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2021-07-21

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Corona Se Thik Hone Ke Baad Side Effects Or Corona Virus Ke Baad Hone Wali Bimari 


Corona Thik Hone Ke Baad Ke Lakshan 



कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद लोगों को कमजोरी, सांस फूलना, पैरों में सूजन, थकान और नींद न आने की समस्या हो रही है। दो से तीन माह में ये लक्षण समाप्त हो जाते हैं लेकिन अगर इस तरह की परेशानी बनी रहे तो चिकित्सकीय परामर्श जरूर लें...



कोरोना से ठीक होने के बाद भी लोगों को कई तरह की समस्याएं हो रही हैं। इनमें सबसे आम है थकान, कमजोरी और नींद नहीं आना। लोगों में कोरोना संक्रमण से उबरने के दो से तीन महीने तक इस तरह की तकलीफ देखने को मिल रही है। हालांकि पहली लहर की अपेक्षा दूसरी लहर में इस तरह के मामले ज्यादा देखने को मिल रहे हैं।
संक्रमित होने के बाद जिन लोगों को इस तरह की परेशानी हो रही है, वे घबराएं नहीं, क्योंकि अधिसंख्य मामलों में धीरे-धीरे इस तरह की परेशानी अपने आप ही समाप्त हो जाती है। ऐसे लोगों को चाहिए कि वे पोषक आहार लें, हल्का व्यायाम और योग करें। हां, सतर्कता रखना बेहद जरूरी है। यदि कुछ भी असामान्य लगता है।
चिकित्सक से परामर्श जरूर करें। इसके अलावा यदि छाती में दर्द, सांस फूलना और पैरों में सूजन हो तो इसे भी गंभीरता से लें। ये समस्याएं खून का थक्का जमने की वजह से होती हैं। खून का थक्का किसी भी अंग में पहुंचकर नुकसान पहुंचा सकता है। ये थक्का फेफड़े, हार्ट और ब्रेन में पहुंचकर खून की आपूर्ति रोकता है, जो
जानलेवा साबित होता है। कोरोना संक्रमण के बाद लकवा और हार्ट अटैक के भी खूब मामले प्रकाश में आ रहे हैं। कई बार खून का थक्का इस तरह का अवरोध पैदा करता है कि पैरों में गैंगरीन (खून की सप्लाई नहीं होने से वह हिस्सा खराब होना) और आंखों की रोशनी जाने का खतरा हो सकता है। हालांकि इसमें उन लोगों को ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है, जो कोरोना संक्रमण के चलते गंभीर स्थिति में पहुंचे हों।


म्यूकरमायकोसिस से भी रहें सतर्क :


कोरोना से ठीक होने के बाद म्यूकरमायकोसिस के मरीज मिल रहे हैं। यह बीमारी उन लोगों को ज्यादा होती
है, जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है। यह सिर्फ परिकल्पना है कि कोरोना के दौरान जिन्हें स्टेरायड दिया गया उन्हें यह बीमारी हुई।
म्यूकरमायकोसिस का असर नाक, आंख और ब्रेन में होता है, लेकिन कई बार यह संक्रमण फेफड़ों में भी पहुंच जाता है, जो बहुत दुर्लभ माना जाता है। एंटीफंगल इंजेक्शन और सर्जरी से ज्यादातर मरीजों में यह बीमारी ठीक हो जाती है। नाक बंद होना, चेहरे में सूजन, आंखें लाल होना और नाक से काला पानी आने की समस्या हो तो तत्काल चिकित्सक को दिखाएं।


किसी बीमारी से पीड़ित रहे हैं और कोरोना
हुआ है तो ज्यादा सतर्क रहें :


जिन मरीजों को पहले से कोई बीमारी थी और कोरोना की चपेट में आ गए तो उन्हें चाहिए कि पुरानी बीमारी की कोई भी दवा चिकित्सक की सलाह के बिना बंद न करें और न ही दवा का डोज खुद से बढ़ाएं।
जिन लोगों के फेफड़े पहले से खराब है, दिल की बीमारी है या फिर दूसरी तकलीफ है, उन्हें दोसरा कोरोना होने पर ज्यादा परेशानी हो सकती है। इन्हें कोरोना से बचने के सारे उपाय अपनाते हुए वैक्सीन जरूर लगवानी चाहिए। फेफड़े की बीमारी वाले मरीजों को पहले भी एंफ्लूएंजा और निमोनिया से बचाव के लिए न्यूमोकोकल वैक्सीन लगाई जाती थी और अब इसमें कोरोना से बचाव का टीका भी शामिल हो गया है।


सही हो खानपान और दिनचर्या :



कोरोना से उबर चुके मरीजों को अपनी दिनचर्या सुव्यवस्थित रखनी चाहिए।अधिक तेल- मसाले वाले खाने से परहेज करें और घर में बनी चीजों को प्राथमिकता दें दिन में दो लीटर पानी अवश्य पिएं। वही खाना खाएंजो आसानी से पच जाए। नियमित रूप से हल्के व्यायाम करें।दो-तीन महीने ऐसे व्यायाम न करें, जिनमें अधिक मेहनत लगती है।

कोरोना संक्रमित होने के बाद लोगों को नींद नहीं आने की भी समस्या हो रही है:


 यदि लगातार यह समस्य बनी रहे तो मनोचिकित्सक को दिखाएं। अच्छी नींद के लिए जरूरी है कि शाम के बाद चाय-काफीन लें। सोने के एक घंटे पहले टीवी, कंप्यूटर या मोबाइल स्क्रीन से दूरी बना लें।


शुगर का स्तर नियंत्रित रखें :


डायबिटीज के मरीजों में कोरोना होने पर गंभीर होने का
खतरा ज्यादा रहता है। कोरोना संक्रमण के बाद
वे मरीज गंभीर स्थिति में आए, जिनका शुगर
का स्तर नियंत्रित नहीं रहा है। इन्हें यही सलाह
है कि दवाएं नियमित लें। कोरोना संक्रमण के
दौरान स्टेरायड दिए जाने की वजह से भी कुछ
मरीजों का शुगर का स्तर बढ़ता है, लेकिन एक-
दो महीने में अपने आप ठीक भी हो जाता है।
कोरोना संक्रमितों में देखा गया कि कुछ लोग
ऐसे भी थे, जो डायबिटीज की पूर्व अवस्था
(प्रीडायबिटिक) में थे। ये स्टेरायड दिए जाने से
डायबिटीज मरीज की श्रेणी में आ गए।


मास्क अवश्य लगाएं :


मास्क का प्रयोग अनिवार्य रूप से करें। अस्पताल या भीड़ वाली जगह में जा रहे हैं तो एन-95 मास्क का प्रयोग करें। सामान्य भीड़ वाली जगह में सर्जिकल मास्क से भी काम चला सकते हैं। कपड़े का मास्क प्रयोग करें तो दोहरा मास्क लगाएं।

कोरोना से ठीक होने के दो महीने बाद लगवाएं टीका



संक्रमित होने के बाद लोगों के मन में यह सवाल बार-बार आता है कि वैक्सीन लगवाई जाए या नहीं। ऐसे लोगों को चाहिए कि कम से कम दो माह तक वैक्सीन न लगवाएं।ध्यान रहे कि आप डायबिटीज या हाई ब्लडप्रशेर जैसी किसी भी बीमारी से पीड़ित क्यों न हों, वैक्सीन जरूर लगवाएं। ऐसी कोई बीमारी नहीं है जिसमें टीका लगवाने से मना किया गया हो। कोरोना से संक्रमित लोग पाजिटिव आने के दिन से कम से कम दो महीने बाद टीका लगवाएं। जिन्हें पहला डोज लगने के बाद कोरोना हुआ है चे भी यही करें। टीका लगवाने के पहले यह देख लें कि बुखार, स्वाद या गंध नहीं आने समेत कोरोना के कोई लक्षण तो नहीं हैं। यदि ऐसा है तो कोरोना की जांच कराने के बाद रिपोर्ट निगेटिव आने परही वैक्सीन लगवाएं।

2021-07-19

corona janch kab karna chahiye | corona janch type | corona janch kaise kare | corona ki janch kaise karaye aur kaise pata kare

कोरोना की जांच कैसे होगी या कोरोना की जांच कब करनी चाहिए




कोविड या पोस्ट कोविड मरीजों के आंतरिक अंगों की क्या स्थिति है? सूजन या रक्त साव का खतरा तो नहीं  है?
ब्लॉकेज अथवा स्ट्रोक का खतरा तो नहीं है?क्या कोविड का उपचार पा रहे मरीजों की समय रहते जरुरी जांचें कराई जार ही हैं? ऐसे कई सवाल जुड़े हैं कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की सेहत के साथ। जानें देश के बड़े अस्पतालों और विशेषज्ञों के हिसाब से क्या है जमीनी स्थिति...



 कोरोना की जांच क्यू जरूरी है? अगर आप पहले से संक्रमण के दायरे मे है तो,,,


इंदौर निवासी 32 वर्षीय रोहित जैन (परिवर्तित नाम) कोरोना संक्रमित पाए गए। आठ दिन अस्पताल में भर्ती रहे। अगली रिपोर्ट नेगेटिव आई। डिस्चार्ज होकर घर लौटे ही थे कि हालत फिर बिगड़ने लगी। दोबारा अस्पताल ले जाकर जांच कराई तो छाती का सीटी स्कैन कराने पर पता चला कि फेफड़े में बहुत संक्रमण है। दो दिन में उनकी मौत हो गई। ऐसे अनेक मामले सामने आ रहे हैं, जहां स्थिति का समय पर व सटीक अनुमान नहीं लगा पाने के कारण देर हो गई। समय रहते निदान और उपचार इससे बचने का एकमात्र उपाय है।


भारी न पड़ जाए लापरवाही:


कोरोना के निदान और उपचार में प्रारंभिक अवस्था से ही तमाम आशंकाओं और संभावित खतरों पर बारीकी से नजर रखी जाए तो प्रत्येक मौत को टाला जा सकता है। संक्रमण मुक्त हो जाने के बाद भी इस बात को सुनिश्चित कर लेना आवश्यक है कि शरीर के अंदर सब ठीक है कि नहीं? क्योंकि जरा सी भी चूक भारी पड़ सकती है। ऐसे तमाम टेस्ट उपलब्ध हैं, जिन्हें आसानी से कराया जा सकता है और जो महंगे भी नहीं हैं। किंतु फिलहाल जांच की जगह लक्षणों के आधार पर उपचार किया जा रहा है और केवल गंभीर मरीजों के मामलों में ही इन जांचों का सहारा लिया जा रहा है।


मरीज की स्थिति पर सब निर्भरः


हालांकि अस्पतालों, चिकित्सकों व सरकार के अनुसार सभी संक्रमितों को इन परीक्षणों की आवश्यकता नहीं पड़ती है। सीआरपी, एलडीएच, फेरेटिन, पीसीटी, एलडीएच, डी-डाइमर, आइएल-6, ब्लड गैसेस, एएसटी, एएलटी, टी-बिल, क्रेटेनाइन डब्ल्यूबीसी काउंट, न्यूट्रोफिल काउंट, लिंफोसाइट काउंट, प्लेटलेट काउंट
और चेस्ट एक्स-रे इत्यादि कुछ आवश्यक जांचें इंफ्लमेटरी मार्कर हैं, जिनसे आंतरिक अंगों की स्थिति का पता चलता है। यह जांचें कब होनी चाहिए, इसके लिए कोई आदर्श समय नहीं है, किंतु यह मरीज की स्थिति पर निर्भर होता है। वहीं, कुछ चिकित्सकों ने स्वीकार किया कि यदि यह जांचें प्रारंभिक अवस्था में ही करा ली जाएं, तो मरीज को गंभीर स्थिति में जाने से बचाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त सामान्य संक्रमण के बाद ठीक हुए मरीजों की भी एहतियात के तौर पर ये जांचें कराई जानी चाहिए, ताकि सुनिश्चित हुआ जा सके कि वे किसी तरह के खतरे में तो नहीं हैं।


अनिवार्य बनाए जाएं यह टेस्ट



कोरोना के निदान और उपचार की आदर्श प्रक्रिया में आवश्यक जांचों की उपयोगिता पर मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल के बायोकेमिस्टीएंड इम्यूनोलॉजी डिपार्टमेंट की विशेषज्ञ डॉ.बरनाली दास
अपने अध्ययन से इस निष्कर्ष पर पहुंची कि कुछ जांचें संक्रमण की शुरुआती अवस्था से ही करा लेनी चाहिए। इन्हें अस्पताल के एडमिशन प्रोटोकॉल (भर्ती की प्रक्रिया) में शामिल किया जाना चाहिए ताकि शरीर के अंदरूनी अंगों और प्लेटलेट्स की स्थिति पर नजर रखी जा सके। उनके अनुसार इन जांचों को प्रारंभिक काल में ही करा लेना चाहिए ताकि इनके अनुरूप उपचार को गति दी जा सके:

1.सीआरपी(सी रिएक्टिव प्रोटीन)
2.एलडीएच (लेक्टेट डिहाइड्रोजेनेस)
3.फेरेटिन, पीसीटी (प्रोकेल्सीटोनिन)
4.एलडीएच
5.डी-डाइमर
6.आइएल-6
7.ब्लड गैसेस
8.एएसटी
9.एएलटी
10.टी-बिल
11.क्रेटेनाइन डब्ल्यूबीसी काउंट
12.न्यूट्रोफिल काउंट
13.लिंफोसाइट काउंट
14.प्लेटलेट काउंट
15.चेस्ट एक्स-रे




1. कम से कम आइसीयू के सभी कोविड मरीजों की तो यह जांचें कराईही जानी चाहिए। मरीज की रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद भी फेफड़ों का सीटी स्कैन कराया जाना चाहिए। यदि उनमें किसी भी प्रकार के लक्षण नजर आते हैं, तब भी यह जांचें करानी चाहिए।



2. जांचे कब कराई जाए, इसके लिए कोई आदर्श समय नही है। यह मरीज की स्थिति पर निर्भर करता है। हां, ऑक्सिजन लेवल 94 से नीचे आने पर विभिन्न जांचे कराई जाती है।



3. आंतरिक रक्तस्राव का असर लिवर व शरीर के अन्य हिस्सों पर पड़ता है इसलिए मरीज को इससे बचाया जाना चाहिए। ऑक्सीजन की मात्रा 94 फीसद से कम होने पर डी-डाइमर और अन्य आवश्यक जांचें अवश्य कराई जानी चाहिए।



क्यों जरूरी है जांच




डी-डाइमर टेस्ट



डी-डाइमर एक तरह का प्रोटीन है, जो कोरोना मरीजों के फेफडे में संक्रमण या सूजन के चलते बढ़ जाता है। इस जांच से यह पता चलता है कि खून गाढ़ा तो नहीं हो रहा। खून गाढ़ा होकर थक्का बनने से मरीजों की मौत भी हो सकती है, इसीलिए खून पतला करने की दवाएं दी जाती हैं। इस जांच से यह भी पता चलता है कि रक्त के थक्का जमने की संभावना कितनी है। थक्का होने से फेफडे और धमनी में ब्लॉकेज हो सकता है और फेफडे की कार्यक्षमता प्रभावित हो सकती है।

आइएल-6


इसे इंटरल्यूकिन-6 कहते हैं । फेफड़े में सूजन लाने वाले साइटोकाइन स्टार्म की वजह आइएल-6है। इससे फेफडे के टिश्यू क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।


पीटी, एपीटीटी



पीटी यानी प्रोथॉम्बिन रक्त का थक्का होने पर या आंतरिक हिस्सों में रक्तस्राव के खतरे का पता लगाने के लिए यह जांच कराई जाती है। एक्टिवेटेड पार्सियल थ्रांबोप्लास्टिन टाइम, एपीटीटी नामक जांच भी इससे जुड़ी होती है।


सीआरपी, एलडीएच व फेरेटिन सी रिएक्टिव प्रोटीन




सीआरपी, एलडीएच व फेरेटिन सी रिएक्टिव प्रोटीन आंतरिक अंगों में सूजन पता करने की जांचें हैं। कोशिकाएं टूटने की वजह से संक्रमण के मरीजों में सीआरपी का स्तर बढ़ा हुआ मिलता है।

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कोरोना का फेफड़ों पर असर या प्रभाव और कोरोना वायरस फेफड़ों के संक्रमण के लक्षणों और उससे कैसे बचे के बारे मे जानकारी हिन्दी में



कोरोना व धूम्रपान


धूमपान और तंबाकू का सेवन एक साथ कई बीमारियों को दावत देता है। ये न केवल इसके शौकीनों की सेहत खराब करते हैं, बल्कि आसपास के लोग भी इससे प्रभावित होते हैं। कोरोना संक्रमण के प्रसार में भी इनकी अहम भूमिका है और ऐसे लोगों के कोरोना संक्रमित होने पर अन्यकी अपेक्षा जोखिम भी बढ़ जाता है...



    जनरल एग्रीमेंट ऑन ट्रेड इन सर्विसेज के अनुसार भारत में लगभग 27 करोड़ लोग तंबाकू का सेवन करते हैं। भारत में तंबाकू के कारण प्रतिवर्ष लगभग 12 लाख लोगों की मृत्यु होती है। ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे के अनुसार भारत में तंबाकू सेवन प्रारंभ करने की औसत आयु 18.7 वर्ष है। महिलाओं की तुलना में पुरुष कम उम्र में तंबाकू का सेवन करना प्रारंभ कर देते हैं। आज अधिकांश बीमारियों के पीछे तंबाकू की लत एक बड़ी वजह है। तंबाकू के कारण 25 तरह की बीमारियां तथा लगभग 40 तरह के कैंसर हो सकते हैं, जिसमें प्रमुख हैं- मुंह, गले, फेफड़े, प्रोस्टेट, पेट और ब्रेन का कैंसर। हमारे देश में लगभग 12 करोड़ लोग धूमपान करते हैं।

    विकसित देशों में धूमपान के विषय में जागरूकता के परिणाम स्वरूप धूमपान का औसत गिरता जा रहा है, लेकिन विकासशील देशों में अभी भी धूमपान के संबंध में चेतना की कमी है। इस वर्ष के विश्व तंबाकू निषेध दिवस (31 मई) की थीम 'तंबाकू छोड़ने का प्रण है।

पूरी तरह से किया जाए प्रतिबंधित :


तंबाकू व्यापार और उपभोग पर लेश मात्र भी अंकुश नहीं लग पाया। तंबाकू के धुएं से 500 हानिकारक गैसें एवं 7000 अन्य रासायनिक पदार्थ निकलते हैं, जिनमें निकोटीन और टार प्रमुख हैं। धूमपान में 70 रासायनिक पदार्थ कैंसरकारी पाए गये हैं। सिगरेट की तुलना में बीड़ी पीना ज्यादा नुकसानदायक होता है। हमारे देश में महिलाओं की अपेक्षा पुरुष अधिक धूमपान करते हैं। जब कोई धूमपान करता है तो बीड़ी या सिगरेट का धुआं पीने वाले के फेफड़ों में 30 फीसद जाता है और आसपास के वातावरण में 70 फीसद रह जाता है, जिससे परिवार के लोग और उसके मित्र भी प्रभावित होते हैं, जिसको हम परोक्ष धूमपान कहते हैं।

एक साथ कई बीमारियों को दावत:


विश्वभर में होने वाली मृत्यु में 50 प्रतिशत मौतों का कारण धूमपान है। धूमपान के परिणामस्वरूप रक्त का संचरण प्रभावित हो जाता है, ब्लड प्रेशर की समस्या होती है, सांस फूलने लगती है और नित्य क्रियाओं में भी अवरोध आने लगता है। धूमपान से होने वाली प्रमुख बीमारियां हैं: ब्रांकाइटिस, एसिडिटी, टीबी, ब्लडप्रेशर, हार्ट अटैक, फॉलिज, नपुंसकता, माइग्रेन, सिरदर्द, बालों का जल्दी सफेद होना आदि। यदि महिलाएं गर्भावस्था के दौरान परोक्ष या अपरोक्ष रूप से धूमपान करती हैं तो उनके होने वाले नवजात शिशु का वजन कम होना, गर्भाशय में ही या पैदा होने के बाद मृत्यु हो जाना व पैदाइशी बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है।

कोरोना संक्रमितों को ज्यादा खतरा:


    दुनिया में कोरोना संक्रमित व्यक्तियों की कुल संख्या लगभग 17 करोड़. पहुंच चुकी है, जबकि इससे मरने वालों की संख्या 34 लाख से अधिक हो चुकी है। यह वैश्विक आपदा 21वीं सदी की अब तक की सबसे बड़ी आपदा साबित हुई है। इसने लगभग 100 साल पहले हुई एक बड़ी आपदा स्पैनिश फ्लू की याद दिला दी है, जिससे पूरी दुनिया में लगभग पांच करोड़ लोगों की मौत हुई थी और भारत में लगभग दो करोड़ लोगों की मौत हुई थी। भारत में भी कोरोना ने अपना विकराल रूप धारण किया हुआ है। अब तक ढाई करोड़ से अधिक लोग कोरोना संक्रमित हो चुके हैं तथा लगभग तीन लाख लोगों की मृत्यु हो चुकी है। ज्ञात रहे कि कोरोना मानव शरीर की कोशिकाओं में एसीई-2 रिसेप्टर्स के माध्यम से प्रवेश करता है। धूमपान न करने वालों की तुलना में धूमपान करने वालों के फेफड़ों में एसीई-2 की संभावना ज्यादा पाई जाती है, जिससे इन व्यक्तियों को कोरोना संक्रमण का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है। इस प्रकार यह साफ है कि धूमपान करने वालों में एसीई-2 कोरोना संक्रमण के जोखिम को बढ़ा सकती है।

बढ़ जाती है संक्रमण के प्रसार की संभावना :


    तंबाकू का सेवन करने वाले व्यक्ति तंबाकू को बार-बार थूकते हैं, जिससे आसपास के लोगों में भी संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। इसी प्रकार बीड़ी, सिगरेट व अन्य धूमपान करने पर बार-बार हाथों से मुंह को छूना व मुंह से धुआं छोड़ने पर आसपास के लोगों में संक्रमण फैलने का खतरा अत्याधिक बढ़ जाता है। कोरोना महामारी के समय में तंबाकू व धूमपान को घर पर रहकर छोड़ने का पूर्ण प्रयास करें और कोरोना संक्रमण से बचें। कोरोना संक्रमण से सुरक्षित रहने के लिए एन-95 मास्क का प्रयोग करें, हाथों को समय-समय पर धुलते रहें व सैनिटाइज करते रहें साथ ही शारीरिक दूरी का पालन करें। सबसे ज्यादा जरूरी वैक्सीन है, जो आपके लिए सुरक्षा कवच है। इसलिए जैसे ही आपका नंबर आए वैक्सीन की दोनों डोज अवश्य लगवाएं।



कमाई कम नुकसान ज्यादा



    तंबाकू के व्यवसाय में भारत काफी अग्रणी है। विश्वभर में तंबाकू के उत्पाद एंव उपयोग के संबंध में भारत दूसरे स्थान पर है। तंबाकू के दुष्प्रभावों को देखते हुए इसके उत्पादन तथा ब्रिकी दोनों पर रोक लगाना इससे बचने का एकमात्र उपाय है। हालांकि इसके लिए दो कुतर्क दिए जाते हैं कि तंबाकू उत्पाद से लगभग तीन करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है तथा इससे काफी राजस्व की प्राप्ति होती है। राजस्व की प्राप्ति एक मिथक ही है, क्योंकि वित्त मंत्रालय के 2015-2016 के आंकड़ों के अनुसार तंबाकू के उत्पादों से प्रतिवर्ष 31,000 करोड़ रूपये अर्जित होते हैं, जबकि हम 1,04,500 करोड़ रुपये तंबाकू के दुष्प्रभावों से हो रही प्रमुख बीमारियों पर ही खर्च कर देते हैं। जाहिर है कि तंबाकू से नुकसान कहीं अधिक है। इसीलिए इसे एक अभिशाप कहा जा सकता है। इसके उत्पादन, पैकिंग और बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगा देना चाहिए।



    10 लाख धूमपान करने वाले लोगों ने (एक्शन आन स्मोकिंग एंड हेल्थ (ऐश) संस्था की गणना के अनुसार) कोविड-19 के दौरान लगभग धूमपान बंद कर दिया और लगभग पांच लाख 50 हजार ने छोड़ने का प्रयास
किया। करीब.24 लाख लोगों में सिगरेट पीने की दर पहले से कम पाई गई है। कहा जा सकता है कि कोविड-19 ने लोगों को धूमपान छुड़ाने के लिए एक अप्रत्याशित अवसर प्रदान किया है। तंबाकू का सेवन प्रत्येक व्यक्ति के लिए नुकसानदायक है। महामारी के दौर में इस घातक बीमारी से बचने के साथ-साथ धूमपान छोड़ने के लिए हमें इस आपदा को अवसर में बदलना होगा। इसके लिए अपने चिकित्सक से ऑनलाइन संपर्क कर सकते हैं। निकोटिन रेपलेस्मेंट थेरेपी की सहायता ले सकते हैं। धूमपान छोड़ने में सहायक मोबाइल एप्स का भी उपयोग करें।

2021-07-17

corona kidney damage in hindi | corona kidney effect symptoms in hindi | corona kidney effect in hindi

कोरोना वायरस कैसे किडनी को खराब करता है या कोरोना वायरस बीमारी कैसे किडनी पर प्रभाव डालता है? जानकारी हिन्दी में



कोरोना को दूसरी लहर में बढ़ गई किडनी की समस्याओं से ग्रस्त रोगियों की संख्या। सुरक्षित रहने के लिए कोविड नियमों के पालन और पौष्टिक आहार को बना लें अपनी आदत...


कोरोना वायरस डैमेजर किडनी


    कोरोना वायरस सबसे पहले फेफड़ों को संक्रमित करता है, लेकिन गंभीर मामलों में इसका प्रभाव पूरे शरीर पर पड़ता है। कोरोना की पहली लहर की अपेक्षा दूसरी लहर में ऐसे मरीजों की संख्या में इजाफ़ा हुआ, जिन्हें इस संक्रमण के कारण गुर्दो से संबंधित समस्याएं हो रही हैं। इन समस्याओं में एक्यूट किडनी इंजरी (एकेआई) और गुर्दो का काम करना बंद कर देना (किडनी फेलियर) प्रमुख है।


    कोरोना वायरस प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दोनों तरीकों से ही गुर्दो को प्रभावित करता है। कोरोना वायरस जब नाक व मुह के संपर्क में आता है तो यह म्यूकस मेंब्रेन द्वारा शरीर में प्रवेश करता है। वायरस श्वसन मार्ग से होता हुआ शरीर के बाकी भागों तक फैल जाता है। यह वायरस शरीर को संक्रमित कर स्वस्थ कोशिकाओं पर आक्रमण करता है। ऐसे में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर पड़ती है। इस स्थिति में श्वेत रक्त कणिकाओं का निर्माण बढ़ जाता है, जो क्षतिग्रस्त ऊतकों की मरम्मत करने के बजाय स्वस्थ ऊतकों पर आक्रमण करने लगती हैं। जिसके कारण रक्त का संक्रमण होने के साथ कई अंग काम करना बंद देते हैं और रोगी की मृत्यु हो जाती है।

गुर्दा की खराबी का कारण:


    कोरोना संक्रमण से स्थिति गंभीर होने पर फेफड़ों में सूजन आती है और फ्लूड भर जाता है। ऐसे में फेफड़े आक्सीजन व कार्बन डाईआकाइड की अदला-बदली नहीं कर पाते हैं और वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है। इस स्थिति में रक्त अंगों को उतनी मात्रा में आक्सीजन सप्लाई नहीं कर पाता है, जितनी उन्हें कार्य करने के लिए जरूरी होती है।
    ऐसे में गुर्दे भी प्रभावित होते हैं। यदि गुर्वे की बीमारी पहले से हैं जो डायलिसिस की जरूरत पड़ सकती है। ऐसे करें सक्रमण से बचाव डाइट में उन चीजों को शामिल करें जो इम्यून सिस्टम को मजबूती देती हैं। हाई प्रोटोन डाइट लें।फल, हरी सब्जियां, बीन्स का नियमित सेवन करें। खट्टे फलों को प्राथमिकता में रखें, यह विटामिन सी से भरपूर होते हैं। ध्यान रहे कि कोरोना संक्रमण नियंत्रण हुआ है, खतरा पूरी तरह टला नहीं है।

2021-07-16

corona se bachcho ko kaise bachaye | baccho ko corona se kaise bachaye | bachcho ko corona se kaise bachaye tips in hindi

कोरोना से बच्चों को कैसे बचाएं या कोरोना से बच्चों के बचाने के उपाय तरीके के बारे मे इन हिन्दी



न्यू नॉर्मल में अब स्कूल भी खुलने वाले हैं। ऐसे में बच्चों को समझाएं अपनी सुरक्षा खुद करने के कुछ जरूरी नियम...

स्कूल मे पढ़ने वाले बच्चों की हिफाजत कैसे करे कोरोना से ?



कोरोना संक्रमण की रफ्तार थमी नहीं है, लेकिन हमने कोविड-19 से बचाव के तरीके अपनाते हुए जिंदगी में आगे बढ़ने का हौसला पा लिया है। आर्थिक गतिविधियां शुरू हो चुकी हैं और अब स्कूल खोले जाने की भी तैयारियां हैं। फिलहाल तो कक्षा 9 से 12 तक की तैयारी है, मगर देर-सबेर छोटी कक्षाएं भी शुरू होंगी ही। ऐसे में बच्चों की सुरक्षा को लेकर अभिभावकों का चिंतित होना स्वाभाविक है। उनके मन में बार-बार ये सवाल आ रहे हैं कि जब निकट भविष्य में छोटी कक्षाएं शुरू होंगी तब बच्चों को स्कूल भेजने में खतरा है, पर उन्हें घर में रखकर कहीं वे उनके व्यक्तित्व विकास की राह में स्वयं बाधक तो नहीं बन जाएंगे। वास्तव में स्कूल सिर्फ किताबी ज्ञान देने का कार्य नहीं करते, बल्कि वहां बच्चा सामाजिक जीवन के कई महत्वपूर्ण पाठ सीखता है।

दोस्ती, शेयरिंग, एक-दूसरे की फिक्र, अनुशासन, समय की अहमियत जैसे गुणों का भी विकास होता है। ऐसे में असमंजस की स्थिति से निकलकर अभिभावकों को छोटे बच्चों को भी कोरोना संक्रमण से बचाव के तरीकों का शिद्दत से पालन करने के लिए तैयार करना चाहिए, घर पर ही इनका लगातार अभ्यास कराना चाहिए, ताकि जब कभी स्कूल खुलें तो वे स्वयं को सुरक्षित रखते हुए पढ़ाई शुरू कर सकें। मास्क को न छुएं बार-बार : न्यू नॉर्मल का एक अहम हिस्सा हो चला है मास्क। इसे अनावश्यक रूप से बार-बार छूना नहीं चाहिए।हो सकता है कि वायरस मास्क की बाह्य सतह पर बैठ गया हो। ऐसे में जब आप उसे छुएंगे तो वायरस आपके हाथों को स्पर्श कर जाएगा। मास्क को सिर्फ दो बार छूना चाहिए, जब घर से बाहर निकले तो इसे लगाने के लिए और घर लौटने या गंतव्य पर पहुंचने के बाद इसे उतारने के लिए। अक्सर लोग इसे उतारकर यहां-वहां या पॉकेट में रख लेते हैं और दोबारा पहन लेते हैं। यह तरीका गलत है।

हाथ धोएं बार-बार: 


कोरोना वायरस से बचाव के लिए साबुन से बार-बार हाथ धोने चाहिए। हमें यह याद रखना चाहिए कि कोरोना वायरस के लिए हमारे हाथ कैरियर का काम करते हैं। हाथों के जरिए जब हम अपने चेहरे, नाक, कान को स्पर्श करते हैं तो वायरस शरीर के भीतर प्रवेश कर जाता है। इससे बचने के लिए सीधा सरल तरीका. है कि अपने हाथ साबुन से धोने के बाद ही चेहरे को स्पर्श करें। यदि साबुन और पानी उपलब्ध न हो तो सेनिटाइजर से हाथों को संक्रमण मुक्त करें।

सुरक्षित दूरी रखनी जरूरी:


कोरोना से बचाव सुनिश्चित करने के क्रम में सबसे महत्वपूर्ण है सुरक्षित दूरी का पालन। संभव है कि कोई शख्स कोरोना संक्रमित हो, लेकिन उसमें उसके कोई लक्षण न जाहिर हों, इसलिए सुरक्षित दूरी बनाए रखना बेहद जरूरी है, ताकि आप संक्रमण से सुरक्षित रह सकें। व्यक्तिगत मेल-मिलाप और भीड़ का हिस्सा कतई न बनें, यह बात अपने दिमाग में बिठा लें।
    यदि बच्चे उपरोक्त बातों का ख्याल रखेंगे तो कोई समस्या नहीं है। याद रखें कि पहली बात तो अभी वैक्सीन तैयार नहीं हुई है। दूसरी बात यह है कि अगरं वैक्सीन बन गई तो भी वह कितनी कारगर है, इस बात का सटीक आकलन करने में वक्त लगेगा। इसलिए बचाव के उपाय ही हमें कोरोना से मुक्त रखने में मदद करेंगे। बच्चे चीजों को बड़ी तेज़ी से सीखते हैं। अगर हम उन्हें तार्किकता के साथ कुछ सिखाएंगे तो वे उसे अपने दिमाग में बिठा लेंगे और स्वच्छता के ये संस्कार उन्हें स्वाइन फ्लू, इनफ्लुएंजा, टीबी जैसी घातक बीमारियों से भी बचाएंगे।

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Corona इलाज के बाद सावधानि कैसे रखे या कोरोना ठीक होने के क्या करे और कैसे खुद का ध्यान रखे जानकारी हिन्दी में


भारत में कोरोनासे आर-पार कीलड़ाई जारी है। कैसे शरीर को नुकसान पहुंचाता है यह वायरस,कब करानी चाहिए जांच और उपचार के बाद भी कैसी हो जीवनशैली कि दोबारा न कर सके यह वार,विशेषज्ञों से मिली यह जानकारी बन सकती है आपके लिए कारगर हथियार...


कोरोना इलाज के बार या ठीक होने के बाद क्या करे या क्या सावधानी बरते?



सतर्क-सजग रहें


कोरोना संक्रमण के उपचार के बाद मरीज स्वस्थ तो हो जाता है लेकिन शारीरिक रूप से बेहद कमजोर पड़ जाता है। इस संक्रमण में सबसे ज्यादा असर रोगी के फेफड़ों, दिल, किडनियों और आंतों पर पड़ता है। स्वस्थ होने के बाद ध्यान न देने पर इन अंगों की कार्यक्षमता पर बुरा असर पड़ सकता है जिससे बाद में भी अन्य परेशानियां हो सकती हैं। यदि आप भविष्य में स्वस्थ रहना चाहते हैं तो आपको अपनी जीवनशैली और आहार में बदलाव करना पड़ेगा। जिस तेजी से यह वायरस अपना प्रसार कर रहा है, उससे यह साबित हो चुका है कि जब तक इसका सटीक उपचार या वैक्सीन नहीं आ जाती, हमें उन सभी उपायों को अपनाना होगा, जिनसे हम इसके संक्रमण से सुरक्षित रह सकते हैं। हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि मास्क का प्रयोग, शारीरिक दूरी का पालन, थोड़ी-थोड़ी देर में सेनिटाइजर या साबुन से हाथों की सफाई हमारी जीवनशैली का हिस्सा बने ताकि सिर्फ कोरोना संक्रमण ही नहीं, आने वाले दिनों में किसी भी वायरस के संक्रमण से बचने के लिए ये चीजें हमारी सुरक्षा कवच बनी रहें। आखिरकार काम पर न निकलने या अपनी जिम्मेदारियों को टालने की भी एक सीमा है। हमें संक्रमण से बचना भी है और काम के लिए घर से बाहर भी निकलना ही पड़ेगा। ऐसे में हम किस प्रकार स्वस्थ और सुरक्षित रहें, इसके बारे में विचारकर अपनी सेहत पर विशेष ध्यान देना है। यह तभी संभव है, जब हम अनुशासित जीवनशैली को प्राथमिकता दें। इससे हमारे आज और कल, दोनों ही सेहतमंद रहेंगे।


घटाएं तेल-मसाले का सेवन : 


किसी भी बीमारी के बाद स्वादिष्ट खाने की क्रेविंग होना आम बात है। यह तो साफ है कि भारत में खाने को स्वादिष्ट बनाने के लिए ज्यादा तेल-मसालों का प्रयोग किया जाता है लेकिन अब ध्यान रखें कि बीमारी के बाद इस प्रकार का भोजन आपको फिर बीमार कर सकता है। दरअसल, बीमारी के बाद शरीर के अंदरूनी अंग कमजोर पड़ जाते हैं, जिसके कारण शरीर इस तरह का भोजन स्वीकार नहीं कर पाता है। इसके चलते आप फेफड़ों, दिल, किडनियों व आंतों से संबंधित कई समस्याओं का शिकार हो सकते हैं।

संतुलित व पौष्टिक हो आहार : 


स्वस्थ शरीर के लिए संतुलित आहार लेना जरूरी है। संतुलित आहार शरीर की इम्युनिटी को मजबूत बनाता है और इससे बीमारियों से उबरने में मदद मिलती है। संतुलित आहार में प्रोटीन, विटामिन, वसा, मिनरल्स और फाइबर आदि की उचित मात्रा का होना आवश्यक है। हर व्यक्ति को अपनी दिनचर्या में इन पौष्टिक तत्वों से भरपूर आहार जरूर लेना चाहिए, जिससे शरीर को पर्याप्त मात्रा में पोषण मिल सके।



मौसमी फल-सब्जियों का सेवन है जरूरीः


 हरी सब्जियां और फल न सिर्फ पोषण से भरपूर होते हैं, बल्कि आसानी से पच भी जाते हैं। इनमें कई प्रकार के विटामिन, मिनरल्स, फाइबर और एंटीऑक्सिडेंट्स मौजूद होते हैं, जो फेफड़ों, दिल, किडनियों और आंतों को स्वस्थ रखने में सहायक होते हैं। नींबू, कीवी, ब्रॉकली, पालक, शिमला मिर्च, और हरी सब्जियां इम्युनिटी को मजबूत बनाती हैं। पपीता, गाजर, चुकंदर, मूली, परवल आदि पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। इन मौसमी फलों व सब्जियों का सेवन शरीर को रोगों से लड़ने की क्षमता देता है।



घातक है नशे की लत:


नशा शरीर के लिए बहुत ही घातक होता है। इससे शरीर की इम्युनिटी बुरी तरह प्रभावित होती है इसलिए हमें अल्कोहल, तंबाकू जैसे किसी भी प्रकार के नशे से दूर रहना चाहिए। यदि आप अब तक इसके आदी रहे भी हैं तो बीमारी के बाद इसे पूरी तरह छोड़ना ही हितकर होगा। चबाने वाली तंबाकू में ऐसे रसायन होते हैं, जिनका सेवन शरीर के विभिन्न अंगों के ऊतकों व कोशिकाओं को खराब करता है। यह न सिर्फ फेफड़ों के लिए खतरनाक है, बल्कि शरीर के अन्य अंगों के लिए भी ठीक नहीं। इसी प्रकार धूमपान भी श्वसन तंत्र को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। यह धूमपान करने वाले व्यक्ति के साथ ही पैसिव स्मोकिंग के जरिए साथ खड़े व्यक्ति के फेफड़ों को भी प्रभावित कर देता है।


एक्सरसाइज से रहें स्वस्थ:


किसी भी बीमारी के बाद शरीर को पूरी तरह से स्वस्थ रखने के लिए शारीरिक सक्रियता बहुत जरूरी है। कोरोना संक्रमण में इम्युनिटी बुरी तरह प्रभावित होती है, इसलिए धीरे-धीरे व्यायाम करने की आदत डालें। दिनचर्या में ऐसे काम शामिल करें जो आपके शरीर की सक्रियता बढ़ाते हों। यदि आपको डांस पसंद है.तो इससे बेहतर और मनोरंजक एक्सरसाइज क्या हो सकती है। एक्सरसाइज से मांसपेशियां मजबूत बनती हैं और रक्त का संचार सही ढंग से होता है, जो हमें बीमारी के खतरे से बचाता है। व्यायाम, प्राणायाम व योग करने से मन प्रसन्न रहता है और तनाव कम होता है। तनाव से दूर रहना भी इम्युनिटी मजबूत करने के लिए बहुत जरूरी है। जरूर पिएं गुनगुना पानी: यदि सुबह उठकर पानी पीते हैं तो यह सेहत के लिहाज से बहुत अच्छी आदत कही गई है। हां, अगर गुनगुने पानी का सेवन करते हैं तो यह सेहत के लिहाज से और भी फायदेमंद मानी गई है। इससे पाचनतंत्र ठीक रहता है और कई तरह के संक्रमण से भी बचाव होता है।




क्या करता है कोरोना?


    दुनिया के लगभग सभी देश कोरोना वायरस के गंभीर खतरों से जूझ रहे हैं और अभी तक इसका कोई सटीक उपचार नहीं खोजा जा सका है। कोरोना वायरस का संक्रमण शरीर को किस तरह प्रभावित करता है, इस पर अभी तमाम तरह के अध्ययन जारी है। इस वायरस के बारे में अभी तक की जानकारी के अनुसार शुरुआती लक्षणों को समझकर तुरंत चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए। कोरोना वायरस शरीर में प्रवेश पाकर स्वस्थ कोशिकाओं को संक्रमित करता है और इसके बाद अपनी संख्या बढ़ाने लगता है। इस तरह यह गुणात्मक संख्या में पूरे शरीर में फैलता जाता है। यह वायरस अपने चिपचिपे प्रोटीन को स्वस्थ कोशिका पर चिपका देता है और इसके बाद यह फट जाता है।

    इससे शरीर की स्वस्थ कोशिकाएं मरने लगती हैं। इसका सर्वाधिक असर हमारे फेफड़ों पर होता है। यह वायरस हवा अथवा किसी भी सतह पर मौजूद हो सकता है। मुंह अथवा नाक के रास्ते से शरीर में प्रवेश करने वाला वायरस सबसे पहले नाक की मेंब्रेन यानी झिल्ली और गले में पहुंचकर वहां कब्जा जमा लेता है। संक्रमित होने के 2 से 14 दिन के अंदर संक्रमित व्यक्ति का इम्यून सिस्टम कमजोर होकर रोग के लक्षण प्रकट करने लगता है। इस दौरान सांस लेने में तकलीफ बढ़ जाती है। तेजी से सांस लेने के चलते हार्टबीट रेट बढ़ने लगता है और मरीज को चक्कर व पसीना आने लगता है। स्वस्थ कोशिकाओं के लगातार क्षतिग्रस्त होने और फेफड़ों का संक्रमण बढ़ने से मरीज को वेंटिलेटर की जरूरत होती है। इसी दौरान शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा कम होने से अन्य अंग भी प्रभावित होकर संक्रमित होने लगते हैं।

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कोरोना से कैसे बचें या कोरोना से बचने के उपाय व तरीके के बारे जानकारी


कोरोना से कैसे बचे?


मौसम बदलने के साथ ही कोरोना संक्रमणके मामलों में तेजी आई है।इससे बचने के लिए जरूरी है सुरक्षा उपायों को अपनाना और संयमित जीवन जीना। उत्तम स्वास्थ्य कोरोना संक्रमण ही नहीं हर तरह के संक्रमण से बचाएगा। अपना खान-पान पौष्टिक रखे साथ ही बचाव के हर उपाय अपनाएं...


अच्छी सेहत खानपान एवं हमारी जीवनशैली पर निर्भर करती है और स्वस्थ शरीर में बसता है स्वस्थ तन व मन। 7 अप्रैल आज विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जा रहा है। इन दिनों एक तरफ कोरोना का संक्रमण तेजी पकड़ रहा है तो दूसरी ओर गर्मी का मौसम सेहत के लिहाज से बेहद संवेदनशील है। ऐसे में हमें अपने स्वास्थ्य को लेकर सचेत रहना है। कुछ दिन पहले तक ऐसा लग रहा था कि मानों देश से कोरोना समाप्त हो गया। बाजारों में पहले की तरह बेखौफ चहलकदमी शुरू हो गई थी। छोटा कस्बा हो या महानगर लोगों की जिंदगी बहुत तेजी से पटरी पर लौटी, लेकिन हम यह भूल गए कि कोरोना का खतरा टला नहीं है। घर से बाहर निकलते वक्त मास्क या गमछा जो चेहरे पर होना चाहिए उसे लोगों ने उतार फेंका। रही सही कसर चुनावी रैलियों व बाजार की बेखौफ भीड़ ने पूरी कर दी। इस वजह से लोगों की सेहत एक बार फिर खतरे में है और कोरोना का बढ़ता मौजूदा संक्रमण पहले से ज्यादा आक्रामक है। इसे रोक पाना अकेले सरकार के लिए संभव नहीं है। अपनी सेहत की कुंजी अपने पास है। कोरोना से लड़ना भी आसान है, बशर्ते हरव्यक्ति यह सुनिश्चित करले कि बगैर मास्क के बाहर नहीं निकलना है। कोरोना संक्रमण से बचना लोगों के हाथ में है।


मास्क बचाएगा हर संक्रमण से: 


मास्क पहनने से कोरोना से तो बचाव होगा ही टीबी सहित कई बीमारियों से भी बचा जा सकता है। प्रदूषण से बचाव में भी मास्क सक्षम है। इसलिए प्रदूषण के कारण फेफड़े की बीमारियों से भी बचाव होगा। लोगों को मास्क को अपने जीवन का हिस्सा बना लेना चाहिए। देश में अभी चुनावी रैलियां बहुत हो रही हैं। इनमें लोगों की भारी भीड़ देखी जा रही है। इस भीड़ में हजारों ऐसे लोग होते हैं, जो मास्क नहीं पहने होते हैं। कुछ दिन पहले होली भी थी। लोगों का एक जगह से दूसरी जगह आवागमन भी हो रहा है। इस वजह से कोरोना का संक्रमण तेजी से फैला है। यदिलोग सहयोग नहीं करेंगे और अपनी जिम्मेदारी नहीं समझेंगे तो संक्रमण की इस लहर को थामना यदि असंभव नहीं तो बहुत कठिन तो हो ही जाएगा।

भयावह हो सकती है स्थिति : 


अब एक दिन में कोरोना के मामलों का आंकड़ा एक लाख को पार कर गया है। दो-तीन दिन में यह आंकड़ा डेढ़ लाख और फिर दो लाख पहुंच सकता है। जिस रफ्तार से कोरोना बढ़ रहा है उससे अप्रैल के आखिर तक या मई के मध्य तक हालात बहुत खतरनाक स्तर पर पहुंच सकते हैं। इसमें वायरस में हुए म्यूटेशन की भी बड़ी भूमिका है। महाराष्ट्र में म्यूटेशन के कारण ही कोरोना बढ़ा है। अन्य राज्यों में भी संक्रमण बढ़ने का यह बड़ा कारण माना जा रहा है। इसका पता लगाने के लिए प्रतिदिन जितने सैंपल की जीनोम सिक्वेंसिंग होनी चाहिए वह नहीं हो रही है।
इसलिए जीनोम सिक्वेंसिंग को भी बढ़ाने की जरूरत है।



मौका आए तो जरूर लगवाए वैक्सीनः


समस्या यह है कि सड़कों व बाजारों में अब भी बहुत लोग बगैर मास्क देखे जाते हैं। दफ्तरों में भी लोग मास्क नहीं लगा रहे हैं। दफ्तरों में कर्मचारी अलग-अलग इलाके से पहुंचते हैं। कर्मचारियों के मास्क नहीं पहनने से समस्या बढ़ सकती है।टीकाकरण की गति बढ़ाना जरूरी है। टीकाकरण में गति तभी आएगी जब 18 साल से अधिक उम्र के सभी लोगों को टीका लगेगा। अभी 45 साल से अधिक उम्र के लोगों को टीका लग रहा है। टीकाकरण के पात्र सभी लोगों को जल्द टीका लगवा लेना चाहिए। इससे कोरोना संक्रमण से बचाव होगा और संक्रमण होने पर भी बीमारी बहुत ज्यादा गंभीर नहीं होगी। इसलिए प्रतिदिन एक करोड़ के हिसाब से टीकाकरण जरूरी है। इसके लिए जरूरी है कि टीकाकरण के प्रति लोग जागरूक हों। इसके अलावा थोड़ी सख्ती करने की भी जरूरत है। अभी तक टीकाकरण स्वैच्छिक है। मौजूदा हालात को देखते हुए इसे अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए। टीका नहीं लेना खुद के साथ-साथ दूसरों की जान जोखिम में डालने के समान है।

मास्क न पहनने पर हो सख्त कार्रवाई : 


दिल्ली में पिछले साल अक्टूबर-नवंबर में जब संक्रमण अधिक था तब मास्क नहीं पहनने पर दो हजार रुपये चालान हो रहा था। तब इसका असर भी देखा गया और संक्रमण तुरंत कम हो गया। जनवरी व फरवरी में मामले कम होने के बाद ढिलाई होने पर संक्रमण दोबारा बढ़ गया। इसलिए मास्क नहीं पहनने पर देश भर में सख्ती करनी होगी। इसके अलावा कुछ सीमित लॉकडाउन लगाना चाहिए। पहले की तरह पूर्ण लॉकडाउन तो संभव नहीं है, क्योंकि सरकार लॉक डाउन लगाए या न लगाए उसके लिए दोनों तरफ से मुसीबत है। लॉकडाउन लगाने पर आर्थिक नुकसान का खतरा और लॉकडाउन नहीं लगाने पर संक्रमण बढ़ने का खतरा है। जहां संक्रमण अधिक है, उन स्थानों में सीमित लॉकडाउन कर लोगों की आवाजाही बंद किए जाने से संक्रमण रोकने में मदद मिलेगी। हालांकि लोगों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। यह देखा गया है कि मास्क पहनने से संक्रमण नियंत्रित होता है। इसलिए संक्रमण कम करना बहुत आसान और अपने हाथ में है।

अल्कोहल का न करें सेवनः 


अल्कोहल के सेवन से हमारी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है। इसके अलावा लिवर की बीमारी सहित कई तरह के रोग होते हैं। इसलिए अल्कोहल का सेवन नहीं करना चाहिए। खाने में नमक का सेवन कम करना चाहिए। ब्लड प्रेशर की बीमारी होने का एक कारण अधिक मात्रा में नमक का इस्तेमाल भी माना गया है। तली हुई चीजों का इस्तेमाल ज्यादा नहीं करना चाहिए। इससे भी सेहत को नुकसान पहुंचता है।


मजबूत रखें प्रतिरोधक क्षमता:


लोग खानपान में पौष्टिक व सात्विक आहार लें और नियमित योग करें। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर रहती है साथ ही बीमार होने की आशंका कम हो जाती है।प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए काढ़ा पी सकते हैं।
इसके अलावा आयुर्वेद के अन्य उपायों को भी डॉक्टर की सलाह से अपना सकते है । दूध में हल्दी डालकर इस्तेमाल करना फायदेमंद होता है । प्रतिदिन योग, ध्यान व व्यायाम को जीवनशैली का हिस्सा बनाएं। खराब जीवनशैली के कारण मधुमेह व ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियां होने लगती हैं। एक अनुमान के अनुसार देश में करीब सात करोड़ 70 लाख लोग मधुमेह से पीड़ित है।ब्लड प्रेशर की समस्या युवाओं में भी देखी जा रही है। इसका बड़ा कारण महानगरों में गलत खानपान और शारीरिक मेहनत नहीं करना है। इसलिए प्रतिदिन लगभग एक घंटा योग, ध्यान, व्यायाम व पैदल चलना जरूरी है। इससे जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों से बचा जा सकता है। यदि ये बीमारियां हैं तो उन्हें नियंत्रित रखा जा सकता है। मधुमेह व ब्लडप्रेशर के मरीजों के लिए कोरोना संक्रमण ज्यादा खतरनाक है। इसलिए खुद को स्वस्थ रखना बहुत जरूरी है।

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हर तरह के संक्रमण से बचाती है हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता। इसके लिए जरूरी है पोषक आहार का सेवन और अनुशासित जीवन...


तीसरी लहर की आशंका के बीच यह मंत्र फिर से दोहराना आवश्यक हो गया है कि अच्छे और पौष्टिक आहार से ही हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बनती है। मजबूत रोग प्रतिरोधक क्षमता का अर्थ है अच्छी सेहत। यदि हम पोषक आहार ले रहे हैं और उसका पाचन ठीक से हो रहा है तो मजबूत रोग प्रतिरोधक क्षमता का बनना तय है। शरीर का पूरा सिस्टम पाचन तंत्र से जुड़ा है। अतः हमें अपने आहार के साथ ही पाचन तंत्र पर विशेष ध्यान देना चाहिए। यदि लिवर स्वस्थ रहेगा तो शरीर के सारे विषाक्त पदार्थों का निष्कासन आसान हो जाएगा। जब शरीर ऊर्जावान होता है तो कमजोरी, थकान और आलस्य की समस्या से मुक्ति मिलती है और यही रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाता है।

शरीर को प्रदान करें इम्युनिटी का कवच :


कोराना हो या कोई अन्य संक्रमण, इन सबसे हमें हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता ही बचाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मजबूत इम्युनिटी कोविड-19 के संक्रमण से लड़ने में अहम भूमिका निभा रही है। कोरोना की चपेट में अधिकांश वे लोग आए जो कहीं न कहीं हाई ब्लडप्रेशर, डायबिटीज जैसी बीमारियों से ग्रसित थे और उनका रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर थी। हमें अपने खानपान से इम्युनिटी मजबूत रखनी है, जिससे किसी भी संक्रमण से बचा जा सके।

सुपाच्य भोजन करें:


हमारा आहार पोषक तत्वों से भरपूर हो और जो भी खाएं या पिएं उसकी तासीर हमारे शरीर की प्रकृति के अनुरूप हो। हल्दी वाला दूध, जिसमें एंटी इंफ्लेमेटरी तथा एंटीसेप्टिक गुण होते हैं, को अपने दैनिक आहार में शामिल करें। नाश्ते का समय तथा स्वरूप बदलें। सुबह नाश्ता पौष्टिकता से भरपूर हो जिसमें अंकुरित अनाज, दलिया और मौसमी फलों का समावेश हो। दूध से बनी चाय की जगह ग्रीन टी का प्रयोग करें। यह पेट संबंधित समस्याओं में बहुत फायदेमंद है। अधिक तैलीय व गरिष्ठ भोजन के सेवन से बचें। फाइबर युक्त मोटे अनाज का सेवन करें।

आहार में हो विटामिंस और प्रोटीनः


लोग विटामिंस और प्रोटीन को सप्लीमेंट के रूप में ले रहे हैं। जबकि यह तरीका बिल्कुल गलत है। चिकित्सक सप्लीमेंट लेने की सलाह उन लोगों को देते हैं, जो बीमार हैं या किसी कारणवश डाइट से प्रोटीन या विटामिंस की पूर्ति नहीं कर पाते हैं। आहार में विटामिन सी युक्त व मौसमी फलों को शामिल करें। ये सब प्राकृतिक रूप से एंटीऑक्सीडेंट व विटामिंस के स्रोत हैं। सोयाबीन, दाल, दूध, दही और छाछ के सेवन से शरीर को पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन मिलता है।

बच्चों के स्वास्थ्य पर दें ध्यानः


चिकित्सा विशेषज्ञ कोरोना की तीसरी लहर की आशंका व्यक्त कर रहे हैं। इसमें घबराने की बात नहीं है। इस बार हमें बच्चों की मजबूत आदत बनानी होगी कि वे कोरोना संक्रमण से बचाव के सारे उपाय अपनाएं। जंक फूड व फास्ट फूड के सेवन से बच्चों को बचाएं। मांओं को बच्चों के आहार पर खास ध्यान देने की जरूरत है, जिससे संक्रमण से बचे रहें। उनके भोजन में दूध, दही, भीगे हुए बादाम, चने, मखाना, मूंगफली आदि का समावेश करें। मौसम के अनुसार च्यवनप्राश आदि का भी सेवन कराया जा सकता है।

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डेल्टा वेरिएंट क्या है और डेल्टा वैरीअंट के लक्षण(Symptoms) व बचाव(Treatment) के बारे मे 



कोरोना की दूसरी लहर नियंत्रण में है,लेकिन तीसरी लहर की आशंका जताई जा रही है। इसी के साथ इन दिनों डेल्टावैरिएंट को लेकर भी चर्चा तेज है। इसकी तीव्रता को देखते हुए जरूरी है कि संक्रमण से बचने के सारे उपाय अपनाएं जाएं और ज्यादा से ज्यादा हो वैक्सीनेशन...


डेल्टा वेरीअंट क्या होता है?


हमारे देश में कोरोना की दूसरी लहर पर काफी हद तक काबू पा लिया गया है, जो पिछले साल शुरू हुई पहली लहर की तुलना में कहीं अधिक खतरनाक थी। अब कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य विशेषज्ञ सितंबर-अक्टूबर में कोरोना की तीसरी लहर की आशंका जता रहे हैं। दूसरी तरफ दस्तक दे रहा है इसका डेल्टा वैरिएंट, जिसकी तीव्रता काफी अधिक है। इन सबको देखते हुए हमें पहले से ही तैयारियां करनी चाहिए। तीसरी लहर की आशंका और इसके छोटे आयुवर्ग पर प्रभाव के कयासों के बीच नेशनल कमीशन फार प्रोटेक्शन आफ चाइल्ड राइट्स (एनसीपीसीआर) ने कहा है कि अगर कोविड-19 की तीसरी लहर की आशंका जताई जा रही है और इससे बच्चों के प्रभावित होने का कुछ भी अनुमान है तो बच्चों और नवजात शिशुओं को संक्रमण से बचाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को समय रहते रणनीति बनानी होगी।


सर्तकता ही बचाएगी: 


मीडिया लगातार रिपोर्ट कर रहा है कि पिछले कुछ दिनों से डेल्टा प्लस वैरिएंट के साथ कोरोना के मामले भी बढ़ रहे हैं, जिससे तीसरी लहर की आशंका तेज हो गई है। एम्स, नई दिल्ली के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया का कहना है कि अनलाक के बाद जिस तरह से लोग कोविड़ प्रोटोकाल का पालन नहीं कर रहे हैं, उसे देखते हुए तीसरी लहर से बचना मुश्किल हो जाएगा। तीसरी लहर हो या डेल्टा वैरिएंट, बचने के लिए तीन बातों का ध्यान रखना सबसे जरूरी है। कोविड प्रोटोकाल का कड़ाई से पालन करना, कोविड के मामलों से निपटने के लिए बेहतर रणनीति और टीकाकरण। इस स्थिति को देखते हुए हमें सतर्क रहने की जरूरत है, ताकि अप्रत्याशित
स्थिति से बचा जा सके।

बुनियादी नियम न भूलें : 


दो गज की शारीरिक दूरी बनाए रखें। मास्क पहनें। हाथ सैनिटाइजर अथवा साबुन से साफ रखें।

ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग : 


ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग सबसे जरूरी है, ताकि संक्रमित लोगों की तुरंत पहचान कर दूसरे लोगों में संक्रमण को फैलने से रोका जा सके। अगर आपको थोड़ी सी भी आशंका हो तो तुरंत कोरोना की जांच कराएं।


वैक्सीनेशन : 


अधिक से अधिक लोग जल्द से जल्द वैक्सीन लगवा लें। वैक्सीनेशन अधिक होगा, तो तीसरी लहर से बचने के लिए हमारी तैयारी उतनी ही बेहतर होगी। 

डबल मास्क का इस्तेमाल: 


डबल मास्क का इस्तेमाल करें, क्योंकि सिंगल मास्क की तुलना में यह अधिक सुरक्षा प्रदान करता है। सस्ती गुणवत्ता की जगह बेहतरीन क्वालिटी का एन-95 मास्क इस्तेमाल करें। इसके ऊपर सर्जिकल क्लाथ मास्क बांध सकते हैं। सस्ते मास्क से बचें। ये आपके कान, त्वचा और श्वास तीनों के लिए तकलीफदेह साबित होते हैं। आप इन्हें बार-बार उतारते हैं और इस प्रकार संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है। 


इंडोर गैदरिंग से बचना: 


बंद स्थानों पर इकट्ठा होने से बचें। घर-आफिस में वेंटिलेशन का ध्यान रखें, ताकि हवा जल्दी स्वच्छ हो जाए।


सेल्फ मेडिकेशन से दूरीः


कोविड की दूसरी लहर के दौरान अधिकांश लोगों ने बिना चिकित्सक की सलाह के अपनी मर्जी से दवाईयां ली हैं। अपनी मर्जी से दवाईयां लेना या किसी और को दी गई सलाह की नकल करना ठीक नहीं है। यदि कोई दवा किसी एक व्यक्ति के लिए उपयुक्त है, तो वह दूसरे को फायदा पहुंचाए, यह जरूरी नहीं है। 

शुरूआत में स्टेरायड का इस्तेमाल नहीं: 


डाक्टरों और मरीज के परिजनों को भी उपचार के दौरान सतर्क रहने की जरूरत है। उपचार के पहले दिन से स्टेरायड नहीं दिया जाना चाहिए। इसे छठे दिन से दिया जाना चाहिए, अन्यथा म्यूकोरमायकोसिस हो सकता है।


तुरंत डाक्टर को दिखाएं

ब्राजील के रायलकालेज आफ पीडियाट्रिक्स एंड चाइल्ड हेल्थ ने माता- पिता को सुझाव दिया है कि अगर बच्चों में
निम्न लक्षण दिखाई दें तो तुरंत डाक्टर को दिखाएं।
•बच्चे की त्वचा का रंग पीला पड़ जाए
और छूने पर ठंडी महसूस हो।
•अगर सांस लेने में दिक्कत हो।
• होंटो के आसपास नीला पड़ जाए।
• बच्चे को दौरेपड़ने लगें।
बच्चालगाताररोता रहेया सोता रहे।
• त्वचा पर रैशेज पड़ जाएं।

क्या बच्चों के लिए अधिक है खतरा


कोविड-19 की तीसरी लहर से बच्चे कितने प्रभावित होंगे, इसके बारे में अभी कुछ भी नहीं कहाजा सकता, फिर भी सावधानी रखने और मुश्किल स्थितियों के लिए तैयार रहने में कोई हर्ज नहीं है।कोरोना की दूसरी लहर में जो बच्चे संक्रमित हुए उनमें से 90 फीसद में या तो मामूली या कोई लक्षण दिखाई नहीं दिए। इंडियन अकेडमी आफ पीडियाट्रिक्स (आईएपी) ने कहा है कि बच्चों का शरीर नाजुक होता है और उनका रोग प्रतिरोधक तंत्र भी पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ होता है। ऐसे में उनके संक्रमण की चपेट में आने की आशंका अधिक होती है। वहीं एम्स, नई दिल्ली के निदेशक डा.रणदीप गुलेरिया का कहना है कि तीसरी लहर में बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होंगे, यह केवल दावा है। अभी इसका कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है।

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आयुर्वेद के अनुसार कोरोना संक्रमण एक तरह का श्वास रोग है। इसलिए इससे बचने के लिए हमें सुरक्षा के सारे उपायों को अपनाते हुए अपने आहार पर देना होगा विशेष ध्यान...



कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने बुरी तरह तबाही मचाई, लेकिन सुखद है कि अब स्थिति नियंत्रण में है। देश के चिकित्सा संस्थान इस प्रयास में जुटे हैं कि कैसे इस महामारी के प्रकोप को समाप्त किया जाए। ऐसा नहीं है कि संक्रमण के इस दौर में हम सिर्फ चिकित्सकों के उपचार के भरोसे रहें, बल्कि हर किसी को यह सोचना है कि किस तरह का हो हमारा आहार कि हम किसी भी संक्रमण से रह सकें सुरक्षित।

कोविड-19 संक्रमण के समकक्ष जो श्वास रोग हैं, उनमें दही, दूध, मछली, शीतल जल व ठंडे भोजन का सेवन वर्जित है। इसके साथ ही ऐसे रोगियों को नमी युक्त स्थानों व धूल, धुंए से भी बचना चाहिए। आयुर्वेद के अनुसार किसी भी वस्तु का प्रभाव व्यक्ति की प्रकृति और ऋतु के सापेक्ष होता है। पित्त प्रकृति के लोगों में स्वभावतया उष्णता होती है, वे शीतल वस्तुओं का आराम से पाचन कर लेते हैं। वहीं वात और कफ प्रकृति के लोगों में शीत गुण की अधिकता होने के कारण वो अधिक शीतल खाद्य पदार्थों को पचा नहीं पाते हैं और शीघ्र ही श्वास जन्य
रोगका शिकार हो जाते हैं।

हर पद्धति का अलग सिद्धांतः


एलोपैथी के विशेषज्ञ रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए खट्टे फलों जैसे संतरा, मौसमी आदि के सेवन पर जोर देते हैं। शरीर को प्रोटीन मिले इसके लिए दूध, दही व छाछ के सेवन की सलाह दी जाती है। एलोपैथ वस्तुओं का विश्लेषण इस आधार पर करता है कि उसमें कौन-कौन से विटामिन हैं; खनिज पदार्थ हैं और उनकी कैलोरी वैल्यू कितनी है। दूसरी तरफ आयुर्वेद सभी की प्रकृति अलग मानता है और उसी के अनुसार आहार का निर्देश देता है ताकि व्यक्ति उस चीज का पाचन कर सके और वह सेहत के लिए अच्छी हो।

हर चीज की है अलग तासीरः 


रसोई घर में जो चीजें प्रयोग की जाती हैं, उन सबका आधार भी उनके उष्ण और शीत गुण ही हैं। सभी औषधियों का हमारे शरीर के अंगों पर अलग प्रभाव पड़ता है। कोविड-19 कफ और वायु की विगुणता से उत्पन्न होने वाला श्वास रोग है। इसीलिए यदि हम आयुर्वेद के हिसाब से इम्युनिटी बढ़ाना चाहते हैं तो हमें गरम तासीर वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए। यह सच है कि आप उपचार किसी भी पैथी से लें, आपका आहार कैसा है यह बहुत मायने रखता है। फिलहाल कोरोना से बचने के लिए वैक्सीन की डोज और बचाव के उपाय ही सबसे बड़ा हथियार है।

ऋतु के साथ आहार में परिवर्तन


यदि प्रकृति और ऋतु परिवर्तन को देखते हुए आहार में धीरे-धीरे परिवर्तन किया जाए और सावधानी बरती जाए तो कोरोना जैसी बीमारी पर नियंत्रण पाया जा सकता है। यदि हम इस रोग की रोकथाम पर विचार करें तो दो तथ्य हमारे सामने आते हैं। पहला ये कि हम अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाएं और दूसरा इस रोग से बचने के लिए अनुशासित जीवनशैली के साथ आहार पर विशेष ध्यान दें।

प्राकृतिक प्रयोगशाला है शरीर


हमारा शरीरएक तरह से प्राकृतिक प्रयोगशाला है।जब हम कोई चीज खाते है तो हमारा शरीर तुरंत बता देता है कि वह वस्तु हमारे लिए लाभदायक है या हानिकारक।इसीलिए अपनी प्रकृति तथा मौसम को ध्यान में रखते हुए किसी भी खाद्य पदार्थ का सेवन करना चाहिए।