नकारात्मक सोच का नुकसान
कहीं आपको यह तो नहीं लगता कि घर में सब आपको नजरअंदाज कर रहे हैं या आपके काम की कोई प्रशंसा नहीं कर रहा है, तो आप नकारात्मक सोच की ओर जा रही हैं।
हमारे आसपास हजारों तरह के रिश्ते बुने होते हैं। घर में माता-पिता, भाई-बहन जैसे अनमोल
रिश्ते तो बाहर की दुनिया में दोस्तों व सखी-
सहेलियों के रूप में। और विवाह के बाद किसी
की भाभी, मामी, चाची और बहू के रूप में। रिश्ते
को मजबूत बनाए रखने के लिए, कई तरह के
प्रयास करने पड़ते हैं। हमारे यह प्रयास इस बात
पर निर्भर करते हैं कि उनके प्रति हमारी सोच
कैसी है? कई बार छोटी-छोटी बातों की वजह से
लड़ाई-झगड़े होने लगते हैं और रिश्ते में दरारें पड़
जाती है। इन रिश्तों को खुशमिजाज और मजबूत
बनाए रखने के लिए अगर हम उनके प्रति
सकारात्मक भावना रखेंगे, तो हम उनकी हर बात
को सकारात्मक तरीके से ही सोचेंगे या
अपनाएंगे। पर अगर हमारी सोच में नकारात्मकता
आ जाए तो उनकी सही बात भी हमें गलत
लगेगी। इससे हमारे रिश्ते खराब होंगे और आपस
में दूरियां बनेंगी। असल में नकारात्मकता का भाव
जो हमारे अंदर उत्पन्न होता है, वह हमारी सोच
को नेगेटिव कर देता है। आइए जानते हैं कि कैसे
पहचानें कि आपके विचार नकारात्मक हो गए हैं
सामने वाले को न समझना
कहीं आपको यह तो नहीं लगता कि घर में सब
आपको नजरअंदाज कर रहे हैं या कभी-कभी
आपको अपने ऑफिस में यह महसूस होने लगे
कि आपका बॉस आपके काम की प्रशंसा नहीं
कर रहा है, बल्कि आपकी सहकर्मी के काम
को ज्यादा नोटिस कर रहा है, तो ऐसी बहुत सी
घटनाएं आपकी नेगेटिव सोच को जताती हैं।
अगर ऐसा है तो आपको समझना चाहिए कि
आप कुछ ज्यादा सोच रही हैं। आप अपनी
सोच में नेगेटिव हो चुकी हैं। पहले अपने
व्यवहार को समझें कि आप दूसरे के साथ
किस तरह का व्यवहार कर रही हैं। जैसा
व्यवहार कर रही होंगी, बदले आपको वैसा
ही व्यवहार मिलेगा।
बुरा सोचना
कहीं आप हर किसी के लिए गलत तो नहीं
सोचतीं? मान लीजिए, आपके घर में
कोई सदस्य आपको जन्मदिन पर
विश करना भूल गया,
| आप इसे
दिल पर ले लेती हैं और आपको
बहुत बुरा लगता है। ऐसा क्यों नहीं
सोचतीं कि किसी काम में फंस
गया होगा। कोई टेंशन भी हो सकती
जिसकी वजह से ध्यान न आ रहा
हो। ऐसे और भी बहुत से पल आते हैं
जब आप सामने वाले के बारे में एकदम नेगेटिव
बात सोच लेती हैं। तो किसी घटना और किसी के
बारे में बुरा से बुरा अनुमान लगाना, जैसे- अगर
कुछ हो गया तो, कहीं कोई दुर्घटना घट गई तो,
आपकी नकारात्मक सोच को ही बताता है।
सभी को दुश्मन मान लेना
नीमा को घर के कामों की कम आदत थी। एक
दिन उसकी सास बातों-बातों में उसकी भाभी
की तारीफ कर दी। उसको यह बात बिल्कुल
अच्छी नहीं लगी और वह अपनी भाभी को
अपना सबसे बड़ा दुश्मन समझने लगी। आए
दिन किसी न किसी बात पर उसको नीचा
दिखाती। यही नहीं, दूसरे व्यक्ति के सामने
इतना बेचारा बन जाती कि वह व्यक्ति भी
उसकी गलत बात को सही मान बैठता। कारण
वही है कि नेगेटिव थिंकिंग में अक्सर महिलाएं
खुद को पीड़ित व सामने वाले को या पूरे
संसार को अपना दुश्मन मानने लगती हैं।
खुद को सबसे ऊपर समझना
नीमा की एक और गंदी आदत थी कि वह खुद
तो काम करना पसंद नहीं करती थी, लेकिन
दूसरी महिला के द्वारा किए हुए काम में सैकड़ों
गलतियां निकाल देती थी। इस तुर्रे के साथ कि मैं
तो बहुत होशियार हूं। खुद पर मोहित होना
अच्छा है, लेकिन ऐसा भी न हो कि आप इस
चक्कर में सामने वाले के गुण को पहचान ही न
पाएं। इस कारण आप कहीं इतनी गलतफहमियां
न पाल लें कि आप किसी पर विश्वास ही न कर
पाएं। अत्यधिक आत्मप्रशंसा की वजह से आप
भीड़ में अकेली रह जाएंगी। अपनी असफलता
को स्वीकार न कर पाना पुरानी बाल कहानी
'अंगूर खट्टे हैं आप सभी को मालूम होगी।
कुछ महिलाओं का भी हाल उसी लोमड़ी की
तरह होता है। अगर वे किसी काम को पूरा करने
में असफल रहती हैं तो काम में खराबी है,
लेकिन वही काम दूसरा करता है तो काम तो
आसान था। छोड़िए इस दोहरे मापदंड को और
बंद करिए हर समय खुद को कोसना। माना कि
अपनी असफलता को स्वीकार कर पाना थोड़ा
मुश्किल होता है, लेकिन इतना मुश्किल
भी नहीं कि आप खुद को
बदकिस्मत समझने लगें।
दूसरे से अधिक उम्मीद
हममें से अधिकांश लोगों की
वही स्थिति है कि हमें अपने
अधिकार तो मालूम हैं, लेकिन
कर्तव्यों को जानना भी नहीं
चाहते। इसी वजह से हम इतनी सारी
अपेक्षाएं करने लगते हैं। इनके न पूरे होने
पर दूसरे व्यक्ति पर दोषारोपण शुरू कर देते हैं।
जैसा व्यवहार आप दूसरी महिलाओं से चाहती हैं
वैसा आपको भी तो दूसरों के साथ करना पड़ेगा।
हमेशा बुरी बात को याद रखना
हमारे रिश्ते किसी से तब और भी खराब होते
चले जाते हैं, जब हम उसकी गलतियों को याद
करते जाते हैं। ऐसी नेगेटिव मेमोरीज हमारे रिश्तों
के लिए हानिकारक होती हैं। इस तरह की बातें
आप जितना अधिक याद करेंगी, उतना ही सामने
वाले के प्रति आपकी सोच को अच्छा नहीं होने
देंगी। दूसरे अर्थ में कहें तो इस तरह की बातें
आपको दुख ही देंगी।
मनोवैज्ञानिक तथ्य
मनोवैज्ञानिक कहते है कि मन के हारे
हार है, मन के जीते जीत। बहुत
सार्थक है यह शब्द। आप जितना
नकारात्मक सोचेंगी, उतनी ही
तनावग्रस्त रहेगी। जितना आप बात के
पहलू को सकारात्मकता से लेंगी,
उतनी ही आप अपने अंदर एक्टिव
एनर्जी महसूस करेंगी। नकारात्मक
लोगों और परिस्थितियों से हमेशा दूर
रहने की कोशिश करें। ऐसा नहीं है
कि हर नकारात्मक परिस्थिति खराब
होती है। उनमें से अच्छी बातें स्वीकार
करें और बेकार को दिमाग से निकाल
दें। जरा सा नजरिया बदलते ही सोच
भी बदल जाती है। दूसरों का बुरा आप
अपने कर्मों से करेंगी, जबकि अपना
बुरा अपनी सोच से। नकारात्मक सोच
का प्रभाव बहुत जल्दी शरीर को
रोगग्रस्त बनाता है। सकारात्मक सोच
का प्रभाव बहुत ही धीमा होता है,
लेकिन होता अवश्य है।
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