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2022-03-29

पिंपल्स - muhase ka ilaj, muhase kaise Hataye ya Saaf Karane, Tarika, Vidhi, Illaj, Upchar, Chhutkara

चेहरे (फ़ेस) मुंहासे दाग धब्बे खत्म या दूर करने का तरीका, इलाज व उपचार छुटकारा?



हामोस में असंतुलन, गलत जीवनशैली या कुछ अन्य कारणों से चेहरे पर एक्ने होना आम बात है, मगर इनको उचित देखभाल में नजर अंदाजी पोछे छोड़ जाती है इनके दाग, जो कर देते हैं चेहरा बेजान...

मुंहासे क्यों होते हैं ?


चेहरे पर मुंहासे होने का अर्थ है कि आपका शरीर यह संकेत दे रहा है कि आपकी दिनचर्या या खानपान की शैली में कुछ परिवर्तन करने की आवश्यकता है। इसके अलावा हामोस में आने वाले बदलाव भी इस प्रक्रिया को तेज कर देते हैं। इससे ज्यादा परेशानी का सबब बनते हैं एक्ने के बाद होने वाले दाग-धब्बे। ये दाग तब होते हैं, जब कोई मुंहासा त्वचा के भीतर गहराई तक पहुंच जाता है और भीतर के टिश्यू को नुकसान पहुंचाता है। इसीलिए हर प्रकार के दाग-धब्बे के उपचार का अलग असर होता है और कुछ उपचार अन्य के मुकाबले खास प्रकार के धब्बों पर ज्यादा प्रभावी होते है। इनका सही उपचार करवाकर ही इन्हें पूरी तरह समाप्त किया जाना चाहिए। जब शरीर में किसी चोट की वजह से अधिक मात्रा में कोलेजन बनने लगता है तो आइस पिक जैसे परेशान करने वाले स्कार्स बन सकते हैं। आइस पिक स्कार्स त्वचा में बहत गहरे तक जगह बना चुके छिद्र होते हैं, जिसे देखकर ऐसा लगता है कि त्वचा एक आइस पिक के साथ पंक्चर की गई है। इसके उपचार में पंच नामक एक छोटे उपकरण से स्कार को काटना और उसकी वजह से बने छिद्र पर टांके लगाना शामिल होता है, लेकिन यह सिर्फ अकेले आइस पिक स्कार्स पर ही काम करता है। अगर कई आइस

रेडियोफ्रीक्वेसी एनजी


पिक स्कार्स हों तो एक्ने स्कार उपचार डिवाइरों जिनमें रेडियोफ्रीक्वेसी एनजी का इस्तेमाल होता है तो ये अच्छा विकल्प साबित होता है। ये उपचार त्वचा के भीतर कोलेजन बनाने में मदद करते है। यह कोलेजन स्कार्सको भीतर से भरने में मदद करता है। लेजर, रेडियोफ्रीक्वेंसी या एक अल्ट्रासाउंड डिवाइस से ऊर्जा आधारित स्किन रिसफेसिंग ट्रीटमेंट काम में आ सकता है, क्योंकि ये सभी त्वचा के भीतर कोलेजन बनाने का काम करते हैं। दाग-धब्बे के विस्तार, रासायनिक पील्स के आधार पर उपचारों की श्रृंखला की जरूरत होती है, जो उसे फैलने से रोकने में मदद करते हैं। इनमें से किसी भी प्रक्रिया के बाद रेटीनॉयड क्रीम का इस्तेमाल करने से कोशिकाओं की संख्या बढ़ती है और कोलेजन में भी इजाफा होता है।

फ्रैक्शनल नॉन एब्लेटिव लेजर


फ्रैक्शनल नॉन एब्लेटिव लेजर नई तकनीक है और पुरानी लेजर तकनीक के मुकाबले इसमें कम समय लगता है साथ ही इसके परिणाम भी अच्छे आते हैं। पुराने एब्लेटिव लेजर्स में त्वचा की बाहरी सतह नष्ट हो जाती है, जिसे ठीक होने में समय अधिक लगता है, लेकिन ये नॉन एब्लेटिव लेजर्स फ्रक्सेल की तरह होते हैं, जो त्वचा की बाहरी सतह से होकर गुजरता है और बिना नुकसान पहुँचाये गहरे टिश्यू को गरमाहट देता है और कोलेजन को रोलिंग स्कास को प्लेटलेट रिच प्लाज्मा (पीआरपी) के साथ  माइक्रोनीडिलिंग के बाद माइक्रोफैट इंजेक्शन के साथ ठीक किया जा सकता है, माइक्रोनीडिलिग से त्वचा पर छोटे धाव हो जाते हैं। इसके बाद शरीर की प्राकृतिक, नियत्रित सुधार प्रक्रिया शुरू होती है जिससे आतरिक तौर पर कोलेजन बनने शुरू हो जाते है। माइक्रोनीडिलिंग भी एक महत्वपूर्ण एक्ने स्कार उपचार है, क्योंकि यह त्वचा के भीतर चैनलों को खोलते हैं, जो पीआरपी सुधार करने वाले कारकों को आपके रक्त और त्वचा की देखभाल करने वाले उत्पादों को त्वचा के भीतरी सतह तक पहुंचने का मौका देते हैं जहां इनकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है।

हाइपरपिगमेंटेशन से एक्ने


स्कार्स का उपचार हाइड्रोक्विनोन और सनब्लॉक के साथ होता है।
हाइड्रोक्विनोन एक टॉपिकल ब्लीचिंग एजेंट होता है, जिसका इस्तेमाल आप सीधे गहरे धब्बे पर कर सकते हैं। सनब्लॉक महत्वपूर्ण है, क्योंकि सूरज की रोशनी में हाइपरपिगमेंटेशन खराब हो सकता है। अन्य लोकप्रिय उपचारों
में ग्लाइकोलिक एसिड क्रीम शामिल है,जो त्वचा पर गहरे धब्बों की बाहरी
सतह को खत्म करती है। कई बार कई प्रकार के उपचारों की जरूरत होती है और यह आपके शरीर की प्राकृतिक सुधार प्रक्रिया पर भी निर्भर करता है।

2022-03-23

स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज करने के फायदे इन हिंदी | स्ट्रेचिंग व्यायाम के लाभ

Stretching Exercises Ke Benefits Ke Labh V Fayde Ke Bare Me Ya Stretching Exercises Kaise Karen


जरूरी है वर्कआउट के बाद प्रॉपर स्ट्रेचिंग...


अक्सर लोग थका देने वाली वर्कआउट के बाद स्ट्रेचिंग करने की अहमियत को नजरअंदाज कर देते हैं, जबकि इसके जरिए थकी हुई मसल्स की फ्लेक्सिबिलिटी बढ़ाने के अलावा मसल टशन कम करने जैसे कई बड़े फायदे मिलते हैं. स्ट्रेचिंग करना भी उतना ही जरूरी है जितना स्ट्रेंथ या कार्डियोवस्कुलर ट्रेनिंग करना. जानें इसके कुछ और फायदे.............

नर्वस सिस्टम हो जाएगा शांत


हेवी वर्कआउट के बाद स्ट्रेचिंग करने से नर्वस सिस्टम रिलैक्स महसूस करता है, इसलिए इसे अपने डेली रूटीन में जरूर शामिल करना चाहिए. आप अपने नर्वस सिस्टम को शांत करने और आराम दिलाने के लिए वर्कआउट के बाद 10-15 सेकेंड की अलग-अलग तरह की स्ट्रेचिंग कर सकते हैं. इससे बॉडी में ब्लड क्लॉट्स भी नहीं पड़ेंगे. आपको अच्छा और रिलैक्स फील होगा. कई बार हेवी वर्कआउट के बाद बॉडी में कंपन महसूस होता है. स्ट्रेचिंग इस प्रॉब्लम को दूर करने में भी मददगार है.


बेहतर होती है फ्लेक्सिबिलिटी



वर्कआउट के बाद बॉडी गर्म होती है और आप आसानी से स्ट्रेच कर सकते हैं. स्ट्रेचिंग से मसल्स रिलैक्स होती हैं और बॉडी की फ्लेक्सिबिलिटी बढ़ती है, क्योंकि बॉडी को जितना स्ट्रेच किया जाता है उसका लचीलापन उतना ही बढ़ता है. यह बॉडी पॉश्चर सही करने में भी मददगार है.



काफी कम हो जाता है स्ट्रेस



टफ वर्कआउट के बाद होने वाली थकान के बाद कुछ करने का मन नहीं करता, लेकिन आपको स्ट्रेचिंग स्किप नहीं करनी चाहिए. यह आपकी वर्कआउट रूटीन का एक जरूरी हिस्सा होता है. एक्सरसाइज के बाद स्ट्रेचिंग करने से स्ट्रेस को भी कम किया जा सकता है. स्ट्रेचिंग से टाइट मसल्स लूज हो जाती हैं, जिससे बॉडी में ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता है. इससे एंडोर्फिन हार्मोन्स रिलीज होते हैं, जिससे आपको खुशी और शांति मिलती है. यह आपके मूड को बेहतर है बनाने में भी मदद करता है.

रिलैक्स हो जाती हैं मसल्स



हेवी वर्कआउट के बाद हम काफी थक जाते हैं. ऐसे में, अगर इसके बादबॉडी को अच्छे से स्ट्रेच कर लिया जाए, तो इससे मसल्स रिलैक्स हो जाती हैं. स्ट्रेचिंग करने से मसल्स को आराम मिलता है और उनमें दर्द की शिकायत नहीं होती है. अगर आप वर्कआउट के बाद स्ट्रेचिंग नहीं करते हैं, तो आपको मसल्स में दर्द की शिकायत हो सकती है. यह मसल्स की अकड़न को दूर करता है और बॉडी को आराम देता है. जब आप वर्कआउट के बाद स्ट्रेचिंग नहीं करते, तो मसल्स रिलैक्स नहीं हो पाती हैं, जिससे कई हिस्सों में दर्द होने लगता है. इनमें पीठ का दर्द सबसे कॉमन है,

स्ट्रेचिंग करने के सिंपल टिप्स


● हाथों को स्ट्रेच करने के लिए दोनों हाथों को सिर के ऊपर उठाएं, दोनों हाथों को जोड़कर और एड़ी उठाकर तेजी से स्ट्रेच करें. इसे आप 5 से 7 बार कर सकते हैं. इससे हाथों की मसल्स रिलैक्स हो जाती हैं.

● पीठ को स्ट्रेच करने के लिए पहले खड़े हो जाएं. अब हल्का सा पीछे की तरफ झुकें. अपने हाथों को लोअर बैक पर रखें और मसल्स को स्ट्रेच करें. इससे आपको पीठ के दर्द में आराम मिलेगा.

● कमर को स्ट्रेच करने के लिए पैरों को कंधों के बराबर चौड़ाई में खोल लें. अपने दोनों घुटनों को हल्का सा मोड़ें. अब आगे की तरफ झुकें और दोनों हाथों को घुटनों पर रखें. मसल्स को स्ट्रेच करने की कोशिश करें.

2022-03-15

नकारात्मक और सकारात्मक भावना इन हिंदी | bhavnaye kya hoti hai

नकारात्मक और सकारात्मक भावनाएं क्या होती है?

भावनाए क्या होती है?

  भावनाओ के कई रंग हैं। कभी ये हमें मजबूत बनाती है, तो कभी हमारी सबसे बड़ी कमजोरी बन जाती है और जब हम भावनात्मक रूप से कमजोर होते हैं, तो जिंदगी की लड़ाई में पीछे छूटते जाते है।


    भावनाओं के दो पहलू होते हैं। एक तरफ जहां भावनाएं हमें मजबूत बनाती हैं, तो दूसरी तरफ येहमारी सबसे बड़ी कमजोरी भी बन जाती हैं। भावनाएं सकारात्मक भी होती हैं और नकारात्मक भी। सकारात्मक भावनाएं प्रेम, लगाव एवं दया से जुड़ी होती हैं, जबकि नकारात्मक भावनाएं लालच, गुस्सा, हिंसा एवं स्वार्थ के कारण विकसित होती हैं। नकारात्मक भावनाएं व्यक्ति के शारीरिक एवं मानसिक व्यक्तित्व को नुकसान पहुंचाती हैं।

    उन्हें क्षतिग्रस्त कर देती हैं। ये हमें स्वार्थी, आत्म-केन्द्रित, अपने तक सीमित रहने वाला बना देती हैं। इससे तनाव का स्तर भी बढ़ने लगता है। ऐसे लोग ज्यादा नकारात्मक सोचते हैं, जिसके कारण उनके जीवन में कोई सकारात्मकता नहीं रह जाती है।

    नकारात्मक सोच वाले व्यक्ति आमतौर पर स्वभाव से ईर्ष्यालू होते हैं। वे हमेशा बदला लेने की भावना से पीड़ित रहते हैं। धीरे-धीरे विकृत मानसिकता वाले बन जाते हैं। उनके पास किसी व्यक्ति या स्थिति के लिए अच्छे शब्द नहीं होते हैं। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि आप अपने अन्दर सकारात्मक भावनाओं को बढ़ावा दें और नकारात्मक भावनाओं से उभरने या बाहर आने की कोशिश करें।



एक नजर इधर भी


  • 20 में से प्रत्येक एक व्यक्ति निराशा और तनाव से घिरे होते हैं।
  • इसकी मुख्य बजह है, उनका नकारात्मक सोच से घिरे होना।
  • नकारात्मक भावनाएं ऐसी संवेदनाएं होती हैं,जो व्यक्ति को बेचारा एवं दुखी बना देती हैं। व्यक्ति खुद के साथ-साथ दूसरों को भी नापसंद करने लगता है।



उत्साह में कमी


भावनाएं व्यक्ति के स्वभाव, व्यक्तित्व, विचार आदि पर निर्भर करती हैं।नकारात्मक भावनाएं ऐसी संवेदनाएं होती हैं, जो व्यक्ति को बेचारा एवं दुखी बना देती हैं। नकारात्मक भावनाओं से पीड़ित व्यक्ति खुद के साथ-साथ दूसरों को नापसंद करने लगता है। इससे व्यक्ति का विश्वास डगमगाने लगता है।

नकारात्मक भावनाओं वाले व्यक्ति का जीवन के प्रति उत्साह कम हो जाता है। यह इस पर ज्यादा निर्भर करता है कि हम इन नकारात्मक भावनाओं से कितने समय तक प्रभावित रहे। हमनें इन्हें किस प्रकार व्यक्त किया।


नकारात्मकता में सकारात्मकता ढूंढे


भावनात्मक संतुलन के लिए किसी भी स्थिति में तुरन्त प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए। पहले सोचें, विचार करें, सही कारण जानने की कोशिश करें, स्थिति का आकलन करें, उसके बाद अपनी राय दें। फिर कार्यवाही करें। भावुक न हों। भावुक होकर कोई कार्य न करें। नकारात्मक एवं विषम परिस्थितियों में भी सकारात्मक चीजें करने की कोशिश करनी चाहिए। हमेशा सकारात्मक बातें एवं कार्य करने चाहिए। सकारात्मक संतुलन आनुवांशिक एवं परिस्थिति जन्य भी होता है। यह आपके समूह एवं आपके मित्र, परिवार जिनके साथ अधिकतर समय व्यतीत करते हैं या रहते हैं, पर भी निर्भर करता है।


सेहत पर असर


नकारात्मक सोच वाले व्यक्तियों को अक्सर दूसरों से शिकायत रहती है। वे हमेशा दूसरों में दोष निकालते हैं। बुराई करते हैं। ऐसे लोगों के साथ यदि आप रहेंगे, तो आपकी सोच भी नकारात्मक हो जाएगी। कोशिश करें सकारात्मक लोगों के साथ रहने की। भावनात्मक संतुलन बनाए रखने के लिए चीजों को बिना तोड़े-मरोड़े स्वीकार करना सीखें। उसके प्रभाव में न आएं। भावनात्मक संतुलन व्यक्ति की अपनी सेहत एवं भलाई के लिए जरूरी है। प्रार्थना, संध्या, ध्यान, ईश्वर में विश्वास और दयालु हृदय व्यक्ति को सकारात्मक बनाने में मदद करते हैं।


संतुलन बनाएं


भावनात्मक असंतुलन होने की दशा में कई तरह की समस्याएं देखी जा सकती हैं जैसे मांसपेशियों में दर्द, ऐंठन, त्वचा में झनझनाहट, तनाव बढ़ना आदि। भावनात्मक संतुलन बनाए रखने के लिए हंसने के साथ-साथ कभी-कभी रोना भी जरूरी है। कई  शोध यह साबित कर चुके हैं कि रोना हमारी मानसिक सेहत के लिए काफी फायदेमंद है।  रोने से भावनात्मक संतुलन बरकरार रहता है। हंसना-रोना एक स्वाभाविक क्रिया है। रोने से तनाव दूर होता है। तनाव के कारण शरीर में जमा टॉक्सिन रोने के बाद खुद-ब-खुद धुल जाता है।


2022-03-07

रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी क्या है - Radiofrequency Neurotomy Kya Hota Hai | Spinal Pain Treatment In Hindi

Radio Frequency Neurotomy Treatment Ke Bare Me Janakari

लंबे समय से रीढ़ के दर्द से जूझते मरीजों के लिए आशा की किरण है रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी। इससे पुराने दर्द और रीढ़ की कई तकलीफों में मिल जाती है राहत............


रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी क्या है?


व्यस्त जीवनशैली और एक्सरसाइज की कमी के चलते स्वास्थ्य को लेकर हम काफी हद तक लापरवाह हो चुके हैं। ऐसे में रीढ़ और मांसपेशियों से जुड़ी तकलीफों से दो-चार होने वाले मरीजों की संख्या बहुत 
तेजी से बढ़ रही है। आज अधिकतर लोग ऑस्टियो अर्थराइटिस, रुमेटॉइड अर्थराइटिस, सर्वाइकल, स्पाइनल स्टेनोसिस से ग्रस्त हैं। इसके अलावा बढ़ती उम्र या चोट के कारण कार्टिलेज घिसने लग जाता है, जिससे जोड़ों में सूजन आ जाती है। यह अर्थराइटिस की शुरुआत होती है। ज्यादातर रीढ़ की हड्डी की तकलीफ जैसे-ऑस्टियो अर्थराइटिस, स्पाइनल स्टेनोसिस या पीठ की कोई गहरी चोट आदि फैसेट ज्वाइंट में दर्द का मुख्य कारण होती हैं। आमतौर पर इनके प्राथमिक उपचार में मरीज के दर्द के हिसाब से फिजियोथेरेपी, दर्द निवारक दवा या पारंपरिक सर्जरी का इस्तेमाल किया जाता है, जबकि अब रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी जैसी अत्याधुनिक तकनीक की मदद से लंबे समय से हो रहे दर्द में राहत देने के लिए रीढ़ की हड्डी का उपचार संभव है।


इस तरह होती है सर्जरी:


सर्जरी की इस नई तकनीक रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी में ना के बराबर चीरा लगाया जाता और सर्जिकल प्रक्रिया ऐसी होती है कि मरीज को उसी दिन डिस्चार्ज कर दिया जाता है। इसमें रेडियो फ्रीक्वेंसी वेव्स, जो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स होती हैं और प्रकाश की गति से तेज चलती हैं, को एक विशेष जनरेटर को उच्चतम तापमान पर रखकर बनाया जाता है। इससे हीट एनर्जी बनाकर सुनिश्चित तंत्रिकाओं तक पहुंचाई जाती है, जो दर्द आवेगों को मस्तिष्क तक लेकर जाती है। रेडियो फ्रीक्वेंसी वेव्स को सुई की नोक से मिलाया जाता है, जो तंत्रिका को मस्तिष्क तक दर्द के संकेतों को भेजने से बाधित करता है।

रेडियो फ्रिक्वेन्सी न्यूरोटॉमी के प्रकार?


रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी से उपचार मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं:
मीडियल ब्रांच न्यूरोटॉमी यानी एब्लेशन, जो फैसेट जोड़ों से दर्द ले जाने वाली तंत्रिकाओं को प्रभावित करता है और दूसरा, लेटरल ब्रांच न्यूरोटॉमी, जो सेक्रोइलिएक जोड़ों से दर्द ले जाने वाली तंत्रिकाओं को प्रभावित करता है।

रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी से हर दर्द से राहत 


रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी कई पुराने जोड़ों के दर्द जैसे स्पाइनल आर्थराइटिस, लो बैक पेन, स्पाइनल स्टेनोसिस, सर्वाइकल स्पाइन सर्जरी के बाद का दर्द, फेल्ड बैक सर्जरी सिंड्रोम और अन्य रीढ़ के दर्द में भी असरदार प्रतिक्रिया दिखाती है। यह कुछ न्यूरोपैडिक से जुड़े दर्द जैसे कांप्लेक्स रीजनल पेन और अन्य मिश्रित पुराने दर्द में भी असरदार है। इस इलाज के लिए एक मरीज की उम्मीदवारी आमतौर पर एक डायग्नोस्टिक नर्व ब्लॉक के प्रदर्शन पर निर्धारित होती है।

बेहतर है विकल्प


रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी लंबे समय से हो रहे दर्द में स्टेरॉयड इंजेक्शन के मुकाबले अधिक राहत देती है। अधिसंख्य मरीज इससे उपचारलेने के बाद दर्द से निजात पा लेते हैं। इस विधि में बहुत छोटे चीरे का इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए यह किसी अन्य सर्जरी के मुकाबले जल्दी राहत देने वाली होती है। साथ ही इस सर्जरी के निशान भी नहीं पड़ते हैं।

2022-03-04

चेहरे के दाग धब्बे झुर्रियां कैसे हटाए - chehra saaf karne ke gharelu upay v tarika vidhi

Chehare Par Dag Pimple Aur Jhurya Kaise Hataye Or Chehra Chamkane v Saaf Karane Ke Gharelu Nuskhe


चेहरे पर दाग-धब्बे, झुर्रियां अक्सर आपको तनाव देती हैं। इन्हें दूर करने के लिए आप तरह-तरह के जतन करती हैं। ऐसे में कभी प्राकृतिक पद्धति को भी आजमाकर देखिए।


फेशियल क्यूपिंग क्या होता है?


सुंदरता की चाहत ने प्राचीन काल से लेकर आज तक न जाने कितने ही
घरेलू नुस्खे और अलग-अलग चिकित्सकीय तौर-तरीके खोजे हैं। आजमाए जा चुके कई तरीके खूबसूरती को बनाए रखने में कारगर भी साबित हुए हैं। फेशियल क्यूपिंग भी एक ऐसी ही प्राचीन थेरैपी है, जो चेहरे को ऐसा खूबसूरत और चमकदार बनाती है कि लोग देखते ही रह जाएं। सौंदर्य विशेषज्ञ मानते हैं कि फेशियल क्यूपिंग से बेहतर परिणाम आए हैं, हालांकि वे यह भी कहते हैं कि इसे आजमाने में कुछ सावधानियां अत्यधिक जरूरी हैं।


चेहरे की सफाई से शुरुआत



फेशियल क्यूपिंग थेरैपी के लिए पहले चेहरे और गर्दन की गहराई से सफाई की जाती है और फिर कुछ चिकित्सकीय तेलों से त्वचा की मालिश। इसके बाद चेहरे पर सक्शन कप को उल्टे-सीधे तरीके से रखते हैं। थोड़ी देर बाद चेहरे की मांसपेशियों को आराम देने के लिए कप को पूरे चेहरे पर घुमाते हैं। इस तरह कप रिवर्स सेक्शन शुरू होता है, जो ऑक्सीजन आपूर्ति बढ़ाकर और रक्त परिसंचरण में सुधार लाकर चेहरे के ऊतकों को पुनर्जीवित करने के लिए एक वैक्यूम बनाता है। इससे ऊतकों की परतें अलग होती हैं, चेहरे की टेंस मसल्स को आराम मिलता है और स्किन को एक प्रॉपर ट्रीटमेंट मिलता है।

क्या हैं फायदे


फेस क्यूपिंग मांसपेशियों के तनाव को कम करती है। कोलेजन उत्पादन को बढ़ावा देने वाली त्वचा कोशिकाओं को उत्तेजित करती है। रक्त परिसंचरण और ऑक्सीजन में वृद्धि करती है। चेहरे के ऊतकों को मजबूत करती है। चेहरे पर एक स्वस्थ चमक लाती है। झुर्रियां, काले दाग- धब्बों के साथ बढ़ती उम्र के प्रभाव को कम करती  है। चेहरे से फाइन लाइंस को भी कम करती है।


रक्त को शुद्ध करने के लिए


फेशियल क्यूपिंग यानी रक्त मोक्षण आयुर्वेद की वह पद्धति है, जिसका उपयोग रक्त की शुद्धि करके त्वचा के निखार के लिए किया जाता था। क्यूपिंग असल में, रक्त को शुद्ध करने के साथ ही उसके सर्कुलेशन को बढ़ा देती है। इससे त्वचा में निखार आता है। इसका असर हार्मोंस की गड़बड़ी को दूर करने के तौर पर भी देखा गया है। वैसे तो इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता, लेकिन विशेषज्ञ की देख-रेख में भी इसे कराना बेहतर है, क्योंकि वही इसे सही ढंग से करा पाते हैं।


घर पर भी फेस क्यूपिंग



उचित देखभाल और सावधानियों के साथ फेशियल क्यूपिंग घर पर भी की जा सकती है, लेकिन यदि आपके चेहरे की त्वचा काफी संवेदनशील है तो उसको टीएलसी की जरूरत होती है। घर पर फेस क्यूपिंग के लिए पहले चेहरे की गंदगी को साफ करें। फिर किसी प्राकृतिक तेल (जोजोबा तेल) से चेहरे की धीरे-धीरे मालिश करें। सक्शन कप से धीरे से त्वचा को दबाएं। जब चेहरे की त्वचा पर खिंचाव महसूस करने लगें तो धीरे-धीरे दूसरी तरफ करें। इसे हमेशा चेहरे के मध्य भाग से शुरू करें। नाक, भौं के लिए छोटे कप और माथे, गाल के लिए बड़े कप का उपयोग करें। इस प्रक्रिया को 5-10 मिनट तक ही करें।



कब न करें



वैसे तो इस थेरैपी को दोषपूर्ण नहीं माना गया है, न ही इसके कोई दुष्परिणाम देखने को मिले है, लेकिन इससे मिलने वाले परिणाम भी इस बात
पर निर्भर करते हैं कि आपकी त्वचा किस प्रकार की है। इसके चलते कुछ मामूली दुष्प्रभाव हो सकते हैं, जैसे- जी मिचलाना, चक्कर आना, सिर चकराना, ठंड लगना, जलन या रैशेज। यही वजह है कि सूजन और त्वचा पर किसी भी तरह की चोट होने पर इस थेरैपी को आजमाने की सलाह नहीं दी जाती। इस थेरैपी का उपयोग करने से पहले सौंदर्य विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें और उनके बताए तरीकों का ही पालन करें।

2021-08-05

mirgi bimari ka ilaj | mirgi se chutkara kaise paye | mirgi ke jhatke ka ilaj | mirgi rog ka ilaaj | mirgi treatment in hindi

मिर्गी और उपचार के बारे मे जानकारी या मिर्गी बीमारी का इलाज क्या है?

मिर्गी और उसके उपचार

राष्ट्रीय मिर्गी दिवस (17 नवंबर) के लिए इस वर्ष की थीम रही 'आइए मिर्गी के बारे में बात करें।' जानते हैं इस बीमारी के आधुनिक उपचार के बारे में...



मिर्गी हर आयु के बच्चों को प्रभावित कर सकती है। हालांकि यह एक सामान्य विकार है, जो संपूर्ण जनसंख्या के एक फीसद बच्चों में पाया जाता है। अभी भी मिर्गी के बारे में बहुत सारे मिथक बने हुए हैं, जिसके परिणामस्वरूप बच्चों को उचित उपचार नहीं मिल पाता है। बच्चों में मिर्गी प्रमुख रूप से एक वर्ष की आयु तथा किशोरावस्था में दिखाई देने वाली बीमारी है। बचपन में मिर्गी के दौरे विभिन्न प्रकार के होते हैं। जिसमें कुछ लक्षण न दिखाई देने वाले तथा कुछ में कंपकपाहट व सिहरन की समस्या हो सकती है।

भारत में इसके होने के दो प्रमुख कारण हैं, जिनमें एक आनुवांशिक व दूसरा मस्तिष्क की चोट होता है। इस बीमारी के बारे में आज भी जागरूकता का अभाव है। इसका बुरा पहलू यह है कि आज भी इसके रोगी को लोग उपेक्षा की नजर से देखते हैं, जबकि अब तो दवाओं के साथ ही मिर्गी की सर्जरी का विकल्प भी मौजूद है, जिससे पीड़ित बच्चा, सामान्य बच्चों की तरह जीवन व्यतीत कर सकता है।


सर्जरी का विकल्प है मौजूदः


हालांकि ऐसा नहीं है कि कुछ फीसद बच्चे जिनकी मिर्गी दवाओं से नियंत्रित नहीं होती है, उनके लिए संभावनाएं खत्म हो जाती हैं। ऐसे रोगियों के लिए मिर्गी की सर्जरी, न्यूरोमॉड्यूलेशन सर्जरी और कीटोजेनिक आहार जैसे विभिन्न प्रकार के उपचार उपलब्ध हैं। इनमें मिर्गी की सर्जरी सबसे बेहतर विकल्प है, क्योंकि यह सफल रोगनिवारक है। इससे रोगी के पूरी तरह ठीक होने की संभावना रहती है।


हर उम्र में कारगर :


मिर्गी की सर्जरी किसी भी उम्र में की जा सकती है। यह देश के चुनिंदा मिर्गी केंद्रों में उपलब्ध है। इस सर्जरी को करने से पहले रोगी को कुछ विशिष्ट व निश्चित चरणों से गुजारा जाता है। इसके पहले चरण में रोग का मूल्यांकन किया जाता है और इसी के साथ वीडियो ईईजी और विशेष एमआरआई स्कैन जैसे परीक्षण किए जाते हैं। कुछ मरीजों में पीईटी और एसपीईसीटी स्कैन भी किए जाते हैं। इन सभी जांचों से रोग के बारे में सटीक जानकारी मिल जाती है। चिकित्सक सर्जरी की सलाह तभी देते हैं, जब वे सुनिश्चत कर लेते हैं कि बच्चा इससे ठीक हो जाएगा या नहीं।

कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं :


अच्छी बात यह है कि मिर्गी की सर्जरी के दुष्परिणाम बहुत कम होते हैं। न्यूरोमाड्यूलेशन सर्जरी में रोगी के सीने या गर्दन की वेगसतंत्रिका के आसपास अथवा दिमाग में एक डिवाइस इंसर्ट कर दी जाती है। ये डिवाइस संकेत भेजती है, जिससे रोगी मिर्गी के दौरों पर नियंत्रण पा लेता है और दवाओं की जरूरत खत्म हो जाती है।


ये बच्चे भी होते हैं मेधावी



लगभग 70-80 फीसद मिर्गी का उपचार मिर्गी रोधी दवाओं के जरिए किया जाता है। बालपन में मिर्गी के अधिकतर मामलों में चिकित्सक कुछ वर्षों के बाद दवाओं को बंद कर देते हैं, क्योंकि मिर्गी के लक्षण एक उम्र तक ही सीमित होते हैं। ऐसा नहीं है कि इस बीमारी से ग्रसित बच्चे अन्य बच्चों जैसी गतिविधियां जैसे स्कूल जाना, खेलना, पढ़ना और पिकनिक नहीं कर सकते हैं। सच तो यह है कि इससे ग्रसित बच्चे भी मेधावी हो सकते हैं और अन्य बच्चों की तरह सफल करियर बना सकते हैं।

2021-07-21

corona hone ke bad ke lakshan | covid ke baad ke lakshan | corona hone ke bad side effects | corona theek hone ke bad

Corona Se Thik Hone Ke Baad Side Effects Or Corona Virus Ke Baad Hone Wali Bimari 


Corona Thik Hone Ke Baad Ke Lakshan 



कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद लोगों को कमजोरी, सांस फूलना, पैरों में सूजन, थकान और नींद न आने की समस्या हो रही है। दो से तीन माह में ये लक्षण समाप्त हो जाते हैं लेकिन अगर इस तरह की परेशानी बनी रहे तो चिकित्सकीय परामर्श जरूर लें...



कोरोना से ठीक होने के बाद भी लोगों को कई तरह की समस्याएं हो रही हैं। इनमें सबसे आम है थकान, कमजोरी और नींद नहीं आना। लोगों में कोरोना संक्रमण से उबरने के दो से तीन महीने तक इस तरह की तकलीफ देखने को मिल रही है। हालांकि पहली लहर की अपेक्षा दूसरी लहर में इस तरह के मामले ज्यादा देखने को मिल रहे हैं।
संक्रमित होने के बाद जिन लोगों को इस तरह की परेशानी हो रही है, वे घबराएं नहीं, क्योंकि अधिसंख्य मामलों में धीरे-धीरे इस तरह की परेशानी अपने आप ही समाप्त हो जाती है। ऐसे लोगों को चाहिए कि वे पोषक आहार लें, हल्का व्यायाम और योग करें। हां, सतर्कता रखना बेहद जरूरी है। यदि कुछ भी असामान्य लगता है।
चिकित्सक से परामर्श जरूर करें। इसके अलावा यदि छाती में दर्द, सांस फूलना और पैरों में सूजन हो तो इसे भी गंभीरता से लें। ये समस्याएं खून का थक्का जमने की वजह से होती हैं। खून का थक्का किसी भी अंग में पहुंचकर नुकसान पहुंचा सकता है। ये थक्का फेफड़े, हार्ट और ब्रेन में पहुंचकर खून की आपूर्ति रोकता है, जो
जानलेवा साबित होता है। कोरोना संक्रमण के बाद लकवा और हार्ट अटैक के भी खूब मामले प्रकाश में आ रहे हैं। कई बार खून का थक्का इस तरह का अवरोध पैदा करता है कि पैरों में गैंगरीन (खून की सप्लाई नहीं होने से वह हिस्सा खराब होना) और आंखों की रोशनी जाने का खतरा हो सकता है। हालांकि इसमें उन लोगों को ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है, जो कोरोना संक्रमण के चलते गंभीर स्थिति में पहुंचे हों।


म्यूकरमायकोसिस से भी रहें सतर्क :


कोरोना से ठीक होने के बाद म्यूकरमायकोसिस के मरीज मिल रहे हैं। यह बीमारी उन लोगों को ज्यादा होती
है, जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है। यह सिर्फ परिकल्पना है कि कोरोना के दौरान जिन्हें स्टेरायड दिया गया उन्हें यह बीमारी हुई।
म्यूकरमायकोसिस का असर नाक, आंख और ब्रेन में होता है, लेकिन कई बार यह संक्रमण फेफड़ों में भी पहुंच जाता है, जो बहुत दुर्लभ माना जाता है। एंटीफंगल इंजेक्शन और सर्जरी से ज्यादातर मरीजों में यह बीमारी ठीक हो जाती है। नाक बंद होना, चेहरे में सूजन, आंखें लाल होना और नाक से काला पानी आने की समस्या हो तो तत्काल चिकित्सक को दिखाएं।


किसी बीमारी से पीड़ित रहे हैं और कोरोना
हुआ है तो ज्यादा सतर्क रहें :


जिन मरीजों को पहले से कोई बीमारी थी और कोरोना की चपेट में आ गए तो उन्हें चाहिए कि पुरानी बीमारी की कोई भी दवा चिकित्सक की सलाह के बिना बंद न करें और न ही दवा का डोज खुद से बढ़ाएं।
जिन लोगों के फेफड़े पहले से खराब है, दिल की बीमारी है या फिर दूसरी तकलीफ है, उन्हें दोसरा कोरोना होने पर ज्यादा परेशानी हो सकती है। इन्हें कोरोना से बचने के सारे उपाय अपनाते हुए वैक्सीन जरूर लगवानी चाहिए। फेफड़े की बीमारी वाले मरीजों को पहले भी एंफ्लूएंजा और निमोनिया से बचाव के लिए न्यूमोकोकल वैक्सीन लगाई जाती थी और अब इसमें कोरोना से बचाव का टीका भी शामिल हो गया है।


सही हो खानपान और दिनचर्या :



कोरोना से उबर चुके मरीजों को अपनी दिनचर्या सुव्यवस्थित रखनी चाहिए।अधिक तेल- मसाले वाले खाने से परहेज करें और घर में बनी चीजों को प्राथमिकता दें दिन में दो लीटर पानी अवश्य पिएं। वही खाना खाएंजो आसानी से पच जाए। नियमित रूप से हल्के व्यायाम करें।दो-तीन महीने ऐसे व्यायाम न करें, जिनमें अधिक मेहनत लगती है।

कोरोना संक्रमित होने के बाद लोगों को नींद नहीं आने की भी समस्या हो रही है:


 यदि लगातार यह समस्य बनी रहे तो मनोचिकित्सक को दिखाएं। अच्छी नींद के लिए जरूरी है कि शाम के बाद चाय-काफीन लें। सोने के एक घंटे पहले टीवी, कंप्यूटर या मोबाइल स्क्रीन से दूरी बना लें।


शुगर का स्तर नियंत्रित रखें :


डायबिटीज के मरीजों में कोरोना होने पर गंभीर होने का
खतरा ज्यादा रहता है। कोरोना संक्रमण के बाद
वे मरीज गंभीर स्थिति में आए, जिनका शुगर
का स्तर नियंत्रित नहीं रहा है। इन्हें यही सलाह
है कि दवाएं नियमित लें। कोरोना संक्रमण के
दौरान स्टेरायड दिए जाने की वजह से भी कुछ
मरीजों का शुगर का स्तर बढ़ता है, लेकिन एक-
दो महीने में अपने आप ठीक भी हो जाता है।
कोरोना संक्रमितों में देखा गया कि कुछ लोग
ऐसे भी थे, जो डायबिटीज की पूर्व अवस्था
(प्रीडायबिटिक) में थे। ये स्टेरायड दिए जाने से
डायबिटीज मरीज की श्रेणी में आ गए।


मास्क अवश्य लगाएं :


मास्क का प्रयोग अनिवार्य रूप से करें। अस्पताल या भीड़ वाली जगह में जा रहे हैं तो एन-95 मास्क का प्रयोग करें। सामान्य भीड़ वाली जगह में सर्जिकल मास्क से भी काम चला सकते हैं। कपड़े का मास्क प्रयोग करें तो दोहरा मास्क लगाएं।

कोरोना से ठीक होने के दो महीने बाद लगवाएं टीका



संक्रमित होने के बाद लोगों के मन में यह सवाल बार-बार आता है कि वैक्सीन लगवाई जाए या नहीं। ऐसे लोगों को चाहिए कि कम से कम दो माह तक वैक्सीन न लगवाएं।ध्यान रहे कि आप डायबिटीज या हाई ब्लडप्रशेर जैसी किसी भी बीमारी से पीड़ित क्यों न हों, वैक्सीन जरूर लगवाएं। ऐसी कोई बीमारी नहीं है जिसमें टीका लगवाने से मना किया गया हो। कोरोना से संक्रमित लोग पाजिटिव आने के दिन से कम से कम दो महीने बाद टीका लगवाएं। जिन्हें पहला डोज लगने के बाद कोरोना हुआ है चे भी यही करें। टीका लगवाने के पहले यह देख लें कि बुखार, स्वाद या गंध नहीं आने समेत कोरोना के कोई लक्षण तो नहीं हैं। यदि ऐसा है तो कोरोना की जांच कराने के बाद रिपोर्ट निगेटिव आने परही वैक्सीन लगवाएं।

2021-07-19

corona janch kab karna chahiye | corona janch type | corona janch kaise kare | corona ki janch kaise karaye aur kaise pata kare

कोरोना की जांच कैसे होगी या कोरोना की जांच कब करनी चाहिए




कोविड या पोस्ट कोविड मरीजों के आंतरिक अंगों की क्या स्थिति है? सूजन या रक्त साव का खतरा तो नहीं  है?
ब्लॉकेज अथवा स्ट्रोक का खतरा तो नहीं है?क्या कोविड का उपचार पा रहे मरीजों की समय रहते जरुरी जांचें कराई जार ही हैं? ऐसे कई सवाल जुड़े हैं कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की सेहत के साथ। जानें देश के बड़े अस्पतालों और विशेषज्ञों के हिसाब से क्या है जमीनी स्थिति...



 कोरोना की जांच क्यू जरूरी है? अगर आप पहले से संक्रमण के दायरे मे है तो,,,


इंदौर निवासी 32 वर्षीय रोहित जैन (परिवर्तित नाम) कोरोना संक्रमित पाए गए। आठ दिन अस्पताल में भर्ती रहे। अगली रिपोर्ट नेगेटिव आई। डिस्चार्ज होकर घर लौटे ही थे कि हालत फिर बिगड़ने लगी। दोबारा अस्पताल ले जाकर जांच कराई तो छाती का सीटी स्कैन कराने पर पता चला कि फेफड़े में बहुत संक्रमण है। दो दिन में उनकी मौत हो गई। ऐसे अनेक मामले सामने आ रहे हैं, जहां स्थिति का समय पर व सटीक अनुमान नहीं लगा पाने के कारण देर हो गई। समय रहते निदान और उपचार इससे बचने का एकमात्र उपाय है।


भारी न पड़ जाए लापरवाही:


कोरोना के निदान और उपचार में प्रारंभिक अवस्था से ही तमाम आशंकाओं और संभावित खतरों पर बारीकी से नजर रखी जाए तो प्रत्येक मौत को टाला जा सकता है। संक्रमण मुक्त हो जाने के बाद भी इस बात को सुनिश्चित कर लेना आवश्यक है कि शरीर के अंदर सब ठीक है कि नहीं? क्योंकि जरा सी भी चूक भारी पड़ सकती है। ऐसे तमाम टेस्ट उपलब्ध हैं, जिन्हें आसानी से कराया जा सकता है और जो महंगे भी नहीं हैं। किंतु फिलहाल जांच की जगह लक्षणों के आधार पर उपचार किया जा रहा है और केवल गंभीर मरीजों के मामलों में ही इन जांचों का सहारा लिया जा रहा है।


मरीज की स्थिति पर सब निर्भरः


हालांकि अस्पतालों, चिकित्सकों व सरकार के अनुसार सभी संक्रमितों को इन परीक्षणों की आवश्यकता नहीं पड़ती है। सीआरपी, एलडीएच, फेरेटिन, पीसीटी, एलडीएच, डी-डाइमर, आइएल-6, ब्लड गैसेस, एएसटी, एएलटी, टी-बिल, क्रेटेनाइन डब्ल्यूबीसी काउंट, न्यूट्रोफिल काउंट, लिंफोसाइट काउंट, प्लेटलेट काउंट
और चेस्ट एक्स-रे इत्यादि कुछ आवश्यक जांचें इंफ्लमेटरी मार्कर हैं, जिनसे आंतरिक अंगों की स्थिति का पता चलता है। यह जांचें कब होनी चाहिए, इसके लिए कोई आदर्श समय नहीं है, किंतु यह मरीज की स्थिति पर निर्भर होता है। वहीं, कुछ चिकित्सकों ने स्वीकार किया कि यदि यह जांचें प्रारंभिक अवस्था में ही करा ली जाएं, तो मरीज को गंभीर स्थिति में जाने से बचाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त सामान्य संक्रमण के बाद ठीक हुए मरीजों की भी एहतियात के तौर पर ये जांचें कराई जानी चाहिए, ताकि सुनिश्चित हुआ जा सके कि वे किसी तरह के खतरे में तो नहीं हैं।


अनिवार्य बनाए जाएं यह टेस्ट



कोरोना के निदान और उपचार की आदर्श प्रक्रिया में आवश्यक जांचों की उपयोगिता पर मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल के बायोकेमिस्टीएंड इम्यूनोलॉजी डिपार्टमेंट की विशेषज्ञ डॉ.बरनाली दास
अपने अध्ययन से इस निष्कर्ष पर पहुंची कि कुछ जांचें संक्रमण की शुरुआती अवस्था से ही करा लेनी चाहिए। इन्हें अस्पताल के एडमिशन प्रोटोकॉल (भर्ती की प्रक्रिया) में शामिल किया जाना चाहिए ताकि शरीर के अंदरूनी अंगों और प्लेटलेट्स की स्थिति पर नजर रखी जा सके। उनके अनुसार इन जांचों को प्रारंभिक काल में ही करा लेना चाहिए ताकि इनके अनुरूप उपचार को गति दी जा सके:

1.सीआरपी(सी रिएक्टिव प्रोटीन)
2.एलडीएच (लेक्टेट डिहाइड्रोजेनेस)
3.फेरेटिन, पीसीटी (प्रोकेल्सीटोनिन)
4.एलडीएच
5.डी-डाइमर
6.आइएल-6
7.ब्लड गैसेस
8.एएसटी
9.एएलटी
10.टी-बिल
11.क्रेटेनाइन डब्ल्यूबीसी काउंट
12.न्यूट्रोफिल काउंट
13.लिंफोसाइट काउंट
14.प्लेटलेट काउंट
15.चेस्ट एक्स-रे




1. कम से कम आइसीयू के सभी कोविड मरीजों की तो यह जांचें कराईही जानी चाहिए। मरीज की रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद भी फेफड़ों का सीटी स्कैन कराया जाना चाहिए। यदि उनमें किसी भी प्रकार के लक्षण नजर आते हैं, तब भी यह जांचें करानी चाहिए।



2. जांचे कब कराई जाए, इसके लिए कोई आदर्श समय नही है। यह मरीज की स्थिति पर निर्भर करता है। हां, ऑक्सिजन लेवल 94 से नीचे आने पर विभिन्न जांचे कराई जाती है।



3. आंतरिक रक्तस्राव का असर लिवर व शरीर के अन्य हिस्सों पर पड़ता है इसलिए मरीज को इससे बचाया जाना चाहिए। ऑक्सीजन की मात्रा 94 फीसद से कम होने पर डी-डाइमर और अन्य आवश्यक जांचें अवश्य कराई जानी चाहिए।



क्यों जरूरी है जांच




डी-डाइमर टेस्ट



डी-डाइमर एक तरह का प्रोटीन है, जो कोरोना मरीजों के फेफडे में संक्रमण या सूजन के चलते बढ़ जाता है। इस जांच से यह पता चलता है कि खून गाढ़ा तो नहीं हो रहा। खून गाढ़ा होकर थक्का बनने से मरीजों की मौत भी हो सकती है, इसीलिए खून पतला करने की दवाएं दी जाती हैं। इस जांच से यह भी पता चलता है कि रक्त के थक्का जमने की संभावना कितनी है। थक्का होने से फेफडे और धमनी में ब्लॉकेज हो सकता है और फेफडे की कार्यक्षमता प्रभावित हो सकती है।

आइएल-6


इसे इंटरल्यूकिन-6 कहते हैं । फेफड़े में सूजन लाने वाले साइटोकाइन स्टार्म की वजह आइएल-6है। इससे फेफडे के टिश्यू क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।


पीटी, एपीटीटी



पीटी यानी प्रोथॉम्बिन रक्त का थक्का होने पर या आंतरिक हिस्सों में रक्तस्राव के खतरे का पता लगाने के लिए यह जांच कराई जाती है। एक्टिवेटेड पार्सियल थ्रांबोप्लास्टिन टाइम, एपीटीटी नामक जांच भी इससे जुड़ी होती है।


सीआरपी, एलडीएच व फेरेटिन सी रिएक्टिव प्रोटीन




सीआरपी, एलडीएच व फेरेटिन सी रिएक्टिव प्रोटीन आंतरिक अंगों में सूजन पता करने की जांचें हैं। कोशिकाएं टूटने की वजह से संक्रमण के मरीजों में सीआरपी का स्तर बढ़ा हुआ मिलता है।

2021-07-16

corona se kaise bache in hindi | corona se bachne ke upay in hindi | corona se bachav | corona se kaise bacha jaaye

कोरोना से कैसे बचें या कोरोना से बचने के उपाय व तरीके के बारे जानकारी


कोरोना से कैसे बचे?


मौसम बदलने के साथ ही कोरोना संक्रमणके मामलों में तेजी आई है।इससे बचने के लिए जरूरी है सुरक्षा उपायों को अपनाना और संयमित जीवन जीना। उत्तम स्वास्थ्य कोरोना संक्रमण ही नहीं हर तरह के संक्रमण से बचाएगा। अपना खान-पान पौष्टिक रखे साथ ही बचाव के हर उपाय अपनाएं...


अच्छी सेहत खानपान एवं हमारी जीवनशैली पर निर्भर करती है और स्वस्थ शरीर में बसता है स्वस्थ तन व मन। 7 अप्रैल आज विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जा रहा है। इन दिनों एक तरफ कोरोना का संक्रमण तेजी पकड़ रहा है तो दूसरी ओर गर्मी का मौसम सेहत के लिहाज से बेहद संवेदनशील है। ऐसे में हमें अपने स्वास्थ्य को लेकर सचेत रहना है। कुछ दिन पहले तक ऐसा लग रहा था कि मानों देश से कोरोना समाप्त हो गया। बाजारों में पहले की तरह बेखौफ चहलकदमी शुरू हो गई थी। छोटा कस्बा हो या महानगर लोगों की जिंदगी बहुत तेजी से पटरी पर लौटी, लेकिन हम यह भूल गए कि कोरोना का खतरा टला नहीं है। घर से बाहर निकलते वक्त मास्क या गमछा जो चेहरे पर होना चाहिए उसे लोगों ने उतार फेंका। रही सही कसर चुनावी रैलियों व बाजार की बेखौफ भीड़ ने पूरी कर दी। इस वजह से लोगों की सेहत एक बार फिर खतरे में है और कोरोना का बढ़ता मौजूदा संक्रमण पहले से ज्यादा आक्रामक है। इसे रोक पाना अकेले सरकार के लिए संभव नहीं है। अपनी सेहत की कुंजी अपने पास है। कोरोना से लड़ना भी आसान है, बशर्ते हरव्यक्ति यह सुनिश्चित करले कि बगैर मास्क के बाहर नहीं निकलना है। कोरोना संक्रमण से बचना लोगों के हाथ में है।


मास्क बचाएगा हर संक्रमण से: 


मास्क पहनने से कोरोना से तो बचाव होगा ही टीबी सहित कई बीमारियों से भी बचा जा सकता है। प्रदूषण से बचाव में भी मास्क सक्षम है। इसलिए प्रदूषण के कारण फेफड़े की बीमारियों से भी बचाव होगा। लोगों को मास्क को अपने जीवन का हिस्सा बना लेना चाहिए। देश में अभी चुनावी रैलियां बहुत हो रही हैं। इनमें लोगों की भारी भीड़ देखी जा रही है। इस भीड़ में हजारों ऐसे लोग होते हैं, जो मास्क नहीं पहने होते हैं। कुछ दिन पहले होली भी थी। लोगों का एक जगह से दूसरी जगह आवागमन भी हो रहा है। इस वजह से कोरोना का संक्रमण तेजी से फैला है। यदिलोग सहयोग नहीं करेंगे और अपनी जिम्मेदारी नहीं समझेंगे तो संक्रमण की इस लहर को थामना यदि असंभव नहीं तो बहुत कठिन तो हो ही जाएगा।

भयावह हो सकती है स्थिति : 


अब एक दिन में कोरोना के मामलों का आंकड़ा एक लाख को पार कर गया है। दो-तीन दिन में यह आंकड़ा डेढ़ लाख और फिर दो लाख पहुंच सकता है। जिस रफ्तार से कोरोना बढ़ रहा है उससे अप्रैल के आखिर तक या मई के मध्य तक हालात बहुत खतरनाक स्तर पर पहुंच सकते हैं। इसमें वायरस में हुए म्यूटेशन की भी बड़ी भूमिका है। महाराष्ट्र में म्यूटेशन के कारण ही कोरोना बढ़ा है। अन्य राज्यों में भी संक्रमण बढ़ने का यह बड़ा कारण माना जा रहा है। इसका पता लगाने के लिए प्रतिदिन जितने सैंपल की जीनोम सिक्वेंसिंग होनी चाहिए वह नहीं हो रही है।
इसलिए जीनोम सिक्वेंसिंग को भी बढ़ाने की जरूरत है।



मौका आए तो जरूर लगवाए वैक्सीनः


समस्या यह है कि सड़कों व बाजारों में अब भी बहुत लोग बगैर मास्क देखे जाते हैं। दफ्तरों में भी लोग मास्क नहीं लगा रहे हैं। दफ्तरों में कर्मचारी अलग-अलग इलाके से पहुंचते हैं। कर्मचारियों के मास्क नहीं पहनने से समस्या बढ़ सकती है।टीकाकरण की गति बढ़ाना जरूरी है। टीकाकरण में गति तभी आएगी जब 18 साल से अधिक उम्र के सभी लोगों को टीका लगेगा। अभी 45 साल से अधिक उम्र के लोगों को टीका लग रहा है। टीकाकरण के पात्र सभी लोगों को जल्द टीका लगवा लेना चाहिए। इससे कोरोना संक्रमण से बचाव होगा और संक्रमण होने पर भी बीमारी बहुत ज्यादा गंभीर नहीं होगी। इसलिए प्रतिदिन एक करोड़ के हिसाब से टीकाकरण जरूरी है। इसके लिए जरूरी है कि टीकाकरण के प्रति लोग जागरूक हों। इसके अलावा थोड़ी सख्ती करने की भी जरूरत है। अभी तक टीकाकरण स्वैच्छिक है। मौजूदा हालात को देखते हुए इसे अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए। टीका नहीं लेना खुद के साथ-साथ दूसरों की जान जोखिम में डालने के समान है।

मास्क न पहनने पर हो सख्त कार्रवाई : 


दिल्ली में पिछले साल अक्टूबर-नवंबर में जब संक्रमण अधिक था तब मास्क नहीं पहनने पर दो हजार रुपये चालान हो रहा था। तब इसका असर भी देखा गया और संक्रमण तुरंत कम हो गया। जनवरी व फरवरी में मामले कम होने के बाद ढिलाई होने पर संक्रमण दोबारा बढ़ गया। इसलिए मास्क नहीं पहनने पर देश भर में सख्ती करनी होगी। इसके अलावा कुछ सीमित लॉकडाउन लगाना चाहिए। पहले की तरह पूर्ण लॉकडाउन तो संभव नहीं है, क्योंकि सरकार लॉक डाउन लगाए या न लगाए उसके लिए दोनों तरफ से मुसीबत है। लॉकडाउन लगाने पर आर्थिक नुकसान का खतरा और लॉकडाउन नहीं लगाने पर संक्रमण बढ़ने का खतरा है। जहां संक्रमण अधिक है, उन स्थानों में सीमित लॉकडाउन कर लोगों की आवाजाही बंद किए जाने से संक्रमण रोकने में मदद मिलेगी। हालांकि लोगों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। यह देखा गया है कि मास्क पहनने से संक्रमण नियंत्रित होता है। इसलिए संक्रमण कम करना बहुत आसान और अपने हाथ में है।

अल्कोहल का न करें सेवनः 


अल्कोहल के सेवन से हमारी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है। इसके अलावा लिवर की बीमारी सहित कई तरह के रोग होते हैं। इसलिए अल्कोहल का सेवन नहीं करना चाहिए। खाने में नमक का सेवन कम करना चाहिए। ब्लड प्रेशर की बीमारी होने का एक कारण अधिक मात्रा में नमक का इस्तेमाल भी माना गया है। तली हुई चीजों का इस्तेमाल ज्यादा नहीं करना चाहिए। इससे भी सेहत को नुकसान पहुंचता है।


मजबूत रखें प्रतिरोधक क्षमता:


लोग खानपान में पौष्टिक व सात्विक आहार लें और नियमित योग करें। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर रहती है साथ ही बीमार होने की आशंका कम हो जाती है।प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए काढ़ा पी सकते हैं।
इसके अलावा आयुर्वेद के अन्य उपायों को भी डॉक्टर की सलाह से अपना सकते है । दूध में हल्दी डालकर इस्तेमाल करना फायदेमंद होता है । प्रतिदिन योग, ध्यान व व्यायाम को जीवनशैली का हिस्सा बनाएं। खराब जीवनशैली के कारण मधुमेह व ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियां होने लगती हैं। एक अनुमान के अनुसार देश में करीब सात करोड़ 70 लाख लोग मधुमेह से पीड़ित है।ब्लड प्रेशर की समस्या युवाओं में भी देखी जा रही है। इसका बड़ा कारण महानगरों में गलत खानपान और शारीरिक मेहनत नहीं करना है। इसलिए प्रतिदिन लगभग एक घंटा योग, ध्यान, व्यायाम व पैदल चलना जरूरी है। इससे जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों से बचा जा सकता है। यदि ये बीमारियां हैं तो उन्हें नियंत्रित रखा जा सकता है। मधुमेह व ब्लडप्रेशर के मरीजों के लिए कोरोना संक्रमण ज्यादा खतरनाक है। इसलिए खुद को स्वस्थ रखना बहुत जरूरी है।

delta variant kya hai | delta variant ke lakshan kya hai | corona dusari lahar ke lakshan

डेल्टा वेरिएंट क्या है और डेल्टा वैरीअंट के लक्षण(Symptoms) व बचाव(Treatment) के बारे मे 



कोरोना की दूसरी लहर नियंत्रण में है,लेकिन तीसरी लहर की आशंका जताई जा रही है। इसी के साथ इन दिनों डेल्टावैरिएंट को लेकर भी चर्चा तेज है। इसकी तीव्रता को देखते हुए जरूरी है कि संक्रमण से बचने के सारे उपाय अपनाएं जाएं और ज्यादा से ज्यादा हो वैक्सीनेशन...


डेल्टा वेरीअंट क्या होता है?


हमारे देश में कोरोना की दूसरी लहर पर काफी हद तक काबू पा लिया गया है, जो पिछले साल शुरू हुई पहली लहर की तुलना में कहीं अधिक खतरनाक थी। अब कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य विशेषज्ञ सितंबर-अक्टूबर में कोरोना की तीसरी लहर की आशंका जता रहे हैं। दूसरी तरफ दस्तक दे रहा है इसका डेल्टा वैरिएंट, जिसकी तीव्रता काफी अधिक है। इन सबको देखते हुए हमें पहले से ही तैयारियां करनी चाहिए। तीसरी लहर की आशंका और इसके छोटे आयुवर्ग पर प्रभाव के कयासों के बीच नेशनल कमीशन फार प्रोटेक्शन आफ चाइल्ड राइट्स (एनसीपीसीआर) ने कहा है कि अगर कोविड-19 की तीसरी लहर की आशंका जताई जा रही है और इससे बच्चों के प्रभावित होने का कुछ भी अनुमान है तो बच्चों और नवजात शिशुओं को संक्रमण से बचाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को समय रहते रणनीति बनानी होगी।


सर्तकता ही बचाएगी: 


मीडिया लगातार रिपोर्ट कर रहा है कि पिछले कुछ दिनों से डेल्टा प्लस वैरिएंट के साथ कोरोना के मामले भी बढ़ रहे हैं, जिससे तीसरी लहर की आशंका तेज हो गई है। एम्स, नई दिल्ली के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया का कहना है कि अनलाक के बाद जिस तरह से लोग कोविड़ प्रोटोकाल का पालन नहीं कर रहे हैं, उसे देखते हुए तीसरी लहर से बचना मुश्किल हो जाएगा। तीसरी लहर हो या डेल्टा वैरिएंट, बचने के लिए तीन बातों का ध्यान रखना सबसे जरूरी है। कोविड प्रोटोकाल का कड़ाई से पालन करना, कोविड के मामलों से निपटने के लिए बेहतर रणनीति और टीकाकरण। इस स्थिति को देखते हुए हमें सतर्क रहने की जरूरत है, ताकि अप्रत्याशित
स्थिति से बचा जा सके।

बुनियादी नियम न भूलें : 


दो गज की शारीरिक दूरी बनाए रखें। मास्क पहनें। हाथ सैनिटाइजर अथवा साबुन से साफ रखें।

ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग : 


ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग सबसे जरूरी है, ताकि संक्रमित लोगों की तुरंत पहचान कर दूसरे लोगों में संक्रमण को फैलने से रोका जा सके। अगर आपको थोड़ी सी भी आशंका हो तो तुरंत कोरोना की जांच कराएं।


वैक्सीनेशन : 


अधिक से अधिक लोग जल्द से जल्द वैक्सीन लगवा लें। वैक्सीनेशन अधिक होगा, तो तीसरी लहर से बचने के लिए हमारी तैयारी उतनी ही बेहतर होगी। 

डबल मास्क का इस्तेमाल: 


डबल मास्क का इस्तेमाल करें, क्योंकि सिंगल मास्क की तुलना में यह अधिक सुरक्षा प्रदान करता है। सस्ती गुणवत्ता की जगह बेहतरीन क्वालिटी का एन-95 मास्क इस्तेमाल करें। इसके ऊपर सर्जिकल क्लाथ मास्क बांध सकते हैं। सस्ते मास्क से बचें। ये आपके कान, त्वचा और श्वास तीनों के लिए तकलीफदेह साबित होते हैं। आप इन्हें बार-बार उतारते हैं और इस प्रकार संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है। 


इंडोर गैदरिंग से बचना: 


बंद स्थानों पर इकट्ठा होने से बचें। घर-आफिस में वेंटिलेशन का ध्यान रखें, ताकि हवा जल्दी स्वच्छ हो जाए।


सेल्फ मेडिकेशन से दूरीः


कोविड की दूसरी लहर के दौरान अधिकांश लोगों ने बिना चिकित्सक की सलाह के अपनी मर्जी से दवाईयां ली हैं। अपनी मर्जी से दवाईयां लेना या किसी और को दी गई सलाह की नकल करना ठीक नहीं है। यदि कोई दवा किसी एक व्यक्ति के लिए उपयुक्त है, तो वह दूसरे को फायदा पहुंचाए, यह जरूरी नहीं है। 

शुरूआत में स्टेरायड का इस्तेमाल नहीं: 


डाक्टरों और मरीज के परिजनों को भी उपचार के दौरान सतर्क रहने की जरूरत है। उपचार के पहले दिन से स्टेरायड नहीं दिया जाना चाहिए। इसे छठे दिन से दिया जाना चाहिए, अन्यथा म्यूकोरमायकोसिस हो सकता है।


तुरंत डाक्टर को दिखाएं

ब्राजील के रायलकालेज आफ पीडियाट्रिक्स एंड चाइल्ड हेल्थ ने माता- पिता को सुझाव दिया है कि अगर बच्चों में
निम्न लक्षण दिखाई दें तो तुरंत डाक्टर को दिखाएं।
•बच्चे की त्वचा का रंग पीला पड़ जाए
और छूने पर ठंडी महसूस हो।
•अगर सांस लेने में दिक्कत हो।
• होंटो के आसपास नीला पड़ जाए।
• बच्चे को दौरेपड़ने लगें।
बच्चालगाताररोता रहेया सोता रहे।
• त्वचा पर रैशेज पड़ जाएं।

क्या बच्चों के लिए अधिक है खतरा


कोविड-19 की तीसरी लहर से बच्चे कितने प्रभावित होंगे, इसके बारे में अभी कुछ भी नहीं कहाजा सकता, फिर भी सावधानी रखने और मुश्किल स्थितियों के लिए तैयार रहने में कोई हर्ज नहीं है।कोरोना की दूसरी लहर में जो बच्चे संक्रमित हुए उनमें से 90 फीसद में या तो मामूली या कोई लक्षण दिखाई नहीं दिए। इंडियन अकेडमी आफ पीडियाट्रिक्स (आईएपी) ने कहा है कि बच्चों का शरीर नाजुक होता है और उनका रोग प्रतिरोधक तंत्र भी पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ होता है। ऐसे में उनके संक्रमण की चपेट में आने की आशंका अधिक होती है। वहीं एम्स, नई दिल्ली के निदेशक डा.रणदीप गुलेरिया का कहना है कि तीसरी लहर में बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होंगे, यह केवल दावा है। अभी इसका कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है।

2021-05-12

dhumrapan ke nuksan | dhumrapan hanikarak hai kaise | dhumrapan se hone wale nuksan | dhumrapan se hone wale rog

 धूम्रपान के नुकसान या धूम्रपान जीवन के लिए घातक और धूम्रपान से होने वाली हानियां


घूमपान से स्वयं की ही नहीं
आसपास के लोगों की भी सेहत
प्रभावित होती है। इसका दुष्प्रभाव दिल
व फेफड़ों पर पड़ने के साथ ही हड्डियों
में कई तरह की समस्याएं
पैदा करता है। नए शोधों
के मुताबिक 80 फीसद
बीमारियों की वजह
होता है धूमपान...


आजकल धूमपान का शौक बहुत बढ़ा है। हर उम्र के लोग इसकी गिरफ्त में तेजी से आ रहे हैं। तंबाकू का उपयोग पीने,खाने और मंजन के रूप
में हो रहा है। तंबाकू से होने वाले दुष्प्रभाव प्रायः
सभी को पता हैं, किंतु युवावस्था की यह लत
एक बार लगने के बाद बुढ़ापे तक बनी रहती है
मगर एक बात यह भी है कि तंबाकू के सेवन से
हड्डियां भी कमजोर हो जाती हैं। इसके अलावा
उनमें रक्त संचार की कमी, संक्रमण, क्षरण एवं
ऑस्टियोपोरोसिस जैसी समस्याएं पैदा होती हैं।
जो लोग धूमपान करते हैं वे अपने लिए कई
बीमारियों को दावत देने के साथ संपर्क में आने
वालों को भी बीमार करते हैं। निकोटिन युक्त
पदार्थों का सेवन टूटी हुई हड्डी के न जुड़ने या


विलंब से जुड़ने का भी एक कारण
है। धूमपान करने से शरीर की
की मात्रा में गिरावट आती
है, जिसके प्रभाव से शरीर में
किसी भी घाव भरने में विलंब
होता है। इन दुष्परिणामों के
साथ-साथ धूमपान से हड्डी
के घनत्व में कमी आना,
हड्डी का विस्थापित होना या
कमजोर होना आदि समस्याएं
उत्पन्न होती हैं।
विकारग्रस्त हो जाती हैं हड्डियां:
हड्डियों के स्वास्थ्य पर हुए अनुसंधानों
एवं शोधों से पता चला है कि निकोटिन युक्त
पदार्थ में खून का प्रवाह कम करने के साथ-
साथ शरीर में एंटीऑक्सीडेंट्स व विटामिनों
की मात्रा में भी कमी करते हैं। इसकी वजह से
रिएक्टिव ऑक्सीजन की मात्रा में कमी हो जाती
है। ऐसे में हड्डी टूटती भी जल्दी है और जुड़ती
भी नहीं है। निकोटिन डीएनए के स्तर पर हड्डी
की कोशिकाओं के बहुआयामी विकास पर भी
प्रतिकूल प्रभाव डालता है। विभिन्न शोधों से यह
भी साबित हुआ है कि धूमपान की वजह से फीमर
हड्डी, पैर की टीबिया हड्डी और घुमरस हड्डी
टूटने पर जल्दी जुड़ती नहीं है। यदि रोगी अब
धूमपान छोड़ चुका है तो भी यह हड्डी आसानी
से नहीं जुड़ती है। ऐसा पाया गया है कि जो मरीज
इलाज के दौरान धूमपान करते हैं, उनकी हड्डी न
सिर्फ देर से जुड़ती है, बल्कि उसमें कई तरह के
विकार भी पैदा हो जाते हैं।


दिल का दुश्मन धूमपानः दिल की बीमारी का
सबसे बड़ा कारक है धूमपान। धूमपान करने
वाले व्यक्ति को दिल की बीमारी का खतरा तीन
गुना बढ़ जाता है। कुछ लोग सोचते हैं कि कम
धूमपान करने
से खतरा टल
जाता है, लेकिन
ऐसा बिल्कुल
नहीं है। शोध के
अनुसार अगर
कोई व्यक्ति
एक दिन में
एक सिगरेट भी
पीता है तो उसे
धूमपान न करने
वाले शख्स के
मुकाबले दिल
के रोग होने की
आशंका 48
फीसद तक बढ़
जाती है।
दृढ़ इच्छाशक्ति
आदत छुड़ाने
में करेगी मदद:
धूमपान की लत
लगने के बाद
उसे छोड़ने में
काफी दिक्कतें
आती हैं। ऐसे
में काउंसलिंग,
'मनोचिकित्सक

से परामर्श, व्यावहारिक परिवर्तन जैसे उपायों
से रोगी की मदद की जा सकती है। यह पाया
गया है कि धूमपान बंद करने के बाद 50 फीसद
लोग पुनः धूमपान शुरू कर देते हैं। इसके लिए
दृढ़इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है। पौष्टिक
आहार के साथ ही नियमित योग और व्यायाम भी
धूमपान की लत छुड़ाने में मदद करते हैं। धूमपान
से दूरी बनाकर 80 फीसद से अधिक बीमारियों
से बचा जा सकता है और संपर्क में रहने वालों
को बचाया जा सकता है।

2021-04-21

prp therapy for hair in hindi | prp therapy kya hai | platelet rich plasma in hindi

प्लेटलेट रिच प्लाज्मा थेरेपी के बारे मे इन हिन्दी या पीआरपी थेरेपी क्या होता है ?


बालों से संबंधित समस्याओं में कारगर है प्लेटलेट्स रिच प्लाज्मा थेरेपी। इसे आजमाकर लौटाई जा सकती है बालों की बसूरती...


आजकल लोग बालों से संबंधित कई
समस्याओं से परेशान रहते हैं। गंजापन, बाल
झड़ना, बालों का अत्यधिक महीन हो जाना
बालों से संबंधित सबसे सामान्य समस्याएं
हैं। अगर आप भी ऐसी ही किसी समस्या से
जूझ रहे हैं तो पीआरपी थेरेपी आजमा सकते
हैं। इसमें किसी बाहरी या कृत्रिम चीज का


इस्तेमाल नहीं किया जाता है, बल्कि इसमें
इस्तेमाल होने वाले प्लेटलेट्स रिच प्लाज्मा
(पीआरपी) को उपचार कराने वाले व्यक्ति के
रक्त से ही तैयार किया जाता है। कुछ स्वास्थ्य
विशेषज्ञों का मानना है कि इससे प्राकृतिक रूप
से बालों का विकास होता है। यह जानने के
लिए कि वास्तव में यह तकनीक बालों को
उगाने में कितनी कारगर है, इस पर अभी भी
शोध जारी हैं।

ये है पीआरपी थेरेपी: पीआरपी थेरेपी एक
बायोलॉजिकल उपचार है। इसमें जिस व्यक्ति
का उपचार किया जाता है, उसके रक्त को ही

प्रोसेस करके प्लेटलेट्स रिच प्लाज्मा यानी
पीआरपी तैयार किया जाता है। इस तकनीक
का इस्तेमाल पिछले कई सालों से चोटिल
लिगामेंट्स, टेंडंस और मांसपेशियों के उपचार
में हो रहा है, लेकिन हाल ही के कुछ वर्षों
में बालों के उपचार और चेहरे की त्वचा को
झुर्रियों से मुक्त करने में किया जा रहा है।
पीआरपी के इंजेक्शन स्कॉल्प (खोपड़ी) में
लगाने से प्राकृतिक रूप से बालों का विकास
होता है। इससे हेयर फॉलिकल की ओर रक्त
का प्रवाह बढ़ता है, जिससे बालों की मोटाई
बढ़ती है। कभी-कभी बेहतर परिणाम पाने के
लिए इसके साथ दूसरी हेयर गेन प्रोसीजर या
दवाइयों का भी इस्तेमाल किया जाता है।

थेरेपी की प्रक्रिया : सबसे पहले सामान्य
एनेस्थीसिया से प्रभावित क्षेत्र को
सुन्न कर दिया जाता है और फिर
माइक्रो नीडिल्स की सहायता
से पीआरपी को सिर के उन
भागों में इंजेक्ट किया जाता
है, जहां उपचार किया जाना
है। पीआरपी को प्रभावित
क्षेत्र पर डारोलर के द्वारा
भी इंफ्यूज किया जाता है।
डारोलर का प्रयोग करने
से पहले त्वचा पर सुन्न
करने वाली सामान्य
क्रीम लगा दी
जाती है। इस
प्रक्रिया को पूरा
करने के लिए


कई सिटिंग्स की जरूरत होती है। इस उपचार
से न सिर्फ बालों की ग्रोथ बढ़ती है, बल्कि
हेयर फॉलिकल्स भी मजबूत होते हैं। सुइयां
चुभाने और रक्त निकालते समय
दर्द महसूस नहीं होता है, क्योंकि
उस भाग को सुन्न कर दिया
जाता है।

साइड इफेक्टसः पीआरपी
थेरेपी में किसी भी बाहरी
चीज का इस्तेमाल नहीं
होता है। इसलिए साइड
इफेक्ट्स होने का खतरा
कम होता है। रक्त से
तैयार पीआरपी में श्वेत
रक्त कणिकाएं काफी
मात्रा में होती हैं, जिससे
संक्रमण की आशंका
काफी कम होती है और
एलर्जी भी नहीं होती है।

2020-05-05

स्वस्थ कैसे रहे घरेलु उपाय - Healthy Rahane Ke Tips, Upay, Tarika, Upchar

स्वस्थ (हेल्थी) रहने के लिए क्या करना चाहिए या (हेल्थी) स्वस्थ रहने के लिए क्या खाना चाहिए?


हेल्दी रहने के लिए क्या क्या करे?


ताउम्र स्वस्थ रहने के लिए प्रकृति और शरीर के बीच संतुलन बनाए रखना बेहद जरूरी है। आप जितना प्रकृति के करीब रहेंगे, प्राकृतिक उपायों को अपनी जीवनशैली में शामिल करेंगे, उतने ही ज्यादा शारीरिक और मानसिक रूप से सेहतमंद रहेंगे। इसके लिए पर्याप्त मात्रा में शुद्ध जल, गहरी सांस के जरिए ऑक्सीजन लेना, योग एवं ध्यान करना, हरी पत्तेदार सब्जियों एवं मौसमी फलों का सेवन करना, मसालेदार भोजन से परहेज करना, नशे से दूर रहना जरूरी है।

क्या कहते हैं आंकड़े

  1. 45% लोग भारत में शाकाहारी भोजन को तवज्जो देते हैं और स्वस्थ जीवन जीते हैं।
  2. 70% मानव शरीर में जल होता  है। ऐसे में शरीर की जरूरत के अनुसार पानी  पीना चाहिए।
  3. योग से आंतरिक अंगों की कसरत होती है। इन अंगों में ऑक्सीजन रक्त की आपूर्ति बढ़ाता है।

खुली हवा में लें


सांस ऑक्सीजन शरीर की प्रत्येक कोशिकाओं एव अंगों को स्वस्थ और चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए आवश्यक है। ऑक्सीजन से जीवन है। शरीर के मेटाबॉलिज्म के लिए आवश्यक है, लेकिन आस-पास ऑक्सीजन शुद्ध होनी चाहिए। प्रदूषित वातावरण में सांस लेना हमें बिमार कर सकता है। सबसे अच्छी गुणवत्ता की वायु सुबह के समय पार्क या ऐसे स्थान जहां पर वृक्ष अधिक होते हैं, पाई जाती है। रोज सुबह इन जगहों पर कुछ देर बैठकर गहरी सांस लें। इससे फेफड़ों को मजबूती मिलती है। सांस रोग एवं क्रॉनिक ब्रॉन्काइटिस से पीड़ित व्यक्तियों के लिए बहुत फायदेमंद होती है। शुद्ध हवा में गहरी सांस लेने से मस्तिष्क तरोताजा होती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि मस्तिष्क की कोशिकाओं को स्वस्थ रखने के लिए भी ऑक्सीजन की जरूरत होती है।

हेल्थ टॉनिक है योग


योग और ध्यान शरीर एवं मस्तिष्क के लिए हेल्थ टॉनिक की तरह होता है। विज्ञान के अनुसार, जब शरीर और मस्तिष्क कुछ समय के लिए अपने रोजमर्रा के कार्य को बंदकर ध्यान करे, तो इससे काफी फायदे होते हैं। ध्यान के फायदे अन्तहीन हैं। योग निद्रा करें। यह हमें तनाव एवं अवसाद से बचाए रखने में मदद करता है। योग और ध्यान से । आप आन्तरिक अंगो को नयापन व ऊर्जावान बनाए रखते हैं। योग से आन्तरिक अंगों की कसरत होती है। इन अंगों में ऑक्सीजन रक्त की आपूर्ति को बढ़ाता है। शरीर के मेटाबॉलिक एवं ग्रन्थि तंत्र के ल‍िये फायदेमंद होता है। ध्‍यान से तनाव को बढाने वाले हार्मोन में कमी आती है। ध्यान तनाव बढ़ाने वाले हार्मोन को नियंत्रित करता है। मस्तिष्क में डोपामिन एवं सिरोटोनिन हॉर्मोस का सामान्य स्तर बनाए रखता है। इन हॉर्मोस के स्तर के बढ़ने या घटने से कई तरह की मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक रोगों के होने की संभावना बढ़ जाती है।


पानी पीते रहें


मानव शरीर में लगभग 70 फीसदी जल होता है। अतः जरूरी है कि अपने शरीर की जरूरत के हिसाब से पर्याप्त पानी पिएं। ध्यान रखें, पानी शुद्ध होना चाहिए। जल हानिकारक एवं ऐसे तत्वों को शरीर से बाहर निकालता है, जिनकी शरीर को जरूरत नहीं होती है। यह शरीर की आन्तरिक सफाई करता है। शरीर के उत्सर्जन तंत्र को स्वस्थ रखता है। इतना ही नहीं यह शरीर के तापमान को नियंत्रित रखने में भी मदद करता है।

अच्छे स्वास्थ के लिए व्यायाम


व्यायाम व्यक्ति के मूड, सेहत, वजन और बेहतर जीवन जीने के लिए फायदेमंद होता है। ऐसे में तेज चलना या कार्डियोरेस्परेटरी एक्सरसाइज जैसे जॉगिंग या ट्रेडमिल पर दौड़ने के लिए समय निकालें। सप्ताह में पांच से छह दिन चार से पांच किलोमीटर तेज चलना जरूरी होता है। कार्डियोरेस्परेटरी एक्सरसाइज वह होती है, जो व्यक्ति की हृदय गति और सांस की गति को बढ़ाती है। हल्के-फुल्के से लेकर मध्यम दर्जे का व्यायाम व्यक्ति के रक्तचाप, शुगर और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में सहायक होता है। व्यायाम व्यक्ति के मनोविज्ञान को भी मजबूत और सकारात्मक बनाता है। इससे मस्तिष्क स्वस्थ रहता है। रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाता है। शरीर की चर्बी को कम करता है।

शाकाहारी बनें


शाकाहारी भोजन हमेशा मांसाहारी भोजन से बेहतर होता है। इसमें फाइबर और अनसैचुरेटेड फैट ज्यादा होता है। ऐसा भोजन, जिसमें रेशे अधिक होते हैं, कब्ज एवं कुछ हद तक उदर के कैंसर से बचाव करता है। मांसाहारी भोजन में पाया जाने वाला सैचुरेटेड फैट कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ाता है। धमनियों में रुकावट डालता है।