नकारात्मक और सकारात्मक भावनाएं क्या होती है?
भावनाए क्या होती है?
भावनाओ के कई रंग हैं। कभी ये हमें मजबूत बनाती है, तो कभी हमारी सबसे बड़ी कमजोरी बन जाती है और जब हम भावनात्मक रूप से कमजोर होते हैं, तो जिंदगी की लड़ाई में पीछे छूटते जाते है।
भावनाओं के दो पहलू होते हैं। एक तरफ जहां भावनाएं हमें मजबूत बनाती हैं, तो दूसरी तरफ येहमारी सबसे बड़ी कमजोरी भी बन जाती हैं। भावनाएं सकारात्मक भी होती हैं और नकारात्मक भी। सकारात्मक भावनाएं प्रेम, लगाव एवं दया से जुड़ी होती हैं, जबकि नकारात्मक भावनाएं लालच, गुस्सा, हिंसा एवं स्वार्थ के कारण विकसित होती हैं। नकारात्मक भावनाएं व्यक्ति के शारीरिक एवं मानसिक व्यक्तित्व को नुकसान पहुंचाती हैं।
उन्हें क्षतिग्रस्त कर देती हैं। ये हमें स्वार्थी, आत्म-केन्द्रित, अपने तक सीमित रहने वाला बना देती हैं। इससे तनाव का स्तर भी बढ़ने लगता है। ऐसे लोग ज्यादा नकारात्मक सोचते हैं, जिसके कारण उनके जीवन में कोई सकारात्मकता नहीं रह जाती है।
नकारात्मक सोच वाले व्यक्ति आमतौर पर स्वभाव से ईर्ष्यालू होते हैं। वे हमेशा बदला लेने की भावना से पीड़ित रहते हैं। धीरे-धीरे विकृत मानसिकता वाले बन जाते हैं। उनके पास किसी व्यक्ति या स्थिति के लिए अच्छे शब्द नहीं होते हैं। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि आप अपने अन्दर सकारात्मक भावनाओं को बढ़ावा दें और नकारात्मक भावनाओं से उभरने या बाहर आने की कोशिश करें।
एक नजर इधर भी
- 20 में से प्रत्येक एक व्यक्ति निराशा और तनाव से घिरे होते हैं।
- इसकी मुख्य बजह है, उनका नकारात्मक सोच से घिरे होना।
- नकारात्मक भावनाएं ऐसी संवेदनाएं होती हैं,जो व्यक्ति को बेचारा एवं दुखी बना देती हैं। व्यक्ति खुद के साथ-साथ दूसरों को भी नापसंद करने लगता है।
उत्साह में कमी
भावनाएं व्यक्ति के स्वभाव, व्यक्तित्व, विचार आदि पर निर्भर करती हैं।नकारात्मक भावनाएं ऐसी संवेदनाएं होती हैं, जो व्यक्ति को बेचारा एवं दुखी बना देती हैं। नकारात्मक भावनाओं से पीड़ित व्यक्ति खुद के साथ-साथ दूसरों को नापसंद करने लगता है। इससे व्यक्ति का विश्वास डगमगाने लगता है।
नकारात्मक भावनाओं वाले व्यक्ति का जीवन के प्रति उत्साह कम हो जाता है। यह इस पर ज्यादा निर्भर करता है कि हम इन नकारात्मक भावनाओं से कितने समय तक प्रभावित रहे। हमनें इन्हें किस प्रकार व्यक्त किया।
नकारात्मकता में सकारात्मकता ढूंढे
भावनात्मक संतुलन के लिए किसी भी स्थिति में तुरन्त प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए। पहले सोचें, विचार करें, सही कारण जानने की कोशिश करें, स्थिति का आकलन करें, उसके बाद अपनी राय दें। फिर कार्यवाही करें। भावुक न हों। भावुक होकर कोई कार्य न करें। नकारात्मक एवं विषम परिस्थितियों में भी सकारात्मक चीजें करने की कोशिश करनी चाहिए। हमेशा सकारात्मक बातें एवं कार्य करने चाहिए। सकारात्मक संतुलन आनुवांशिक एवं परिस्थिति जन्य भी होता है। यह आपके समूह एवं आपके मित्र, परिवार जिनके साथ अधिकतर समय व्यतीत करते हैं या रहते हैं, पर भी निर्भर करता है।
सेहत पर असर
नकारात्मक सोच वाले व्यक्तियों को अक्सर दूसरों से शिकायत रहती है। वे हमेशा दूसरों में दोष निकालते हैं। बुराई करते हैं। ऐसे लोगों के साथ यदि आप रहेंगे, तो आपकी सोच भी नकारात्मक हो जाएगी। कोशिश करें सकारात्मक लोगों के साथ रहने की। भावनात्मक संतुलन बनाए रखने के लिए चीजों को बिना तोड़े-मरोड़े स्वीकार करना सीखें। उसके प्रभाव में न आएं। भावनात्मक संतुलन व्यक्ति की अपनी सेहत एवं भलाई के लिए जरूरी है। प्रार्थना, संध्या, ध्यान, ईश्वर में विश्वास और दयालु हृदय व्यक्ति को सकारात्मक बनाने में मदद करते हैं।
संतुलन बनाएं
भावनात्मक असंतुलन होने की दशा में कई तरह की समस्याएं देखी जा सकती हैं जैसे मांसपेशियों में दर्द, ऐंठन, त्वचा में झनझनाहट, तनाव बढ़ना आदि। भावनात्मक संतुलन बनाए रखने के लिए हंसने के साथ-साथ कभी-कभी रोना भी जरूरी है। कई शोध यह साबित कर चुके हैं कि रोना हमारी मानसिक सेहत के लिए काफी फायदेमंद है। रोने से भावनात्मक संतुलन बरकरार रहता है। हंसना-रोना एक स्वाभाविक क्रिया है। रोने से तनाव दूर होता है। तनाव के कारण शरीर में जमा टॉक्सिन रोने के बाद खुद-ब-खुद धुल जाता है।
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