सेमीकंडक्टर चिप डिवाइस क्या होता है इन हिंदी?
छोटा-सा दिखने वाला सेमी कंडक्टर यानी चिप भले ही आपके लिए सामान्य-सा दिखने वाला एक इलेक्ट्रानिक टूल हो, लेकिन इसने कई इंडस्ट्री की रफ्तारपर ब्रेक लगा दिया है। आज आटो इंडस्ट्री होया फिर मोबाइल, हर जगह चिप की कमी को लेकर चिंता है। हालांकि अब ताइवान की मदद से भारत में चिप बनाने की तैयारी शुरु होने वाली है। क्यों इतने उपयोगी हैं ये चिप और क्या है इनका काम...
सेमीकंडक्टर क्या है?
इन दिनों सेमीकंडक्टर यानी चिप की कमी से आटो और मोबाइल इंडस्ट्री परेशान
है। कंपनियों के प्रोडक्शन पर भी असर
हो रहा है। सेमीकंडक्टर किसी भी
इलेक्ट्रानिक डिवाइस के लिए ब्रेन की
तरह है। अगर चिप न हो तो फिर डिवाइस
अधूरा है। अगर कार की ही बात करें,
तो इसमें अलग-अलग कार्यों के लिए
500-1500 चिप्स का उपयोग होता है।
हालांकि भविष्य में इस समस्या को हल
करने के लिए भारत और ताइवान के
बीच एक समझौते पर बातचीत चल रही
है, जिसके तहत भारत में ही चिप का
प्रोडक्शन किया जाएगा। इसके अलावा,
सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री को विकसित करने
के मकसद से आइआइटी मंडी हाई
वाल्यूम सेमीकंडक्टर चिप मैन्यूफैक्चरिंग
2021 के लिए इंटरनेशनल टेक्नोलाजी
रेडीनेस कार्यशाला आयोजित कर रहा है।
आइआइटी मंडी के पूर्व प्रोफेसर
प्रो. केनेथ गोंजाल्विस के मुताबिक, भारत
का इलेक्ट्रानिक्स उद्योग 65/45/32/28
एनएम टेक्नोलाजी नोड चिप के आयात
पर अत्यधिक निर्भर है। 2025 तक
इसकी मांग कई गुना बढ़ने की उम्मीद
है। भारत में सर्वश्रेष्ठ चिप डिजाइनर और
उत्कृष्ट शैक्षिक संस्थान दोनों हैं, लेकिन
इस सामूहिक ज्ञान का लाभ लेकर फैब
इकोसिस्टम बनाने के काम में अभी भी
हमें काफी काम करने की जरूरत हैं।
क्या करता है सेमीकंडक्टर : सेमीकंडक्टर
का इस्तेमाल करंट को नियंत्रित करने में
किया जाता है। सेमीकंडक्टर को इंटीग्रेटेड
सर्किट (आइसी) या फिर माइक्रोचिप्स भी
कहा जाता है। यह प्योर इलिमेंट्स यानी
शुद्ध तत्वों से बना होता है। विशेष रूप से
सेमीकंडक्टर सिलिकान से बने होते है।
आजकल चिप्स बनाने के लिए गैलियम
अर्सेनाइड या कैडमियम सेलेनाइड का
इस्तेमाल भी किया जाने लगा है। चिप्स
को आप छोटे-छोटे दिमाग कह सकते हैं,
जो डिवाइस की अलग-अलग चीजों को
चलाते हैं। इन्हें माइक्रोसर्किट्स में फिट
किया जाता है। अगर ये न हों, तो स्मार्ट
इलेक्ट्रानिक्स डिवाइस नहीं चल सकते।
जीवन का हिस्सा बन गए चिप्स : हमारी
जेब में मौजूद स्मार्टफोन से लेकर
इंटरनेट को संचालित करने वाले विशाल
डाटा केंद्रों, इलेक्ट्रिक स्कूटर से लेकर
हाइपरसोनिक विमान तक, पेसमेकर
से लेकर मौसम की भविष्यवाणी करने
वाले सुपर कंप्यूटर तक सेमीकंडक्टर के
विना अधूरे हैं। अमेरिका में विज्ञानियों
ने 1947 में पहला सिलिकान ट्रांजिस्टर
बनाया था। इससे पहले कंप्यूटिंग मशीनें
वैक्यूम ट्यूबों द्वारा परफार्म करती थीं, जो
न सिर्फ धीमी, बल्कि भारी भी होती थीं,
लेकिन सिलिकान ने सब कुछ बदल दिया।
सिलिकान के ट्रांजिस्टर काफी छोटे होते
हैं, जिन्हें माइक्रोचिप पर आसानी से फिट
किया जा सकता है। अगर सेमीकंडक्टर न
हो तो आज की स्थिति में कम्युनिकेशन,
हेल्थकेयर, मिलिट्री सिस्टम, ट्रांसपोर्टेशन,
क्लीन एनर्जी, गैजेट्स का उपयोग करना
मुश्किल हो जाएगा। हालांकि पहले भी
इलेक्ट्रानिक डिवाइस बनते थे, लेकिन वे
आज की तरह स्मार्ट नहीं होते थे। चिप
की वजह से डिवाइस छोटे और स्मार्ट
हो गए हैं। सेमीकंडक्टर डाट ओआरजी
के मुताबिक, आज दुनिया भर में दैनिक
उपयोग में 100 बिलियन से अधिक
इंटीग्रेटेड सर्किट का उपयोग होता है।
छोटा, पर है बड़ा जटिलः चिप का डिजाइन
आमतौर पर अमेरिका में और उत्पादन
ताइवान में होता है। असेंबलिंग और
रिग चीन या फिर दक्षिण-पूर्वी एशिया
के देशों में होती है। इसे तैयार करने की
प्रक्रिया भी जटिल है। चिपमेकिंग मशीनों
में सिलिकान डालने से पहले एक बेहद
साफ कमरे की आवश्यकता होती है।
सिंगल ट्रांजिस्टर एक वायरस से कई
गुना छोटे होते हैं। धूल कण का एक
छोटा हिस्सा इसे बर्बाद कर सकता है।
अधिकांश चिप्स सर्किट के समूह होते हैं,
जो साफ्टवेयर चलाते हैं और इलेक्ट्रानिक
डिवाइस को नियंत्रित करते हैं। चिप
कंपनियां अधिक से अधिक ट्रांजिस्टर को
चिप्स में पैक करने की कोशिश में लगी हैं,
ताकि डिवाइस की परफार्मेंस बेहतर होने
के साथ एनर्जी इफिशियंट भी हो। इंटेल
के पहला माइक्रोप्रोसेसर-4004 को 1971
में जारी किया गया था। इसमें 10 माइक्रोन
साइज या एक मीटर के एक करोड़वें हिस्से
के नोड में 2,300 ट्रांजिस्टर थे। अब
कंपनियां पांच नैनोमीटर साइज यानी एक
मीटर के पांच अरबवें हिस्से (एक औसत
मानव बाल 100,000 नैनोमीटर चौड़ा
होता है) के बराबर चिप बनाने लगी हैं।
ऐसे तैयार किए जाते हैं चिप
● सेमीकंडक्टर में इस्तेमाल होनेवाला
सबसे शुद्ध सिलिकान क्वार्ट्ज राक में पाया
जाता है। दुनिया में सबसे शुद्ध क्वार्ट्ज
अमेरिका के उत्तरी कैरोलिना में स्यूस पाइन
के पास के खदान से आता है।
● स्यूस पाइन के आसपास की चट्टाने
अद्वितीय है। उनमें सिलिका की मात्रा अधिक
होती है । 1980 के दशक में सेमीकडक्टर
उद्योगका उदय हुआ तो क्वार्ट्ज सफेद
सोने में बदल गया ।क्वार्जसिलिका से
बना एक कटोर, क्रिस्टलीय खनिज है।
● सिलिकान पाउडरको चिप्स में बदलने
के लिए सामग्री को एक भट्टी में 1,400
डिग्री सेल्सियस परपिघलाया जाता है और
बेलनाकारसिल्लियां बनाई जाती हैं। फिर
इन्हें वेफर्स नामक डिस्क में काट दिया जाता
है,जैसे कि खीरेको काटते हैं।
● इसमें हवा को लगातार फिल्टरकिया
जाता है औरबहुत कम लोगों को अंदरजाने
की अनुमति दी जाती है।एक या दो कर्मचारी
हीचिप उत्पादनलाइन परदिखाई देते हैं और
वे सिक्योरिटी उपकरणों में सिरसे पैरतक
लिपटे हुए होते हैं।
● सिलिकान के वेफर्स को मनुष्यों द्वारा
छुआ नहीं जा सकता या हवा के संपर्क में
नहीं लाया जा सकता।चिप्स में सामग्री की
100 परतें होती हैं। इनमें से कुछपरतें सिर्फ
एक परमाणु जितनी पतली होती हैं । साफ-
सुथरे कमरे के अंदर अधिकांश आपरेशन
स्वचालित रूप से वैक्यूम-सील्डरोबोटद्वारा
किए जाते हैं। डिजाइन के आधारपरप्रत्येक
चिप को बनाने के लिए 1,000 और 2,000
स्टेपकी आवश्यकता हो सकती है।
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