hindi

Radio Frequency Neurotomy Treatment Ke Bare Me Janakari

लंबे समय से रीढ़ के दर्द से जूझते मरीजों के लिए आशा की किरण है रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी। इससे पुराने दर्द और रीढ़ की कई तकलीफों में मिल जाती है राहत............


रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी क्या है?


व्यस्त जीवनशैली और एक्सरसाइज की कमी के चलते स्वास्थ्य को लेकर हम काफी हद तक लापरवाह हो चुके हैं। ऐसे में रीढ़ और मांसपेशियों से जुड़ी तकलीफों से दो-चार होने वाले मरीजों की संख्या बहुत 
तेजी से बढ़ रही है। आज अधिकतर लोग ऑस्टियो अर्थराइटिस, रुमेटॉइड अर्थराइटिस, सर्वाइकल, स्पाइनल स्टेनोसिस से ग्रस्त हैं। इसके अलावा बढ़ती उम्र या चोट के कारण कार्टिलेज घिसने लग जाता है, जिससे जोड़ों में सूजन आ जाती है। यह अर्थराइटिस की शुरुआत होती है। ज्यादातर रीढ़ की हड्डी की तकलीफ जैसे-ऑस्टियो अर्थराइटिस, स्पाइनल स्टेनोसिस या पीठ की कोई गहरी चोट आदि फैसेट ज्वाइंट में दर्द का मुख्य कारण होती हैं। आमतौर पर इनके प्राथमिक उपचार में मरीज के दर्द के हिसाब से फिजियोथेरेपी, दर्द निवारक दवा या पारंपरिक सर्जरी का इस्तेमाल किया जाता है, जबकि अब रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी जैसी अत्याधुनिक तकनीक की मदद से लंबे समय से हो रहे दर्द में राहत देने के लिए रीढ़ की हड्डी का उपचार संभव है।


इस तरह होती है सर्जरी:


सर्जरी की इस नई तकनीक रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी में ना के बराबर चीरा लगाया जाता और सर्जिकल प्रक्रिया ऐसी होती है कि मरीज को उसी दिन डिस्चार्ज कर दिया जाता है। इसमें रेडियो फ्रीक्वेंसी वेव्स, जो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स होती हैं और प्रकाश की गति से तेज चलती हैं, को एक विशेष जनरेटर को उच्चतम तापमान पर रखकर बनाया जाता है। इससे हीट एनर्जी बनाकर सुनिश्चित तंत्रिकाओं तक पहुंचाई जाती है, जो दर्द आवेगों को मस्तिष्क तक लेकर जाती है। रेडियो फ्रीक्वेंसी वेव्स को सुई की नोक से मिलाया जाता है, जो तंत्रिका को मस्तिष्क तक दर्द के संकेतों को भेजने से बाधित करता है।

रेडियो फ्रिक्वेन्सी न्यूरोटॉमी के प्रकार?


रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी से उपचार मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं:
मीडियल ब्रांच न्यूरोटॉमी यानी एब्लेशन, जो फैसेट जोड़ों से दर्द ले जाने वाली तंत्रिकाओं को प्रभावित करता है और दूसरा, लेटरल ब्रांच न्यूरोटॉमी, जो सेक्रोइलिएक जोड़ों से दर्द ले जाने वाली तंत्रिकाओं को प्रभावित करता है।

रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी से हर दर्द से राहत 


रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी कई पुराने जोड़ों के दर्द जैसे स्पाइनल आर्थराइटिस, लो बैक पेन, स्पाइनल स्टेनोसिस, सर्वाइकल स्पाइन सर्जरी के बाद का दर्द, फेल्ड बैक सर्जरी सिंड्रोम और अन्य रीढ़ के दर्द में भी असरदार प्रतिक्रिया दिखाती है। यह कुछ न्यूरोपैडिक से जुड़े दर्द जैसे कांप्लेक्स रीजनल पेन और अन्य मिश्रित पुराने दर्द में भी असरदार है। इस इलाज के लिए एक मरीज की उम्मीदवारी आमतौर पर एक डायग्नोस्टिक नर्व ब्लॉक के प्रदर्शन पर निर्धारित होती है।

बेहतर है विकल्प


रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी लंबे समय से हो रहे दर्द में स्टेरॉयड इंजेक्शन के मुकाबले अधिक राहत देती है। अधिसंख्य मरीज इससे उपचारलेने के बाद दर्द से निजात पा लेते हैं। इस विधि में बहुत छोटे चीरे का इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए यह किसी अन्य सर्जरी के मुकाबले जल्दी राहत देने वाली होती है। साथ ही इस सर्जरी के निशान भी नहीं पड़ते हैं।

2021-08-05

mirgi bimari ka ilaj | mirgi se chutkara kaise paye | mirgi ke jhatke ka ilaj | mirgi rog ka ilaaj | mirgi treatment in hindi

मिर्गी और उपचार के बारे मे जानकारी या मिर्गी बीमारी का इलाज क्या है?

मिर्गी और उसके उपचार

राष्ट्रीय मिर्गी दिवस (17 नवंबर) के लिए इस वर्ष की थीम रही 'आइए मिर्गी के बारे में बात करें।' जानते हैं इस बीमारी के आधुनिक उपचार के बारे में...



मिर्गी हर आयु के बच्चों को प्रभावित कर सकती है। हालांकि यह एक सामान्य विकार है, जो संपूर्ण जनसंख्या के एक फीसद बच्चों में पाया जाता है। अभी भी मिर्गी के बारे में बहुत सारे मिथक बने हुए हैं, जिसके परिणामस्वरूप बच्चों को उचित उपचार नहीं मिल पाता है। बच्चों में मिर्गी प्रमुख रूप से एक वर्ष की आयु तथा किशोरावस्था में दिखाई देने वाली बीमारी है। बचपन में मिर्गी के दौरे विभिन्न प्रकार के होते हैं। जिसमें कुछ लक्षण न दिखाई देने वाले तथा कुछ में कंपकपाहट व सिहरन की समस्या हो सकती है।

भारत में इसके होने के दो प्रमुख कारण हैं, जिनमें एक आनुवांशिक व दूसरा मस्तिष्क की चोट होता है। इस बीमारी के बारे में आज भी जागरूकता का अभाव है। इसका बुरा पहलू यह है कि आज भी इसके रोगी को लोग उपेक्षा की नजर से देखते हैं, जबकि अब तो दवाओं के साथ ही मिर्गी की सर्जरी का विकल्प भी मौजूद है, जिससे पीड़ित बच्चा, सामान्य बच्चों की तरह जीवन व्यतीत कर सकता है।


सर्जरी का विकल्प है मौजूदः


हालांकि ऐसा नहीं है कि कुछ फीसद बच्चे जिनकी मिर्गी दवाओं से नियंत्रित नहीं होती है, उनके लिए संभावनाएं खत्म हो जाती हैं। ऐसे रोगियों के लिए मिर्गी की सर्जरी, न्यूरोमॉड्यूलेशन सर्जरी और कीटोजेनिक आहार जैसे विभिन्न प्रकार के उपचार उपलब्ध हैं। इनमें मिर्गी की सर्जरी सबसे बेहतर विकल्प है, क्योंकि यह सफल रोगनिवारक है। इससे रोगी के पूरी तरह ठीक होने की संभावना रहती है।


हर उम्र में कारगर :


मिर्गी की सर्जरी किसी भी उम्र में की जा सकती है। यह देश के चुनिंदा मिर्गी केंद्रों में उपलब्ध है। इस सर्जरी को करने से पहले रोगी को कुछ विशिष्ट व निश्चित चरणों से गुजारा जाता है। इसके पहले चरण में रोग का मूल्यांकन किया जाता है और इसी के साथ वीडियो ईईजी और विशेष एमआरआई स्कैन जैसे परीक्षण किए जाते हैं। कुछ मरीजों में पीईटी और एसपीईसीटी स्कैन भी किए जाते हैं। इन सभी जांचों से रोग के बारे में सटीक जानकारी मिल जाती है। चिकित्सक सर्जरी की सलाह तभी देते हैं, जब वे सुनिश्चत कर लेते हैं कि बच्चा इससे ठीक हो जाएगा या नहीं।

कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं :


अच्छी बात यह है कि मिर्गी की सर्जरी के दुष्परिणाम बहुत कम होते हैं। न्यूरोमाड्यूलेशन सर्जरी में रोगी के सीने या गर्दन की वेगसतंत्रिका के आसपास अथवा दिमाग में एक डिवाइस इंसर्ट कर दी जाती है। ये डिवाइस संकेत भेजती है, जिससे रोगी मिर्गी के दौरों पर नियंत्रण पा लेता है और दवाओं की जरूरत खत्म हो जाती है।


ये बच्चे भी होते हैं मेधावी



लगभग 70-80 फीसद मिर्गी का उपचार मिर्गी रोधी दवाओं के जरिए किया जाता है। बालपन में मिर्गी के अधिकतर मामलों में चिकित्सक कुछ वर्षों के बाद दवाओं को बंद कर देते हैं, क्योंकि मिर्गी के लक्षण एक उम्र तक ही सीमित होते हैं। ऐसा नहीं है कि इस बीमारी से ग्रसित बच्चे अन्य बच्चों जैसी गतिविधियां जैसे स्कूल जाना, खेलना, पढ़ना और पिकनिक नहीं कर सकते हैं। सच तो यह है कि इससे ग्रसित बच्चे भी मेधावी हो सकते हैं और अन्य बच्चों की तरह सफल करियर बना सकते हैं।

2021-07-19

corona janch kab karna chahiye | corona janch type | corona janch kaise kare | corona ki janch kaise karaye aur kaise pata kare

कोरोना की जांच कैसे होगी या कोरोना की जांच कब करनी चाहिए




कोविड या पोस्ट कोविड मरीजों के आंतरिक अंगों की क्या स्थिति है? सूजन या रक्त साव का खतरा तो नहीं  है?
ब्लॉकेज अथवा स्ट्रोक का खतरा तो नहीं है?क्या कोविड का उपचार पा रहे मरीजों की समय रहते जरुरी जांचें कराई जार ही हैं? ऐसे कई सवाल जुड़े हैं कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की सेहत के साथ। जानें देश के बड़े अस्पतालों और विशेषज्ञों के हिसाब से क्या है जमीनी स्थिति...



 कोरोना की जांच क्यू जरूरी है? अगर आप पहले से संक्रमण के दायरे मे है तो,,,


इंदौर निवासी 32 वर्षीय रोहित जैन (परिवर्तित नाम) कोरोना संक्रमित पाए गए। आठ दिन अस्पताल में भर्ती रहे। अगली रिपोर्ट नेगेटिव आई। डिस्चार्ज होकर घर लौटे ही थे कि हालत फिर बिगड़ने लगी। दोबारा अस्पताल ले जाकर जांच कराई तो छाती का सीटी स्कैन कराने पर पता चला कि फेफड़े में बहुत संक्रमण है। दो दिन में उनकी मौत हो गई। ऐसे अनेक मामले सामने आ रहे हैं, जहां स्थिति का समय पर व सटीक अनुमान नहीं लगा पाने के कारण देर हो गई। समय रहते निदान और उपचार इससे बचने का एकमात्र उपाय है।


भारी न पड़ जाए लापरवाही:


कोरोना के निदान और उपचार में प्रारंभिक अवस्था से ही तमाम आशंकाओं और संभावित खतरों पर बारीकी से नजर रखी जाए तो प्रत्येक मौत को टाला जा सकता है। संक्रमण मुक्त हो जाने के बाद भी इस बात को सुनिश्चित कर लेना आवश्यक है कि शरीर के अंदर सब ठीक है कि नहीं? क्योंकि जरा सी भी चूक भारी पड़ सकती है। ऐसे तमाम टेस्ट उपलब्ध हैं, जिन्हें आसानी से कराया जा सकता है और जो महंगे भी नहीं हैं। किंतु फिलहाल जांच की जगह लक्षणों के आधार पर उपचार किया जा रहा है और केवल गंभीर मरीजों के मामलों में ही इन जांचों का सहारा लिया जा रहा है।


मरीज की स्थिति पर सब निर्भरः


हालांकि अस्पतालों, चिकित्सकों व सरकार के अनुसार सभी संक्रमितों को इन परीक्षणों की आवश्यकता नहीं पड़ती है। सीआरपी, एलडीएच, फेरेटिन, पीसीटी, एलडीएच, डी-डाइमर, आइएल-6, ब्लड गैसेस, एएसटी, एएलटी, टी-बिल, क्रेटेनाइन डब्ल्यूबीसी काउंट, न्यूट्रोफिल काउंट, लिंफोसाइट काउंट, प्लेटलेट काउंट
और चेस्ट एक्स-रे इत्यादि कुछ आवश्यक जांचें इंफ्लमेटरी मार्कर हैं, जिनसे आंतरिक अंगों की स्थिति का पता चलता है। यह जांचें कब होनी चाहिए, इसके लिए कोई आदर्श समय नहीं है, किंतु यह मरीज की स्थिति पर निर्भर होता है। वहीं, कुछ चिकित्सकों ने स्वीकार किया कि यदि यह जांचें प्रारंभिक अवस्था में ही करा ली जाएं, तो मरीज को गंभीर स्थिति में जाने से बचाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त सामान्य संक्रमण के बाद ठीक हुए मरीजों की भी एहतियात के तौर पर ये जांचें कराई जानी चाहिए, ताकि सुनिश्चित हुआ जा सके कि वे किसी तरह के खतरे में तो नहीं हैं।


अनिवार्य बनाए जाएं यह टेस्ट



कोरोना के निदान और उपचार की आदर्श प्रक्रिया में आवश्यक जांचों की उपयोगिता पर मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल के बायोकेमिस्टीएंड इम्यूनोलॉजी डिपार्टमेंट की विशेषज्ञ डॉ.बरनाली दास
अपने अध्ययन से इस निष्कर्ष पर पहुंची कि कुछ जांचें संक्रमण की शुरुआती अवस्था से ही करा लेनी चाहिए। इन्हें अस्पताल के एडमिशन प्रोटोकॉल (भर्ती की प्रक्रिया) में शामिल किया जाना चाहिए ताकि शरीर के अंदरूनी अंगों और प्लेटलेट्स की स्थिति पर नजर रखी जा सके। उनके अनुसार इन जांचों को प्रारंभिक काल में ही करा लेना चाहिए ताकि इनके अनुरूप उपचार को गति दी जा सके:

1.सीआरपी(सी रिएक्टिव प्रोटीन)
2.एलडीएच (लेक्टेट डिहाइड्रोजेनेस)
3.फेरेटिन, पीसीटी (प्रोकेल्सीटोनिन)
4.एलडीएच
5.डी-डाइमर
6.आइएल-6
7.ब्लड गैसेस
8.एएसटी
9.एएलटी
10.टी-बिल
11.क्रेटेनाइन डब्ल्यूबीसी काउंट
12.न्यूट्रोफिल काउंट
13.लिंफोसाइट काउंट
14.प्लेटलेट काउंट
15.चेस्ट एक्स-रे




1. कम से कम आइसीयू के सभी कोविड मरीजों की तो यह जांचें कराईही जानी चाहिए। मरीज की रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद भी फेफड़ों का सीटी स्कैन कराया जाना चाहिए। यदि उनमें किसी भी प्रकार के लक्षण नजर आते हैं, तब भी यह जांचें करानी चाहिए।



2. जांचे कब कराई जाए, इसके लिए कोई आदर्श समय नही है। यह मरीज की स्थिति पर निर्भर करता है। हां, ऑक्सिजन लेवल 94 से नीचे आने पर विभिन्न जांचे कराई जाती है।



3. आंतरिक रक्तस्राव का असर लिवर व शरीर के अन्य हिस्सों पर पड़ता है इसलिए मरीज को इससे बचाया जाना चाहिए। ऑक्सीजन की मात्रा 94 फीसद से कम होने पर डी-डाइमर और अन्य आवश्यक जांचें अवश्य कराई जानी चाहिए।



क्यों जरूरी है जांच




डी-डाइमर टेस्ट



डी-डाइमर एक तरह का प्रोटीन है, जो कोरोना मरीजों के फेफडे में संक्रमण या सूजन के चलते बढ़ जाता है। इस जांच से यह पता चलता है कि खून गाढ़ा तो नहीं हो रहा। खून गाढ़ा होकर थक्का बनने से मरीजों की मौत भी हो सकती है, इसीलिए खून पतला करने की दवाएं दी जाती हैं। इस जांच से यह भी पता चलता है कि रक्त के थक्का जमने की संभावना कितनी है। थक्का होने से फेफडे और धमनी में ब्लॉकेज हो सकता है और फेफडे की कार्यक्षमता प्रभावित हो सकती है।

आइएल-6


इसे इंटरल्यूकिन-6 कहते हैं । फेफड़े में सूजन लाने वाले साइटोकाइन स्टार्म की वजह आइएल-6है। इससे फेफडे के टिश्यू क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।


पीटी, एपीटीटी



पीटी यानी प्रोथॉम्बिन रक्त का थक्का होने पर या आंतरिक हिस्सों में रक्तस्राव के खतरे का पता लगाने के लिए यह जांच कराई जाती है। एक्टिवेटेड पार्सियल थ्रांबोप्लास्टिन टाइम, एपीटीटी नामक जांच भी इससे जुड़ी होती है।


सीआरपी, एलडीएच व फेरेटिन सी रिएक्टिव प्रोटीन




सीआरपी, एलडीएच व फेरेटिन सी रिएक्टिव प्रोटीन आंतरिक अंगों में सूजन पता करने की जांचें हैं। कोशिकाएं टूटने की वजह से संक्रमण के मरीजों में सीआरपी का स्तर बढ़ा हुआ मिलता है।

2021-07-16

mask lagana kyun zaroori hai | मास्क लगाना क्यों जरूरी है | मास्क लगाने से क्या होता है | मास्क लगाने के फायदे

मास्क लगाने से क्या फायदा है या मास्क लगाना क्यों जरूरी है



बदलता मौसम बनता है कई तरह के संक्रमण व एलर्जी का कारण। मास्क का प्रयोग और जरूरी एहतियात बरतकर की जा सकती है इनसे सुरक्षा...


मौसम बदल रहा है और गर्मियों की शुरुआत हो चुकी है। मौसम में हो रहे इस बदलाव के साथ ही एलर्जी की समस्या से पीड़ित मरीजों की संख्या में भी वृद्धि हो रही है। एलर्जी ऐसी समस्या है, जो कई तरह से परेशानी का कारण बनती है। यह परागकण, धूल, मिट्टी, मौसम में बदलाव, पालतू पशुओं और दवाइयों से हो सकती है। इसका सबसे अधिक असर फेफड़े के संक्रमण व अस्थमा से ग्रसित मरीजों में पड़ता है। अस्थमा की समस्या के लिए भी एलर्जी को ही जिम्मेदार माना जाता है। कुछ मामलों में एलर्जी का कारण आनुवंशिक भी होता है। इन दिनों अगर अस्थमा की समस्या है तो बहुत सतर्क रहने की जरूरत रहती है। कई बार इससे अस्थमा का अटैक भी पड़ जाता है। कुछ लोगों में कुछ खास खाद्य पदार्थों, जैसे चॉकलेट, मशरूम, प्रोटीन से युक्त चीजों आदि से भी एलर्जी की समस्या होती है। हालांकि यह समस्या उन लोगों में अधिक होती है, जिनके माता-पिता को इन चीजों से एलर्जी की शिकायत रहती है। एलर्जी को मौसम के बदलाव से जुड़ी परेशानी मानकर नजरअंदाज करना ठीक नहीं रहता है, क्योंकि कई बार यह गंभीर समस्या भी साबित होती है।

एलर्जी से होने वाली समस्याएं: 
इस मौसम में आंखों की एलर्जी का संक्रमण भी
बहुत होता है। इसके कारण आंखों
से पानी आना, जलन होना, लालिमा
होना और जलन के साथ खुजली की
समस्या हो सकती है। इससे बचने
के लिए ठंडे और गर्म वातावरण
का खयाल रखें। यदि एसी रूम में
बैठे हैं तो गर्म तापमान वाले स्थान
में रुककर जाएं। बाहर निकलने पर
चश्मा जरूर लगाएं और बाइक
चलाते समय हेलमेट का प्रयोग
करें। वहीं कुछ लोगों को सांस लेने
में तकलीफ होती है। इसे सांस की
एलर्जी या अस्थमा भी कहते हैं। यह
बदलते मौसम में अधिक होती है।
इसमें सांस लेने की समस्या, सांस
लेने में आवाज आना, तेज चलने
या काम करने में तेज सांस चलने
की समस्या होती है। इससे बचने
के लिए धूमपान, धूल, धुआं आदि
से दूर रहना चाहिए। कुछ लोगों को
त्वचा की एलर्जी के कारण त्वचा
में चकत्ते, खुजली, लालिमा व
इसके साथ ही जुकाम की समस्या
हो जाती है।



मास्क बचाएगा हर संक्रमण से


यह मौसम सिर्फ एलर्जी का ही नहीं, हर तरह के संक्रमण
का भी है और इससे बचने का
कारगर उपाय है अच्छी गुणवत्ता
वाले मास्क का प्रयोग। कोरोना
संक्रमण होया सांस संबंधी कोई
अन्य संक्रमण, यदि आप मास्क
का प्रयोग करते हैं तो काफी हद
तक सुरक्षित रहेंगे।इसलिए जो
लोग स्वस्थ हैं, उन्हें भी अनिवार्य
रूपसे मास्क का प्रयोग करना
चाहिए।


अपनाएं ये सावधानियां


धूल, मिट्टी और पालतुओं द्वारा
फैलाईगई गंदगी घर में एकत्रन
होने पाए।यदि घर का वेंटीलेशन
ठीक नहीं है तो भीएलर्जी होने
की संभावना बढ़ जाती है। इसके
साथ ही अच्छे सौंदर्य उत्पादों का
प्रयोग करें।मसालेदार और तले
हुए खाद्य पदार्थों के सेवन से बचें।
यह भी ध्यान रखें कि आपको
किस चीज से एलर्जी है। उन चीजों
से दूर रहें।


delta variant kya hai | delta variant ke lakshan kya hai | corona dusari lahar ke lakshan

डेल्टा वेरिएंट क्या है और डेल्टा वैरीअंट के लक्षण(Symptoms) व बचाव(Treatment) के बारे मे 



कोरोना की दूसरी लहर नियंत्रण में है,लेकिन तीसरी लहर की आशंका जताई जा रही है। इसी के साथ इन दिनों डेल्टावैरिएंट को लेकर भी चर्चा तेज है। इसकी तीव्रता को देखते हुए जरूरी है कि संक्रमण से बचने के सारे उपाय अपनाएं जाएं और ज्यादा से ज्यादा हो वैक्सीनेशन...


डेल्टा वेरीअंट क्या होता है?


हमारे देश में कोरोना की दूसरी लहर पर काफी हद तक काबू पा लिया गया है, जो पिछले साल शुरू हुई पहली लहर की तुलना में कहीं अधिक खतरनाक थी। अब कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य विशेषज्ञ सितंबर-अक्टूबर में कोरोना की तीसरी लहर की आशंका जता रहे हैं। दूसरी तरफ दस्तक दे रहा है इसका डेल्टा वैरिएंट, जिसकी तीव्रता काफी अधिक है। इन सबको देखते हुए हमें पहले से ही तैयारियां करनी चाहिए। तीसरी लहर की आशंका और इसके छोटे आयुवर्ग पर प्रभाव के कयासों के बीच नेशनल कमीशन फार प्रोटेक्शन आफ चाइल्ड राइट्स (एनसीपीसीआर) ने कहा है कि अगर कोविड-19 की तीसरी लहर की आशंका जताई जा रही है और इससे बच्चों के प्रभावित होने का कुछ भी अनुमान है तो बच्चों और नवजात शिशुओं को संक्रमण से बचाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को समय रहते रणनीति बनानी होगी।


सर्तकता ही बचाएगी: 


मीडिया लगातार रिपोर्ट कर रहा है कि पिछले कुछ दिनों से डेल्टा प्लस वैरिएंट के साथ कोरोना के मामले भी बढ़ रहे हैं, जिससे तीसरी लहर की आशंका तेज हो गई है। एम्स, नई दिल्ली के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया का कहना है कि अनलाक के बाद जिस तरह से लोग कोविड़ प्रोटोकाल का पालन नहीं कर रहे हैं, उसे देखते हुए तीसरी लहर से बचना मुश्किल हो जाएगा। तीसरी लहर हो या डेल्टा वैरिएंट, बचने के लिए तीन बातों का ध्यान रखना सबसे जरूरी है। कोविड प्रोटोकाल का कड़ाई से पालन करना, कोविड के मामलों से निपटने के लिए बेहतर रणनीति और टीकाकरण। इस स्थिति को देखते हुए हमें सतर्क रहने की जरूरत है, ताकि अप्रत्याशित
स्थिति से बचा जा सके।

बुनियादी नियम न भूलें : 


दो गज की शारीरिक दूरी बनाए रखें। मास्क पहनें। हाथ सैनिटाइजर अथवा साबुन से साफ रखें।

ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग : 


ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग सबसे जरूरी है, ताकि संक्रमित लोगों की तुरंत पहचान कर दूसरे लोगों में संक्रमण को फैलने से रोका जा सके। अगर आपको थोड़ी सी भी आशंका हो तो तुरंत कोरोना की जांच कराएं।


वैक्सीनेशन : 


अधिक से अधिक लोग जल्द से जल्द वैक्सीन लगवा लें। वैक्सीनेशन अधिक होगा, तो तीसरी लहर से बचने के लिए हमारी तैयारी उतनी ही बेहतर होगी। 

डबल मास्क का इस्तेमाल: 


डबल मास्क का इस्तेमाल करें, क्योंकि सिंगल मास्क की तुलना में यह अधिक सुरक्षा प्रदान करता है। सस्ती गुणवत्ता की जगह बेहतरीन क्वालिटी का एन-95 मास्क इस्तेमाल करें। इसके ऊपर सर्जिकल क्लाथ मास्क बांध सकते हैं। सस्ते मास्क से बचें। ये आपके कान, त्वचा और श्वास तीनों के लिए तकलीफदेह साबित होते हैं। आप इन्हें बार-बार उतारते हैं और इस प्रकार संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है। 


इंडोर गैदरिंग से बचना: 


बंद स्थानों पर इकट्ठा होने से बचें। घर-आफिस में वेंटिलेशन का ध्यान रखें, ताकि हवा जल्दी स्वच्छ हो जाए।


सेल्फ मेडिकेशन से दूरीः


कोविड की दूसरी लहर के दौरान अधिकांश लोगों ने बिना चिकित्सक की सलाह के अपनी मर्जी से दवाईयां ली हैं। अपनी मर्जी से दवाईयां लेना या किसी और को दी गई सलाह की नकल करना ठीक नहीं है। यदि कोई दवा किसी एक व्यक्ति के लिए उपयुक्त है, तो वह दूसरे को फायदा पहुंचाए, यह जरूरी नहीं है। 

शुरूआत में स्टेरायड का इस्तेमाल नहीं: 


डाक्टरों और मरीज के परिजनों को भी उपचार के दौरान सतर्क रहने की जरूरत है। उपचार के पहले दिन से स्टेरायड नहीं दिया जाना चाहिए। इसे छठे दिन से दिया जाना चाहिए, अन्यथा म्यूकोरमायकोसिस हो सकता है।


तुरंत डाक्टर को दिखाएं

ब्राजील के रायलकालेज आफ पीडियाट्रिक्स एंड चाइल्ड हेल्थ ने माता- पिता को सुझाव दिया है कि अगर बच्चों में
निम्न लक्षण दिखाई दें तो तुरंत डाक्टर को दिखाएं।
•बच्चे की त्वचा का रंग पीला पड़ जाए
और छूने पर ठंडी महसूस हो।
•अगर सांस लेने में दिक्कत हो।
• होंटो के आसपास नीला पड़ जाए।
• बच्चे को दौरेपड़ने लगें।
बच्चालगाताररोता रहेया सोता रहे।
• त्वचा पर रैशेज पड़ जाएं।

क्या बच्चों के लिए अधिक है खतरा


कोविड-19 की तीसरी लहर से बच्चे कितने प्रभावित होंगे, इसके बारे में अभी कुछ भी नहीं कहाजा सकता, फिर भी सावधानी रखने और मुश्किल स्थितियों के लिए तैयार रहने में कोई हर्ज नहीं है।कोरोना की दूसरी लहर में जो बच्चे संक्रमित हुए उनमें से 90 फीसद में या तो मामूली या कोई लक्षण दिखाई नहीं दिए। इंडियन अकेडमी आफ पीडियाट्रिक्स (आईएपी) ने कहा है कि बच्चों का शरीर नाजुक होता है और उनका रोग प्रतिरोधक तंत्र भी पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ होता है। ऐसे में उनके संक्रमण की चपेट में आने की आशंका अधिक होती है। वहीं एम्स, नई दिल्ली के निदेशक डा.रणदीप गुलेरिया का कहना है कि तीसरी लहर में बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होंगे, यह केवल दावा है। अभी इसका कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है।