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2022-03-29

पिंपल्स - muhase ka ilaj, muhase kaise Hataye ya Saaf Karane, Tarika, Vidhi, Illaj, Upchar, Chhutkara

चेहरे (फ़ेस) मुंहासे दाग धब्बे खत्म या दूर करने का तरीका, इलाज व उपचार छुटकारा?



हामोस में असंतुलन, गलत जीवनशैली या कुछ अन्य कारणों से चेहरे पर एक्ने होना आम बात है, मगर इनको उचित देखभाल में नजर अंदाजी पोछे छोड़ जाती है इनके दाग, जो कर देते हैं चेहरा बेजान...

मुंहासे क्यों होते हैं ?


चेहरे पर मुंहासे होने का अर्थ है कि आपका शरीर यह संकेत दे रहा है कि आपकी दिनचर्या या खानपान की शैली में कुछ परिवर्तन करने की आवश्यकता है। इसके अलावा हामोस में आने वाले बदलाव भी इस प्रक्रिया को तेज कर देते हैं। इससे ज्यादा परेशानी का सबब बनते हैं एक्ने के बाद होने वाले दाग-धब्बे। ये दाग तब होते हैं, जब कोई मुंहासा त्वचा के भीतर गहराई तक पहुंच जाता है और भीतर के टिश्यू को नुकसान पहुंचाता है। इसीलिए हर प्रकार के दाग-धब्बे के उपचार का अलग असर होता है और कुछ उपचार अन्य के मुकाबले खास प्रकार के धब्बों पर ज्यादा प्रभावी होते है। इनका सही उपचार करवाकर ही इन्हें पूरी तरह समाप्त किया जाना चाहिए। जब शरीर में किसी चोट की वजह से अधिक मात्रा में कोलेजन बनने लगता है तो आइस पिक जैसे परेशान करने वाले स्कार्स बन सकते हैं। आइस पिक स्कार्स त्वचा में बहत गहरे तक जगह बना चुके छिद्र होते हैं, जिसे देखकर ऐसा लगता है कि त्वचा एक आइस पिक के साथ पंक्चर की गई है। इसके उपचार में पंच नामक एक छोटे उपकरण से स्कार को काटना और उसकी वजह से बने छिद्र पर टांके लगाना शामिल होता है, लेकिन यह सिर्फ अकेले आइस पिक स्कार्स पर ही काम करता है। अगर कई आइस

रेडियोफ्रीक्वेसी एनजी


पिक स्कार्स हों तो एक्ने स्कार उपचार डिवाइरों जिनमें रेडियोफ्रीक्वेसी एनजी का इस्तेमाल होता है तो ये अच्छा विकल्प साबित होता है। ये उपचार त्वचा के भीतर कोलेजन बनाने में मदद करते है। यह कोलेजन स्कार्सको भीतर से भरने में मदद करता है। लेजर, रेडियोफ्रीक्वेंसी या एक अल्ट्रासाउंड डिवाइस से ऊर्जा आधारित स्किन रिसफेसिंग ट्रीटमेंट काम में आ सकता है, क्योंकि ये सभी त्वचा के भीतर कोलेजन बनाने का काम करते हैं। दाग-धब्बे के विस्तार, रासायनिक पील्स के आधार पर उपचारों की श्रृंखला की जरूरत होती है, जो उसे फैलने से रोकने में मदद करते हैं। इनमें से किसी भी प्रक्रिया के बाद रेटीनॉयड क्रीम का इस्तेमाल करने से कोशिकाओं की संख्या बढ़ती है और कोलेजन में भी इजाफा होता है।

फ्रैक्शनल नॉन एब्लेटिव लेजर


फ्रैक्शनल नॉन एब्लेटिव लेजर नई तकनीक है और पुरानी लेजर तकनीक के मुकाबले इसमें कम समय लगता है साथ ही इसके परिणाम भी अच्छे आते हैं। पुराने एब्लेटिव लेजर्स में त्वचा की बाहरी सतह नष्ट हो जाती है, जिसे ठीक होने में समय अधिक लगता है, लेकिन ये नॉन एब्लेटिव लेजर्स फ्रक्सेल की तरह होते हैं, जो त्वचा की बाहरी सतह से होकर गुजरता है और बिना नुकसान पहुँचाये गहरे टिश्यू को गरमाहट देता है और कोलेजन को रोलिंग स्कास को प्लेटलेट रिच प्लाज्मा (पीआरपी) के साथ  माइक्रोनीडिलिंग के बाद माइक्रोफैट इंजेक्शन के साथ ठीक किया जा सकता है, माइक्रोनीडिलिग से त्वचा पर छोटे धाव हो जाते हैं। इसके बाद शरीर की प्राकृतिक, नियत्रित सुधार प्रक्रिया शुरू होती है जिससे आतरिक तौर पर कोलेजन बनने शुरू हो जाते है। माइक्रोनीडिलिंग भी एक महत्वपूर्ण एक्ने स्कार उपचार है, क्योंकि यह त्वचा के भीतर चैनलों को खोलते हैं, जो पीआरपी सुधार करने वाले कारकों को आपके रक्त और त्वचा की देखभाल करने वाले उत्पादों को त्वचा के भीतरी सतह तक पहुंचने का मौका देते हैं जहां इनकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है।

हाइपरपिगमेंटेशन से एक्ने


स्कार्स का उपचार हाइड्रोक्विनोन और सनब्लॉक के साथ होता है।
हाइड्रोक्विनोन एक टॉपिकल ब्लीचिंग एजेंट होता है, जिसका इस्तेमाल आप सीधे गहरे धब्बे पर कर सकते हैं। सनब्लॉक महत्वपूर्ण है, क्योंकि सूरज की रोशनी में हाइपरपिगमेंटेशन खराब हो सकता है। अन्य लोकप्रिय उपचारों
में ग्लाइकोलिक एसिड क्रीम शामिल है,जो त्वचा पर गहरे धब्बों की बाहरी
सतह को खत्म करती है। कई बार कई प्रकार के उपचारों की जरूरत होती है और यह आपके शरीर की प्राकृतिक सुधार प्रक्रिया पर भी निर्भर करता है।

2022-03-23

स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज करने के फायदे इन हिंदी | स्ट्रेचिंग व्यायाम के लाभ

Stretching Exercises Ke Benefits Ke Labh V Fayde Ke Bare Me Ya Stretching Exercises Kaise Karen


जरूरी है वर्कआउट के बाद प्रॉपर स्ट्रेचिंग...


अक्सर लोग थका देने वाली वर्कआउट के बाद स्ट्रेचिंग करने की अहमियत को नजरअंदाज कर देते हैं, जबकि इसके जरिए थकी हुई मसल्स की फ्लेक्सिबिलिटी बढ़ाने के अलावा मसल टशन कम करने जैसे कई बड़े फायदे मिलते हैं. स्ट्रेचिंग करना भी उतना ही जरूरी है जितना स्ट्रेंथ या कार्डियोवस्कुलर ट्रेनिंग करना. जानें इसके कुछ और फायदे.............

नर्वस सिस्टम हो जाएगा शांत


हेवी वर्कआउट के बाद स्ट्रेचिंग करने से नर्वस सिस्टम रिलैक्स महसूस करता है, इसलिए इसे अपने डेली रूटीन में जरूर शामिल करना चाहिए. आप अपने नर्वस सिस्टम को शांत करने और आराम दिलाने के लिए वर्कआउट के बाद 10-15 सेकेंड की अलग-अलग तरह की स्ट्रेचिंग कर सकते हैं. इससे बॉडी में ब्लड क्लॉट्स भी नहीं पड़ेंगे. आपको अच्छा और रिलैक्स फील होगा. कई बार हेवी वर्कआउट के बाद बॉडी में कंपन महसूस होता है. स्ट्रेचिंग इस प्रॉब्लम को दूर करने में भी मददगार है.


बेहतर होती है फ्लेक्सिबिलिटी



वर्कआउट के बाद बॉडी गर्म होती है और आप आसानी से स्ट्रेच कर सकते हैं. स्ट्रेचिंग से मसल्स रिलैक्स होती हैं और बॉडी की फ्लेक्सिबिलिटी बढ़ती है, क्योंकि बॉडी को जितना स्ट्रेच किया जाता है उसका लचीलापन उतना ही बढ़ता है. यह बॉडी पॉश्चर सही करने में भी मददगार है.



काफी कम हो जाता है स्ट्रेस



टफ वर्कआउट के बाद होने वाली थकान के बाद कुछ करने का मन नहीं करता, लेकिन आपको स्ट्रेचिंग स्किप नहीं करनी चाहिए. यह आपकी वर्कआउट रूटीन का एक जरूरी हिस्सा होता है. एक्सरसाइज के बाद स्ट्रेचिंग करने से स्ट्रेस को भी कम किया जा सकता है. स्ट्रेचिंग से टाइट मसल्स लूज हो जाती हैं, जिससे बॉडी में ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता है. इससे एंडोर्फिन हार्मोन्स रिलीज होते हैं, जिससे आपको खुशी और शांति मिलती है. यह आपके मूड को बेहतर है बनाने में भी मदद करता है.

रिलैक्स हो जाती हैं मसल्स



हेवी वर्कआउट के बाद हम काफी थक जाते हैं. ऐसे में, अगर इसके बादबॉडी को अच्छे से स्ट्रेच कर लिया जाए, तो इससे मसल्स रिलैक्स हो जाती हैं. स्ट्रेचिंग करने से मसल्स को आराम मिलता है और उनमें दर्द की शिकायत नहीं होती है. अगर आप वर्कआउट के बाद स्ट्रेचिंग नहीं करते हैं, तो आपको मसल्स में दर्द की शिकायत हो सकती है. यह मसल्स की अकड़न को दूर करता है और बॉडी को आराम देता है. जब आप वर्कआउट के बाद स्ट्रेचिंग नहीं करते, तो मसल्स रिलैक्स नहीं हो पाती हैं, जिससे कई हिस्सों में दर्द होने लगता है. इनमें पीठ का दर्द सबसे कॉमन है,

स्ट्रेचिंग करने के सिंपल टिप्स


● हाथों को स्ट्रेच करने के लिए दोनों हाथों को सिर के ऊपर उठाएं, दोनों हाथों को जोड़कर और एड़ी उठाकर तेजी से स्ट्रेच करें. इसे आप 5 से 7 बार कर सकते हैं. इससे हाथों की मसल्स रिलैक्स हो जाती हैं.

● पीठ को स्ट्रेच करने के लिए पहले खड़े हो जाएं. अब हल्का सा पीछे की तरफ झुकें. अपने हाथों को लोअर बैक पर रखें और मसल्स को स्ट्रेच करें. इससे आपको पीठ के दर्द में आराम मिलेगा.

● कमर को स्ट्रेच करने के लिए पैरों को कंधों के बराबर चौड़ाई में खोल लें. अपने दोनों घुटनों को हल्का सा मोड़ें. अब आगे की तरफ झुकें और दोनों हाथों को घुटनों पर रखें. मसल्स को स्ट्रेच करने की कोशिश करें.

2022-03-15

नकारात्मक और सकारात्मक भावना इन हिंदी | bhavnaye kya hoti hai

नकारात्मक और सकारात्मक भावनाएं क्या होती है?

भावनाए क्या होती है?

  भावनाओ के कई रंग हैं। कभी ये हमें मजबूत बनाती है, तो कभी हमारी सबसे बड़ी कमजोरी बन जाती है और जब हम भावनात्मक रूप से कमजोर होते हैं, तो जिंदगी की लड़ाई में पीछे छूटते जाते है।


    भावनाओं के दो पहलू होते हैं। एक तरफ जहां भावनाएं हमें मजबूत बनाती हैं, तो दूसरी तरफ येहमारी सबसे बड़ी कमजोरी भी बन जाती हैं। भावनाएं सकारात्मक भी होती हैं और नकारात्मक भी। सकारात्मक भावनाएं प्रेम, लगाव एवं दया से जुड़ी होती हैं, जबकि नकारात्मक भावनाएं लालच, गुस्सा, हिंसा एवं स्वार्थ के कारण विकसित होती हैं। नकारात्मक भावनाएं व्यक्ति के शारीरिक एवं मानसिक व्यक्तित्व को नुकसान पहुंचाती हैं।

    उन्हें क्षतिग्रस्त कर देती हैं। ये हमें स्वार्थी, आत्म-केन्द्रित, अपने तक सीमित रहने वाला बना देती हैं। इससे तनाव का स्तर भी बढ़ने लगता है। ऐसे लोग ज्यादा नकारात्मक सोचते हैं, जिसके कारण उनके जीवन में कोई सकारात्मकता नहीं रह जाती है।

    नकारात्मक सोच वाले व्यक्ति आमतौर पर स्वभाव से ईर्ष्यालू होते हैं। वे हमेशा बदला लेने की भावना से पीड़ित रहते हैं। धीरे-धीरे विकृत मानसिकता वाले बन जाते हैं। उनके पास किसी व्यक्ति या स्थिति के लिए अच्छे शब्द नहीं होते हैं। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि आप अपने अन्दर सकारात्मक भावनाओं को बढ़ावा दें और नकारात्मक भावनाओं से उभरने या बाहर आने की कोशिश करें।



एक नजर इधर भी


  • 20 में से प्रत्येक एक व्यक्ति निराशा और तनाव से घिरे होते हैं।
  • इसकी मुख्य बजह है, उनका नकारात्मक सोच से घिरे होना।
  • नकारात्मक भावनाएं ऐसी संवेदनाएं होती हैं,जो व्यक्ति को बेचारा एवं दुखी बना देती हैं। व्यक्ति खुद के साथ-साथ दूसरों को भी नापसंद करने लगता है।



उत्साह में कमी


भावनाएं व्यक्ति के स्वभाव, व्यक्तित्व, विचार आदि पर निर्भर करती हैं।नकारात्मक भावनाएं ऐसी संवेदनाएं होती हैं, जो व्यक्ति को बेचारा एवं दुखी बना देती हैं। नकारात्मक भावनाओं से पीड़ित व्यक्ति खुद के साथ-साथ दूसरों को नापसंद करने लगता है। इससे व्यक्ति का विश्वास डगमगाने लगता है।

नकारात्मक भावनाओं वाले व्यक्ति का जीवन के प्रति उत्साह कम हो जाता है। यह इस पर ज्यादा निर्भर करता है कि हम इन नकारात्मक भावनाओं से कितने समय तक प्रभावित रहे। हमनें इन्हें किस प्रकार व्यक्त किया।


नकारात्मकता में सकारात्मकता ढूंढे


भावनात्मक संतुलन के लिए किसी भी स्थिति में तुरन्त प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए। पहले सोचें, विचार करें, सही कारण जानने की कोशिश करें, स्थिति का आकलन करें, उसके बाद अपनी राय दें। फिर कार्यवाही करें। भावुक न हों। भावुक होकर कोई कार्य न करें। नकारात्मक एवं विषम परिस्थितियों में भी सकारात्मक चीजें करने की कोशिश करनी चाहिए। हमेशा सकारात्मक बातें एवं कार्य करने चाहिए। सकारात्मक संतुलन आनुवांशिक एवं परिस्थिति जन्य भी होता है। यह आपके समूह एवं आपके मित्र, परिवार जिनके साथ अधिकतर समय व्यतीत करते हैं या रहते हैं, पर भी निर्भर करता है।


सेहत पर असर


नकारात्मक सोच वाले व्यक्तियों को अक्सर दूसरों से शिकायत रहती है। वे हमेशा दूसरों में दोष निकालते हैं। बुराई करते हैं। ऐसे लोगों के साथ यदि आप रहेंगे, तो आपकी सोच भी नकारात्मक हो जाएगी। कोशिश करें सकारात्मक लोगों के साथ रहने की। भावनात्मक संतुलन बनाए रखने के लिए चीजों को बिना तोड़े-मरोड़े स्वीकार करना सीखें। उसके प्रभाव में न आएं। भावनात्मक संतुलन व्यक्ति की अपनी सेहत एवं भलाई के लिए जरूरी है। प्रार्थना, संध्या, ध्यान, ईश्वर में विश्वास और दयालु हृदय व्यक्ति को सकारात्मक बनाने में मदद करते हैं।


संतुलन बनाएं


भावनात्मक असंतुलन होने की दशा में कई तरह की समस्याएं देखी जा सकती हैं जैसे मांसपेशियों में दर्द, ऐंठन, त्वचा में झनझनाहट, तनाव बढ़ना आदि। भावनात्मक संतुलन बनाए रखने के लिए हंसने के साथ-साथ कभी-कभी रोना भी जरूरी है। कई  शोध यह साबित कर चुके हैं कि रोना हमारी मानसिक सेहत के लिए काफी फायदेमंद है।  रोने से भावनात्मक संतुलन बरकरार रहता है। हंसना-रोना एक स्वाभाविक क्रिया है। रोने से तनाव दूर होता है। तनाव के कारण शरीर में जमा टॉक्सिन रोने के बाद खुद-ब-खुद धुल जाता है।


2022-03-07

रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी क्या है - Radiofrequency Neurotomy Kya Hota Hai | Spinal Pain Treatment In Hindi

Radio Frequency Neurotomy Treatment Ke Bare Me Janakari

लंबे समय से रीढ़ के दर्द से जूझते मरीजों के लिए आशा की किरण है रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी। इससे पुराने दर्द और रीढ़ की कई तकलीफों में मिल जाती है राहत............


रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी क्या है?


व्यस्त जीवनशैली और एक्सरसाइज की कमी के चलते स्वास्थ्य को लेकर हम काफी हद तक लापरवाह हो चुके हैं। ऐसे में रीढ़ और मांसपेशियों से जुड़ी तकलीफों से दो-चार होने वाले मरीजों की संख्या बहुत 
तेजी से बढ़ रही है। आज अधिकतर लोग ऑस्टियो अर्थराइटिस, रुमेटॉइड अर्थराइटिस, सर्वाइकल, स्पाइनल स्टेनोसिस से ग्रस्त हैं। इसके अलावा बढ़ती उम्र या चोट के कारण कार्टिलेज घिसने लग जाता है, जिससे जोड़ों में सूजन आ जाती है। यह अर्थराइटिस की शुरुआत होती है। ज्यादातर रीढ़ की हड्डी की तकलीफ जैसे-ऑस्टियो अर्थराइटिस, स्पाइनल स्टेनोसिस या पीठ की कोई गहरी चोट आदि फैसेट ज्वाइंट में दर्द का मुख्य कारण होती हैं। आमतौर पर इनके प्राथमिक उपचार में मरीज के दर्द के हिसाब से फिजियोथेरेपी, दर्द निवारक दवा या पारंपरिक सर्जरी का इस्तेमाल किया जाता है, जबकि अब रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी जैसी अत्याधुनिक तकनीक की मदद से लंबे समय से हो रहे दर्द में राहत देने के लिए रीढ़ की हड्डी का उपचार संभव है।


इस तरह होती है सर्जरी:


सर्जरी की इस नई तकनीक रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी में ना के बराबर चीरा लगाया जाता और सर्जिकल प्रक्रिया ऐसी होती है कि मरीज को उसी दिन डिस्चार्ज कर दिया जाता है। इसमें रेडियो फ्रीक्वेंसी वेव्स, जो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स होती हैं और प्रकाश की गति से तेज चलती हैं, को एक विशेष जनरेटर को उच्चतम तापमान पर रखकर बनाया जाता है। इससे हीट एनर्जी बनाकर सुनिश्चित तंत्रिकाओं तक पहुंचाई जाती है, जो दर्द आवेगों को मस्तिष्क तक लेकर जाती है। रेडियो फ्रीक्वेंसी वेव्स को सुई की नोक से मिलाया जाता है, जो तंत्रिका को मस्तिष्क तक दर्द के संकेतों को भेजने से बाधित करता है।

रेडियो फ्रिक्वेन्सी न्यूरोटॉमी के प्रकार?


रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी से उपचार मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं:
मीडियल ब्रांच न्यूरोटॉमी यानी एब्लेशन, जो फैसेट जोड़ों से दर्द ले जाने वाली तंत्रिकाओं को प्रभावित करता है और दूसरा, लेटरल ब्रांच न्यूरोटॉमी, जो सेक्रोइलिएक जोड़ों से दर्द ले जाने वाली तंत्रिकाओं को प्रभावित करता है।

रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी से हर दर्द से राहत 


रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी कई पुराने जोड़ों के दर्द जैसे स्पाइनल आर्थराइटिस, लो बैक पेन, स्पाइनल स्टेनोसिस, सर्वाइकल स्पाइन सर्जरी के बाद का दर्द, फेल्ड बैक सर्जरी सिंड्रोम और अन्य रीढ़ के दर्द में भी असरदार प्रतिक्रिया दिखाती है। यह कुछ न्यूरोपैडिक से जुड़े दर्द जैसे कांप्लेक्स रीजनल पेन और अन्य मिश्रित पुराने दर्द में भी असरदार है। इस इलाज के लिए एक मरीज की उम्मीदवारी आमतौर पर एक डायग्नोस्टिक नर्व ब्लॉक के प्रदर्शन पर निर्धारित होती है।

बेहतर है विकल्प


रेडियो फ्रीक्वेंसी न्यूरोटॉमी लंबे समय से हो रहे दर्द में स्टेरॉयड इंजेक्शन के मुकाबले अधिक राहत देती है। अधिसंख्य मरीज इससे उपचारलेने के बाद दर्द से निजात पा लेते हैं। इस विधि में बहुत छोटे चीरे का इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए यह किसी अन्य सर्जरी के मुकाबले जल्दी राहत देने वाली होती है। साथ ही इस सर्जरी के निशान भी नहीं पड़ते हैं।

2022-03-04

चेहरे के दाग धब्बे झुर्रियां कैसे हटाए - chehra saaf karne ke gharelu upay v tarika vidhi

Chehare Par Dag Pimple Aur Jhurya Kaise Hataye Or Chehra Chamkane v Saaf Karane Ke Gharelu Nuskhe


चेहरे पर दाग-धब्बे, झुर्रियां अक्सर आपको तनाव देती हैं। इन्हें दूर करने के लिए आप तरह-तरह के जतन करती हैं। ऐसे में कभी प्राकृतिक पद्धति को भी आजमाकर देखिए।


फेशियल क्यूपिंग क्या होता है?


सुंदरता की चाहत ने प्राचीन काल से लेकर आज तक न जाने कितने ही
घरेलू नुस्खे और अलग-अलग चिकित्सकीय तौर-तरीके खोजे हैं। आजमाए जा चुके कई तरीके खूबसूरती को बनाए रखने में कारगर भी साबित हुए हैं। फेशियल क्यूपिंग भी एक ऐसी ही प्राचीन थेरैपी है, जो चेहरे को ऐसा खूबसूरत और चमकदार बनाती है कि लोग देखते ही रह जाएं। सौंदर्य विशेषज्ञ मानते हैं कि फेशियल क्यूपिंग से बेहतर परिणाम आए हैं, हालांकि वे यह भी कहते हैं कि इसे आजमाने में कुछ सावधानियां अत्यधिक जरूरी हैं।


चेहरे की सफाई से शुरुआत



फेशियल क्यूपिंग थेरैपी के लिए पहले चेहरे और गर्दन की गहराई से सफाई की जाती है और फिर कुछ चिकित्सकीय तेलों से त्वचा की मालिश। इसके बाद चेहरे पर सक्शन कप को उल्टे-सीधे तरीके से रखते हैं। थोड़ी देर बाद चेहरे की मांसपेशियों को आराम देने के लिए कप को पूरे चेहरे पर घुमाते हैं। इस तरह कप रिवर्स सेक्शन शुरू होता है, जो ऑक्सीजन आपूर्ति बढ़ाकर और रक्त परिसंचरण में सुधार लाकर चेहरे के ऊतकों को पुनर्जीवित करने के लिए एक वैक्यूम बनाता है। इससे ऊतकों की परतें अलग होती हैं, चेहरे की टेंस मसल्स को आराम मिलता है और स्किन को एक प्रॉपर ट्रीटमेंट मिलता है।

क्या हैं फायदे


फेस क्यूपिंग मांसपेशियों के तनाव को कम करती है। कोलेजन उत्पादन को बढ़ावा देने वाली त्वचा कोशिकाओं को उत्तेजित करती है। रक्त परिसंचरण और ऑक्सीजन में वृद्धि करती है। चेहरे के ऊतकों को मजबूत करती है। चेहरे पर एक स्वस्थ चमक लाती है। झुर्रियां, काले दाग- धब्बों के साथ बढ़ती उम्र के प्रभाव को कम करती  है। चेहरे से फाइन लाइंस को भी कम करती है।


रक्त को शुद्ध करने के लिए


फेशियल क्यूपिंग यानी रक्त मोक्षण आयुर्वेद की वह पद्धति है, जिसका उपयोग रक्त की शुद्धि करके त्वचा के निखार के लिए किया जाता था। क्यूपिंग असल में, रक्त को शुद्ध करने के साथ ही उसके सर्कुलेशन को बढ़ा देती है। इससे त्वचा में निखार आता है। इसका असर हार्मोंस की गड़बड़ी को दूर करने के तौर पर भी देखा गया है। वैसे तो इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता, लेकिन विशेषज्ञ की देख-रेख में भी इसे कराना बेहतर है, क्योंकि वही इसे सही ढंग से करा पाते हैं।


घर पर भी फेस क्यूपिंग



उचित देखभाल और सावधानियों के साथ फेशियल क्यूपिंग घर पर भी की जा सकती है, लेकिन यदि आपके चेहरे की त्वचा काफी संवेदनशील है तो उसको टीएलसी की जरूरत होती है। घर पर फेस क्यूपिंग के लिए पहले चेहरे की गंदगी को साफ करें। फिर किसी प्राकृतिक तेल (जोजोबा तेल) से चेहरे की धीरे-धीरे मालिश करें। सक्शन कप से धीरे से त्वचा को दबाएं। जब चेहरे की त्वचा पर खिंचाव महसूस करने लगें तो धीरे-धीरे दूसरी तरफ करें। इसे हमेशा चेहरे के मध्य भाग से शुरू करें। नाक, भौं के लिए छोटे कप और माथे, गाल के लिए बड़े कप का उपयोग करें। इस प्रक्रिया को 5-10 मिनट तक ही करें।



कब न करें



वैसे तो इस थेरैपी को दोषपूर्ण नहीं माना गया है, न ही इसके कोई दुष्परिणाम देखने को मिले है, लेकिन इससे मिलने वाले परिणाम भी इस बात
पर निर्भर करते हैं कि आपकी त्वचा किस प्रकार की है। इसके चलते कुछ मामूली दुष्प्रभाव हो सकते हैं, जैसे- जी मिचलाना, चक्कर आना, सिर चकराना, ठंड लगना, जलन या रैशेज। यही वजह है कि सूजन और त्वचा पर किसी भी तरह की चोट होने पर इस थेरैपी को आजमाने की सलाह नहीं दी जाती। इस थेरैपी का उपयोग करने से पहले सौंदर्य विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें और उनके बताए तरीकों का ही पालन करें।

2022-03-01

मुंह की स्वच्छता पर ध्यान कैसे दे | oral hygiene kya hota hai | oral hygiene guidelines tips in hindi | ओरल हाइजीन के बारे में

मुंह की स्वच्छता पर ध्यान कैसे दे या ओरल हाइजीन (मुंह की स्वच्छता) केयर कैसे करे इन हिंदी


ओरल हाइजीन (मुंह की स्वच्छता) पर ध्यान न देने से कोविड के मरीजों का वायरल लोड बढ़ सकता है व कोविड की समस्या भी गंभीर हो सकती है...


    ओरल कैविटी मुंह में बहुत से वायरस, बैक्टीरिया और फंगस का बसेरा बना देती है। इसलिए ओरल हेल्थ पर ध्यान देना अनिवार्य है ताकि आपको किसी भी प्रकार का संक्रमण न हो।
    कई परीक्षणों से यह प्रमाणित हुआ है कि ओरल हेल्थ खराब हो तो कोरोना संक्रमण अधिक गंभीर हो सकता है और यहां तक कि ठीक होने में भी अधिक समय लग सकता है। ध्यान देने की बात यह है कि फेफड़ों का संक्रमण और मसूड़ों की बीमारी पैदा करने वाला वायरस एक ही है। मसूड़ों में सूजन होने पर सीआरपी वैल्यू (सी-रिएक्टिव प्रोटीन, शरीर में अति सूजन के लिए एक मार्कर) की रीडिंग अधिक हो जाती है जिसके चलते कोविड के इलाज के दौरान डाक्टर गलत अर्थ लगा सकते हैं।

ये लक्षण आ रहे नजर :

दूसरी लहर में आए डेल्टा वैरिएंट के चलते कोविंड रिकवरी के दौरान मुंह में कई विचित्र लक्षण पाए जा रहे हैं। ऐसे में चेतावनी के कुछ संकेतों को लेकर अधिक सतर्क रहें, जैसे दांतों का हिलना/ढीला होना। दुर्गंध, दांत दर्द, मुंह में छाले, ओरल म्यूकोसा का लाल होना, नाक से काला तरल निकलना,खून बहना, आंखों में सूजन। इन संकेतों के दिखने पर तुरंत डेंटिस्ट से मिलें।

जरूरी है संपूर्ण देखभाल :

कोविड से रिकवर हो चुके सभी मरीजों को यह सलाह दी जाती है कि
खुद घर पर अच्छी रोशनी में आइने में देखें कि
दांतों में चेतावनी का कोई संकेत तो नहीं साथ ही
डब्ल्यूएचओ और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण
मंत्रालय के दिशानिर्देशों के अनुसार चलाए जा रहे
'पोस्ट कोविड रिकवरी ओरल स्क्रीनिंग प्लान'
का हिस्सा बनें। यह ओरल केयर प्लान व्यापक है
जिसका मकसद कोविड से रिकवरी के दौरान ओरल
हेल्थ की संपूर्ण देखभाल करनी है। इसके तहत कुछ
चरणों में जांच और देखभाल की जाती है।

1. पूरे मुंह का एक्सरे। संक्रमण और दांतों में सड़न का पता लगाने के लिए।

2. अल्सर, फंगस और दांतों की अन्य समस्याओं का पता लगाने के लिए मुंह, लार ग्रंथियों और जबड़े की पूरी जांच।

3. मसूड़ों के नीचे गहरी और पूरी सफाई।

मुंह स्वच्छतो आप सुरक्षित मुंह की संपूर्ण स्वच्छता के लिए जरूरी है कि प्रतिदिन आपः

• फ्लास करें,टंग क्लीनर का उपयोग करें, दो बार
ब्रश जरूर करें।

• चिकित्सक से परामर्श करके दिन में दो बार
अच्छे माउथवाश का उपयोग करें।

• अपने टूथब्रश और टंग क्लीनर को अन्य सदस्यों
के टूथब्रश और टंग क्लीनर से दूर रखें। इन्हें
वक्त-वक्त पर बदलते भी रहें।

2021-07-16

delta variant kya hai | delta variant ke lakshan kya hai | corona dusari lahar ke lakshan

डेल्टा वेरिएंट क्या है और डेल्टा वैरीअंट के लक्षण(Symptoms) व बचाव(Treatment) के बारे मे 



कोरोना की दूसरी लहर नियंत्रण में है,लेकिन तीसरी लहर की आशंका जताई जा रही है। इसी के साथ इन दिनों डेल्टावैरिएंट को लेकर भी चर्चा तेज है। इसकी तीव्रता को देखते हुए जरूरी है कि संक्रमण से बचने के सारे उपाय अपनाएं जाएं और ज्यादा से ज्यादा हो वैक्सीनेशन...


डेल्टा वेरीअंट क्या होता है?


हमारे देश में कोरोना की दूसरी लहर पर काफी हद तक काबू पा लिया गया है, जो पिछले साल शुरू हुई पहली लहर की तुलना में कहीं अधिक खतरनाक थी। अब कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य विशेषज्ञ सितंबर-अक्टूबर में कोरोना की तीसरी लहर की आशंका जता रहे हैं। दूसरी तरफ दस्तक दे रहा है इसका डेल्टा वैरिएंट, जिसकी तीव्रता काफी अधिक है। इन सबको देखते हुए हमें पहले से ही तैयारियां करनी चाहिए। तीसरी लहर की आशंका और इसके छोटे आयुवर्ग पर प्रभाव के कयासों के बीच नेशनल कमीशन फार प्रोटेक्शन आफ चाइल्ड राइट्स (एनसीपीसीआर) ने कहा है कि अगर कोविड-19 की तीसरी लहर की आशंका जताई जा रही है और इससे बच्चों के प्रभावित होने का कुछ भी अनुमान है तो बच्चों और नवजात शिशुओं को संक्रमण से बचाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को समय रहते रणनीति बनानी होगी।


सर्तकता ही बचाएगी: 


मीडिया लगातार रिपोर्ट कर रहा है कि पिछले कुछ दिनों से डेल्टा प्लस वैरिएंट के साथ कोरोना के मामले भी बढ़ रहे हैं, जिससे तीसरी लहर की आशंका तेज हो गई है। एम्स, नई दिल्ली के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया का कहना है कि अनलाक के बाद जिस तरह से लोग कोविड़ प्रोटोकाल का पालन नहीं कर रहे हैं, उसे देखते हुए तीसरी लहर से बचना मुश्किल हो जाएगा। तीसरी लहर हो या डेल्टा वैरिएंट, बचने के लिए तीन बातों का ध्यान रखना सबसे जरूरी है। कोविड प्रोटोकाल का कड़ाई से पालन करना, कोविड के मामलों से निपटने के लिए बेहतर रणनीति और टीकाकरण। इस स्थिति को देखते हुए हमें सतर्क रहने की जरूरत है, ताकि अप्रत्याशित
स्थिति से बचा जा सके।

बुनियादी नियम न भूलें : 


दो गज की शारीरिक दूरी बनाए रखें। मास्क पहनें। हाथ सैनिटाइजर अथवा साबुन से साफ रखें।

ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग : 


ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग सबसे जरूरी है, ताकि संक्रमित लोगों की तुरंत पहचान कर दूसरे लोगों में संक्रमण को फैलने से रोका जा सके। अगर आपको थोड़ी सी भी आशंका हो तो तुरंत कोरोना की जांच कराएं।


वैक्सीनेशन : 


अधिक से अधिक लोग जल्द से जल्द वैक्सीन लगवा लें। वैक्सीनेशन अधिक होगा, तो तीसरी लहर से बचने के लिए हमारी तैयारी उतनी ही बेहतर होगी। 

डबल मास्क का इस्तेमाल: 


डबल मास्क का इस्तेमाल करें, क्योंकि सिंगल मास्क की तुलना में यह अधिक सुरक्षा प्रदान करता है। सस्ती गुणवत्ता की जगह बेहतरीन क्वालिटी का एन-95 मास्क इस्तेमाल करें। इसके ऊपर सर्जिकल क्लाथ मास्क बांध सकते हैं। सस्ते मास्क से बचें। ये आपके कान, त्वचा और श्वास तीनों के लिए तकलीफदेह साबित होते हैं। आप इन्हें बार-बार उतारते हैं और इस प्रकार संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है। 


इंडोर गैदरिंग से बचना: 


बंद स्थानों पर इकट्ठा होने से बचें। घर-आफिस में वेंटिलेशन का ध्यान रखें, ताकि हवा जल्दी स्वच्छ हो जाए।


सेल्फ मेडिकेशन से दूरीः


कोविड की दूसरी लहर के दौरान अधिकांश लोगों ने बिना चिकित्सक की सलाह के अपनी मर्जी से दवाईयां ली हैं। अपनी मर्जी से दवाईयां लेना या किसी और को दी गई सलाह की नकल करना ठीक नहीं है। यदि कोई दवा किसी एक व्यक्ति के लिए उपयुक्त है, तो वह दूसरे को फायदा पहुंचाए, यह जरूरी नहीं है। 

शुरूआत में स्टेरायड का इस्तेमाल नहीं: 


डाक्टरों और मरीज के परिजनों को भी उपचार के दौरान सतर्क रहने की जरूरत है। उपचार के पहले दिन से स्टेरायड नहीं दिया जाना चाहिए। इसे छठे दिन से दिया जाना चाहिए, अन्यथा म्यूकोरमायकोसिस हो सकता है।


तुरंत डाक्टर को दिखाएं

ब्राजील के रायलकालेज आफ पीडियाट्रिक्स एंड चाइल्ड हेल्थ ने माता- पिता को सुझाव दिया है कि अगर बच्चों में
निम्न लक्षण दिखाई दें तो तुरंत डाक्टर को दिखाएं।
•बच्चे की त्वचा का रंग पीला पड़ जाए
और छूने पर ठंडी महसूस हो।
•अगर सांस लेने में दिक्कत हो।
• होंटो के आसपास नीला पड़ जाए।
• बच्चे को दौरेपड़ने लगें।
बच्चालगाताररोता रहेया सोता रहे।
• त्वचा पर रैशेज पड़ जाएं।

क्या बच्चों के लिए अधिक है खतरा


कोविड-19 की तीसरी लहर से बच्चे कितने प्रभावित होंगे, इसके बारे में अभी कुछ भी नहीं कहाजा सकता, फिर भी सावधानी रखने और मुश्किल स्थितियों के लिए तैयार रहने में कोई हर्ज नहीं है।कोरोना की दूसरी लहर में जो बच्चे संक्रमित हुए उनमें से 90 फीसद में या तो मामूली या कोई लक्षण दिखाई नहीं दिए। इंडियन अकेडमी आफ पीडियाट्रिक्स (आईएपी) ने कहा है कि बच्चों का शरीर नाजुक होता है और उनका रोग प्रतिरोधक तंत्र भी पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ होता है। ऐसे में उनके संक्रमण की चपेट में आने की आशंका अधिक होती है। वहीं एम्स, नई दिल्ली के निदेशक डा.रणदीप गुलेरिया का कहना है कि तीसरी लहर में बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होंगे, यह केवल दावा है। अभी इसका कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है।

2020-05-05

स्वस्थ कैसे रहे घरेलु उपाय - Healthy Rahane Ke Tips, Upay, Tarika, Upchar

स्वस्थ (हेल्थी) रहने के लिए क्या करना चाहिए या (हेल्थी) स्वस्थ रहने के लिए क्या खाना चाहिए?


हेल्दी रहने के लिए क्या क्या करे?


ताउम्र स्वस्थ रहने के लिए प्रकृति और शरीर के बीच संतुलन बनाए रखना बेहद जरूरी है। आप जितना प्रकृति के करीब रहेंगे, प्राकृतिक उपायों को अपनी जीवनशैली में शामिल करेंगे, उतने ही ज्यादा शारीरिक और मानसिक रूप से सेहतमंद रहेंगे। इसके लिए पर्याप्त मात्रा में शुद्ध जल, गहरी सांस के जरिए ऑक्सीजन लेना, योग एवं ध्यान करना, हरी पत्तेदार सब्जियों एवं मौसमी फलों का सेवन करना, मसालेदार भोजन से परहेज करना, नशे से दूर रहना जरूरी है।

क्या कहते हैं आंकड़े

  1. 45% लोग भारत में शाकाहारी भोजन को तवज्जो देते हैं और स्वस्थ जीवन जीते हैं।
  2. 70% मानव शरीर में जल होता  है। ऐसे में शरीर की जरूरत के अनुसार पानी  पीना चाहिए।
  3. योग से आंतरिक अंगों की कसरत होती है। इन अंगों में ऑक्सीजन रक्त की आपूर्ति बढ़ाता है।

खुली हवा में लें


सांस ऑक्सीजन शरीर की प्रत्येक कोशिकाओं एव अंगों को स्वस्थ और चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए आवश्यक है। ऑक्सीजन से जीवन है। शरीर के मेटाबॉलिज्म के लिए आवश्यक है, लेकिन आस-पास ऑक्सीजन शुद्ध होनी चाहिए। प्रदूषित वातावरण में सांस लेना हमें बिमार कर सकता है। सबसे अच्छी गुणवत्ता की वायु सुबह के समय पार्क या ऐसे स्थान जहां पर वृक्ष अधिक होते हैं, पाई जाती है। रोज सुबह इन जगहों पर कुछ देर बैठकर गहरी सांस लें। इससे फेफड़ों को मजबूती मिलती है। सांस रोग एवं क्रॉनिक ब्रॉन्काइटिस से पीड़ित व्यक्तियों के लिए बहुत फायदेमंद होती है। शुद्ध हवा में गहरी सांस लेने से मस्तिष्क तरोताजा होती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि मस्तिष्क की कोशिकाओं को स्वस्थ रखने के लिए भी ऑक्सीजन की जरूरत होती है।

हेल्थ टॉनिक है योग


योग और ध्यान शरीर एवं मस्तिष्क के लिए हेल्थ टॉनिक की तरह होता है। विज्ञान के अनुसार, जब शरीर और मस्तिष्क कुछ समय के लिए अपने रोजमर्रा के कार्य को बंदकर ध्यान करे, तो इससे काफी फायदे होते हैं। ध्यान के फायदे अन्तहीन हैं। योग निद्रा करें। यह हमें तनाव एवं अवसाद से बचाए रखने में मदद करता है। योग और ध्यान से । आप आन्तरिक अंगो को नयापन व ऊर्जावान बनाए रखते हैं। योग से आन्तरिक अंगों की कसरत होती है। इन अंगों में ऑक्सीजन रक्त की आपूर्ति को बढ़ाता है। शरीर के मेटाबॉलिक एवं ग्रन्थि तंत्र के ल‍िये फायदेमंद होता है। ध्‍यान से तनाव को बढाने वाले हार्मोन में कमी आती है। ध्यान तनाव बढ़ाने वाले हार्मोन को नियंत्रित करता है। मस्तिष्क में डोपामिन एवं सिरोटोनिन हॉर्मोस का सामान्य स्तर बनाए रखता है। इन हॉर्मोस के स्तर के बढ़ने या घटने से कई तरह की मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक रोगों के होने की संभावना बढ़ जाती है।


पानी पीते रहें


मानव शरीर में लगभग 70 फीसदी जल होता है। अतः जरूरी है कि अपने शरीर की जरूरत के हिसाब से पर्याप्त पानी पिएं। ध्यान रखें, पानी शुद्ध होना चाहिए। जल हानिकारक एवं ऐसे तत्वों को शरीर से बाहर निकालता है, जिनकी शरीर को जरूरत नहीं होती है। यह शरीर की आन्तरिक सफाई करता है। शरीर के उत्सर्जन तंत्र को स्वस्थ रखता है। इतना ही नहीं यह शरीर के तापमान को नियंत्रित रखने में भी मदद करता है।

अच्छे स्वास्थ के लिए व्यायाम


व्यायाम व्यक्ति के मूड, सेहत, वजन और बेहतर जीवन जीने के लिए फायदेमंद होता है। ऐसे में तेज चलना या कार्डियोरेस्परेटरी एक्सरसाइज जैसे जॉगिंग या ट्रेडमिल पर दौड़ने के लिए समय निकालें। सप्ताह में पांच से छह दिन चार से पांच किलोमीटर तेज चलना जरूरी होता है। कार्डियोरेस्परेटरी एक्सरसाइज वह होती है, जो व्यक्ति की हृदय गति और सांस की गति को बढ़ाती है। हल्के-फुल्के से लेकर मध्यम दर्जे का व्यायाम व्यक्ति के रक्तचाप, शुगर और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में सहायक होता है। व्यायाम व्यक्ति के मनोविज्ञान को भी मजबूत और सकारात्मक बनाता है। इससे मस्तिष्क स्वस्थ रहता है। रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाता है। शरीर की चर्बी को कम करता है।

शाकाहारी बनें


शाकाहारी भोजन हमेशा मांसाहारी भोजन से बेहतर होता है। इसमें फाइबर और अनसैचुरेटेड फैट ज्यादा होता है। ऐसा भोजन, जिसमें रेशे अधिक होते हैं, कब्ज एवं कुछ हद तक उदर के कैंसर से बचाव करता है। मांसाहारी भोजन में पाया जाने वाला सैचुरेटेड फैट कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ाता है। धमनियों में रुकावट डालता है।