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2020-04-27

Ayurvedic Bhojan Khane Ke Kya-Kya Fayde Hote Hai, Ayurvedic Bhojan Bare Me Jankari Hindi Mein

आखिर आयुर्वेदिक भोजन है क्या?

खाद्य वस्तुओं का अपना एक गुणर्धम होता है , इसलिए उनके सेवन करने का एक तरीका होता है। इन वस्तुओं का जीव के शारीरिक और मानसिक क्रिया-कलापों पर प्रभाव पडता है, आयुर्वेदिक भोजन संस्कृति शरीर में समरसता और सबलता बढ़ाने का काम करता है।

आयुर्वेदिक आयु का विज्ञान है, जो जीवन के प्रत्येक पहलू से जुड़ा है। आयुर्वेद के अनुसार, शरीर के शारीरिक एवं मानसिक क्रिया-कलाप वात्, पित्त और कफ पर निर्भर करते हैं। इन्हें त्रिदोष भी कहा जाता है। इन तीनों में संतुलन रहने से उत्तम
स्वास्थ्य प्राप्त होता है और असंतुलन होने से शक्ति का क्षय, रुग्णता एवं बीमारियां होती है। इन तीनों के संतुलन को सतत् प्रभावित करने वाले तत्व हैं-भोजन, मौसम, जलवायु, स्थान, आयु और मानसिक अवस्था। इनमें भोजन सबसे महत्वपूर्ण तत्व होता है, क्योंकि हमारी शारीरिक और मानसिक शक्तियों से इसका सीधा संबंध होता है। विविध क्रिया-कलापों में हम लगातार ऊर्जा खर्च करते रहते हैं, इसकी पूर्ति हम भोजन से करते हैं। यह क्रम आजीवन चलता रहता है।
आयुर्वेदिक भोजन की अवधारणा समस्त विद्यमान पदार्थों एवं तत्वों के आधारभूत एकरूपता के
सिद्धात पर आधारित है। सभी विद्यमान पदार्थ या द्रव्य पंच महाभूत आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी से बने हैं। हमारा शरीर और भोजन भी इन्हीं से बना है। शरीर में पंचमहाभूत वात (आकाश और वायु), कफ (जल और पृथ्वी) और पित्त (अग्नि) के रूप में विद्यमान होते हैं। आयुर्वेद की दृष्टि से, स्वास्थ्य विभिन्न दृष्टिकोणों से परखा जाता है जैसे-शारीरिक, मानसिक, सामाजिक या ब्रह्मांडीय। ये विभिन्न स्तर अलग-अलग नहीं किए जा सकते, क्योंकि ये परस्परावलंबी होते हैं। अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है कि वात्, पित्त और कफ में संतुलन बनाए रखने के लिए सतत् प्रयास किए जाते रहें। अपने शरीर की प्रकृति के अनुसार, इन तत्वों के प्रभाव को समझ लेने से आपको इनके संतुलन को बनाए रखने का पता चल जाता है। इन तीनों का संबंध विचार-प्रक्रिया से भी होता है। अतः ये मन के तीनों गुणों( रजस, तमस और सत्त्व) से संबंधित होते हैं। इनके संतुलन से त्रिदोषों में भी संतुलन आता है और इन गुणों का असंतुलन त्रिदोषीय संतुलन को प्रभावित करता है। आयुर्वेद के मतानुसार हर व्यक्तिकी व्यक्तिगत स्वभाव-रचना अपनी ही होती है। यही हमारी मनोवैज्ञानिक एवं शारीरिक प्रतिक्रियाओं की बुनियाद है। अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखने और त्रिदोषों में संतुलन स्थापित करने की दृष्टि से व्यक्तिगत प्रकृति-संरचना का बहुत महत्व होता है। उदाहरण के लिए, पित्त प्रधान व्यक्ति ऊष्मा और मिठाइयों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। कफ-प्रकृति के लोग मंदगामी और स्थिर भाववाले होते हैं। वात् प्रकृति के लोग अधिक वाचाल तथा तेज गति से चलने वाले होते हैं।

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