Nomophobia Kya Hain Aur Kaise Bache(Treatment-Upchar) (Smartphone Separation Anxiety)
क्या आप भी है ‘नोमोफोबिया’ के शिकार??
मोबाइल के बिना एक
पल भी रहना मुश्किल हो रहा है, तो समझ लीजिए आप स्मार्टफोन सेपरेशन एन्गजाइटी के
शिकार हो चुके है।
कोई महत्वपूर्ण काम
कर रहे है, तो हाथों में मोबाइल। टीवी देखते या खाना खाते समय भी हाथों में
मोबाइल। यहां तक कि बाजार में, एक्सरसाइज करते समय या फिर दोस्तों के बीच भी
हाथों में मोबाइल होता है। बेफिजुल फोन की स्क्रोलिंग। एकटक फोन के सभी आइकन्स
की तफ्तीश । आंखों में जलन-चुभन के बावजूद एक उम्मीद कि कहीं फोन में कोई ऐप में
ट्रिंग-ट्रिंग हो शायद!!!!! आलम यह है कि लोग एक पल भी अपने मोबाइल फोन से
दूर नहीं रह पाते है। हम सभी की यही कहानी है। मानो आपका दिल फोन के डिब्बे में
धडक रहा हो। आपकी यह आदत आपको मानसिक और शारीरिक रूप से बीमार कर सकती है। इससे
पहले ‘स्मार्ट’ फोन सेपरेशन एन्गजाइटी’ के आप शिकार हो जाएं, संभल जाएं।
According To Test
79% लोगों के
हाथ में हर समय होता है स्मार्टफोन। इसमें युवाओं की संख्या अधिक है।
8 में से 1 यूके में
रहने वाला व्यक्ति ‘नोमोफोबिया’ का शिकार है।
क्या आप जानते है कि असल जिंदगी में आपकी
एन्गजाइटी आपको सोशल लाइफ में भी बेचैन कर सकती है?? एक सोध
में ये बात सामने आई है कि आपका पार्टनर से जुडाव, पर्सनल लाइफ में किस तरह आप
अपने गुस्से पर काबू पाते है आदि बातें आपकी सोशल लाइफ खासतौर पर सोशल नेटवर्किंग
साइट्स पर दिखाई पडती है।
‘नोमोफोबिया’ से
बचने का एकमात्र इलाज है एक्सपोजर थेरेपी। इसमें स्मार्टफोन उपभोक्ताओं को इसकी
अति से परिचित करवाते है।
Smartphone Separation Anxiety
इसका मतलब वजह-बेवजह
फोन घुमाने, लोगों से बाते करने से नही है, बल्कि फोन को बार-बार चेक करने से है।
फोन में इंस्टॉल्ड सभी ऐप्स की बार-बार चेकिंग, फोन की गैलरी में यादों को ताजा
करना, फेसबुक, ट्विटर, व्हॉटऐप, इंस्टाग्राम को खाली-पीली खंगालने से है। यानी
दिन-रात डिजिटल मेमोरी में खोए रहना।
Nomophobia Kya Hain?
स्मार्टफोन एन्गजाइटी को हल्के में नलें।
आपकी यह आदत विकराल रूप लें सकती है। यूनिवर्सिटी ऑफ हॉन्गकॉन्ग में हुए एक शोध
के अनुसार, स्मार्टफोन सेपरेशन एन्गजाइटी की अवस्था ‘नोमोफोबिया’ कहलाती है।
How Does Recognise Nomophobia?
दिन में 10 से 15 बार स्मार्टफोन की ताका-झांकी
और स्क्रोजिंग सामान्य है। लेकिन, जब 24 घंटे स्मार्टफोन हाथ में हो, पर्सनल
टाइम में भी फोन में व्यस्त रहते हो, सोते-जागते, खते-पीते हर अवस्था में फोन
को हमजोली बनाए रखते है, तो आप ‘नोमोफोबिया’ की गिरफ्त में है। जर्नल
साइबरसाकोलॉजी, सोशल नेटवर्किग में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, जैसे-जैसे स्मार्टफोन
के उपभोक्ताओं का ग्राफ बढता जा रहा है, वैसे-वैसे उपभोक्ताओं की यादें डिजिटल
होती जा रही है। ऐसे में उनका ‘नोमोफोबिया’ की जकड में रहना स्वाभाविक है।
This Addiction Is Fatal
स्मार्टफोन की लत पर्सनल व प्रोफेशनल लाइफ के
हर काम में दखलअंदाजी करती है। दखल भी ऐसा की इस लत के आगे जिंदगी के कई काम
हमेशा-हमेशा के लिए पीछे छूट जाते है। जहां यह लत गर्दन, कलाई और आंखों की हालत
खराब कर देती है, वही रियल लाइफ भी इससे काफी प्रभावित होता है। मानों फोन में ही
संसार सिमट गया हो। नोमोफोबिया की कैद में युवा और वयस्क सभी है। आपका ध्यान जब
हर समय मोबाइल स्क्रीन पर लगा रहेगा, तो आप कब सोचेगे, कब समझेगे और काम कब करेगे??
नतीजन, जीरो क्रिएटिविटी, जीरो रिजल्ट। इसका
एकमात्र इलाज है ‘एक्सपोजर थेरेपी’। यानी स्मार्टफोन उपभोक्ता को इसकी अति से
परिचित करवाना और समझा-बुझाकर कुछ समय के लिए टेक्नोलॉजी से दूर रखना होता है।
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