लिवर (यकृत) की देखभाल या लिवर की देखभाल कैसे करे इन हिन्दी
शरीर का अतिसंवेदी अंग है लिवर और
हमारे खानपान का इस पर पड़ता है सीधाअसर। अपनाएं सुव्यवस्थित जीवनशैली
जिससे लिवर रहे सेहतमंद....
बीते वर्ष कोविड-19 पर इतना जोर दिया
गया कि रोगियों द्वारा अन्य स्वास्थ्य
समस्याओं की अनदेखी हुई। इससे हर
बीमारी के रोगी प्रभावित हुए। लिवर मानव
शरीर के सबसे प्रमुख अंगों में से एक है,
जो हमारे दैनिक आहार के पोषक तत्वों
को ऐसे पदार्थों में परिवर्तित करने का काम
करता है, जिनका शरीर द्वारा उपयुक्त रूप
से प्रयोग किया जाता है। लिवर इन पदार्थों
को इकट्ठा करता है और आवश्यकतानुसार
कोशिकाओं को इनकी आपूर्ति करता है।
लिवर विषाक्त पदार्थों को शरीर से बाहर
निकालने का भी काम करता है और यह
विटामिन की मदद से प्रोटीन का निर्माण
करता है। इसके अतिरिक्त लिवर पुरानी या
क्षतिग्रस्त रक्त कोशिकाओं को अपघटित
करता है।
शराब के सेवन और हेपेटाइटिस के
चलते लिवर की बीमारियां होती हैं। यह
बदलती जीवनशैली का परिणाम है कि
खानपान के चलते लाइफस्टाइल बीमारियां
जैसे डायबिटीज, मोटापा, ब्लडप्रेशर आदि
में बढ़ोतरी हुई है। इन स्थितियों के परिणाम
स्वरूप लिवर
के ऊतकों में
वसा जमा होने
लगने लगता है,
जिससे नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर की
समस्या होती है।
बच सकते हैं खानपान के बदलाव
से :
शराब के सेवन को कम करके और
हेपेटाइटिस के टीकाकरण से लिवर
सिरोसिस से बचा जा सकता है। बचपन
से ही आहार पर ध्यान देकर और दिनचर्या
में व्यायाम को शामिल करके लिवर को
नुकसान से बचाने में काफी मदद मिल
सकती है। लिवर के संक्रमित होने वाले
कारणों में डायबिटीज भी है। डायबिटीज
को नियंत्रण में रखकर लिवर को नुकसान
से बचाया जा सकता है।
खुद करता है अपनी मरम्मतः लिवर ऐसा
अंग है, जो अपनी मरम्मत स्वयं करने में
सक्षम है। जब किसी व्यक्ति के लिवर की
सर्जरी होती है या लिवर का कोई हिस्सा
डोनेट किया जाता है तो लिवर का शेष
हिस्सा छः हफ्ते में अपने सामान्य आकार
में आ जाता है। यदि लिवर को कोई नुकसान
पहुंचता है तो शुरू में इसका पता नहीं चलता
है, क्योंकि इसका कोई लक्षण दिखाई नहीं
देता और लिवर अपनी मरम्मत स्वयं करता
है। जब स्वयं की मरम्मत करने में लिवर
अक्षम होता है तो लिवर रोग के लक्षण
दिखाई देते हैं और लिवर सिरोसिस का पता
चलता है।
समय पर कराएं जांच : लिवर की स्थिति
जानने के लिए समय पर अल्ट्रा-सोनोग्राफी
और लिवरफंक्शन जांच कराना जरूरी है।
फैटी लिवर एवं सिरोसिस होने पर भी
इन जांचों से लिवर की स्थिति का पता
चल जाता है। इसीलिए डायबिटीज और
हेपेटाइटिस के रोगियों को नियमित रूप से
रक्त जांच एवं अल्ट्रासाउंड कराते रहना
चाहिए।
कुछ लक्षणों से पहचान
लिवर सिरोसिस को इसके कुछ लक्षणों से
पहचाना जा सकता है, जैसे कि पीलिया,
पेटव टांगों में सूजन और क्लॉटिंग कारकों
की कमी के चलते मसूड़ों से खून आना।
यदि पहचान होने के बाद तुरंत उपचार
कराया जाए तो लक्षणों को नियंत्रित करके
मरीज का उपचार हो सकता है, लेकिन
यदि लिवर सिरोसिस गंभीर स्थिति में पहुंच
चुका होता है और लक्षणहीनता की स्थिति
पार हो जाती है तो लिवर ट्रांसप्लांट का
परामर्श दिया जाता है। लिवर ट्रांसप्लांट
में सर्जरी के जरिएखराब लिवर कीजगह
नए लिवर का प्रत्यारोपण होता है। इसमें
रोगी के परिवार का कोई जीवित व्यक्ति
लिवर काएक हिस्सा दान कर सकता है
या फिर इसे ब्रेन-डेड डोनर से लिया जा
सकता है। ट्रांसप्लाटेशन के बाद रोगी
सामान्य तरीके से जिंदगी जी सकता है।
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