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2020-04-29

Fomo Anxiety Ke Bare Me, Fear Of Missing Out And Anxiety Yani Fomo Kya Hai Aur Isase Kaise Bache, Nivaran Ke Bare Me Jankari Hindi Mein

Fomo Social Anxiety “ Fear Of Missing Out” Ke Bare Me

आज के दौर की महिलाओं को जितनी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, उतना शायद पहले कभी नहीं करना पड़ा। पहले वे घर की चारदीवारी में कैद नियमित जिंदगी गुजारती थीं। घर-परिवार की देखभाल, बस यही उनकी जिम्मेदारियों में शुमार था, मगर आज का परिदृश्य बिल्कुल अलग है। वे घर-परिवार को संभालते हुए नौकरी और व्यापार कर रही हैं, होम मैनेजमेंट के साथ मनी मैनेजमेंट भी कर रही हैं। इनके अतिरिक्त वे अपने सामाजिक रिश्तों और इमेज को लेकर भी बेहद जागरूक हैं, भले ही दिमाग में कितनी भी उथल-पुथल मची हो, मूड खराब हो, मगर सेल्फी हमेशा मुस्कुराकर ही लेती हैं...।
      बड़ी पुरानी कहावत है कि दो नावों में पैर रखकर नदी पार करोगे, तो गिर जाओगे। लेकिन, यह आज की महिला की विशेषता है कि वह दो नहीं बहुत-सी नावों में सवार होकर संसार की नदी पार करती है, ऊपर से यह भी महत्वाकांक्षा रखती है कि इस सफर में वह सबसे आगे रहे। और बस इसी महत्वाकांक्षा से शुरू होती है एक समस्या, जो आजकल पूरे विश्व में  चर्चा का  विषय बनी हुई है। वह है 'फियर ऑफ मिसिंग आउट' यानी 'खुद के खोने का डर' । संक्षिप्त में इसे 'फोमो' भी कहा जाता है। चाहे महिला हो या पुरुष, वैसे तो यह समस्या सभी में समान रूप से बढ़ रही है, लेकिन यहां पर हम बात विशेषकर महिलाओं की करेंगे, क्योंकि महिलाएं 'फोमो' की शिकार जल्दी हो सकती है। कारण, महिला संवेदनशील और इमोशनल होती है। वह एक समय में एक से ज्यादा गतिविधियों में संलग्न रहती है और हर गतिविधि में खुद को बेहतरीन साबित करना चाहती है। एक में आगे बढ़ती है, तो दूसरे में पीछे रह जाने का गिल्ट उसे सताता है। इन्हीं सब गतिविधियों के बीच जंप करते-करते वह 'फियर ऑफ मिसिंग  आउट' ज्यादा महसूस करती है।

यह 'फोमो' क्या होता  है

हम एक कैरेकटर ले लेते है समझने के लिये जैसे सुधा को ले लेते है इसे सुधा की कहनी से समझा जा सकता है। सुधा एक आईटी कंपनी में मैनेजर थी। उसकी अच्छी खासी नौकरी थी। वह कुछ दिनों पहले ही हफ्ते भर की छुट्टियों से लौटी थी। लौटते ही उसे पता चला कि उसकी चचेरी बहन की शादी तय हो गई, लेकिन वह वापस छुट्टियां नहीं ले सकती थी। दिन-रात सोशल मीडिया पर शादी के फोटोग्राफ्स अपडेट होते रहे, जिन्हें लगातार देख-देखकर वह भीतर ही भीतर कुढ़ती रही और सोचती रही कि देखो, सब कितने मजे कर रहे हैं, बस एक वही है, जो इन सारे सुखद अनुभवों से दूर बैठी नौकरी की उलझनों में फंसी है।
    कुछ समय बाद उसके पति का ट्रांसफर उसके गृहनगर में ही हो गया। उसको जॉब छोड़कर अपने पति के साथ आना पडा। वहां उसको पुरे परिवार के साथ एक और शादी अटेंड करने को मिली, जहां खूब मस्ती-धमाल हो रहा था। लेकिन, उसी समय है उसे सोशल मीडिया से अपडेट मिल रहे थे कि उसकी उस कुलीग का प्रमोशन हो गया, जो काम में उससे बेकार थी, साथ ही उसे शॉर्ट ट्रिप पर यूएस जाने का मौका भी मिल रहा है। यह देख अब सुधा जलन और निराशा से भरकर सोचने लगी, अगर उसने जॉब न छोड़ी होती, तो यह सब उसे मिला होता। उसका पूरी शादी में मूड खराब रहा...। फिर उसे फेसबुक से पता चला कि उसकी उन दो सहेलियों ने भी जॉब करनी शुरू कर दी है, जो पिछले काफी सालों से घर में बैठी थीं। अब तो वह निराशा से घिर गई कि सभी आगे बढ़ रहे हैं, काबिल होते हुए भी एक वही पीछे रह गई।
जी हां! यही है 'फियर ऑफ मिसिंग आउट यानी 'फोमो'। जब आप एक समय में वे सभी अनुभव लेना चाहती हैं, जो आपकी जान-पहचान के बाकी लोग ले रहे हैं और जब आप ऐसा नहीं कर पाती हैं, तो एक तरह के अधूरेपन से, डर, चिंता, असुरक्षा, साथ ही ईर्ष्या से घिर जाती हैं। ऐसे में आपको सबके बीच खुद के खोने का डर सताता है और लगने लगता है कि आप बाकी सभी से पीछे रह जाएंगी, आपको अपना अस्तित्व खतरे में लगने लगता है।
यह समस्या उन महिलाओं में ज्यादा पाई जाती है, जो बहुत ज्यादा भागदौड़ करती हैं, जो बहुत से अलग-अलग कामों में हाथ फंसाकर रखती हैं या प्रतिस्पर्धा वश हर वे काम करना चाहती हैं, जो उनके साथी कर रहे हैं। साथ ही जो हमेशा लाइमलाइट में रहना चाहती हैं, जो चाहती हैं कि लोग उनसे जुड़े रहें और उन्हें हर बात के लिए आदर्श की तरह देखें।

'फोमो' को कैसे पहचानें


इस बीमारी से ग्रस्त ज्यादातर महिलाएं हर वक्त अपने स्मार्टफोन से चिपकी रहती हैं और बेहद जरूरी काम करते हुए भी सोशल मीडिया पर ऑनलाइन रहती हैं। मार्निक वॉक हो, योगा हो, कुंकिंग हो या वे बाथरूम में हों, इधर मैसेज आया नहीं कि उधर खट से जवाब...। उनके कान नोटिफिकेशन पर लगातार टिके रहते हैं। पहली रिंग पर फोन उठाती हैं, भले ही वे ड्राइविंग जैसा सतर्कता वाला काम कर रही हों। फोन उठाने और अपडेट्स देखने के चक्कर में कई बार वे अपने वर्तमान के काम भी खराब कर लेती हैं। इससे ग्रस्त महिलाएं कभी खुश नजर नहीं आएंगी। उनमें एक तरह की बेचैनी, जल्दबाजी और कंफ्यूजन दिखाई देता है, क्योंकि उनके दिमाग में हर वक्त कुछ न कुछ चल रहा होता है। वे हमेशा किसी न किसी बात पर रोते हुए, चिंता करते हुए, दूसरों के बारे में डिस्कस करती हुई पाई जाएंगी, क्योंकि वे अपने वर्तमान से खुश नहीं होतीं। आभासी रिश्तों के चक्कर में वे वास्तविक रिश्तों की परवाह करना बंद कर देती हैं, इसलिए आज सोशल मीडिया रिश्तों के दरकने का प्रमुख कारण बन चुका है।

'फोमो' की पकड़ से कैसे निकलें


काउंसलर प्रतिभा जावले आपको फोमो की पकड़ से मुक्त होने के लिए कुछ सुझाव दे रही हैं।
अपना ध्यान वर्तमान की गतिविधियों पर केंद्रित रखें। रोजमर्रा के कामों को आराम से पूरा समय लेकर करें। भोजन करते हुए, ड्राइविंग करते हुए, बातचीत करते हुए, प्यार करते हुए हड़बडी न दिखाएं।
  सोशल मीडिया पर अपडेट्स देखने के लिए दिन का एक समय निर्धारित करें, उसके अतिरिक्त वहां पर न जाएं। जरूरी लोगों के ही संपर्क में रहें। ऐसे लोग जो आपके लिए महत्वपूर्ण नहीं हैं, उनसे ज्यादा फ्रेंडली होने की कोशिश न करें, क्योंकि वे आपको मित्रता का सुख न देकर सिर्फ ईर्ष्या की जलन देंगे। आभासी दुनिया और वास्तविकता का फर्क समझें। अपने परिवार को और अपने वास्तविक दोस्तों को समय दें।
   इस संसार में कोई किसी काम में अच्छा है, तो कोई किसी काम में... । एक इंसान अकेला सब कुछ नहीं कर सकता, आप भी नहीं, अतः इस बात को स्वीकार करें। दूसरों की प्रसन्नता और सफलता को देखकर प्रसन्न रहें। उस समय आप जो कार्य कर रही हैं, उस पर फोकस रखें और उसे अच्छे से करें।
    बच्चे जब छोटे होते हैं, तो उन्हें मां की ज्यादा जरूरत होती है। यदि आपको उस समय करियर में कुछ समय का ब्रेक लेना पड़ रहा है, तो उसे अपनी विफलता न समझें। आपका वह समय अपने परिवार के प्रति बहुत जरूरी इन्वेस्टमेंट है। अपनी प्राथमिकताएं तय करें, यदि आपने चुना है कि वह समय आपके परिवार के लिए जरूरी है, तो उस पर  टिके रहें। कुछ समय बाद आप वापस करियर की शुरुआत कर सकती हैं। हो सकता है आप अपने पुराने कुलीग से थोड़ा पीछे रहें, लेकिन यह ध्यान रखें कि जीवन कोई रेस नहीं है, जहां लगातार दौड़ते रहना है। आपका पद आपकी सफलता, आपके सुख और संतुष्टि का पैमाना नहीं है...। अपने करियर में अतिसफल लोग भी जीवन से परेशान होकर आत्महत्या तक कर लेते हैं।
      इंसान का मन बेलगाम घोड़ा है। वह एक क्षण भर में पूरी पृथ्वी पर चक्कर लगाकर आ सकता है, लेकिन किसी इंसान के लिए फिजिकली ऐसा करना संभव नहीं है। अतः मन के साथ इच्छाओं के पीछे न दौड़ें। यथार्थ की खूबसूरती को देखें। मन जो दिखाता है, वह आभासी है, लेकिन आपका यथार्थ आपकी वास्तविकता है। यदि आप सोचती हैं कि दूसरों की नकल करके
आप खुश होंगी, तो ऐसा मात्र एक भ्रम है, क्योंकि खुशी एक मानसिक अवस्था है, जो कहीं पहुंचने से या कुछ पाने से नहीं मिलती। हां, कुछ समय के लिए आपको ऐसा लग सकता है कि आप खुश हैं, लेकिन दूसरी इच्छा पैदा होते ही वह खुशी गायब हो जाती है। इसलिए किसी दूसरे को देखकर मन में ईर्ष्या आए, तो खुद से कहें, “मैं इस पल जो हूं, जैसी हूं, अच्छी हूं, जो कर रही हूं, वही मेरे लिए अच्छा है। मैं उसमें खुश हूं।" अपनी उपलब्धियों पर स्वयं गर्व करना सीखें। अपने काम को खुद तवज्जो दें। हम कमियों को गिनने के चक्कर में अपनी खुबियों को नजरअंदाज कर देते हैं जो हमें हासिल हैं। अतः मन जब भी कमी की भावना जगाए, तो अपनी उपलब्धियों, प्राप्तियों की लिस्ट बनाएं इसमें आपके रिश्ते, स्वास्थ्य, अच्छे दोस्त, अच्छी मेड आदि भी शामिल हो सकते हैं। उन सभी के प्रति कृतज्ञता जाहिर करें। तब आपको अहसास होगा कि आपको ऐसी बहुत-सी नेमतें हासिल हैं, जो दूसरों को नहीं।
     दुनिया में हर कोई अपना-अपना जीवन जी रहा है, हर किसी का अपना अलग मुकाम है। आपको न तो किसी को देखकर खुद को कमतर महसूस करने की जरूरत है और न ही दूसरों की नकल कर उन-सा बनने की। स्वयं पर विश्वास रखें, आप जो हैं और आज जो कर रही हैं, वह सबसे अच्छा है और आपको कोई रिप्लेस नहीं कर सकता। 'फियर ऑफ मिसिंग आउट' आभासी दुनिया में पैदा हुआ एक भ्रम है, उसमें खुद को न उलझाएं और यथार्थ जीवन का भरपूर आनंद लें।

1. प्रोफेशनल के मोर्चे पर आगे रहना है। घर को संभालकर रखना है। रिश्‍ते बचाकर रखने है। दोस्‍तों के बीच समय देना है....... कही पीछे नहीं रहना है। हर गतिविधियों में खुद को बेहतरीन साबित करने के बीच एक डर उपजता है.... खुद को खो देने का डर 'Fear Of Missing Out'


2. यदि आप सोचती है कि दुसरों की नकल करके आप खुश होगी तो यह मात्र भ्रम है । खुशी एक मानसिक अवस्‍था है जो कही पहुचने से या कुछ पाने से नही मिलती है।

फोमो की समस्या को बढ़ाने में सोशल मीडिया का बहुत बड़ा हाथ है, क्योंकि सोशल मीडिया से आपको बाकी लोगों के बारे में पल-पल की जानकारी मिल रही होती है कि वे इस वक्त क्या कर रहे हैं? और वह आपको हमेशा खुद से बेहतर नजर आता है, क्योंकि सोशल मीडिया पर लोग अपनी प्राप्तियों, उपलब्धियों को बढ़ा-चढ़ाकर आर्कषक तरीके से जो पेश करते हैं। कहते हैं न कि दूसरे की थाली में हमेशा ज्यादा घी दिखता है, उन्हें देखकर आपको लगता है कि आपकी बाकी सहेलियां बहुत एंजॉय कर रही हैं, घूम-फिर रही हैं,सफलता पा रही हैं, जबकि आप उन सबसे पीछे छूटती जा रही हैं। इस पीछे छूटने के डर को ही मनोवैज्ञानिको ने 'फियर ऑफ मिसिंग आउट' नाम दिया है, जो आजकल बहुतायात में पाया जा रहा है।
कारण- पहले आपको व्यक्तिगत रुप से कुछ लोगों की उपलब्धियों के बारे में ही पता चलता था, अत: ईर्ष्या का दायरा कम रहता था। मगर, आजकल आप सोशल मीडिया पर अपनी बचपन की स्कूल फ्रेंड को भी बरसों बाद खोज निकालती हैं और जान जाती हैं कि उसकी लाइफ कितनी अच्छी चल रही है, जबकि आपकी नजर में, आपकी नहीं...। इसलिए वे महिलाएं 'फोमो' से ज्यादा ग्रस्त होती हैं, जो हर वक्त सोशल मीडिया पर सक्रिय रहती हैं। वे दूसरों की जिंदगी में इतना घुस जाती हैं कि उन्हें अपनी जिंदगी को देखने-समझने का मौका ही नहीं मिलता। खासकर ऐसी महिलाएं,जो पहले वर्किंग थीं, लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण कारण उन्हें जॉब छोड़नी पड़ी, वे जब सोशल मीडिया के द्वारा अपने सहकर्मियों को आगे बढ़ता देखती हैं, तो बहुत ज्यादा फियर ऑफ मिसिंग आउट महसूस करती हैं, भले ही उस समय वे उनका अपना चुनाव हो, फिर भी...। हर वक्त दूसरों को देखकर खुद में कमी महसूस करना यह एक बीमारी बन जाती है।

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