Engineering Courses Ke Bare Mein Details
Engineering Courses Ke Bare Mein Details
Engineering Courses Kya Hota Hai?
तकनीकी
विकास के साथ इंजीनियरिंग की नई-2 शाखाए भी विकसित हो रही है
और साथ ही रोजगार के अवसर भी मिल रहे है।
दसवी या बारहवीं पास करने के बाद ज्यादातर छात्र इंजीनियरिंग करने की ही
सोचते है। लेकिन कई बार वे इस बात को लेकर दुविधा में रहते है कि इंजीनियरिंग की
कौन-2 सी शाखा उनके लिए बेहतर रहेगी। दरअसल, पपहले इंजीनियरिंग का मतलब इसकी कुछ चुनिंदा शाखाओं तक ही सीमित था ,
जैसे सिविल, मैकेनिकल, केमिकल,
इलेक्ट्रिकल और आर्किटेक्चरल। जबकि आज कंप्यूटर साइंस, एनवाॅयरमेंटल, बायो-इंजीनियरिंग एग्रीकल्चर
इंजीनियरिंग,मैरीन, नैनोटेक्नोलाॅजी,
एयरोस्पेस जैसी शाखाओं ने इसमें संभावनाओं के नये द्वार खोल दिए है।
ऐसे में इन नए कोर्सेज उनमे जुडी योग्यताओं और संभावनाओं के बारे में जानकारी होना
जरुरी है।
1.सिविल इंजीनियरिंग-(Civil Engineering)
प्राचीन काल के स्मारको से लेकर आधुनिक विशाल इमारते सिविल इंजीनियरिंग
की ही देन है। पुल, बाध, नहरें,
बंदरगाह, सडके, इमारतें
इसी शाखा से जुडे हुए है। उनके निर्माण की योजना डिजाइन तैयार करने और कार्य का
संचालन करने की जिम्मेदारी सिविल इंजीनियर की होती है।
2. केमिकल इंजीनियरिंग-(Chemical Engineering)
जटिल रोगो के लिए औषधि निर्माण हो या बडे उद्योगो के लिए रसायन निनर्माण
सभी में केमिकल इंजीनियरिंग काम आती है। मौजूदा तकनीकी युग की समस्याओं के हल के
लिए रासायनिक व भैतिक इंजीनियर सिद्धांत दसी शाखा के इंजीनियर देते है। इसमें
भौतिक और रसायन विज्ञान को एक साथ शामिल किया जाता है।
2.मैकेनिकल इंजीनियरिंग-(Mechanical Engineering)
यह उ़द्योगो के लिए औजार व तकनीकी उपकरणों के डिजाइन और निर्माण का काम
करती है। थर्मल पावर स्टेशन, एयर कंडीशनिंग उद्योग, गैस टर्बाइन, वायुयान निर्माण और बडे उद्योगो में
मैकेनिकल इंजीनियरिंग की जरुरत होती है इसका कार्य मशीनों की डिजाइनिंग और संचालन
से जुडा होता है। मोबाइल फोन से लेकर मिसाइल तक में मैकेनिकल इंजीनियरिंग का उपयोग
किया जाता है।
3.पेट्रोलियम इंजीनियरिंग-(Petroleum Engineering)
पेट्रोलियम इंजीनियरिंग में धरती की सतह या समुन्द्र के गर्भ में मौजूद
आॅयल व गैस भंडारो की खोज की जाती है। इसमें ड्रिलिंग, लाॅंिग
आॅयल फील्ड डेवलमेंट और रिजरवाॅयर इंजीनियरिंग आदि प्रक्रियाए शामिल है। रिफाइनिंग,
प्रोसेसिंग और अंत में प्रोडक्ट को बाजार के अनुरुप बनाना, पेट्रोकेमिकल इंजीनियर का काम होेता है। इस कोर्स से पीएचडी भी की जा
ससकती है। भारत में रिफाइनरी रिलायंस पेट्रोलियम के अलावा रुस और
अरब देशों में पेट्रोलियम इंजीनियरों की अधिक मांग है।
4.एयरोस्पेस इंजीनियरिंग-(Aerospace Engineering)
इसमें डिजाइन करने से लेकर कडे कडे परीक्षण तक का सारा जिम्मा एयरोस्पेस
इंजीनिययर का होता है। छात्र डिजाइन, वैलिडेशन
मैन्यूफैक्चररिंग, एयरोनाॅटिक्स से जुडी संरचनाओं और इससे
संबंद्ध प्रौद्योगिकि की अनुकृति और टेस्टिंग सीखते है। आप राॅकेट और स्पेस
क्राफ्ट से लेकर हेलिकाॅप्टर के निर्माण, परीक्षण विश्लेषण
और फ्लाइट व्हीकल के संचालन में शामिल हो सकते है। इसमें रोजगार मुख्यतः तीन
व्यापक क्षेत्रों-डिजाइन रिसर्च और मेटेंनेस में निनहित है। एयरोनाॅटिकल
इंजीनियरिंग एयरक्राफ्ट, हेलिकाॅप्टर और संबंधित गतिविधियों
उपपग्रहो , लांच व्हीकल स्पेस सिस्टम और मिसाइलों से संबंधित
है।
5.कंम्प्यूटर इंजीनियरिंग-(Computer Engineering)
कंप्यूटर सिस्टम आपरेटिंग सिस्टम साफ्टवेयर, कंप्यूटर
ग्राफिक्स, लाॅजिकल डिजाइन, माइक्रो
प्रोसेसर टेक्नोलाॅजी रोबोटिक्स का निर्माण और विकास कंप्यूटर इंजीनियर ही करते
है। आगे एमटेक और पीएचडी भी कर सकते है और स्वतंत्र लेबोरेटरीज़ में काम कर सकते
है इसमें प्रोडक्ट संबंधित नवीनता ही है मुख्य काम।
6.एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग-(Agricultural Engineering)
एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग में कृषि के लिए मशीनों का विकास, नहर, जलाशय और बाधो के जरिए जल वितरण का नियोजन और
फसल उत्पादन और सिचाई के लिए इनका उपयोग, मिट्टी का प्रयोग
और संरक्षण तकनीक तथा फूड प्रोसेसिंग शामिल है। सरकार ने भी इस बाार अपनी योजनाओं
में कृषि को खास प्रमुखता दी है। ऐसे में अगर आप कृषि में कुछ नया करना चाहते है
तो एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग कर सकते है।
7.पर्यावरण इंजीनियरिंग-(Environmental Engineering)
पर्यावरण में बढते प्रदूषण को नियंत्रित करने जैविक खाद व कीटनाशी का
निर्माण और संसाधनों के पुनः उपयोग की विधियाॅ पर्यावरण इंजीनियरिंग में विकसित की
जााती है। मीडिया द्वारा फैलाई गई जागरुकता के चलते ही इस विषय में छात्र/छात्राओं
की रुचि में इजाफा हुआ है। पर्यावरण इंजीनियर पब्लिक और प्राइवेट संक्टरों में
कंसल्टेसी कंपनियों रिसाइक्ंिलग और वेस्ट मैनेजमेंट कंपनियो में नौकरियों की राह
चुनते है। कई छात्र टरचिंग की राह भी चलते है।
8.मैरीन इंजीनियरिंग-(Marine Engineering)
मैरीन इंजीनियरिंग खासतौर से बडे जलपोतो के निर्माण और रख-रखाव से संबंधित
है। इससे संबंधित कोर्स करके आप शिपिंग काॅर्पोरेशन आफ इंडिया, नौसेना, जहाज निर्माण कंपनियों
या जहाजो का निरीक्षण करने वाली सोसाइटियों में रोजगार तलाश सकते है।
9.अंतरिक्ष इंजीनियरिंग-(Space Engineering)
भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्यौगिक संस्थान (आईआईएसटी) एक मानित
विश्वविद्यालय है, जो अंतरिक्ष विभाग के अधीन स्वायन्त निकाय
है। आईआईएसटी की स्थापना उच्च गुणवत्ता के मानव संसाधन का विकास करके अंतरिक्ष
विभाग दूसरो की आवश्यकताओं को पूरा करने के उद्देश्य से की गई थी। आईआईएसटी अंतरिक्ष
विज्ञान अंतरिक्ष प्रौद्यौगिकी और उसके अनुप्रयोगो पर विशेष ध्यान देते हुए बीटेक
और एमटेक जैसे विविध शैक्षिक कार्यक्रम प्रदान करता है।
10.सेरेमिक इंजीनियरिंग-(Ceramic Engineering)
यह इंजीनियरिंग की नई और एक उभरती हुई ब्रांच है, जिसमे
युवाओं के लिए करियर के कई विकल्प मौजूद है। इसमें आर्गेनिक, नाॅन मैटेलिक मैटीरियल्स से सेरेमिक सामान बनाने का विज्ञान और तकनीक है।
सेरेमिक सम्मान का इस्तेमाल व्यापक रुप से घरेलू बर्तनों से लेकर स्पेसक्रफ्ट मे
हीट रेजिस्टेट के रुप में होता है।
11.न्यूक्लियर इंजीनियरिंग-(Nuclear Engineering)
यह क्षेत्र डिजाइन कंस्ट्रक्शन और परमाणु रिएक्टरों के संचालन से संबंधित
है। न्यूक्लियर इंजीनियर से संबंधित विभिन्न प्रोजेक्टस जैसे एनर्जी और पावर सार्स
डेवलपमेंट, एनवायरमेंटल पाॅलिसी डिजाइन या रेडियोलाॅजी के
तत्वो को हेल्थकेयर और उद्योगो में कैसे उपयोग किया जाए की खोज पर फोकस करता है।
जहाॅ तक नौकरी की बात हैं, तो आप सरकारी एजेंसियों, राष्ट्रिय प्रयोगशालाओं चिकित्सीय उपकरण बनाने व बेचने वाली कंपनियों
हेल्थ और मेडिकल रिसर्च देश-विदेश के कई संस्थानों में टीचिंग और रिससर्च में मौके
उपलब्ध है। इसके अलावा इंजीनियरिंग की कई और भी ब्रांच है, जहाॅ
आप अपने कॅरियर की संभावनांए तलाश सकते है।
12. इलेक्ट्रिकल
इंजीनियरिंग- Electrical Engineering
विद्युत निर्माण, वितरण संबंधित उपपकरणों का परीक्षण
और उन्हे विकसित करने का काम इलंक्ट्रिकल इंजीनियर करते है। इलेट्रिकल
इंजीनियर को विद्युत निर्माण के अलावा विद्युत उपकरणो की डिजाइन
मेटेनेंस इलेक्ट्रॅानिक मोटर और वाहनों के इंजन बनाने के उद्योगो में भी रोजगार के
अववसर मिलते है। यह रोजगार के सबसे ज्यादा अवसर देती है।
योग्यता चाहिए-
इंजीनियरिंग में डिप्लोमा के लिए कम-से-कम 50 प्रतिशत
अंको के साथ 10 वीं परीक्षा में उत्तीर्ण होना चाहिए।
विभिन्न पाॅलीटेक्नीक कालेजों इंजीनियरिंग के विभिन्न विषयो में डिप्लोमा कराते
है। बैचलर डिग्री कोर्स (बीई या बीटेक) के लिए विज्ञान
वर्ग में भौतिक ं विज्ञान, रसायन विज्ञान और गणित में 50
प्रतिशत अंको के साथ 12वी उत्तीर्ण करना
अनिवार्य है। आईआईटी के लिए 60 प्रतिशत अंक चाहिए। विभिन्न
राज्य और आईआईटी इंजीनियरिंग में प्रवेश के लिए प्रवेश परीक्षा आयोजित करते है।
डिप्लोमा धारक सीधे इंजीनियरिंग के दूसरे वर्ष में प्रवेश
ले सकते है। स्नातकोत्तर कोर्स के लिए बैचलर डिग्री प्रोग्राम का सफलतापूर्वक पूरा
होना जरुरी है। उसके बाद पोस्ट ग्रजुएशन के लिए एमई या एमटेक कर सकते है। शोध या
शिक्षण में रुचि होने पर पीएचडी का विकल्प है।
सक्सेस टिप्स-
इंजीनियरिंग क्षेत्र में जानें वाले छात्र/छात्राओं को 10 वीं पास करने के बाद से ही गंभीरता से सोचना शुरु कर देना चाहिए।
एनसीईआरटी की 11 वीं व 12 वीं कक्षा का
सिलेबस पूरी तरह आत्मसात करें, गहन अध्ययन करें। आईआईटी,
एआईईईई व स्टेट पीईटी परीक्षाओं में प्रत्येक वर्ष पए सवाल आते है,
इसलिए पैटर्न को समझने की कोशिश करें। इसके साथ ही 10 वर्षो के साॅल्वड ई-पेपर को हल करना चाहिए। आप जिस भी फाॅर्मूले से सवालों
को हल कर रहे है, उसकी प्रैक्टिस बार-2 कीजिए। पढाई ग्रुप बनाकर करें। एक-दूसरे का टेस्ट लें। प्रत्येक दिन कम से
कम दो घण्टे प्रैक्टिस करें।
तकनीकी विकास के साथ इंजीनियरिंग की नई-2 शाखाए भी विकसित हो रही है और साथ ही रोजगार के अवसर भी मिल रहे है।
दसवी या बारहवीं पास करने के बाद ज्यादातर छात्र इंजीनियरिंग करने की ही
सोचते है। लेकिन कई बार वे इस बात को लेकर दुविधा में रहते है कि इंजीनियरिंग की
कौन-2 सी शाखा उनके लिए बेहतर रहेगी। दरअसल, पपहले इंजीनियरिंग का मतलब इसकी कुछ चुनिंदा शाखाओं तक ही सीमित था ,
जैसे सिविल, मैकेनिकल, केमिकल,
इलेक्ट्रिकल और आर्किटेक्चरल। जबकि आज कंप्यूटर साइंस, एनवाॅयरमेंटल, बायो-इंजीनियरिंग एग्रीकल्चर
इंजीनियरिंग,मैरीन, नैनोटेक्नोलाॅजी,
एयरोस्पेस जैसी शाखाओं ने इसमें संभावनाओं के नये द्वार खोल दिए है।
ऐसे में इन नए कोर्सेज उनमे जुडी योग्यताओं और संभावनाओं के बारे में जानकारी होना
जरुरी है।
1.सिविल इंजीनियरिंग-(Civil Engineering)
प्राचीन काल के स्मारको से लेकर आधुनिक विशाल इमारते सिविल इंजीनियरिंग
की ही देन है। पुल, बाध, नहरें,
बंदरगाह, सडके, इमारतें
इसी शाखा से जुडे हुए है। उनके निर्माण की योजना डिजाइन तैयार करने और कार्य का
संचालन करने की जिम्मेदारी सिविल इंजीनियर की होती है।
2. केमिकल इंजीनियरिंग-(Chemical Engineering)
जटिल रोगो के लिए औषधि निर्माण हो या बडे उद्योगो के लिए रसायन निनर्माण
सभी में केमिकल इंजीनियरिंग काम आती है। मौजूदा तकनीकी युग की समस्याओं के हल के
लिए रासायनिक व भैतिक इंजीनियर सिद्धांत दसी शाखा के इंजीनियर देते है। इसमें
भौतिक और रसायन विज्ञान को एक साथ शामिल किया जाता है।
2.मैकेनिकल इंजीनियरिंग-(Mechanical Engineering)
यह उ़द्योगो के लिए औजार व तकनीकी उपकरणों के डिजाइन और निर्माण का काम
करती है। थर्मल पावर स्टेशन, एयर कंडीशनिंग उद्योग, गैस टर्बाइन, वायुयान निर्माण और बडे उद्योगो में
मैकेनिकल इंजीनियरिंग की जरुरत होती है इसका कार्य मशीनों की डिजाइनिंग और संचालन
से जुडा होता है। मोबाइल फोन से लेकर मिसाइल तक में मैकेनिकल इंजीनियरिंग का उपयोग
किया जाता है।
3.पेट्रोलियम इंजीनियरिंग-(Petroleum Engineering)
पेट्रोलियम इंजीनियरिंग में धरती की सतह या समुन्द्र के गर्भ में मौजूद
आॅयल व गैस भंडारो की खोज की जाती है। इसमें ड्रिलिंग, लाॅंिग
आॅयल फील्ड डेवलमेंट और रिजरवाॅयर इंजीनियरिंग आदि प्रक्रियाए शामिल है। रिफाइनिंग,
प्रोसेसिंग और अंत में प्रोडक्ट को बाजार के अनुरुप बनाना, पेट्रोकेमिकल इंजीनियर का काम होेता है। इस कोर्स से पीएचडी भी की जा
ससकती है। भारत में रिफाइनरी रिलायंस पेट्रोलियम के अलावा रुस और
अरब देशों में पेट्रोलियम इंजीनियरों की अधिक मांग है।
4.एयरोस्पेस इंजीनियरिंग-(Aerospace Engineering)
इसमें डिजाइन करने से लेकर कडे कडे परीक्षण तक का सारा जिम्मा एयरोस्पेस
इंजीनिययर का होता है। छात्र डिजाइन, वैलिडेशन
मैन्यूफैक्चररिंग, एयरोनाॅटिक्स से जुडी संरचनाओं और इससे
संबंद्ध प्रौद्योगिकि की अनुकृति और टेस्टिंग सीखते है। आप राॅकेट और स्पेस
क्राफ्ट से लेकर हेलिकाॅप्टर के निर्माण, परीक्षण विश्लेषण
और फ्लाइट व्हीकल के संचालन में शामिल हो सकते है। इसमें रोजगार मुख्यतः तीन
व्यापक क्षेत्रों-डिजाइन रिसर्च और मेटेंनेस में निनहित है। एयरोनाॅटिकल
इंजीनियरिंग एयरक्राफ्ट, हेलिकाॅप्टर और संबंधित गतिविधियों
उपपग्रहो , लांच व्हीकल स्पेस सिस्टम और मिसाइलों से संबंधित
है।
5.कंम्प्यूटर इंजीनियरिंग-(Computer Engineering)
कंप्यूटर सिस्टम आपरेटिंग सिस्टम साफ्टवेयर, कंप्यूटर
ग्राफिक्स, लाॅजिकल डिजाइन, माइक्रो
प्रोसेसर टेक्नोलाॅजी रोबोटिक्स का निर्माण और विकास कंप्यूटर इंजीनियर ही करते
है। आगे एमटेक और पीएचडी भी कर सकते है और स्वतंत्र लेबोरेटरीज़ में काम कर सकते
है इसमें प्रोडक्ट संबंधित नवीनता ही है मुख्य काम।
6.एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग-(Agricultural Engineering)
एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग में कृषि के लिए मशीनों का विकास, नहर, जलाशय और बाधो के जरिए जल वितरण का नियोजन और
फसल उत्पादन और सिचाई के लिए इनका उपयोग, मिट्टी का प्रयोग
और संरक्षण तकनीक तथा फूड प्रोसेसिंग शामिल है। सरकार ने भी इस बाार अपनी योजनाओं
में कृषि को खास प्रमुखता दी है। ऐसे में अगर आप कृषि में कुछ नया करना चाहते है
तो एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग कर सकते है।
7.पर्यावरण इंजीनियरिंग-(Environmental Engineering)
पर्यावरण में बढते प्रदूषण को नियंत्रित करने जैविक खाद व कीटनाशी का
निर्माण और संसाधनों के पुनः उपयोग की विधियाॅ पर्यावरण इंजीनियरिंग में विकसित की
जााती है। मीडिया द्वारा फैलाई गई जागरुकता के चलते ही इस विषय में छात्र/छात्राओं
की रुचि में इजाफा हुआ है। पर्यावरण इंजीनियर पब्लिक और प्राइवेट संक्टरों में
कंसल्टेसी कंपनियों रिसाइक्ंिलग और वेस्ट मैनेजमेंट कंपनियो में नौकरियों की राह
चुनते है। कई छात्र टरचिंग की राह भी चलते है।
8.मैरीन इंजीनियरिंग-(Marine Engineering)
मैरीन इंजीनियरिंग खासतौर से बडे जलपोतो के निर्माण और रख-रखाव से संबंधित
है। इससे संबंधित कोर्स करके आप शिपिंग काॅर्पोरेशन आफ इंडिया, नौसेना, जहाज निर्माण कंपनियों
या जहाजो का निरीक्षण करने वाली सोसाइटियों में रोजगार तलाश सकते है।
9.अंतरिक्ष इंजीनियरिंग-(Space Engineering)
भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्यौगिक संस्थान (आईआईएसटी) एक मानित
विश्वविद्यालय है, जो अंतरिक्ष विभाग के अधीन स्वायन्त निकाय
है। आईआईएसटी की स्थापना उच्च गुणवत्ता के मानव संसाधन का विकास करके अंतरिक्ष
विभाग दूसरो की आवश्यकताओं को पूरा करने के उद्देश्य से की गई थी। आईआईएसटी अंतरिक्ष
विज्ञान अंतरिक्ष प्रौद्यौगिकी और उसके अनुप्रयोगो पर विशेष ध्यान देते हुए बीटेक
और एमटेक जैसे विविध शैक्षिक कार्यक्रम प्रदान करता है।
10.सेरेमिक इंजीनियरिंग-(Ceramic Engineering)
यह इंजीनियरिंग की नई और एक उभरती हुई ब्रांच है, जिसमे
युवाओं के लिए करियर के कई विकल्प मौजूद है। इसमें आर्गेनिक, नाॅन मैटेलिक मैटीरियल्स से सेरेमिक सामान बनाने का विज्ञान और तकनीक है।
सेरेमिक सम्मान का इस्तेमाल व्यापक रुप से घरेलू बर्तनों से लेकर स्पेसक्रफ्ट मे
हीट रेजिस्टेट के रुप में होता है।
11.न्यूक्लियर इंजीनियरिंग-(Nuclear Engineering)
यह क्षेत्र डिजाइन कंस्ट्रक्शन और परमाणु रिएक्टरों के संचालन से संबंधित
है। न्यूक्लियर इंजीनियर से संबंधित विभिन्न प्रोजेक्टस जैसे एनर्जी और पावर सार्स
डेवलपमेंट, एनवायरमेंटल पाॅलिसी डिजाइन या रेडियोलाॅजी के
तत्वो को हेल्थकेयर और उद्योगो में कैसे उपयोग किया जाए की खोज पर फोकस करता है।
जहाॅ तक नौकरी की बात हैं, तो आप सरकारी एजेंसियों, राष्ट्रिय प्रयोगशालाओं चिकित्सीय उपकरण बनाने व बेचने वाली कंपनियों
हेल्थ और मेडिकल रिसर्च देश-विदेश के कई संस्थानों में टीचिंग और रिससर्च में मौके
उपलब्ध है। इसके अलावा इंजीनियरिंग की कई और भी ब्रांच है, जहाॅ
आप अपने कॅरियर की संभावनांए तलाश सकते है।
12. इलेक्ट्रिकल
इंजीनियरिंग- Electrical Engineering
विद्युत निर्माण, वितरण संबंधित उपपकरणों का परीक्षण
और उन्हे विकसित करने का काम इलंक्ट्रिकल इंजीनियर करते है। इलेट्रिकल
इंजीनियर को विद्युत निर्माण के अलावा विद्युत उपकरणो की डिजाइन
मेटेनेंस इलेक्ट्रॅानिक मोटर और वाहनों के इंजन बनाने के उद्योगो में भी रोजगार के
अववसर मिलते है। यह रोजगार के सबसे ज्यादा अवसर देती है।
योग्यता चाहिए-
इंजीनियरिंग में डिप्लोमा के लिए कम-से-कम 50 प्रतिशत
अंको के साथ 10 वीं परीक्षा में उत्तीर्ण होना चाहिए।
विभिन्न पाॅलीटेक्नीक कालेजों इंजीनियरिंग के विभिन्न विषयो में डिप्लोमा कराते
है। बैचलर डिग्री कोर्स (बीई या बीटेक) के लिए विज्ञान
वर्ग में भौतिक ं विज्ञान, रसायन विज्ञान और गणित में 50
प्रतिशत अंको के साथ 12वी उत्तीर्ण करना
अनिवार्य है। आईआईटी के लिए 60 प्रतिशत अंक चाहिए। विभिन्न
राज्य और आईआईटी इंजीनियरिंग में प्रवेश के लिए प्रवेश परीक्षा आयोजित करते है।
डिप्लोमा धारक सीधे इंजीनियरिंग के दूसरे वर्ष में प्रवेश
ले सकते है। स्नातकोत्तर कोर्स के लिए बैचलर डिग्री प्रोग्राम का सफलतापूर्वक पूरा
होना जरुरी है। उसके बाद पोस्ट ग्रजुएशन के लिए एमई या एमटेक कर सकते है। शोध या
शिक्षण में रुचि होने पर पीएचडी का विकल्प है।
सक्सेस टिप्स-
इंजीनियरिंग क्षेत्र में जानें वाले छात्र/छात्राओं को 10 वीं पास करने के बाद से ही गंभीरता से सोचना शुरु कर देना चाहिए।
एनसीईआरटी की 11 वीं व 12 वीं कक्षा का
सिलेबस पूरी तरह आत्मसात करें, गहन अध्ययन करें। आईआईटी,
एआईईईई व स्टेट पीईटी परीक्षाओं में प्रत्येक वर्ष पए सवाल आते है,
इसलिए पैटर्न को समझने की कोशिश करें। इसके साथ ही 10 वर्षो के साॅल्वड ई-पेपर को हल करना चाहिए। आप जिस भी फाॅर्मूले से सवालों
को हल कर रहे है, उसकी प्रैक्टिस बार-2 कीजिए। पढाई ग्रुप बनाकर करें। एक-दूसरे का टेस्ट लें। प्रत्येक दिन कम से
कम दो घण्टे प्रैक्टिस करें।
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