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2020-03-10

साइनोसाइटिस क्या होता है?? Sinusitis Ke Bimari Hone Ke Lakshan(symptoms), Sinusitis Se Bachane Ke Upay Jankari Hindi Mein

 Sinusitis(साइनोसाइटिस)


आमतौर पर किसी इंसान को एक साल में दो बार जुकाम, खांसी और गले में इंफेक्शन की शिकायत होती है, जिसक कारण वायरस होते हैं। लेकिन साइनस से पीड़ित व्यक्ति का अधिकांश समय छींकते और खांसते हुए बीतता है।

 साइनोसाइटिस क्या है??

नाक के पीछे जबड़े की हड्डी में दोनों तरफ स्थित खोखली हड्डियों को 'साइनस' कहते हैं। इन हड्डियों में इंफेक्शन होने को 'साइनोसाइटिस' कहा जाता है।

साइनोसाइटिस बीमारी के लक्षण

साइनस की समस्या होने पर मरीज में मुख्य रूप से पांच लक्षण देखे जाते हैं। नाक बंद होना, नाक बहना, सिर दर्द, चेहरे में भारीपन या दर्द होना तथा छींकें आना। इन लक्षणों के चलते कई जटिलताएं सामने आती हैं। बार-बार बलगम आते से गला खराब हो जाता है। जब यह बलगम फेफड़ों में पहुंचता है, तो उनमें संक्रमण की समस्या होने लगती है। यही नहीं, इसकी वजह से कानों में भी इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। नाक के बीच की हड्डी का टेढ़ा होना साइनोसाइटिस का मुख्य कारण है। इस हड्डी के टेढ़ा होने की वजह से सांस लेने पर अंदर-बाहर आने-जाने वाली हवा ठीक से पास नहीं होती, जिससे ज्यादा नजला बनता रहता है और अतिरिक्त द्रव का रिसाव होता रहता है। यह अतिरिक्त रिसाव नाक की चमड़ी के नीचे अवशोषित हो जाते हैं और इसकी वजह से चमड़ी मोटी हो जाती है। साइनस के अंदर नजला रुक जाने पर मस्से बन जाते हैं, इन्हें साइनोसाइटिस कहा जाता है। रुके हुए नजले में संक्रमण हो जाता है और इसके चलते एलर्जी हो जाती है और बार-बार सर्दी-जुकाम जैसे लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं। वातावरण से धूल का एक कण भी अगर नाक के अंदर जाता है, तो उससे भी साइनोसाइटिस का संक्रमण हो जाता है। फंगस का इन्फेक्शन सबसे ज्यादा खतरनाक होता है। इसके प्रभाव से किसी व्यक्ति को एलजी हा सकती है। समय के साथ के अंदर विकसित हा रहे मस्से बढ़ते चले जाते हैं जब यह काफी बड़े हो जाते हैं, तो इन्हें पोलिप कहा जाता है। अगर किसी व्यक्ति को धूल कणों से परेशानी है, तो शरीर प्रतिक्रिया करता है, जिससे साइनस में बहत ज्यादा स्राव होने लगता है। पोलिप के चलते इस स्राव के बाहर निकलने का रास्ता बहुत पतला हो जाता है। फलतः यह स्राव अंदर ही अंदर सड़ना शुरू हो जाता है। मौसम में बदलाव होने के कारण भी साइनस में संक्रमण होने की आशंका बढ़ जाती है। आम तौर पर जुकाम, खांसी और गले की परेशानी 5-7 दिन में खत्म हो जाती है, लेकिन अगर किसी का इन्फेक्शन ज्यादा तेज है और रोगों से लड़ने की क्षमता कमजोर है, तो इससे जल्दी छुटकारा नहीं मिलता। समय पर इलाज न किया जाए, तो यह रोग बहुत गंभीर हो सकता है। सर्दियों और नम मौसम में इसकी आशंका सबसे ज्यादा होती है। इस मौसम में स्मॉग का स्तर बढ़ जाता है, जो साइनस के लिए कोढ़ में खाज वाली स्थिति है। जीवन शैली में आए बदलावों को देखते हुए कहा जा सकता है कि साइनस किसी को भी हो सकता है। ग्रामीण क्षेत्र की बजाय शहरी क्षेत्र में एलर्जी ज्यादा होती है, क्योंकि शहरी क्षेत्रों में आर्टिफिशियल चीजों का इस्तेमाल  ज्यादा होता है। हम जितना प्रकृति के संपर्क में रहेंगे, एलर्जी होने की आशंका उतनी ही कम हो जाती है। जिन लोगों को यह समस्या है, उन्हें तेज गंध वाले तेलों और इत्र के इस्तेमाल से बचना चाहिए। साइनोसाइटिस की समस्या होने पर संबंधित विशेषज्ञ से मिलें। इसका पता करने के लिए सीटी स्कैन किया जाता है। दवाओं के माध्यम से अगर साइनोसाइटिस ठीक नहीं हुई, तो सर्जरी का सहारा लिया जाता है। नाक के बंद होने पर नाक में डालने के स्प्रे और ड्राप दिए जाते हैं। एंटी एलर्जिक और इन्फेक्शन को नियंत्रित करने के लिए एंटीबायोटिक दवाइयां दी जाती हैं। एंडोस्कोपी साइनस सर्जरी द्वारा संक्रमण को खत्म किया जाता है। बैलून साइनोप्लास्टी भी होती है, जिसमें नाक के अंदर गुब्बारा फुलाकर साइनस को खोल दिया जाता है।

आसान घरेल उपाय/रोकथाम

1 संक्रमण से बचाव के लिए साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखें।
2 पानी खूब पिएं। यह साइनस के स्राव को पतला करने में मदद करता है। ।
3 खान-पान का पूरा ध्यान रखें। इसमें गर्म चाय-कॉफी का सेवन लाभदायक होता है।
4 अदरक, काली मिर्च और इलायची का सेवन करें। ये नजला को पतला करने में सहायक होती हैं।

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