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2022-05-07

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सूर्य नमस्कार आसन करने की विधि, लाभ व फायदे


सूर्य नमस्कार आसन कैसे किया जाता है?


शक्तिमान व निरोगी तन प्रदान करने वाला माना जाता है सूर्यदेव को। योग मे सुर्य नमस्कार को विशिष्ट स्थान दिया गया है, यह योग का प्रारंभ भी है और शरीर का सम्पुर्ण व्यायाम भी........


5 प्रमुख लाभ

सुडौल शरीर, मजबुत मेरुदंड, बेहतर पाचन, एकाग्र मन, विश्रांती 



तन-मन जगाएं 12 मुद्राएं पहली सुबह दैनिक क्रिया के बाद हल्के कपड़े पहनकर उगते. हुए सूर्य की तरफ मुंह करके सीधे खड़े हो जाएं।

इसके पश्चात दोनों हाथ नमस्कार की मुद्रा में जोड़कर आखें बंद करके अपने हाथों का सीने पर दबाव बनाते हुए हाथ की बीच वाली अंगुली को ठोढ़ी से स्पर्श कराएं।

दूसरी: गहरी सांस लेते हुए दोनों हाथों को सिर के ऊपर ले जाकर कमर से पीछे की ओर धीरे से झुकते हुए सांस रोककर जितना संभव हो सके, रुकें।

तीसरी: इसको पादहस्त आसन भी कहते हैं। इसमें सांस को धीरे-धीरे छोड़ते हुए आगे की ओर झुककर दोनों हाथों को पंजों के बगल में रखते हैं। इसके बाद माथे को घुटनों से लगाते हैं।

चौथी: इसमें बाएं पैर को पीछे की तरफ ले जाते हैं। इसके बाद दाहिने पैर को घुटने से 90 अंश पर मोड़ते हुए दोनों हाथों को पंजे के बगल में जमीन पर रखते हैं। इस दौरान निगाह सामने और गर्दन सीधी रखें।

पांचवी: दोनों हाथों को सांस भरते हुए ऊपर की ओर उठाएं। इसके पश्चात कमर से ज्यादा से ज्यादा पीछे की तरफ झुकते हुए सांस रोककर अपनी क्षमता अनुसार रुकें।

छठवीं: सांस छोड़ते हुए दोनों हाथों को फिर से पैर के बगल में रखते हैं और फिर उछलते हुए पैरों की स्थिति में परिवर्तन करते हैं। इसमें आगे वाले पैर को पीछे और पीछे वाले पैर को आगे ले जाकर सामने की ओर देखते हैं।

सातवी: इसमें भी पांचवीं की तरह ही गहरी सांस भरते हुए दोनों हाथों को सिर के ऊपर से आकर कमर से पीछे की ओर झुककर जितना संभव हो सके रुके।


आठवी: इसमें सांस छोड़ते हुए दोनों हाथों को पैर के बगल से रखकर आगे वाले पैर को भी पीछे ले जाते हैं। पैरों के घुटने व रीढ़ को सीधा रखकर पैर की एड़ियों को जमीन से लगाकर रखना है।

नौवी: इसमें सांस छोड़ते हुए दोनों हाथों को कंधे के बगल में रखते हुए सीने को जमीन की तरफ ले जाते हैं। इसमें मस्तक, कंधा, हाथ, सीना, दोनों घुटने व पैर के पंजे जमीन से स्पर्श करते हैं, लेकिन पेट जमीन से स्पर्श नहीं होना
चाहिए। इस अवस्था को अष्टांग प्रतिपादासन कहते हैं।

दसवीं: सूर्य नमस्कार की इस अवस्था को सर्पासन भी कहा जाता है। इसमें दोनों हाथ कंधे के बगल में रखकर सांस भरते हुए नाभि से आगे वाले भाग को ऊपर उठाते हुए कमर से पीछे की ओर मोड़ देते हैं। इसके पश्चात आसमान को निहारते हुए रुकते हैं।

ग्यारहवीं: इसमें सांस छोड़ते हुए वापस आते हुए उछल कर माथे को पैर के घुटनों से स्पर्श कराते हैं और तीसरी अवस्था की तरह इस स्थिति में भी सामर्थ्य अनुसार रुकते हैं।

बारहवीं: सीधे होकर दोनों हाथों को गोलाकार घुमाते हुए नमस्कार की मुद्रा में जोड़ते हैं। इसके पश्चात सीने पर हाथों का दबाव बनाते हुए भगवान सूर्य को नमन करते हुए सामान्य अवस्था में आ जाते हैं।

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