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2020-12-17

bache bistar gila kyun karte hain | bache bistar gila kare to kya kare


बच्चे बिस्तर गीला करे तो क्या करें, या बच्चे बिस्तर गीला ना करे घरेलू उपाय?


बच्चे की उम्र बढ़ने के बाद भी

रात्रि में बिस्तर गीला हो जाए,

तो माता-पिता के लिए यह

चिंता का विषय हो जाता है...



बचपन में अक्सर शिशु बिस्तर पर सूसू करते

हैं। आमतौर पर पांच से छह वर्ष की उम्र तक

आते-आते वे बिस्तर गीला करना बंद भी कर

देते हैं। कई बार बच्चों का बिस्तर गीला करना

चिंता का विषय बन जाता है, जब वे छह-

सात वर्ष की आयु के बाद भी ऐसा करते हैं।

शोध बताते हैं कि पांच साल से ज्यादा आयु

के करीब 20 फीसदी बच्चे नींद में पेशाब

करने की बीमारी से ग्रसित होते हैं। 10 साल

से ज्यादा आयु के पांच फीसदी और 18 वर्ष

से ज्यादा आयु के एक से दो फीसदी बच्चे

बेड वेटिंग, यानी बिस्तर गीला करते हैं। अपने

देश में 5 से 12 साल की आयु के लगभग

7.61-16.3 प्रतिशत बच्चे नींद में पेशाब

करने से पीड़ित हैं। यह समस्या लड़किय के

मुकाबले लड़कों में अधिक पाई जाती है।


बेड वेटिंग है क्या?


वस्तुतः विस्तर गीला करने की समस्या को दो

वर्गों में बांटा जा सकता है- प्राइमरी बेड

वैटिंग और सेकेंड्री बेड वेटिंग। प्राइमरी

बेड वेटिंग में बच्चा शिशुपन से 5 वर्ष

तक बिस्तर गीला करता है। सेकेंडी बेड

वैटिंग में बच्चा कुछ सालों तक बिस्तर

गीला करने के बाद लगभग छह महीनों

के लिए बेड वेटिंग बंद कर देता है,

लेकिन यह समस्या फिर शुरू हो जाती है।

प्राइमरी बेड वेटिंग के कारण कुछ बच्चों का

मूत्राशय सामान्य से बहुत छोटा होता है। ऐसे

में बच्चों का पेशाब पर नियंत्रण नहीं रह पाता।

अधिक लिक्विड पदार्थों का सेवन मूत्राशय पर

दबाव बढ़ाता है और बच्चे बिस्तर गीला कर

देते है। इसके अलावा एंटीडाइयूरेटिक हार्मोन

का काम शरीर में पेशाब पर नियंत्रण रखना है

इसकी कमी से भी बच्चों में बेड वेटिंग की

समस्या होती है। कई बार नींद अत्यधिक गहरी

होने से बच्चों को मूत्राशय पर दबाव का पता

नहीं चल पाता और वे बिस्तर गीला कर देते हैं।

सेकेंड्री बेड वेटिंग के कई कारण हो सकते हैं।

जैसे- मूत्र नलिका में संक्रमण, जिसे यूरिनरी

ट्रैक इंफैक्शन कहते हैं। बच्चों में डायबिटीज,

कब्ज, पिनवर्म, थाइराइड हार्मोन का बढ़ना या

फिर स्लीप एपनिया से पीड़ित होने पर। इसके

अलावा बच्चा तनाव या डिप्रेशन से पीड़ित हो

तो भी बेड वेटिंग से ग्रसित हो सकता है।



बच्चों में बेड-वेटिंग का सही कारण पता करने के लिए सबसे पहले संबंधित चिकित्सक

से परामर्श लें। फिर भी कुछ उपाय बेड-वेटिंग से बचने के लिए किए जा सकते हैं।

बच्चों को टॉयलेट ट्रेनिंग दें। रात में 12 और 01 बजे एक बार बच्चे को पेशाब जरूर

कराएं, क्योंकि बच्चे एक बार में पूरा पेशाब नहीं करते, इससे उनका ब्लैडर पूरा खाली

नहीं हो पाता। ज्यादा खेलने वाले बच्चों को दिन में एक-दो घंटे अवश्य सुलाएं। कई बार

हार्मोंस की कमी से बच्चे बेड-वेटिंग करते हैं। इसके लिए हर्मोन की टेबलेट और नोजल

ड्रॉप्स आती हैं, जिनका इस्तेमाल डॉक्टर से परामर्श के बाद ही करना चाहिए।




घरेलू उपचार


दिन में जब भी बच्चा पेशाब

करना चाहे तो उसे 10-15

मिनट के लिए नियंत्रण

रखना सिखाए। इससे

उसके मूत्राशय की क्षमता

धीरे-धीरे बढ़ने लगेगी। हो

सकता है कि इस अवधि में

बच्चा एक-दो बार कपड़े

गीले कर ले. लेकिन उसे

डॉटने के स्थान पर

समझाएं। क्रैनबेरी जूस को

बेड-वेटिंग के लिए सबसे

प्रभावी उपाय माना जाता है।

क्रैनबेरी जूस रात में सोने

से ठीक पहले लिया जाता

है। बच्चे के

दूध, सरेलेक या

चोकोस या आइसक्रीम के

ऊपर दालचीनी पाउडर

डालकर उसे खिला सकती

है। यूरिनरी ट्रैक्ट इंफैक्शन

के लिए एक गिलास पानी में

दो चम्मच सेब का सिरका

मिलाकर पिलाएं। सेकंडरी

बेड वेटिंग में नाश्ते के बाद

एक चम्मच आंवला जूस

पिला सकती हैं। कब्ज दूर

करने के लिए एक गिलास

गुनगुने पानी में एक चम्मच

शहद मिलाकर सुबह खाली

पेट पिलाए। रात को सोने से

पहले भी आधा चम्मच शहद

बच्चे को चटाए।


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