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2022-03-07

रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी क्या है - Radiofrequency Neurotomy Kya Hota Hai | Spinal Pain Treatment In Hindi

Radio Frequency Neurotomy Treatment Ke Bare Me Janakari

लंबे समय से रीढ़ के दर्द से जूझते मरीजों के लिए आशा की किरण है रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी। इससे पुराने दर्द और रीढ़ की कई तकलीफों में मिल जाती है राहत............


रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी क्या है?


व्यस्त जीवनशैली और एक्सरसाइज की कमी के चलते स्वास्थ्य को लेकर हम काफी हद तक लापरवाह हो चुके हैं। ऐसे में रीढ़ और मांसपेशियों से जुड़ी तकलीफों से दो-चार होने वाले मरीजों की संख्या बहुत 
तेजी से बढ़ रही है। आज अधिकतर लोग ऑस्टियो अर्थराइटिस, रुमेटॉइड अर्थराइटिस, सर्वाइकल, स्पाइनल स्टेनोसिस से ग्रस्त हैं। इसके अलावा बढ़ती उम्र या चोट के कारण कार्टिलेज घिसने लग जाता है, जिससे जोड़ों में सूजन आ जाती है। यह अर्थराइटिस की शुरुआत होती है। ज्यादातर रीढ़ की हड्डी की तकलीफ जैसे-ऑस्टियो अर्थराइटिस, स्पाइनल स्टेनोसिस या पीठ की कोई गहरी चोट आदि फैसेट ज्वाइंट में दर्द का मुख्य कारण होती हैं। आमतौर पर इनके प्राथमिक उपचार में मरीज के दर्द के हिसाब से फिजियोथेरेपी, दर्द निवारक दवा या पारंपरिक सर्जरी का इस्तेमाल किया जाता है, जबकि अब रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी जैसी अत्याधुनिक तकनीक की मदद से लंबे समय से हो रहे दर्द में राहत देने के लिए रीढ़ की हड्डी का उपचार संभव है।


इस तरह होती है सर्जरी:


सर्जरी की इस नई तकनीक रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी में ना के बराबर चीरा लगाया जाता और सर्जिकल प्रक्रिया ऐसी होती है कि मरीज को उसी दिन डिस्चार्ज कर दिया जाता है। इसमें रेडियो फ्रीक्वेंसी वेव्स, जो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स होती हैं और प्रकाश की गति से तेज चलती हैं, को एक विशेष जनरेटर को उच्चतम तापमान पर रखकर बनाया जाता है। इससे हीट एनर्जी बनाकर सुनिश्चित तंत्रिकाओं तक पहुंचाई जाती है, जो दर्द आवेगों को मस्तिष्क तक लेकर जाती है। रेडियो फ्रीक्वेंसी वेव्स को सुई की नोक से मिलाया जाता है, जो तंत्रिका को मस्तिष्क तक दर्द के संकेतों को भेजने से बाधित करता है।

रेडियो फ्रिक्वेन्सी न्यूरोटॉमी के प्रकार?


रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी से उपचार मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं:
मीडियल ब्रांच न्यूरोटॉमी यानी एब्लेशन, जो फैसेट जोड़ों से दर्द ले जाने वाली तंत्रिकाओं को प्रभावित करता है और दूसरा, लेटरल ब्रांच न्यूरोटॉमी, जो सेक्रोइलिएक जोड़ों से दर्द ले जाने वाली तंत्रिकाओं को प्रभावित करता है।

रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी से हर दर्द से राहत 


रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी कई पुराने जोड़ों के दर्द जैसे स्पाइनल आर्थराइटिस, लो बैक पेन, स्पाइनल स्टेनोसिस, सर्वाइकल स्पाइन सर्जरी के बाद का दर्द, फेल्ड बैक सर्जरी सिंड्रोम और अन्य रीढ़ के दर्द में भी असरदार प्रतिक्रिया दिखाती है। यह कुछ न्यूरोपैडिक से जुड़े दर्द जैसे कांप्लेक्स रीजनल पेन और अन्य मिश्रित पुराने दर्द में भी असरदार है। इस इलाज के लिए एक मरीज की उम्मीदवारी आमतौर पर एक डायग्नोस्टिक नर्व ब्लॉक के प्रदर्शन पर निर्धारित होती है।

बेहतर है विकल्प


रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी लंबे समय से हो रहे दर्द में स्टेरॉयड इंजेक्शन के मुकाबले अधिक राहत देती है। अधिसंख्य मरीज इससे उपचारलेने के बाद दर्द से निजात पा लेते हैं। इस विधि में बहुत छोटे चीरे का इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए यह किसी अन्य सर्जरी के मुकाबले जल्दी राहत देने वाली होती है। साथ ही इस सर्जरी के निशान भी नहीं पड़ते हैं।

2022-03-01

मुंह की स्वच्छता पर ध्यान कैसे दे | oral hygiene kya hota hai | oral hygiene guidelines tips in hindi | ओरल हाइजीन के बारे में

मुंह की स्वच्छता पर ध्यान कैसे दे या ओरल हाइजीन (मुंह की स्वच्छता) केयर कैसे करे इन हिंदी


ओरल हाइजीन (मुंह की स्वच्छता) पर ध्यान न देने से कोविड के मरीजों का वायरल लोड बढ़ सकता है व कोविड की समस्या भी गंभीर हो सकती है...


    ओरल कैविटी मुंह में बहुत से वायरस, बैक्टीरिया और फंगस का बसेरा बना देती है। इसलिए ओरल हेल्थ पर ध्यान देना अनिवार्य है ताकि आपको किसी भी प्रकार का संक्रमण न हो।
    कई परीक्षणों से यह प्रमाणित हुआ है कि ओरल हेल्थ खराब हो तो कोरोना संक्रमण अधिक गंभीर हो सकता है और यहां तक कि ठीक होने में भी अधिक समय लग सकता है। ध्यान देने की बात यह है कि फेफड़ों का संक्रमण और मसूड़ों की बीमारी पैदा करने वाला वायरस एक ही है। मसूड़ों में सूजन होने पर सीआरपी वैल्यू (सी-रिएक्टिव प्रोटीन, शरीर में अति सूजन के लिए एक मार्कर) की रीडिंग अधिक हो जाती है जिसके चलते कोविड के इलाज के दौरान डाक्टर गलत अर्थ लगा सकते हैं।

ये लक्षण आ रहे नजर :

दूसरी लहर में आए डेल्टा वैरिएंट के चलते कोविंड रिकवरी के दौरान मुंह में कई विचित्र लक्षण पाए जा रहे हैं। ऐसे में चेतावनी के कुछ संकेतों को लेकर अधिक सतर्क रहें, जैसे दांतों का हिलना/ढीला होना। दुर्गंध, दांत दर्द, मुंह में छाले, ओरल म्यूकोसा का लाल होना, नाक से काला तरल निकलना,खून बहना, आंखों में सूजन। इन संकेतों के दिखने पर तुरंत डेंटिस्ट से मिलें।

जरूरी है संपूर्ण देखभाल :

कोविड से रिकवर हो चुके सभी मरीजों को यह सलाह दी जाती है कि
खुद घर पर अच्छी रोशनी में आइने में देखें कि
दांतों में चेतावनी का कोई संकेत तो नहीं साथ ही
डब्ल्यूएचओ और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण
मंत्रालय के दिशानिर्देशों के अनुसार चलाए जा रहे
'पोस्ट कोविड रिकवरी ओरल स्क्रीनिंग प्लान'
का हिस्सा बनें। यह ओरल केयर प्लान व्यापक है
जिसका मकसद कोविड से रिकवरी के दौरान ओरल
हेल्थ की संपूर्ण देखभाल करनी है। इसके तहत कुछ
चरणों में जांच और देखभाल की जाती है।

1. पूरे मुंह का एक्सरे। संक्रमण और दांतों में सड़न का पता लगाने के लिए।

2. अल्सर, फंगस और दांतों की अन्य समस्याओं का पता लगाने के लिए मुंह, लार ग्रंथियों और जबड़े की पूरी जांच।

3. मसूड़ों के नीचे गहरी और पूरी सफाई।

मुंह स्वच्छतो आप सुरक्षित मुंह की संपूर्ण स्वच्छता के लिए जरूरी है कि प्रतिदिन आपः

• फ्लास करें,टंग क्लीनर का उपयोग करें, दो बार
ब्रश जरूर करें।

• चिकित्सक से परामर्श करके दिन में दो बार
अच्छे माउथवाश का उपयोग करें।

• अपने टूथब्रश और टंग क्लीनर को अन्य सदस्यों
के टूथब्रश और टंग क्लीनर से दूर रखें। इन्हें
वक्त-वक्त पर बदलते भी रहें।

2021-07-16

delta variant kya hai | delta variant ke lakshan kya hai | corona dusari lahar ke lakshan

डेल्टा वेरिएंट क्या है और डेल्टा वैरीअंट के लक्षण(Symptoms) व बचाव(Treatment) के बारे मे 



कोरोना की दूसरी लहर नियंत्रण में है,लेकिन तीसरी लहर की आशंका जताई जा रही है। इसी के साथ इन दिनों डेल्टावैरिएंट को लेकर भी चर्चा तेज है। इसकी तीव्रता को देखते हुए जरूरी है कि संक्रमण से बचने के सारे उपाय अपनाएं जाएं और ज्यादा से ज्यादा हो वैक्सीनेशन...


डेल्टा वेरीअंट क्या होता है?


हमारे देश में कोरोना की दूसरी लहर पर काफी हद तक काबू पा लिया गया है, जो पिछले साल शुरू हुई पहली लहर की तुलना में कहीं अधिक खतरनाक थी। अब कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य विशेषज्ञ सितंबर-अक्टूबर में कोरोना की तीसरी लहर की आशंका जता रहे हैं। दूसरी तरफ दस्तक दे रहा है इसका डेल्टा वैरिएंट, जिसकी तीव्रता काफी अधिक है। इन सबको देखते हुए हमें पहले से ही तैयारियां करनी चाहिए। तीसरी लहर की आशंका और इसके छोटे आयुवर्ग पर प्रभाव के कयासों के बीच नेशनल कमीशन फार प्रोटेक्शन आफ चाइल्ड राइट्स (एनसीपीसीआर) ने कहा है कि अगर कोविड-19 की तीसरी लहर की आशंका जताई जा रही है और इससे बच्चों के प्रभावित होने का कुछ भी अनुमान है तो बच्चों और नवजात शिशुओं को संक्रमण से बचाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को समय रहते रणनीति बनानी होगी।


सर्तकता ही बचाएगी: 


मीडिया लगातार रिपोर्ट कर रहा है कि पिछले कुछ दिनों से डेल्टा प्लस वैरिएंट के साथ कोरोना के मामले भी बढ़ रहे हैं, जिससे तीसरी लहर की आशंका तेज हो गई है। एम्स, नई दिल्ली के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया का कहना है कि अनलाक के बाद जिस तरह से लोग कोविड़ प्रोटोकाल का पालन नहीं कर रहे हैं, उसे देखते हुए तीसरी लहर से बचना मुश्किल हो जाएगा। तीसरी लहर हो या डेल्टा वैरिएंट, बचने के लिए तीन बातों का ध्यान रखना सबसे जरूरी है। कोविड प्रोटोकाल का कड़ाई से पालन करना, कोविड के मामलों से निपटने के लिए बेहतर रणनीति और टीकाकरण। इस स्थिति को देखते हुए हमें सतर्क रहने की जरूरत है, ताकि अप्रत्याशित
स्थिति से बचा जा सके।

बुनियादी नियम न भूलें : 


दो गज की शारीरिक दूरी बनाए रखें। मास्क पहनें। हाथ सैनिटाइजर अथवा साबुन से साफ रखें।

ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग : 


ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग सबसे जरूरी है, ताकि संक्रमित लोगों की तुरंत पहचान कर दूसरे लोगों में संक्रमण को फैलने से रोका जा सके। अगर आपको थोड़ी सी भी आशंका हो तो तुरंत कोरोना की जांच कराएं।


वैक्सीनेशन : 


अधिक से अधिक लोग जल्द से जल्द वैक्सीन लगवा लें। वैक्सीनेशन अधिक होगा, तो तीसरी लहर से बचने के लिए हमारी तैयारी उतनी ही बेहतर होगी। 

डबल मास्क का इस्तेमाल: 


डबल मास्क का इस्तेमाल करें, क्योंकि सिंगल मास्क की तुलना में यह अधिक सुरक्षा प्रदान करता है। सस्ती गुणवत्ता की जगह बेहतरीन क्वालिटी का एन-95 मास्क इस्तेमाल करें। इसके ऊपर सर्जिकल क्लाथ मास्क बांध सकते हैं। सस्ते मास्क से बचें। ये आपके कान, त्वचा और श्वास तीनों के लिए तकलीफदेह साबित होते हैं। आप इन्हें बार-बार उतारते हैं और इस प्रकार संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है। 


इंडोर गैदरिंग से बचना: 


बंद स्थानों पर इकट्ठा होने से बचें। घर-आफिस में वेंटिलेशन का ध्यान रखें, ताकि हवा जल्दी स्वच्छ हो जाए।


सेल्फ मेडिकेशन से दूरीः


कोविड की दूसरी लहर के दौरान अधिकांश लोगों ने बिना चिकित्सक की सलाह के अपनी मर्जी से दवाईयां ली हैं। अपनी मर्जी से दवाईयां लेना या किसी और को दी गई सलाह की नकल करना ठीक नहीं है। यदि कोई दवा किसी एक व्यक्ति के लिए उपयुक्त है, तो वह दूसरे को फायदा पहुंचाए, यह जरूरी नहीं है। 

शुरूआत में स्टेरायड का इस्तेमाल नहीं: 


डाक्टरों और मरीज के परिजनों को भी उपचार के दौरान सतर्क रहने की जरूरत है। उपचार के पहले दिन से स्टेरायड नहीं दिया जाना चाहिए। इसे छठे दिन से दिया जाना चाहिए, अन्यथा म्यूकोरमायकोसिस हो सकता है।


तुरंत डाक्टर को दिखाएं

ब्राजील के रायलकालेज आफ पीडियाट्रिक्स एंड चाइल्ड हेल्थ ने माता- पिता को सुझाव दिया है कि अगर बच्चों में
निम्न लक्षण दिखाई दें तो तुरंत डाक्टर को दिखाएं।
•बच्चे की त्वचा का रंग पीला पड़ जाए
और छूने पर ठंडी महसूस हो।
•अगर सांस लेने में दिक्कत हो।
• होंटो के आसपास नीला पड़ जाए।
• बच्चे को दौरेपड़ने लगें।
बच्चालगाताररोता रहेया सोता रहे।
• त्वचा पर रैशेज पड़ जाएं।

क्या बच्चों के लिए अधिक है खतरा


कोविड-19 की तीसरी लहर से बच्चे कितने प्रभावित होंगे, इसके बारे में अभी कुछ भी नहीं कहाजा सकता, फिर भी सावधानी रखने और मुश्किल स्थितियों के लिए तैयार रहने में कोई हर्ज नहीं है।कोरोना की दूसरी लहर में जो बच्चे संक्रमित हुए उनमें से 90 फीसद में या तो मामूली या कोई लक्षण दिखाई नहीं दिए। इंडियन अकेडमी आफ पीडियाट्रिक्स (आईएपी) ने कहा है कि बच्चों का शरीर नाजुक होता है और उनका रोग प्रतिरोधक तंत्र भी पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ होता है। ऐसे में उनके संक्रमण की चपेट में आने की आशंका अधिक होती है। वहीं एम्स, नई दिल्ली के निदेशक डा.रणदीप गुलेरिया का कहना है कि तीसरी लहर में बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होंगे, यह केवल दावा है। अभी इसका कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है।