स्टेम सेल थेरेपी का प्रयोग ज्यादातर गंभीर और लाइलाज रोगों में किया जाता है। जैसे स्पाइनल कॉर्ड इंजरी, मस्कुलर डिस्ट्राफी, लंग फाइब्रोसिस, मोटर न्यूरॉन डिजीज एवं गंभीर अर्थराइटिस आदि, लेकिन भारत में पहली बार इसका प्रयोग आईसीयू में भर्ती सेप्टिक शॉक के मरीज की जान बचाने के लिए किया गया।
वास्तव में यह मरीज काफी दिनों से पेशाब में इंफेक्शन से ग्रस्त था लेकिन इसकी यूरेथ्रा (पेशाब की नली) में इंजरी की वजह से वह खून में गंभीर संक्रमण यानी सीवियर सेप्सिस से ग्रस्त हो गया और दूसरे दिन ही सेष्टिक शॉक में चला गया। इस कारण उसे आईसीयू में भर्ती कराना पड़ा और किडनी फेल होने की नौबत भी आ गई। उसका सीरम क्रिएटिनिन 4.1 और ब्लड काउंट 40000 के लगभग था। मरीज का ब्लड प्रेशर भी तेजी से गिरने लगा था।
आईसीयू में मौजूद इंटेसिविस्ट और नेफ्रोलॉजिस्ट के भरसक प्रयास के बाद भी 36 घंटे तक मरीज काफी सीरियस बना रहा, तब मरीज के रिश्तेदारों की सहमति तथा अस्पताल प्रशासन की
अनुमति से स्टेम सेल ट्रांसप्यूजन (एक प्रकार की स्टेम सेल थेरेपी) किया गया और अगले 24 घंटे में मरीज की हालत सुधरने लगी और 3 दिन में वह अस्पताल से डिस्चार्ज भी हो गया। असल
में इस प्रकार के मरीजों को आमतौर पर 3 से 4 हफ्ते तक आईसीयू
में रखा जाता है जो जान के खतरे के साथ बेहद खर्चीला भी
साबित होता है।
कैसे जान बचाती हैं स्टेम सेल्स
1. प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाकर।
2. ग्रोथ फैक्टर(शरीरका एक रसायन) की मात्रा बढ़ाकर।
3. डारमेंट स्टेम सेल्स(सोई हुई स्टेम सेल्स) को जाग्रत करके।
किस प्रकार की स्टेम सेल्स का प्रयोग
सेप्टिक शॉक एक इमरजेंसी स्थिति है। इसीलिए अम्बलाइकल कॉर्ड से प्राप्त मीसेनकायमल स्टेम सेल्स ही सबसे सुरक्षित और उपयोगी पाई गई है। खास बात यह है कि इसमें रिएक्शन की संभावना नगण्य होती है और वह प्रचुर मात्रा में आसानी से उपलब्ध भी हो जाती है।
इमरजेंसी में स्टेम सेल्स का प्रयोग
1. एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम या फेफड़े का फेल होना।
2. सीवियर सेप्सिस या सेप्टिक शॉक या रक्त में गंभीर संक्रमण।
3. एक्यूट रीनल फेल्यर।
4. आईएलडी या लंग फाइब्रोसिस
अंतरराष्ट्रीय डॉक्टरों की राय
अमेरिकन जर्नल ऑफ रेस्पिरेटरी एवं क्रिटिकल केयर मेडिसिन में डॉक्टर जेफ्री गाट्स के छपे लेख के अनुसार सेप्टिक शॉक एक बहुत खतरनाक बीमारी है जिसका इलाज खर्चीला है, लेकिन स्टेम सेल्स थेरेपी ने इसके इलाज को एक नई दिशा दी है और इससे काफी सकारात्मक परिणाम की उम्मीद है।
इसी प्रकार कैनेडियन क्रिटिकल केयर एंड ट्रांसलेशनल
मेडिसिन ग्रुप की डॉ. कैटरिना और डॉ. शिरले के अनुसार स्टेम सेल थेरेपी ने मरने वालों की संख्या काफी कम कर दी है। यह बात उन्होंने अपने शोध पत्र में प्रकाशित की है।
विशेष सुझाव
सेप्टिक शॉक जैसे गंभीर रोगों में स्टेम सेल्स का प्रयोग एक क्रिटिकल केयर इंटसिविस्ट एवं अनुभवी स्टेम सेल ट्रांसप्लांट सर्जन की टीम द्वारा ही उपयुक्त अस्पताल में किया जाना चाहिए। अनेक मरीजों में एक से ज्यादा बार भी स्टेम सेल ट्रांसपयूजन की जरूरत पड़ सकती है और हर मरीज एक नई चुनौती होता है। इसीलिए कोई जरूरी नहीं कि सभी मरीजों में एक जैसा परिणाम सामने आए।
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