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2022-03-05

विज्ञान और तकनीकी विषय पर निबंध हिंदी में - science and technology essay topics 200 words in hindi

विज्ञान और तकनीक पर निबंध


science and technology kya hai?



विज्ञान और तकनीक का आज किसी भी देश की

आर्थिक समृद्धि में अहम रोल है।अपने तकनीकी ज्ञान

केबलपरकमसंसाधनोंवालेदेशभी अपनी अलग

पहचानबनारहेहैं।परसबसेयुवाराष्ट्रहोने और

साइंसकी अहमियतजानने-समझने के बावजूद

हमस्कूलों,कॉलेजों,शोधसंस्थानोंसेलेकरबच्चों,

किशोरोंऔरयुवाओंतक में विज्ञान औरतकनीक

कोलेकरपर्याप्त उत्साहनहींजगापारहेहैं।आखिर

क्यों?विचारकररहेहैं


'तकनीक की तरक्की की बदौलत

आज हम सभी के हाथों में स्मार्टफोन

के रूप में ऐसे उन्नत डिवाइसेज हैं,

जिनकी मदद से दुनिया के किसी भी कोने से

-किसी के साथ सीधा संवाद किया जा सकता

है और वह भी एक-दूसरे को उसी पल साक्षात

देखते हुए। विज्ञान और तकनीक की बदौलत

हमारा जीवन लगातार उन्नत होता जा रहा है।

हाल में जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में हिस्सा लेते

हुए भारतीय मूल के नोबेल विजेता और कैंब्रिज

विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बैंकी रामकृष्णन ने

श्री विज्ञान पर आधारित एक महत्वपूर्ण सत्र में

जोर देकर कहा कि विज्ञान और तकनीक ही

आज हमारी आर्थिक समृद्धि के कारण बने हुए

हैं। सिंगापुर और स्विट्जरलैंड जैसे दुनिया के

+ कई देश संसाधन कम होने के बावजूद तकनीकी

ज्ञान की बदौलत बाकी देशों से काफी आगे हैं।

विज्ञान केवल समृद्धि ही नहीं लाता, बल्कि इससे

हमारा जीवन भी बेहतर होता है। अमेरिका और

यूरोप विज्ञान में लगातार काम करने की वजह

से ही चीन और भारत से काफी आगे मिकल

गए हैं। बैंकी के अनुसार, हम सभी को विज्ञान

का आनंद लेना चाहिए। यह विडंबना ही है कि

विज्ञान और तकनीक का महत्व समझने और

इससे लाभान्वित होने के बावजूद हमारे देश

को अभी इस दिशा में काफी कुछ करने की

जरूरत है, स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों,

शोध संस्थानों से लेकर औद्योगिक संस्थानों

तक में। हालांकि इस दिशा में चिंता किए जाने

के बावजूद विज्ञान और तकनीक के प्रोत्साहन

की दिशा में सरकार और संस्थानों की तरफ

से कुछ उल्लेखनीय होता नहीं दिखता। इस

बारे में दो उदाहरणों पर गौर करने की जरूरत

है। दिसंबर माह में मेघालय के ईस्ट जयंतिया

जिले में लाइटेन नदी के नजदीक एक अवैध

गहरी कोयला खदान में पानी भरने से 13 श्रमिक




फंस गए थे। इस बारे में खबर फैलने के बाद

एनडीआरएफ, एसडीआरएफ की टीमें महीने

भर की खोज के बावजूद उनमें से किसी को

निकाल नहीं पाईं। हां, करीब एक महीने बाद अब

केवल एक मजदूर का शव मिलने की खबर

आई है। वहीं, एक दूसरी घटना का उदाहरण

देखें, जिसे पिछले साल जुलाई में थाईलैंड में

सारी दुनिया ने देखा-सुना था। वहां फुटबॉल

के 12 किशोर खिलाड़ी अपने कोच नोपराट के

साथ जंगल में स्थित एक सूखी गुफा में उनमें

से एक का जन्मदिन सेलिब्रेट करने गए थे।

गुफा में अचानक बरसात का पानी भर जाने

से सभी उसमें फंस गए। गुफा के बाहर बच्चों

की साइकिलें मिलने से उनके वहां होने का पता

चला। थाईलैंड की सरकार ने उन्हें वहां से जिंदा

निकालने के लिए अपने सारे संसाधन झोंक

दिए। विदेश तक से विशेषज्ञ बुलाए गए। और

आखिरकार 18 दिन बाद उन सभी को जिंदा

निकाल लिया गया। यह सुखद घटना इंसानियत

की भावना को महसूस करने और तकनीक के

बेहतर इस्तेमाल का उदाहरण है। इसके विपरीत

हम सब आए दिन अपने शहरों में मेनहोल की

सफाई करने वाले मजदूरों के जहरीली गैस की

चपेट में आकर मरने की घटनाएं अक्सर पढ़ते

हैं। देशभर में सैकड़ों श्रमिकों के काल कवलित

होने के बाद अभी भी इस काम में पूरी तरह से

तकनीक का इस्तेमाल न होना व्यथित करता है।

सबसे युवा देश, पर साइंस में पीछे: दुनिया

का सबसे युवा देश होने पर हम सभी गर्व महसूस

करते हैं। हमारे आइटी इंजीनियरों के बिना दुनिया

की कोई कंपनी तेजी से आगे बढ़ने की कल्पना

नहीं कर पाती। पर हमारे प्रधानमंत्री तक कई बार

यह आह्वान कर चुके हैं कि हमारे युवाओं को

विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में मौलिक खोज

के लिए आगे आना चाहिए। आखिर क्या कारण

है कि गूगल, फेसबुक, वाट्सएप, एपल, टेस्ला





जैसी कंपनियां और इस तरह की नई खोज

हमारे देश में नहीं दिखती? आखिर क्यों देश

के वैज्ञानिकों, डॉक्टरों, इंजीनियरों को नोबेल

से वंचित रहना पड़ जाता है?

प्रोत्साहन की जरूरत : बेशक हमारे देश में

इसरो, डीआरडीओ, आइएआरआइ, आइटीआइ

जैसे कई संस्थान हैं, जो अपने काम और पहल

से दुनियाभर में जाने जाते हैं, लेकिन क्या कारण

है कि भाभा, कलाम जैसे वैज्ञानिकों की संख्या

हमारे देश में गिनती की है? आज के बच्चे

आइएएस और इंजीनियर या डॉक्टर तो बनना

चाहते हैं, पर आपने सोचा है कि कितने बच्चे

वैज्ञानिक बनना चाहते हैं? दरअसल, हम सभी

तकनीक के फायदे तो पूरा उठाना चाहते हैं, पर

बच्चों का रुझान होने के बावजूद कोई उन्हें इस

दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित

नहीं करता। न तो माता-पिता, न अध्यापक और

न ही संस्थाएं व सरकार। हमारे यहां स्कूल और

कॉलेज स्तर पर भी बच्चों को इस दिशा में रुचि





लेने और आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त रूप से

प्रोत्साहित नहीं किया जाता।

बचें भेड़चाल से: आप सबने भेड़चाल वाली

कहावत जरूर सुनी होगी। यह कहावत हमारे

बीच उन लोगों पर लागू होती है, जो दूसरों की

देखादेखी या उनका अनुसरण करते हैं, बेशक

उन्हें बाद में पछताना पड़े। होना तो यह चाहिए

कि बच्चों की रुचि और पसंद को जान-समझ

कर उन्हें उसी दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित

किया जाए, ताकि वे आगे चलकर उसका लुत्फ

भी उठाएं और अपनी अलग पहचान भी बनाएं।

हमारे-आपके बीच ज्यादातर लोग अपनी नौकरी

के बीच में पहुंचकर इसीलिए असंतुष्ट होकर

कुढ़ने लगते हैं, क्योंकि वह कभी उनकी पसंद

का काम रहा ही नहीं। वह तो सिर्फ परिवार या

दोस्तों के दबाव में या उनका अनुसरण करते

हुए उस काम में लग गए। या फिर बिना किसी

मार्गदर्शन के खुद ढलान की ओर बहते पानी की

तरह जिधर रास्ता मिला, उधर बढ़ गए।शुरुआत

में उन्हें इसका ज्यादा एहसास नहीं हुआ, लेकिन

कुछ वर्षों के बाद जब उन्हें अपने काम से

उकताहट होने लगती है, तब उन्हें लगता है कि

काश अपनी पसंद के किसी काम को चुना होता,

तो शायद यह नौबत नहीं आती।

समझें अपनी जिम्मेदारी: विज्ञान और तकनीक

को व्यापक स्तर पर बढ़ावा देने के लिए परिवार,

स्कूल, संस्थानों, सरकार हर किसी को अपनी

जिम्मेदारी समझते हुए ईमानदार और सक्रिय

प्रयास करने होंगे। माता-पिता अपने बच्चे के

रुझान को समझते हुए उसे उसी दिशा में आगे

बढ़ाने में मदद करें। स्कूल केवल लेबोरेटरी

के नाम पर खानापूरी करने की बजाय अपने

विद्यार्थियों की जिज्ञासा-उत्सुकता को बढ़ाने

और उसे शांत करने की दिशा में पहल करें। हो

सके, तो खेतों, अभयारण्यों, नदियों, समुद्रों में ले

जाकर उन्हें व्यावहारिक अनुभव कराएं। साइंस

ओलंपियाड जैसी प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने

के लिए प्रोत्साहित करें।




सीखने योग्य बातें


हमारे प्रधानमंत्री तक कई बार

यह आह्वान कर चुके हैं कि हमारे

युवाओं को विज्ञान और तकनीक

के क्षेत्र में मौलिक खोज के लिए

आगे आना चाहिए।

आज के बच्चे आइएएस और

इंजीनियर या डॉक्टर तो बनना

चाहते हैं, पर आपने सोचा है कि

कितने बच्चे वैज्ञानिक बनना

चाहते हैं?

• बच्चों की रुचि और पसंद को

जान-समझ कर उन्हें उसी दिशा में

बढ़ने के लिए प्रेरित किया जाए।


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