पार्किंसन रोग का इलाज (Treatment), लक्षण (symptoms), उपचार, उपाय के बारे में जानकारी इन हिंदी
डीप ब्रेन स्टिमुलेशन के प्रयोग से पार्किंसन रोग के तीव्र लक्षणों को नियंत्रित करने में मिल रही है मदद...
मस्तिष्क का कार्य विभिन्न इंद्रियों
द्वारा प्राप्त जानकारी का विश्लेषण करके
शरीर को सुचारु रूप से संचालित करना
है। इसके लिए मस्तिष्क शरीर में फैली
अनगिनत तंत्रिकाओं के जाल में प्रवाहित
विद्युत तरंगों के माध्यम से आवश्यक
निर्देशों को पूरा करता है। जब मस्तिष्क
में विकृति आती है तो यह विश्लेषण व
शारीरिक संचालन अनियंत्रित
हो जाता है। इसी का
परिणाम होता है पार्किंसन
रोग।
यह रोग समय के साथ
बढ़ता है और शरीर के
संचालन को प्रभावित
करता है। हल्के कंपन,
मांसपेशियों की जकड़न और
कड़ापन, शारीरिक गति का धीमा होना
इस रोग के प्रमुख लक्षणों में शामिल
हैं। हालांकि यह बीमारी लाइलाज है पर
दवाओं से इसे नियंत्रित करने में मदद
मिलती है, लेकिन जब लक्षण तीव्र हो
जाते हैं और दवाओं से आराम नहीं
मिलता है तो डीप ब्रेन स्टिमुलेशन
(डीबीएस) का प्रयोग पार्किंसन रोगियों
के लिए बहुत प्रभावी विकल्प है।
क्या है डीप ब्रेन स्टिमुलेशनः डीप ब्रेन
स्टिमुलेशन मस्तिष्क की एक शल्य
क्रिया है। यह एक न्यूरो सर्जिकल प्रक्रिया
है, जो पार्किंसन की बीमारी के लक्षणों
में सुधार लाती है। डीबीए को पार्किंसन
रोगियों में होने वाले कंपन के इलाज के
लिए 1997 में मान्यता मिली और 2002
में पार्किंसन बीमारी के बढ़े लक्षणों में
इसे प्रयोग किया जाने लगा। अब इससे
उन रोगियों को उपचार दिया जा रहा है,
जिनमें दवाएं प्रभावहीन हो रही हैं।
ऐसे दिया जाता है उपचारः डीबीए में
मस्तिष्क के प्रभावित सूक्ष्म बिंदुओं
में एक विशेष तार को आरोपित किया
जाता है। इस तार में आवश्यकता
अनुसार चार से आठ इलेक्ट्रोड्स
के माध्यम से मस्तिष्क के विकृत
सूक्ष्म बिंदुओं पर विद्युत प्रवाह देकर
मांसपेशियों का संचालन प्रभावी किया
जाता है। इस प्रक्रिया के दूसरे चरण में
छाती के ऊपरी हिस्से में त्वचा के नीचे
एक न्यूरोस्टिम्युलेटर(पेसमेकर जैसी
डिवाइस) को रखा जाता है।
त्वचा के नीचे से एक तार की
मदद से न्यूरोस्टिम्युलेटर
को मस्तिष्क से संबद्ध
इलेक्ट्रोड्स से जोड़ा
जाता है। इस उपकरण
द्वारा उत्पन्न विद्युत प्रवाह
मस्तिष्क की असामान्य गतिविधि
(पार्किंसन रोग के लक्षणों) को
नियंत्रित करने में मदद करता है। यह
भी ध्यान देने वाली बात है कि डीबीएस
केवल पार्किंसन बीमारी के लक्षणों को
दूर करने में मदद करता है। इससे बीमारी
का पूरी तरह इलाज नहीं हो सकता है।
किन मरीजों के लिए है उपयोगी: जैसे-
जैसे ये रोग पुराना होता है, रोगी में इसकी
तीव्रता बढ़ने लगती है। यह अनियंत्रित
गतिविधियां चेहरे, हाथ, पैर व धड़ की
हलचल को और बढ़ा देती हैं। ऐसे में
रोगी अपने कार्य करने में पूरी तरह अक्षम
हो जाता है। इस स्थिति में दवाएं काम
करना बंद कर देती हैं। ऐसे में उपचार
की यह तकनीक मददगार साबित होती
है। इसे अनुभवी न्यूरोलाजिस्ट से
करवाना चाहिए। यदि रोगी को पार्किंसन
बीमारी के अलावा अवसाद, स्मृतिलोप
या अधिक कमजोरी की समस्या है तो
डीबीएस कारगर नहीं है।
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