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2021-02-06

shivratri kyu manayi jati hain | shivratri me upvas kaise kare | shivratri ke bare me jankari




शिवरात्रि क्यों मनाई जाती है या शिवरात्रि उपवास का महत्व , शिवरात्रि को परिभाषित करो



सब जानते हैं भगवान भोलेनाथ बहुत जल्दी खुश होते हैं। आशुतोष हैं वे, लेकिन

अगर राशि के अनुसार शिव की पूजा करें, तो फल चमत्कार की तरह जिंदगी में

आते हैं। भगवान शिव की पूजा में भाव का बड़ा महत्व है।


'शि' यानी मंगल और 'व' यानी

दाता, अर्थात जो मंगलदाता

है, वही शिव है। मां पार्वती

ने कठिन तपस्या की, तो वर के रूप में

उन्हें स्वयं आशुतोष भगवान शिव प्राप्त

हुए। तभी से मान्यता है कि विवाह

योग्य कन्याओं को उत्तम वर प्राप्ति के

लिए महाशिवरात्रि पर पूरे मनोभाव से

आराधना करनी चाहिए। वैसे भी

आदिकाल से महादेव की पूजा-

आराधना सभी करते आ रहे हैं। देवता

ही नहीं, बल्कि दानव भी उनके

उपासक रहे। आज भी शिव ऊंच-

नीच, अमीर-गरीब, जात-पात, और



यहां तक कि समाज-समुदायों की

सीमा से परे होकर पूजे जाते हैं। दूसरे

समाज-समुदायों के लोग और

कलाकार इसलिए भी शिव को पूजते

हैं, क्योंकि वे कलाओं के भी देवता

वैसे भी प्रकृति में सकारात्मक और

नकारात्मक दोनों ऊर्जाएं प्रवाहित

होती रहती हैं। शिव उपासना इन दोनों

ऊर्जाओं को संतुलित कर सौभाग्य

और सुख में वृद्धि करती है। पर्व के

दिनों में जब कोई शास्त्रों में वर्णित

विधि-विधान के अनुसार शंकारहित

विश्वास द्वारा उपासना करता है, तो

यही संपूर्ण ब्रह्मांडीय ऊर्जा एकत्र

होकर उसका कल्याण करती है।

अंतर्मन की ऊर्जा का समन्वय

ब्रह्मांडीय ऊर्जा की तरंगों के साथ

होता है और व्रत करने वाले की

मनोकामना पूरी हो जाती है।

विज्ञान कहता है कि पृथ्वी

सौरमंडल का हिस्सा है। आकाशगंगा

में सूर्य, चंद्रमा आदि नवग्रह और

आकाशीय पिंडों के साथ असंख्य तारे



विद्यमान हैं। विज्ञान के मुताबिक, अनंत

आकाश का कोई ओर-छोर नहीं है, केवल

प्रकाशवर्ष से उसे मापा जा सकता है। शास्त्रों

के अनुसार भी शिव का न आदि है और न

अंत है। शिव अनादि हैं और केवल श्रद्धा-

विश्वास से शिव तत्व प्राप्त किया जा सकता

है। अनादिकाल से शास्त्र भी ईश्वर की स्तुति

अनंतकोटि ब्रह्मांड नायक कहकर करता

आया है। 'हरि अनंत, हरि कथा अनंता' भी

अनंत ब्रह्मांड के रहस्यों की ओर संकेत

करता है। ब्रह्मांड में व्याप्त कल्याणकारी

ऊर्जा को शिव भक्त, शिव कहते हैं, तो

विष्णु भक्त नारायण, राम भक्त राम, कृष्ण

भक्त कृष्ण, शक्ति के आराधक महाशक्ति

आदि कहकर उपासना करते हैं।

आराधक शिव का हो,

शक्ति का हो,

नारायण का हो,

राम या कृष्ण

का हो, वह

केवल उस

अनंतकोटि

ब्रह्मांड नायक की

ही आराधना करता है,

जो कि विज्ञान सम्मत भी है।


शिवरात्रि पर विशेष संयोग


वर का वरदान पाने के लिए

बृहस्पति के बल और दांपत्य जीवन की

सफलता के लिए शुक्र ग्रह की

आवश्यकता होती है। इस बार शिवरात्रि

पर बृहस्पति और शुक्र, दोनों ग्रह

बलवान हैं। उच्च राशि के शुक्र और

स्वराशि के बृहस्पति के साथ

स्वराशि के शनि विशेष ऊर्जा प्रदान

कर रहे हैं। अंक ज्योतिष के

अनुसार, शिवरात्रि के दिन 21

तारीख का मूलांक 3 है, जो



शिव हैं जहां, संपन्नता है वहां

'शिवो भूत्वा शिव यजेत', अर्थात शिव होकर शिव की उपासना करनी चाहिए। भगवान शिव की

पूजा-साधना से एक ध्वनि गूंजती है- 'सबका कल्याण हो। भगवान शिव ऐसे देव हैं, जो

मान्य पूजा से भी शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। साथ ही इतने भोले भी कि उनकी आराधना शीघ्र

ही व्यक्ति के भाग्य को पलट दे। शुभ चिंतन और सावधानीपूर्वक महाशिवरात्रि व्रत का पालन

किया जाए. तो एक ही रात में मानव शिवत्व को प्राप्त कर सकता है। जो महिला संतान-सुख

की कामना से भठावान शिव की पूजा-अर्चना करे, उसे संतान अवश्य प्राप्त होती है, क्योंकि

शिव संतान प्रदान करने वाले देवता हैं। भगवान शिव संपूर्ण स्वरूप हैं, इसलिए उनकी आराधना

जीवन पर्यंत की जाती है। महाशिवरात्रि पर उनकी आराधना से सभी कामनाएं पूरी हो जाती हैं

और दुखों-कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।



बृहस्पति का प्रतीक है। ग्रह-नक्षत्र का यह

संयोग शिवरात्रि के दिन व्रत रखने वालों के

अंतर्मन की ऊर्जा को बढ़ाएगा। व्रत रखने वाले

के अंतर्मन में जो भी कामना होगी, वह इस

संयोग में पूरी होगी। मान्यता है कि इस दिन

किसी कार्य के लिए देवता की आराधना करने

से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। शिवरात्रि के शुभ

संयोग पर ग्रह-नक्षत्र और ईश्वरीय ऊर्जा बर

के लिए वरदानमयी ऊर्जा का सृजन कर रहे

हैं। विद्वान कहते हैं कि ऐसे शुभ समय यदि

शुद्ध मन से महादेव की उपासना-आराधना की

जाए और उनसे मनचाहा वर मांगा जाए, तो वे

भक्त की मनोकामना जरूर पूरी करते हैं।


क्या करें


शास्त्रों में महाशिवरात्रि पर्व को भगवान

शिव और माता पार्वती के मिलन

की रात्रि माना जाता है। इसलिए

इस दिन विवाह योग्य कन्याएं

यदि विधि-विधान से पूजन

और व्रत करती हैं, तो मनचाहे

वर का वरदान प्राप्त होता है।

प्रायः अधिकांश जन्म-पत्रिकाओं

में देखने को मिलता है कि कन्या का

विवाह बृहस्पति ग्रह को निर्बलता के

कारण देर से तय होता है, जिससे खासी

दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। अतः

सही समय पर विवाह के लिए महाशिवरात्रि के

दिन पूजन के बाद कन्या को साढ़े छह रत्ती का

शुद्ध, दोष रहित पीला पुखराज सोने की अंगूठी

में जड़वाकर पहली तर्जनी उंगली में पहनना

चाहिए, ताकि विवाह निर्विघ्नतापूर्वक सही

समय पर संपन्न हो सके। महाशिवरात्रि के दिन

कन्या के हाथों से किसी गरीब जरूरतमंद

लड़की को पीली साड़ी और बेसन के लडडू

देने से भी विवाह का योग जल्दी बनता है और

मनचाहा वर प्राप्त होता है। मनोवांछित

जीवनसाथी प्राप्त करने के लिए कन्याओं को

महाशिवरात्रि का व्रत रखना चाहिए तथा शिव

मंदिर में जाकर जलाभिषेक करना चाहिए।

शिवरात्रि की पूजा के दौरान कुंवारी कन्याएं

यदि शिव मंत्रों का जाप करें, तो भगवान शिव

की कृपा से मनचाहा वर प्राप्त होता है। कहा

जाता है कि भोलेनाथ की पूजा कभी व्यर्थ नहीं

जाती, इसलिए अपनी आस्था को कभी डिगने

न दें और उनकी आराधना करती रहें।


किस दिशा में मिलेगा मनचाहा वर


महादेव की उपासना-आराधना कभी निष्फल

नहीं जाती, लेकिन यदि उसे पूरे नियमों का

पालन करते हुए किया जाए, तो भोलेनाथ और


भी जल्दी प्रसन्न होते हैं। वैसे तो शिव जी केवल

आपका मन, प्रेम और श्रद्धा देखते हैं, लेकिन

फिर भी मनीषियों ने उनकी उपासना के लिए

कुछ नियम बनाए हैं। वास्तु शास्त्र को देखें, तो

मेष राशि की कन्याओं को पूर्व और दक्षिण-पूर्व

दिशाओं में अपने मनचाहे वर की तलाश करनी

चाहिए। वृष राशि की कन्याओं के लिए दक्षिण

और उत्तर-पश्चिम दिशाएं विवाह के मामले में

अनुकूल फल देती हैं, यानी उनकी शादी इन

दिशाओं में हो सकती है। मिथुन राशि वालों को

पूर्व और उत्तर-पूर्व में अपने जीवनसाथी की

तलाश करनी चाहिए। दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम

में कर्क राशि वालों के जीवनसाथी

का प्रबल योग बनता है। सिंह

राशि वालों के जीवनसाथी की

संभावना पश्चिम और उत्तर-

पश्चिम में अधिक होती है।

कन्या राशि के लिए उत्तर और उत्तर-पूर्व विवाह

के लिए श्रेष्ठ दिशाएं मानी गई हैं। पूर्व और

दक्षिण-पूर्व दिशाएं तुला राशि वालों के लिए

महत्वपूर्ण मानी गई हैं और उनकी शादी इन

दिशाओं में होने के प्रबल योग बनते हैं। वृश्चिक

राशि वालों को उनका जीवनसाथी दक्षिण और

दक्षिण-पश्चिम दिशाओं में मिलेगा।

धनु राशि वालों का जीवनसाथी पश्चिम और

उत्तर-पश्चिम में होगा। उत्तर और उत्तर-पश्चिम

में मकर राशि वालों के लिए जीवनसाथी का

प्रबल योग बनता है। कुंभ राशि के लिए पूर्व और

दक्षिण-पूर्व अनुकूल दिशाएं होती हैं। मीन राशि

वालों को मनचाहे वर का चयन दक्षिण और

दक्षिण-पश्चिम में करना चाहिए। इस प्रकार शिव

जी की पूजा करने के साथ ही यदि दिशाओं को

ध्यान में रखकर वर की तलाश की जाए, तो



कन्याओं की मनोकामना आसानी ये पूरी हो सकती है।



ऐसे रिझाए भगवान आशुतोष को


शिव जी को भोलेनाथ इसलिए कहा जाता है,

क्योंकि वे बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं। करुणा

उनके हृदय से निकलती है। ऐसे में शुद्ध मन

और पूरे विधि-विधान से उनकी पूजा निश्चित

रूप से फल देती है। सुबह स्नान के बाद

भगवान शिव की पूजा के लिए पूर्व या उत्तर

दिशाओं की ओर मुंह करके बैठे। घर के

देवालय या किसी शिवालय में जाकर गंगा या

पवित्र जल से जलधारा अर्पित करें। दूध,

जल, शहद, घी, शक्कर, बेलपत्र,

धतूरे से भगवान शिव का अभिषेक

करें। भगवान शिव के साथ शिव

परिवार का फूल, गुड, जनेऊ,

चंदन, रोली, कपूर से पूजन करें। शिव स्तोत्रों

और शिव चालीसा का पाठ करें। व्रत रखे और

सच्चे दिल से अपनी मनोकामना के लिए

उपासना करें। शिवरात्रि पर चार प्रहर में चार बार

पूजन का विधान आता है, इसलिए चार बार

रुद्राभिषेक भी संपन्न करना चाहिए। पहले प्रहर

में दूध से शिव के ईशान स्वरूप का, दूसरे प्रहर

में दही से अघोर स्वरूप का, तीसरे प्रहर में घी

से वामदेव रूप का और चौथे प्रहर में शहद से

सद्योजात स्वरूप का अभिषेक कर पूजन करना

चाहिए। यदि कन्याएं चार बार पूजन न कर

सके, तो पहले प्रहर में एक बार तो पूजन

अवश्य ही करें। महाशिवरात्रि की रात

महासिद्धिदायिनी होती है, इसलिए उस समय

किए गए दान और शिवलिंग की पूजा व स्थापना

का फल निश्चित रूप से मिलता है।


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