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2022-03-07

रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी क्या है - Radiofrequency Neurotomy Kya Hota Hai | Spinal Pain Treatment In Hindi

Radio Frequency Neurotomy Treatment Ke Bare Me Janakari

लंबे समय से रीढ़ के दर्द से जूझते मरीजों के लिए आशा की किरण है रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी। इससे पुराने दर्द और रीढ़ की कई तकलीफों में मिल जाती है राहत............


रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी क्या है?


व्यस्त जीवनशैली और एक्सरसाइज की कमी के चलते स्वास्थ्य को लेकर हम काफी हद तक लापरवाह हो चुके हैं। ऐसे में रीढ़ और मांसपेशियों से जुड़ी तकलीफों से दो-चार होने वाले मरीजों की संख्या बहुत 
तेजी से बढ़ रही है। आज अधिकतर लोग ऑस्टियो अर्थराइटिस, रुमेटॉइड अर्थराइटिस, सर्वाइकल, स्पाइनल स्टेनोसिस से ग्रस्त हैं। इसके अलावा बढ़ती उम्र या चोट के कारण कार्टिलेज घिसने लग जाता है, जिससे जोड़ों में सूजन आ जाती है। यह अर्थराइटिस की शुरुआत होती है। ज्यादातर रीढ़ की हड्डी की तकलीफ जैसे-ऑस्टियो अर्थराइटिस, स्पाइनल स्टेनोसिस या पीठ की कोई गहरी चोट आदि फैसेट ज्वाइंट में दर्द का मुख्य कारण होती हैं। आमतौर पर इनके प्राथमिक उपचार में मरीज के दर्द के हिसाब से फिजियोथेरेपी, दर्द निवारक दवा या पारंपरिक सर्जरी का इस्तेमाल किया जाता है, जबकि अब रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी जैसी अत्याधुनिक तकनीक की मदद से लंबे समय से हो रहे दर्द में राहत देने के लिए रीढ़ की हड्डी का उपचार संभव है।


इस तरह होती है सर्जरी:


सर्जरी की इस नई तकनीक रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी में ना के बराबर चीरा लगाया जाता और सर्जिकल प्रक्रिया ऐसी होती है कि मरीज को उसी दिन डिस्चार्ज कर दिया जाता है। इसमें रेडियो फ्रीक्वेंसी वेव्स, जो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स होती हैं और प्रकाश की गति से तेज चलती हैं, को एक विशेष जनरेटर को उच्चतम तापमान पर रखकर बनाया जाता है। इससे हीट एनर्जी बनाकर सुनिश्चित तंत्रिकाओं तक पहुंचाई जाती है, जो दर्द आवेगों को मस्तिष्क तक लेकर जाती है। रेडियो फ्रीक्वेंसी वेव्स को सुई की नोक से मिलाया जाता है, जो तंत्रिका को मस्तिष्क तक दर्द के संकेतों को भेजने से बाधित करता है।

रेडियो फ्रिक्वेन्सी न्यूरोटॉमी के प्रकार?


रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी से उपचार मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं:
मीडियल ब्रांच न्यूरोटॉमी यानी एब्लेशन, जो फैसेट जोड़ों से दर्द ले जाने वाली तंत्रिकाओं को प्रभावित करता है और दूसरा, लेटरल ब्रांच न्यूरोटॉमी, जो सेक्रोइलिएक जोड़ों से दर्द ले जाने वाली तंत्रिकाओं को प्रभावित करता है।

रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी से हर दर्द से राहत 


रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी कई पुराने जोड़ों के दर्द जैसे स्पाइनल आर्थराइटिस, लो बैक पेन, स्पाइनल स्टेनोसिस, सर्वाइकल स्पाइन सर्जरी के बाद का दर्द, फेल्ड बैक सर्जरी सिंड्रोम और अन्य रीढ़ के दर्द में भी असरदार प्रतिक्रिया दिखाती है। यह कुछ न्यूरोपैडिक से जुड़े दर्द जैसे कांप्लेक्स रीजनल पेन और अन्य मिश्रित पुराने दर्द में भी असरदार है। इस इलाज के लिए एक मरीज की उम्मीदवारी आमतौर पर एक डायग्नोस्टिक नर्व ब्लॉक के प्रदर्शन पर निर्धारित होती है।

बेहतर है विकल्प


रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी लंबे समय से हो रहे दर्द में स्टेरॉयड इंजेक्शन के मुकाबले अधिक राहत देती है। अधिसंख्य मरीज इससे उपचारलेने के बाद दर्द से निजात पा लेते हैं। इस विधि में बहुत छोटे चीरे का इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए यह किसी अन्य सर्जरी के मुकाबले जल्दी राहत देने वाली होती है। साथ ही इस सर्जरी के निशान भी नहीं पड़ते हैं।

2021-07-21

corona hone ke bad ke lakshan | covid ke baad ke lakshan | corona hone ke bad side effects | corona theek hone ke bad

Corona Se Thik Hone Ke Baad Side Effects Or Corona Virus Ke Baad Hone Wali Bimari 


Corona Thik Hone Ke Baad Ke Lakshan 



कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद लोगों को कमजोरी, सांस फूलना, पैरों में सूजन, थकान और नींद न आने की समस्या हो रही है। दो से तीन माह में ये लक्षण समाप्त हो जाते हैं लेकिन अगर इस तरह की परेशानी बनी रहे तो चिकित्सकीय परामर्श जरूर लें...



कोरोना से ठीक होने के बाद भी लोगों को कई तरह की समस्याएं हो रही हैं। इनमें सबसे आम है थकान, कमजोरी और नींद नहीं आना। लोगों में कोरोना संक्रमण से उबरने के दो से तीन महीने तक इस तरह की तकलीफ देखने को मिल रही है। हालांकि पहली लहर की अपेक्षा दूसरी लहर में इस तरह के मामले ज्यादा देखने को मिल रहे हैं।
संक्रमित होने के बाद जिन लोगों को इस तरह की परेशानी हो रही है, वे घबराएं नहीं, क्योंकि अधिसंख्य मामलों में धीरे-धीरे इस तरह की परेशानी अपने आप ही समाप्त हो जाती है। ऐसे लोगों को चाहिए कि वे पोषक आहार लें, हल्का व्यायाम और योग करें। हां, सतर्कता रखना बेहद जरूरी है। यदि कुछ भी असामान्य लगता है।
चिकित्सक से परामर्श जरूर करें। इसके अलावा यदि छाती में दर्द, सांस फूलना और पैरों में सूजन हो तो इसे भी गंभीरता से लें। ये समस्याएं खून का थक्का जमने की वजह से होती हैं। खून का थक्का किसी भी अंग में पहुंचकर नुकसान पहुंचा सकता है। ये थक्का फेफड़े, हार्ट और ब्रेन में पहुंचकर खून की आपूर्ति रोकता है, जो
जानलेवा साबित होता है। कोरोना संक्रमण के बाद लकवा और हार्ट अटैक के भी खूब मामले प्रकाश में आ रहे हैं। कई बार खून का थक्का इस तरह का अवरोध पैदा करता है कि पैरों में गैंगरीन (खून की सप्लाई नहीं होने से वह हिस्सा खराब होना) और आंखों की रोशनी जाने का खतरा हो सकता है। हालांकि इसमें उन लोगों को ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है, जो कोरोना संक्रमण के चलते गंभीर स्थिति में पहुंचे हों।


म्यूकरमायकोसिस से भी रहें सतर्क :


कोरोना से ठीक होने के बाद म्यूकरमायकोसिस के मरीज मिल रहे हैं। यह बीमारी उन लोगों को ज्यादा होती
है, जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है। यह सिर्फ परिकल्पना है कि कोरोना के दौरान जिन्हें स्टेरायड दिया गया उन्हें यह बीमारी हुई।
म्यूकरमायकोसिस का असर नाक, आंख और ब्रेन में होता है, लेकिन कई बार यह संक्रमण फेफड़ों में भी पहुंच जाता है, जो बहुत दुर्लभ माना जाता है। एंटीफंगल इंजेक्शन और सर्जरी से ज्यादातर मरीजों में यह बीमारी ठीक हो जाती है। नाक बंद होना, चेहरे में सूजन, आंखें लाल होना और नाक से काला पानी आने की समस्या हो तो तत्काल चिकित्सक को दिखाएं।


किसी बीमारी से पीड़ित रहे हैं और कोरोना
हुआ है तो ज्यादा सतर्क रहें :


जिन मरीजों को पहले से कोई बीमारी थी और कोरोना की चपेट में आ गए तो उन्हें चाहिए कि पुरानी बीमारी की कोई भी दवा चिकित्सक की सलाह के बिना बंद न करें और न ही दवा का डोज खुद से बढ़ाएं।
जिन लोगों के फेफड़े पहले से खराब है, दिल की बीमारी है या फिर दूसरी तकलीफ है, उन्हें दोसरा कोरोना होने पर ज्यादा परेशानी हो सकती है। इन्हें कोरोना से बचने के सारे उपाय अपनाते हुए वैक्सीन जरूर लगवानी चाहिए। फेफड़े की बीमारी वाले मरीजों को पहले भी एंफ्लूएंजा और निमोनिया से बचाव के लिए न्यूमोकोकल वैक्सीन लगाई जाती थी और अब इसमें कोरोना से बचाव का टीका भी शामिल हो गया है।


सही हो खानपान और दिनचर्या :



कोरोना से उबर चुके मरीजों को अपनी दिनचर्या सुव्यवस्थित रखनी चाहिए।अधिक तेल- मसाले वाले खाने से परहेज करें और घर में बनी चीजों को प्राथमिकता दें दिन में दो लीटर पानी अवश्य पिएं। वही खाना खाएंजो आसानी से पच जाए। नियमित रूप से हल्के व्यायाम करें।दो-तीन महीने ऐसे व्यायाम न करें, जिनमें अधिक मेहनत लगती है।

कोरोना संक्रमित होने के बाद लोगों को नींद नहीं आने की भी समस्या हो रही है:


 यदि लगातार यह समस्य बनी रहे तो मनोचिकित्सक को दिखाएं। अच्छी नींद के लिए जरूरी है कि शाम के बाद चाय-काफीन लें। सोने के एक घंटे पहले टीवी, कंप्यूटर या मोबाइल स्क्रीन से दूरी बना लें।


शुगर का स्तर नियंत्रित रखें :


डायबिटीज के मरीजों में कोरोना होने पर गंभीर होने का
खतरा ज्यादा रहता है। कोरोना संक्रमण के बाद
वे मरीज गंभीर स्थिति में आए, जिनका शुगर
का स्तर नियंत्रित नहीं रहा है। इन्हें यही सलाह
है कि दवाएं नियमित लें। कोरोना संक्रमण के
दौरान स्टेरायड दिए जाने की वजह से भी कुछ
मरीजों का शुगर का स्तर बढ़ता है, लेकिन एक-
दो महीने में अपने आप ठीक भी हो जाता है।
कोरोना संक्रमितों में देखा गया कि कुछ लोग
ऐसे भी थे, जो डायबिटीज की पूर्व अवस्था
(प्रीडायबिटिक) में थे। ये स्टेरायड दिए जाने से
डायबिटीज मरीज की श्रेणी में आ गए।


मास्क अवश्य लगाएं :


मास्क का प्रयोग अनिवार्य रूप से करें। अस्पताल या भीड़ वाली जगह में जा रहे हैं तो एन-95 मास्क का प्रयोग करें। सामान्य भीड़ वाली जगह में सर्जिकल मास्क से भी काम चला सकते हैं। कपड़े का मास्क प्रयोग करें तो दोहरा मास्क लगाएं।

कोरोना से ठीक होने के दो महीने बाद लगवाएं टीका



संक्रमित होने के बाद लोगों के मन में यह सवाल बार-बार आता है कि वैक्सीन लगवाई जाए या नहीं। ऐसे लोगों को चाहिए कि कम से कम दो माह तक वैक्सीन न लगवाएं।ध्यान रहे कि आप डायबिटीज या हाई ब्लडप्रशेर जैसी किसी भी बीमारी से पीड़ित क्यों न हों, वैक्सीन जरूर लगवाएं। ऐसी कोई बीमारी नहीं है जिसमें टीका लगवाने से मना किया गया हो। कोरोना से संक्रमित लोग पाजिटिव आने के दिन से कम से कम दो महीने बाद टीका लगवाएं। जिन्हें पहला डोज लगने के बाद कोरोना हुआ है चे भी यही करें। टीका लगवाने के पहले यह देख लें कि बुखार, स्वाद या गंध नहीं आने समेत कोरोना के कोई लक्षण तो नहीं हैं। यदि ऐसा है तो कोरोना की जांच कराने के बाद रिपोर्ट निगेटिव आने परही वैक्सीन लगवाएं।

2021-07-19

कोरोना फेफड़ों पर प्रभाव | कोरोना फेफड़ों में संक्रमण | कोरोना में फेफड़ों के संक्रमण वायरस | कोरोना में फेफड़ों समस्या वायरस | कोरोना वायरस फेफड़ों पर प्रभाव

कोरोना का फेफड़ों पर असर या प्रभाव और कोरोना वायरस फेफड़ों के संक्रमण के लक्षणों और उससे कैसे बचे के बारे मे जानकारी हिन्दी में



कोरोना व धूम्रपान


धूमपान और तंबाकू का सेवन एक साथ कई बीमारियों को दावत देता है। ये न केवल इसके शौकीनों की सेहत खराब करते हैं, बल्कि आसपास के लोग भी इससे प्रभावित होते हैं। कोरोना संक्रमण के प्रसार में भी इनकी अहम भूमिका है और ऐसे लोगों के कोरोना संक्रमित होने पर अन्यकी अपेक्षा जोखिम भी बढ़ जाता है...



    जनरल एग्रीमेंट ऑन ट्रेड इन सर्विसेज के अनुसार भारत में लगभग 27 करोड़ लोग तंबाकू का सेवन करते हैं। भारत में तंबाकू के कारण प्रतिवर्ष लगभग 12 लाख लोगों की मृत्यु होती है। ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे के अनुसार भारत में तंबाकू सेवन प्रारंभ करने की औसत आयु 18.7 वर्ष है। महिलाओं की तुलना में पुरुष कम उम्र में तंबाकू का सेवन करना प्रारंभ कर देते हैं। आज अधिकांश बीमारियों के पीछे तंबाकू की लत एक बड़ी वजह है। तंबाकू के कारण 25 तरह की बीमारियां तथा लगभग 40 तरह के कैंसर हो सकते हैं, जिसमें प्रमुख हैं- मुंह, गले, फेफड़े, प्रोस्टेट, पेट और ब्रेन का कैंसर। हमारे देश में लगभग 12 करोड़ लोग धूमपान करते हैं।

    विकसित देशों में धूमपान के विषय में जागरूकता के परिणाम स्वरूप धूमपान का औसत गिरता जा रहा है, लेकिन विकासशील देशों में अभी भी धूमपान के संबंध में चेतना की कमी है। इस वर्ष के विश्व तंबाकू निषेध दिवस (31 मई) की थीम 'तंबाकू छोड़ने का प्रण है।

पूरी तरह से किया जाए प्रतिबंधित :


तंबाकू व्यापार और उपभोग पर लेश मात्र भी अंकुश नहीं लग पाया। तंबाकू के धुएं से 500 हानिकारक गैसें एवं 7000 अन्य रासायनिक पदार्थ निकलते हैं, जिनमें निकोटीन और टार प्रमुख हैं। धूमपान में 70 रासायनिक पदार्थ कैंसरकारी पाए गये हैं। सिगरेट की तुलना में बीड़ी पीना ज्यादा नुकसानदायक होता है। हमारे देश में महिलाओं की अपेक्षा पुरुष अधिक धूमपान करते हैं। जब कोई धूमपान करता है तो बीड़ी या सिगरेट का धुआं पीने वाले के फेफड़ों में 30 फीसद जाता है और आसपास के वातावरण में 70 फीसद रह जाता है, जिससे परिवार के लोग और उसके मित्र भी प्रभावित होते हैं, जिसको हम परोक्ष धूमपान कहते हैं।

एक साथ कई बीमारियों को दावत:


विश्वभर में होने वाली मृत्यु में 50 प्रतिशत मौतों का कारण धूमपान है। धूमपान के परिणामस्वरूप रक्त का संचरण प्रभावित हो जाता है, ब्लड प्रेशर की समस्या होती है, सांस फूलने लगती है और नित्य क्रियाओं में भी अवरोध आने लगता है। धूमपान से होने वाली प्रमुख बीमारियां हैं: ब्रांकाइटिस, एसिडिटी, टीबी, ब्लडप्रेशर, हार्ट अटैक, फॉलिज, नपुंसकता, माइग्रेन, सिरदर्द, बालों का जल्दी सफेद होना आदि। यदि महिलाएं गर्भावस्था के दौरान परोक्ष या अपरोक्ष रूप से धूमपान करती हैं तो उनके होने वाले नवजात शिशु का वजन कम होना, गर्भाशय में ही या पैदा होने के बाद मृत्यु हो जाना व पैदाइशी बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है।

कोरोना संक्रमितों को ज्यादा खतरा:


    दुनिया में कोरोना संक्रमित व्यक्तियों की कुल संख्या लगभग 17 करोड़. पहुंच चुकी है, जबकि इससे मरने वालों की संख्या 34 लाख से अधिक हो चुकी है। यह वैश्विक आपदा 21वीं सदी की अब तक की सबसे बड़ी आपदा साबित हुई है। इसने लगभग 100 साल पहले हुई एक बड़ी आपदा स्पैनिश फ्लू की याद दिला दी है, जिससे पूरी दुनिया में लगभग पांच करोड़ लोगों की मौत हुई थी और भारत में लगभग दो करोड़ लोगों की मौत हुई थी। भारत में भी कोरोना ने अपना विकराल रूप धारण किया हुआ है। अब तक ढाई करोड़ से अधिक लोग कोरोना संक्रमित हो चुके हैं तथा लगभग तीन लाख लोगों की मृत्यु हो चुकी है। ज्ञात रहे कि कोरोना मानव शरीर की कोशिकाओं में एसीई-2 रिसेप्टर्स के माध्यम से प्रवेश करता है। धूमपान न करने वालों की तुलना में धूमपान करने वालों के फेफड़ों में एसीई-2 की संभावना ज्यादा पाई जाती है, जिससे इन व्यक्तियों को कोरोना संक्रमण का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है। इस प्रकार यह साफ है कि धूमपान करने वालों में एसीई-2 कोरोना संक्रमण के जोखिम को बढ़ा सकती है।

बढ़ जाती है संक्रमण के प्रसार की संभावना :


    तंबाकू का सेवन करने वाले व्यक्ति तंबाकू को बार-बार थूकते हैं, जिससे आसपास के लोगों में भी संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। इसी प्रकार बीड़ी, सिगरेट व अन्य धूमपान करने पर बार-बार हाथों से मुंह को छूना व मुंह से धुआं छोड़ने पर आसपास के लोगों में संक्रमण फैलने का खतरा अत्याधिक बढ़ जाता है। कोरोना महामारी के समय में तंबाकू व धूमपान को घर पर रहकर छोड़ने का पूर्ण प्रयास करें और कोरोना संक्रमण से बचें। कोरोना संक्रमण से सुरक्षित रहने के लिए एन-95 मास्क का प्रयोग करें, हाथों को समय-समय पर धुलते रहें व सैनिटाइज करते रहें साथ ही शारीरिक दूरी का पालन करें। सबसे ज्यादा जरूरी वैक्सीन है, जो आपके लिए सुरक्षा कवच है। इसलिए जैसे ही आपका नंबर आए वैक्सीन की दोनों डोज अवश्य लगवाएं।



कमाई कम नुकसान ज्यादा



    तंबाकू के व्यवसाय में भारत काफी अग्रणी है। विश्वभर में तंबाकू के उत्पाद एंव उपयोग के संबंध में भारत दूसरे स्थान पर है। तंबाकू के दुष्प्रभावों को देखते हुए इसके उत्पादन तथा ब्रिकी दोनों पर रोक लगाना इससे बचने का एकमात्र उपाय है। हालांकि इसके लिए दो कुतर्क दिए जाते हैं कि तंबाकू उत्पाद से लगभग तीन करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है तथा इससे काफी राजस्व की प्राप्ति होती है। राजस्व की प्राप्ति एक मिथक ही है, क्योंकि वित्त मंत्रालय के 2015-2016 के आंकड़ों के अनुसार तंबाकू के उत्पादों से प्रतिवर्ष 31,000 करोड़ रूपये अर्जित होते हैं, जबकि हम 1,04,500 करोड़ रुपये तंबाकू के दुष्प्रभावों से हो रही प्रमुख बीमारियों पर ही खर्च कर देते हैं। जाहिर है कि तंबाकू से नुकसान कहीं अधिक है। इसीलिए इसे एक अभिशाप कहा जा सकता है। इसके उत्पादन, पैकिंग और बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगा देना चाहिए।



    10 लाख धूमपान करने वाले लोगों ने (एक्शन आन स्मोकिंग एंड हेल्थ (ऐश) संस्था की गणना के अनुसार) कोविड-19 के दौरान लगभग धूमपान बंद कर दिया और लगभग पांच लाख 50 हजार ने छोड़ने का प्रयास
किया। करीब.24 लाख लोगों में सिगरेट पीने की दर पहले से कम पाई गई है। कहा जा सकता है कि कोविड-19 ने लोगों को धूमपान छुड़ाने के लिए एक अप्रत्याशित अवसर प्रदान किया है। तंबाकू का सेवन प्रत्येक व्यक्ति के लिए नुकसानदायक है। महामारी के दौर में इस घातक बीमारी से बचने के साथ-साथ धूमपान छोड़ने के लिए हमें इस आपदा को अवसर में बदलना होगा। इसके लिए अपने चिकित्सक से ऑनलाइन संपर्क कर सकते हैं। निकोटिन रेपलेस्मेंट थेरेपी की सहायता ले सकते हैं। धूमपान छोड़ने में सहायक मोबाइल एप्स का भी उपयोग करें।

2021-07-16

delta variant kya hai | delta variant ke lakshan kya hai | corona dusari lahar ke lakshan

डेल्टा वेरिएंट क्या है और डेल्टा वैरीअंट के लक्षण(Symptoms) व बचाव(Treatment) के बारे मे 



कोरोना की दूसरी लहर नियंत्रण में है,लेकिन तीसरी लहर की आशंका जताई जा रही है। इसी के साथ इन दिनों डेल्टावैरिएंट को लेकर भी चर्चा तेज है। इसकी तीव्रता को देखते हुए जरूरी है कि संक्रमण से बचने के सारे उपाय अपनाएं जाएं और ज्यादा से ज्यादा हो वैक्सीनेशन...


डेल्टा वेरीअंट क्या होता है?


हमारे देश में कोरोना की दूसरी लहर पर काफी हद तक काबू पा लिया गया है, जो पिछले साल शुरू हुई पहली लहर की तुलना में कहीं अधिक खतरनाक थी। अब कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य विशेषज्ञ सितंबर-अक्टूबर में कोरोना की तीसरी लहर की आशंका जता रहे हैं। दूसरी तरफ दस्तक दे रहा है इसका डेल्टा वैरिएंट, जिसकी तीव्रता काफी अधिक है। इन सबको देखते हुए हमें पहले से ही तैयारियां करनी चाहिए। तीसरी लहर की आशंका और इसके छोटे आयुवर्ग पर प्रभाव के कयासों के बीच नेशनल कमीशन फार प्रोटेक्शन आफ चाइल्ड राइट्स (एनसीपीसीआर) ने कहा है कि अगर कोविड-19 की तीसरी लहर की आशंका जताई जा रही है और इससे बच्चों के प्रभावित होने का कुछ भी अनुमान है तो बच्चों और नवजात शिशुओं को संक्रमण से बचाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को समय रहते रणनीति बनानी होगी।


सर्तकता ही बचाएगी: 


मीडिया लगातार रिपोर्ट कर रहा है कि पिछले कुछ दिनों से डेल्टा प्लस वैरिएंट के साथ कोरोना के मामले भी बढ़ रहे हैं, जिससे तीसरी लहर की आशंका तेज हो गई है। एम्स, नई दिल्ली के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया का कहना है कि अनलाक के बाद जिस तरह से लोग कोविड़ प्रोटोकाल का पालन नहीं कर रहे हैं, उसे देखते हुए तीसरी लहर से बचना मुश्किल हो जाएगा। तीसरी लहर हो या डेल्टा वैरिएंट, बचने के लिए तीन बातों का ध्यान रखना सबसे जरूरी है। कोविड प्रोटोकाल का कड़ाई से पालन करना, कोविड के मामलों से निपटने के लिए बेहतर रणनीति और टीकाकरण। इस स्थिति को देखते हुए हमें सतर्क रहने की जरूरत है, ताकि अप्रत्याशित
स्थिति से बचा जा सके।

बुनियादी नियम न भूलें : 


दो गज की शारीरिक दूरी बनाए रखें। मास्क पहनें। हाथ सैनिटाइजर अथवा साबुन से साफ रखें।

ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग : 


ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग सबसे जरूरी है, ताकि संक्रमित लोगों की तुरंत पहचान कर दूसरे लोगों में संक्रमण को फैलने से रोका जा सके। अगर आपको थोड़ी सी भी आशंका हो तो तुरंत कोरोना की जांच कराएं।


वैक्सीनेशन : 


अधिक से अधिक लोग जल्द से जल्द वैक्सीन लगवा लें। वैक्सीनेशन अधिक होगा, तो तीसरी लहर से बचने के लिए हमारी तैयारी उतनी ही बेहतर होगी। 

डबल मास्क का इस्तेमाल: 


डबल मास्क का इस्तेमाल करें, क्योंकि सिंगल मास्क की तुलना में यह अधिक सुरक्षा प्रदान करता है। सस्ती गुणवत्ता की जगह बेहतरीन क्वालिटी का एन-95 मास्क इस्तेमाल करें। इसके ऊपर सर्जिकल क्लाथ मास्क बांध सकते हैं। सस्ते मास्क से बचें। ये आपके कान, त्वचा और श्वास तीनों के लिए तकलीफदेह साबित होते हैं। आप इन्हें बार-बार उतारते हैं और इस प्रकार संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है। 


इंडोर गैदरिंग से बचना: 


बंद स्थानों पर इकट्ठा होने से बचें। घर-आफिस में वेंटिलेशन का ध्यान रखें, ताकि हवा जल्दी स्वच्छ हो जाए।


सेल्फ मेडिकेशन से दूरीः


कोविड की दूसरी लहर के दौरान अधिकांश लोगों ने बिना चिकित्सक की सलाह के अपनी मर्जी से दवाईयां ली हैं। अपनी मर्जी से दवाईयां लेना या किसी और को दी गई सलाह की नकल करना ठीक नहीं है। यदि कोई दवा किसी एक व्यक्ति के लिए उपयुक्त है, तो वह दूसरे को फायदा पहुंचाए, यह जरूरी नहीं है। 

शुरूआत में स्टेरायड का इस्तेमाल नहीं: 


डाक्टरों और मरीज के परिजनों को भी उपचार के दौरान सतर्क रहने की जरूरत है। उपचार के पहले दिन से स्टेरायड नहीं दिया जाना चाहिए। इसे छठे दिन से दिया जाना चाहिए, अन्यथा म्यूकोरमायकोसिस हो सकता है।


तुरंत डाक्टर को दिखाएं

ब्राजील के रायलकालेज आफ पीडियाट्रिक्स एंड चाइल्ड हेल्थ ने माता- पिता को सुझाव दिया है कि अगर बच्चों में
निम्न लक्षण दिखाई दें तो तुरंत डाक्टर को दिखाएं।
•बच्चे की त्वचा का रंग पीला पड़ जाए
और छूने पर ठंडी महसूस हो।
•अगर सांस लेने में दिक्कत हो।
• होंटो के आसपास नीला पड़ जाए।
• बच्चे को दौरेपड़ने लगें।
बच्चालगाताररोता रहेया सोता रहे।
• त्वचा पर रैशेज पड़ जाएं।

क्या बच्चों के लिए अधिक है खतरा


कोविड-19 की तीसरी लहर से बच्चे कितने प्रभावित होंगे, इसके बारे में अभी कुछ भी नहीं कहाजा सकता, फिर भी सावधानी रखने और मुश्किल स्थितियों के लिए तैयार रहने में कोई हर्ज नहीं है।कोरोना की दूसरी लहर में जो बच्चे संक्रमित हुए उनमें से 90 फीसद में या तो मामूली या कोई लक्षण दिखाई नहीं दिए। इंडियन अकेडमी आफ पीडियाट्रिक्स (आईएपी) ने कहा है कि बच्चों का शरीर नाजुक होता है और उनका रोग प्रतिरोधक तंत्र भी पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ होता है। ऐसे में उनके संक्रमण की चपेट में आने की आशंका अधिक होती है। वहीं एम्स, नई दिल्ली के निदेशक डा.रणदीप गुलेरिया का कहना है कि तीसरी लहर में बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होंगे, यह केवल दावा है। अभी इसका कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है।

2021-05-12

dhumrapan ke nuksan | dhumrapan hanikarak hai kaise | dhumrapan se hone wale nuksan | dhumrapan se hone wale rog

 धूम्रपान के नुकसान या धूम्रपान जीवन के लिए घातक और धूम्रपान से होने वाली हानियां


घूमपान से स्वयं की ही नहीं
आसपास के लोगों की भी सेहत
प्रभावित होती है। इसका दुष्प्रभाव दिल
व फेफड़ों पर पड़ने के साथ ही हड्डियों
में कई तरह की समस्याएं
पैदा करता है। नए शोधों
के मुताबिक 80 फीसद
बीमारियों की वजह
होता है धूमपान...


आजकल धूमपान का शौक बहुत बढ़ा है। हर उम्र के लोग इसकी गिरफ्त में तेजी से आ रहे हैं। तंबाकू का उपयोग पीने,खाने और मंजन के रूप
में हो रहा है। तंबाकू से होने वाले दुष्प्रभाव प्रायः
सभी को पता हैं, किंतु युवावस्था की यह लत
एक बार लगने के बाद बुढ़ापे तक बनी रहती है
मगर एक बात यह भी है कि तंबाकू के सेवन से
हड्डियां भी कमजोर हो जाती हैं। इसके अलावा
उनमें रक्त संचार की कमी, संक्रमण, क्षरण एवं
ऑस्टियोपोरोसिस जैसी समस्याएं पैदा होती हैं।
जो लोग धूमपान करते हैं वे अपने लिए कई
बीमारियों को दावत देने के साथ संपर्क में आने
वालों को भी बीमार करते हैं। निकोटिन युक्त
पदार्थों का सेवन टूटी हुई हड्डी के न जुड़ने या


विलंब से जुड़ने का भी एक कारण
है। धूमपान करने से शरीर की
की मात्रा में गिरावट आती
है, जिसके प्रभाव से शरीर में
किसी भी घाव भरने में विलंब
होता है। इन दुष्परिणामों के
साथ-साथ धूमपान से हड्डी
के घनत्व में कमी आना,
हड्डी का विस्थापित होना या
कमजोर होना आदि समस्याएं
उत्पन्न होती हैं।
विकारग्रस्त हो जाती हैं हड्डियां:
हड्डियों के स्वास्थ्य पर हुए अनुसंधानों
एवं शोधों से पता चला है कि निकोटिन युक्त
पदार्थ में खून का प्रवाह कम करने के साथ-
साथ शरीर में एंटीऑक्सीडेंट्स व विटामिनों
की मात्रा में भी कमी करते हैं। इसकी वजह से
रिएक्टिव ऑक्सीजन की मात्रा में कमी हो जाती
है। ऐसे में हड्डी टूटती भी जल्दी है और जुड़ती
भी नहीं है। निकोटिन डीएनए के स्तर पर हड्डी
की कोशिकाओं के बहुआयामी विकास पर भी
प्रतिकूल प्रभाव डालता है। विभिन्न शोधों से यह
भी साबित हुआ है कि धूमपान की वजह से फीमर
हड्डी, पैर की टीबिया हड्डी और घुमरस हड्डी
टूटने पर जल्दी जुड़ती नहीं है। यदि रोगी अब
धूमपान छोड़ चुका है तो भी यह हड्डी आसानी
से नहीं जुड़ती है। ऐसा पाया गया है कि जो मरीज
इलाज के दौरान धूमपान करते हैं, उनकी हड्डी न
सिर्फ देर से जुड़ती है, बल्कि उसमें कई तरह के
विकार भी पैदा हो जाते हैं।


दिल का दुश्मन धूमपानः दिल की बीमारी का
सबसे बड़ा कारक है धूमपान। धूमपान करने
वाले व्यक्ति को दिल की बीमारी का खतरा तीन
गुना बढ़ जाता है। कुछ लोग सोचते हैं कि कम
धूमपान करने
से खतरा टल
जाता है, लेकिन
ऐसा बिल्कुल
नहीं है। शोध के
अनुसार अगर
कोई व्यक्ति
एक दिन में
एक सिगरेट भी
पीता है तो उसे
धूमपान न करने
वाले शख्स के
मुकाबले दिल
के रोग होने की
आशंका 48
फीसद तक बढ़
जाती है।
दृढ़ इच्छाशक्ति
आदत छुड़ाने
में करेगी मदद:
धूमपान की लत
लगने के बाद
उसे छोड़ने में
काफी दिक्कतें
आती हैं। ऐसे
में काउंसलिंग,
'मनोचिकित्सक

से परामर्श, व्यावहारिक परिवर्तन जैसे उपायों
से रोगी की मदद की जा सकती है। यह पाया
गया है कि धूमपान बंद करने के बाद 50 फीसद
लोग पुनः धूमपान शुरू कर देते हैं। इसके लिए
दृढ़इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है। पौष्टिक
आहार के साथ ही नियमित योग और व्यायाम भी
धूमपान की लत छुड़ाने में मदद करते हैं। धूमपान
से दूरी बनाकर 80 फीसद से अधिक बीमारियों
से बचा जा सकता है और संपर्क में रहने वालों
को बचाया जा सकता है।

2021-04-20

interstitial lung disease in hindi | interstitial lung disease kya hai | treatment | symptoms

Interstitial Lung Disease 

(इंटरस्टीशियल लंग डिजीज)

इंटरस्टीशियल लंग डिजीज, लक्षण, उपचार इन हिन्दी या इंटरस्टीशियल लंग क्या होता है?


 कई बीमारियों का समूह है इंटरस्टीशियल लंग डिजीज। उपचार और आहार-विहार को अपनाकर पाया जा सकता है इसमें नियंत्रण...



इंटरस्टीशियल लंग डिजीज (आई.एल.डी.) दो सौ से अधिक रोगों के समूह को नाम दिया गया है, क्योंकि
यह सभी क्लिनिकल, रेडियोलॉजिकल और पैथोलॉजिकल विशेषताओं को साझा करती हैं। इंटरस्टीशियल लंग
डिजीज में थकावट, सूखी खांसी और सांस फूलने जैसे लक्षण पाए जाते हैं। इसमें चेस्ट एक्सरे में फेफड़े में धब्बे
तथा लंग फंक्शन टेस्ट में फेफड़े की कार्य क्षमता कम दिखाई देती है। इंटरस्टीशियल लंग डिजीज के निदान
में मरीज के लक्षणों की जानकारी, शारीरिक परीक्षण, चेस्ट एक्सरे, सीटी स्कैन तथा फेफड़ों की कार्य क्षमता देखी
जाती है।

दो भागों में बंटी होती हैं बीमारियां:

इंटरस्टीशियल लंग डिजीज़ को दो भागों में बांटा गया है। एक वे, जिनमें कोई न कोई कारण का पता चलता है
(जैसे पर्यावरणीय एवं औद्योगिक
प्रदूषण, ऊतक रोग आदि) और
दूसरा जिसमें विस्तारपूर्वक जांच के
बाद भी कारण का पता नहीं चलता
है। पहले समूह को नॉन आई.पी.
एफ. इंटरस्टीशियल लंग डिजीज
(आई.एल.डी.) तथा दूसरे को
इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस
(आई.पी.एफ.) कहते हैं।

लगातार बढ़ रही संख्या : भारत में
आई.एल.डी. के रोगियों की संख्या
लगातार बढ़ रही है। धूमपान, वायु
प्रदूषण तथा ऐसे व्यवसाय जिनमें धूल
व धुआं अधिक मात्रा में निकलता हो,
के कारण बीमारी बढ़ रही हैं। इसके
साथ ही कबूतर व कुछ अन्य पशु-
पक्षियों के साथ रहना व कूलर का
इस्तेमाल करना भी इसमें शामिल है।

ज्ञात नहीं हैं कारणः इडियोपैथिक
पल्मोनरी फाइब्रोसिस में बिना किसी
ज्ञात कारण के फेफड़े में फाइब्रोसिस
(फेफड़े की सिकुड़न) हो जाती है।'
धीरे-धीरे फेफड़ों का आकार छोटा
हो जाता है और सूखी खांसी आती है।
बीमारी बढ़ने पर फेफड़े की संरचना
मधुमक्खी के छत्ते जैसी हो जाती है।

लक्षणों में है काफी समानता: टीबी,
अस्थमा और फेफड़े की फाइब्रोसिस के
लक्षणों में बहुत समानता है। इसलिए
इसमें आपस में अंतर कर पाना
चिकित्सकों के लिए भी कठिन होता है।
चिकित्सक रोगी से विस्तृत जानकारी
प्राप्त करके इन बीमारियों की पहचान
कर सकते हैं। इडियोपैथिक पल्मोनरी
फाइब्रोसिस के अधिकतर मरीज उम्र
में 40 वर्ष से अधिक के होते हैं और
उनमें सांस फूलने की तकलीफ बीमारी
के साथ धीरे-धीरे बढ़ती जाती है, जो
कि अस्थमा रोगसे विपरीत है। अस्थमा
के मरीज ज्यादातर कम उम्र के होते हैं
तथा लगातार सांस फूलने के बजाय
इन मरीजों में कभी-कभी सांस फूलती
है। दूसरी तरफ टीबी के मुख्य लक्षणों
में बुखार, खांसी, बलगम, बलगम में
खून आना आदि शामिल है। पल्मोनरी
फंक्शन टेस्ट (पी.एफ.टी.) के जरिए

दमा और फेफड़े की फाइब्रोसिस में
अंतर आसानी से किया जा सकता है।
फेफड़े की फाइब्रोसिस के सही परीक्षण
के लिए फेफड़े का सी.टी. स्कैन भी
कराया जाता है। अपने देश में एक्सरे
के हर धब्बे को टीबी समझा जाता है,
जबकि ऐसा है नहीं।

फेफड़े का ट्रांसप्लांट है अंतिम
विकल्पः ऐसे मरीजों में अचानक
सांस बढ़ जाने पर एंटीबायोटिक का
कुछ दिन का कोर्स दिया जा सकता है।
इसके अलावा धूमपान का सेवन बंद
करना, धूल, धुएं से दूर रहना, योग,
प्राणायाम करना, समय-समय पर
टीकाकरण करवाना तथा लंबे समय
तक ऑक्सीजन देना भी लाभकारी
पाया गया है। गंभीर स्थिति में फेफड़े
का प्रत्यारोपण एक मात्र विकल्प रह
जाता है। अच्छी बात यह है कि फेफड़े
का प्रत्यारोपण (लंग ट्रांसप्लांट) अब
भारत में भी कई केंद्रों पर होने लगा है।

सावधानी है बचाव

कुछ सावधानियों को अपना
कर हम इस बीमारी पर नियंत्रण
पा सकते हैं। विश्व स्तर पर
इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस
के मरीज, इंटरस्टीशियल
लंग डिजीज के कुल रोगियों
के 30 फीसद होते हैं, जबकि
भारतीय इंटरस्टीशियललंग
डिजीज रजिस्ट्री के अनुसार
इंटरस्टीशियल लंग डिजीज के कुल
मामलों में इडियोपैथिक पल्मोनरी
फाइब्रोसिस 13 फीसद पाया गया है।
इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस
के लक्षणों में सूखी खांसी, सांस लेने
में तकलीफ, भूख न लगना और
थकान शामिल है और ये लक्षण टीबी
और अस्थमा में भी पाए जाते हैं।


2021-03-19

jod dard ka tel | jodo ka dard oil | joint pain ointment | joint pain (Jod Dard) ki dawa

जोड़ों का दर्द की दवा या जोड़ों के दर्द तेल



जोड़ों के दर्द से आपको दवाओं से कुछ दिनों के लिए आराम मिल सकता है, लेकिन दवा का प्रभाव खत्म

होते ही आपको दोबारा दर्द का सामना करना पड़ेगा। पर 'अरोमा ऑयल्स' के जरिए आपको इससे लंबे

समय के लिए फायदा मिल सकता है। इन तेलों का

उचित प्रकार से प्रयोग करें।

जोड़ों के दर्द में अरोमाथेरेपी फायदेमंद होती है। इन

प्राकृतिक तेलों की खुशबू का प्रभाव सीधे हमारे

मस्तिष्क पर पड़ता है, जिससे दर्द में राहत मिलती है।

यह प्रभावित हिस्से के रक्त संचार को बेहतर बनाते हैं

और सूजन कम करते हैं।


कायेन पेपर ऑयल: इसकी कुछ बूंदों को

नारियल तेल के साथ मिलाएं। तेल का प्रयोग दिन में

दो से तीन बार करें। दो से तीन हफ्ते लगातार इस्तेमाल

से फायदा होगा।


लेमनग्रास ऑयलः राहत पाने के लिए इस ऑयल

को अलग-अलग तरीकों से प्रयोग किया जा सकता है।

इसके लिए पानी को उबालकर उसमें कुछ बूंदें

लेमनग्रास तेल की डालें और प्रभावित हिस्से में भाप

लें। इससे आपको काफी राहत मिलेगी।

लोबान तेलः इस तेल को ऑलिव ऑयल के साथ


मिलाकर सूजन वाले हिस्से में लगाएं। इससे सूजन

कम होगी।


पिपरमेंट ऑयलः तेल की पांच से आठ बूंदों को

दो चम्मच गुनगुने नारियल तेल में मिलाकर तुरंत जोड़ों

पर लगाएं। आप नारियल तेल की जगह किसी दूसरे

तेल का भी प्रयोग कर सकती हैं।


रोजमेरी ऑयलः इस तेल को प्रभावित हिस्से पर

लगाएं। यह तेल रोजमेरिनिक एसिड से युक्त होता है,

जो कि दर्द को कम करने में काफी प्रभावी है।

जूनिपर ऑयलः इसकी कुछ बूंदों को लोशन या

क्रीम में मिलाकर हर दिन प्रयोग कर सकती हैं।


क्लोव ऑयल: इस तेल को जोजोबा ऑयल के

साथ मिलाकर प्रभावित हिस्से पर लगाएं।


जिंजर ऑयल: आप इसे लैवेंडर और लेमनग्रास

तेल के साथ मिलाकर, प्रभावित हिस्से पर लगाकर

राहत पा सकती हैं।


लैवेंडर ऑयलः इसे सीधे प्रभावित हिस्से पर

लगाएं। इसमें तीव्र खुशबू आती है, जिससे दर्द को दूर

करने में मदद मिलती है। इस तेल को जोड़ों पर लगाते

हुए हमेशा गोलाकार में मसाज करें।


2020-05-28

Toxic Personality Disorder Kya Hain? Toxic Personality Disorder Lakshan, Prakar, Ilaj Ke Bare Me Janakari In Hindi Mein

Toxic Personality Disorder Ke Bare Me Jankari

Toxic Personality Disorder Kya Hain?

जब भी बोलें, कड़वी बात ही मुंह से निकले। बात-बात में ताने और नजरो से उपहास उड़ाने वाले लोग आसपास मिल ही जाते हैं। इसे ही toxic personality disorder कहते है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं, "ऐसे 'टॉक्सिक पर्सनालिटी' से बचकर रहना बेहतर।" वैसे ऐसे लोगों का इलाज भी संभव है। 

कई लोग बातचीत में जहर उगलते हैं और यह उनकी आदत में शुमार हो जाता है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं यह एक ऐसी बीमारी है, जो व्यक्तित्व को नकारात्मक बनाती है। जैसे किसी भी इंसान का एक दूसरे इंसान से जुड़ाव और अलगाव उसकी शख्सियत या व्यक्तित्व तय करता है। एक इंसान किसी के लिए अच्छा हो सकता है तो वही इंसान किसी के लिए बेहद खराब भी हो सकता है, लेकिन इन सभी के बीच एक ऐसा व्यक्तित्व भी होता है जो सभी के लिए परेशानी का सबब होता है। इस तरह के व्यक्तित्व के स्वामी टॉक्सिक, विषाक्त या जहरीला कहा जाता है। जिस तरह से सांप की फितरत हर स्थिति में जहर उगलने की ही होती है उसी तरह टॉक्सिक पर्सनालिटी अपने आसपास के लोगों और माहौल में नकारात्मकता का संचार करता है। यदि आप दूसरे के लिए टॉक्सिक व्यक्ति नहीं बनना चाहते हैं और दूसरों के लिए ही क्यों अपने आप के लिए भी अपने व्यवहार का अध्ययन करना शुरू कर दें।


 कैसे जाने टॉक्सिक पर्सनालिटी को


 कई बार अपने भी जाने-अनजाने में विषाक्त लोगों का सामना किया होगा, लेकिन संभवतः एक निश्चित परिभाषा न गढ़ पाए हो। सामान्यतः इस तरह के व्यक्तित्व को कुछ लक्षणों से पहचाना जा सकता है। ऐसे लोग भावात्मक और मानसिक तौर पर थकान वाले, असहयोगात्मक रवैया रखने वाले, बात करने के दौरान लगातार टोकने वाले, आपको एक शब्द न बोलने देने वाले और अपने ही बारे में बात करने वाले होते हैं।प्रश्न किए जाने पर उतर की प्रतीक्षा किये बगैर ही ये बीच में कूद पड़ने वाले होते हैं। आत्ममुग्ध और अपनी जरूरतों को ही महत्त्व देते हैं। इस तरह के लोग अपने चारों ओर की सभी चीजों और लोगों को नियंत्रित करने की इच्छा रखते हैं। ये हमेशा कुछ उदास, नकारात्मक या निराशावादी रहते हैं। बातचीत और रिश्ते में कभी भी सकारात्मक नहीं दिखते हैं। हर स्थिति को ड्रामा की शक्ल देने में माहिर होते हैं। इनके साथ हमेशा समस्याएं रहती है। ये केवल आपका समर्थन चाहते हैं- लेकिन आपकी सलाह नहीं है। यह इतने जलनखोर होते हैं कि अपने आस-पास के किसी भी व्यक्ति के लिए खुश नहीं हो सकते। आमतौर पर इनकी ईर्ष्या,  निर्णय, आलोचना या गपशप के रूप में सामने आती है। ये मानकर चलते हैं कि बाकी सभी लोग बेहद मूर्ख या अन्य किसी तरह की कमी वाले होते हैं। करीबी रिश्तों में वे आपको  अपने आप पर शक करने पर मजबूर कर डालते हैं ताकि आप अपने अधिकारों का दावा करने से डरे। यह झूठ बोलने वाला, रिश्तो में बेईमानी करने वाला, अभिमान और दंभ से भरा व्यक्तित्व होता है। सिडनी आस्ट्रेलिया की साइकोथैरेपिस्ट (मनोचिकित्सक) के मुताबिक, ऐसा नहीं है कि कोई व्यक्ति पूरी तरह से टॉक्सिक होता हैं, बल्कि या तो उनका व्यवहार और उस व्यक्ति के साथ रिश्ता रखना विषाक्त होता है। इस तरह का इंसान अंदर किसी भी वजह से बेहद आहत हुआ रहता है। 


कैसे प्रभावित करती हैं टॉक्सिक पर्सनालिटी 


ऐसे लोग किसी न किसी तरह से आप को प्रभावित करते हैं। यदि आपके नजदीक ऐसे लोग हैं तो आप आसानी से पहचान कर सकते हैं। न चाहते हुए भी आप इनके भावात्मक ड्रामे से प्रभावित होते हैं। आपके इनके करीब रहने में डर महसूस करते हैं। इनके साथ बातचीत करने के दौरान या तो आप थका हुआ महसूस करते हैं या फिर आपका पारा चढ़ने लगता हैं। इसके साथ रहने के दौरान आप खुद के लिए बुरा या शर्मिंदा महसूस करते हैं। आप अनजाने में ही इनको बचाने, इनकी समस्या को ठीक करने और इनकी चिंता करने के एक असामान्य से चक्र में फस जाते हैं।