केसर की खेती ya केसर इतना महंगा क्यों है
कश्मीर की खुशनुमा वादियों में केसर की
खुशबू न सिर्फ फिजाओं में बिखरी हुई है,
बल्कि इससे कितने ही घरों के चूल्हे भी जलते
रहे हैं। करीब दो हजार साल से भी ज्यादा
पुरानी केसर की खेती यहां आज भी उसी
पारंपरिक तरीके से अंजाम दी जाती है। शायद
यही वजह है कि विश्व में सबसे उम्दा किस्म
का केसर उगाने का सेहरा कश्मीर के ही सिर
है। हालांकि यह काम मशक्कत भरा है। करीब
एक पाउंड (लगभग 454 ग्राम) केसर के लिए
करीब 75 हजार फूलों को चुनना पड़ता है।
केसर के जामुनी रंग के फूलों के बीच लाल
रंग के रेशे से उम्दा किस्म का केसर निकलता
है। इन फूलों को एक सप्ताह तक सूरज की
रोशनी में सुखाकर डिब्बों में बंद कर दिया जाता
है। एक किलो केसर की कीमत करीब एक से
तीन लाख रुपये तक होती है। इसलिए इसे
'लाल सोना' भी कहा जाता है। भारत के अलावा
यह ईरान, पाकिस्तान, स्पेन में भी उगाया जाता
है। वहीं तजुर्बे के तौर पर अब इसकी किस्में
उत्तराखंड के उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ जैसे क्षेत्रों
में भी बोई जा रही हैं। इसका बीज करीब 10 से
15 वर्षों तक जीवित रहता है। कश्मीर की
पारंपरिक केसर वाली चाय हो या भारत के
पारंपरिक पकवान। इन व्यंजनों में केसर के
रंग और खुशबू की अहमियत आज भी
बरकरार है। केसर में 'क्रोसिन' नाम का तत्व
होता है, जो बुखार को दूर करने में कारगर
माना जाता है। पेट और त्वचा संबंधी परेशानियों
को दूर करने के अलावा केसर को स्मरण
शक्ति और शारीरिक स्फूर्ति के लिए भी बेहतर
माना जाता है। भले ही पिछले कुछ सालों से
कश्मीर आतंकवाद के साये में हो, इसके
बावजूद केसर की खुशबू न सिर्फ वादियों को
ही, बल्कि पूरी दुनिया को अपनी खुशबू से
दीवाना बनाए हुए है।
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