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2022-05-10

yoga karna kaise sikhe | yoga asan kaise sikhe | yoga kaise sikhe in hindi

योग आसन करना कैसे सीखें और करे या योगासन करना कैसे शुरू करे?


स्वस्थ शरीर के लिए योग बहुत जरूरी है। कल यानी जून को पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीय योग दिवस' मनाने जा रही है।आप भी योग सीखना चाहते हैं,लेकिन नहीं जानते कि इसे कैसे करें और नही आपके पास इतना वक्त और पैसा है कि ट्रेनर से योग सीख सकें, तो एप्स व यूट्यूब चैनल की मदद ले सकते हैं। लोगों के लिए गूगल प्ले स्टोरऔर एपल के एप स्टोर पर कई सारे एप्स मौजूद हैं, जिनकी मदद से न सिर्फ योग की नई-नई क्रियाओं के बारे में सीख सकते हैं,बल्कि आपको प्रशिक्षक की जरूरत भी नहीं पड़ेगी...

योगासन शुरु कैसे करे 

पिछले एक साल से अधिक समय से कोरोना वायरस, लाकडाउन और नकारात्मक खबरों की वजह से लोग न
सिर्फ मानसिक, बल्कि शारीरिक तौर है। लोगों में अकेलापन, अवसाद आदि जैसे दिक्कत
लगी हैं, लेकिन इन परिस्थितियों में नियमित बढ़ने लगी है, लेकिन इन परिस्थितियों मे नियमित
है। योग से न सिर्फ आप एग्जाइटी को दूर कर पाएंगे,
बल्कि तरोताज़ा भी महसूस करेंगे। हालांकि योग करते
समय सही आसन की जानकारी होना जरूरी है। इसके
लिए अगर किसी मदद की जरूरत है, तो फिर एप्स
की मदद ले सकते हैं या फिर यूट्यूब पर योग से जुड़े
बहुत सारे चैनल मौजूद हैं, जहां से योग के बेसिक
लेवल से लेकर एडवांस लेवल तक को आजमा
सकते हैं। ये प्लेटफार्म आपके लिए पर्सनल ट्रेनर' का
काम करेंगे..

डेली योग-फिटनेस योग प्लान ऐंड मेडिटेशन एपः योग
'की शुरुआत करने वालों के लिए इसमें योग गुरुओं
के सैकड़ों क्लास प्लान और
आसन दिए गए हैं। योग के
दौरान स्टेप-बाय-स्टेप गाइड
मिलते हैं ताकि आप आसानी
से कर सके। बिजी चर्क शेड्यूल
में भी कुछ मिनटों के योग के
जरिए रिलैक्स रहने में मदद मिल सकती है। योग और
मेडिटेशन से जुड़े इस एप की खासियत है कि इसमें
योग के 500 से अधिक आसनों की विस्तृत जानकारी
गई है। वेट लास, रिलैक्सेशन, बाडी डिटाक्स आदि
के लिए इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। साथ ही,
यहां पर योग क्लासेज व प्रोग्राम्स के अपडेट एचडी
वीडियोज भी मिलेंगे। अच्छी बात यह है कि अपनी
सुविधा के हिसाब से पांच से 70 मिनट के सत्र में
से अपने लिए योग का चुनाव कर सकते हैं। यहां पर
(भी थकने लगे
मेडिटेशन के लिए आनलाइन कोच की गाइडेंस ली जा
सकती है। यह एप एंड्रायड और आइओएम डिवाइस



के लिए उपलब्ध है।
डाउन डाग : योग के लिए डाउन डाग नया एप है,
लेकिन यह तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। जब योग
मैट पर प्रैक्टिस के लिए आते
हैं, तो आपको हर बार एक नया
योगाभ्यास मिलता है। इसलिए
आपको हर बार एक ही तरह
के योग को दोहराने करने की
जरूरत नहीं पड़ती है। यहां पर
आपको 60 हजार से अधिक तरह के योग अभ्यास
मिलते हैं यानी अपनी पसंद के योग अभ्यास को ट्राई
कर सकते हैं। अगर शुरुआत ही कर रहे हैं, तो फिर
लेवल एक से शुरू करें। यहां पर अलग-अलग तरह
के योग जैसे कि विन्यास, हठ, अष्टांग, सूर्य नमस्कार
आदि को एक्सप्लोर किया जा सकता है। इसके
अलावा, यहां बैक स्ट्रेंथ या बैक पेन से जुड़े योगाभ्यास
भी मिलते हैं। इसमें गाइड करने के लिए छह प्रशिक्षक
हैं। आपको जिनकी आवाज पसंद हों उन्हें चुनने का
विकल्प मौजूद है। यहां पर 20 अलग-अलग
प्रैक्टिस
एरिया पर फोकस कर सकते हैं। यह नौ भाषाओं को
सपोर्ट करता है। इसे आप एंड्रायड और आइओएस के
लिए डाउनलोड कर सकते हैं।
5 मिनट योग: आज के बिजी वर्क शेड्यूल को देखते
हुए योग के लिए ज्यादा समय निकालना कई लोगों के
लिए मुश्किल होता है। ज्यादा व्यस्त रहने वाले लोगों
के लिए '5 मिनट योग एप' उपयोगी साबित हो सकता
है। इसकी खासियत है कि योग के लिए आपको बहुत

ज्यादा समय देने की जरूरत
नहीं है। केवल पांच मिनट के
योग के जरिए खुद को स्वस्थ
रख सकते हैं। खासकर जो लोग
अभी योग सीखने की शुरुआत
ही कर रहे हैं, उनके लिए यहां
विभिन्न योगासनों के बारे में विस्तृत जानकारी दी
गई है। हर योगासन के लिए साफ तस्वीरें दी गई हैं।
साथ ही, यह भी बताया गया है कि किसी आसन को
कैसे करना है। पांच मिनट के योग के बाद बिल्कुल
स्ट्रेस फ्री महसूस करेंगे। पांच मिनट के दौरान प्रभावी
तरीके से योगाभ्यास के लिए इसमें टाइमर फंक्शन है।
अच्छी बात यह है कि प्रत्येक सत्र में पांच मिनट से भी
कम समय लगता है। पांच मिनट का यह योगाभ्यास
आफिस के तनाव को दूर करने के साथ सोने से पहले
रिलैक्स होने में मदद करेगा। वैसे, नियमित तौर पर
अभ्यास करते हैं, तो फिर शरीर में लचीलापन आता है,
ताकत बढ़ती है, मांसपेशियां मजबूत बनी रहती हैं और
तनाव कम होता है। इस एप को गूगल प्ले स्टोर और
एप स्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है।
ग्लो योग ऐंड मेडिटेशन एप: ग्लो एक डेली आनलाइन
योग, मेडिटेशन और फिटनेस एप है, जिसे शरीर
और दिमाग को बेहतर महसूस कराने के उद्देश्य से
डिजाइन किया गया है। इसमें दुनिया के बेहतरीन योग
टीचर के साथ घर पर ही योग का अभ्यास किया जा
सकता है। यहां पर योगाभ्यास शुरुआती लेवल से
कर सकते हैं या फिर अपनी जरूरत के हिसाब से


एडवांस क्लास को भी ज्वाइन,
कर सकते हैं। इसके फीचर्स की बात करें, तो यहां पर लेवल और एक्सपीरियंस के हिसाब से अलग-अलग क्लासेज हैं। अपने लिए पर्सनलाइज वर्कआउट को चुनने का विकल्प भी मौजूद है। अच्छी बात यह है कि रियल टाइम में ग्लो मेंबर के साथ लाइव क्लासेज ले सकते हैं। अगर आप चाहें, तो यहां पर अपने पसंदीदा क्लास को सेव भी कर सकते हैं। क्लासेज को डाउनलोड कर कहीं भी योग का अभ्यास किया जा सकता है। इसमें प्रोफेशनल्स द्वारा निर्देश भी मिलते हैं। साथ ही, इसमें सेल्फ गाइडेड प्रोग्राम्स भी हैं। अपने प्रोग्रेस को एपल वाच पर भी ट्रैक कर सकते हैं। यह एप आइओएस यूजर के लिए है। एप को फ्री में डाउनलोड कर सकते हैं, लेकिन प्रैक्टिस के लिए पैसा खर्च करना होगा।

सिंपल योग-होम इंस्ट्रक्टरः 

यह फ्री एप है, जो आपके लिए पर्सनल योग इंस्ट्रक्टर की तरह काम करता है। इसमें छह लेवल्स हैं। अच्छी बात यह है कि प्रत्येक योगासन को प्रशिक्षित योग टीचर द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। यहां पर आपको बस योग को सलेक्ट करना होता है। इसके बाद उसे घर पर ही आराम से कर सकते हैं। इसके फीचर्स की बात करें, तो छह पूर्वनिर्धारित लेवल का एक रूटीन है, जो 20 से 60 मिनट के हैं। इसमें आपको शुरुआती लेवल
से लेकर एडवांस लेवल तक के योगाभ्यास मिलेंगे।
पूरे रूटीन में वीडियो और आडियो निर्देश भी मिलते
रहते हैं। इसमें 35 से अधिक पोज को शामिल किया
गया है। खासकर जो लोग घर पर ही योगाभ्यास करना
चाहते हैं, उनके लिए यह बेहतर हो सकता है। इसे
एंड्रायड और आइओएस के लिए डाउनलोड किया जा
सकता है।

full stack development kya hai | Course | Career | Jobs | Salary

फुल स्टैक डेवलपमेंट में करियर कैसे बनाये या फुल स्टैक डेवलपमेंट में जॉब्स कैसे पाए?


कोरोनाकाल में जब मंदी जैसे हालात थे तब एक क्षेत्र ऐसा था जिसमें पेशेवरों की मांगवढ़ रही थी। वह सेक्टर था फुल स्टेक डेवलपमेंट का, इस समय देश में करीब 20 हजार ऐसे डेवलपर्स की आवश्यकता है। आइये जानें कैसे आप भी इस सेक्टर में बढ़ते अवसर का लाभ उठा सकते है........




फुल स्टैक डेवलपर क्या होता है ?

स्टैक डेवलपर क्या होता है जिसे फ्रंट एंड, बैक एंड, डाटा मैनेजमेंट से लेकर नेटवर्क सिक्योरिटी सभी की जानकारी होती है। इन्हें आप 'कंप्यूटर लैंग्वेज का वालमार्ट' कह सकते है, क्योंकि टेक्नोलाजी के क्षेत्र में जिस तरह से हर दिन नये इनोवेशन एवं डेवलपमेंट हो रहे हैं, उसे देखते हुए सभी में दक्षता प्राप्त करना आसान नहीं है। ऐसे
में फ्रंट एंड, बैक एंड, डाटा साइंस आदि तमाम विषयों की जानकारी आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त है।

फ्रंट एंड एवं वैक एंड के विशेषज्ञ :

किसी भी वेबसाइट या वेब एप्लीकेशन का इंटरैक्टिव हिस्सा जो हम देख पाते हैं, जैसे उसका डिजाइन, नेविगेट करने वाले मेन्यू, टेक्स्ट इमेज, वीडियो आदि, उन्हें फ्रंट एंड कहते हैं यानी जिसे यूजर्स (क्लाइंट) देखते हैं और उनके साथ इंटरैक्ट करते हैं। फ्रंट एंड डेवलपर यूजर इंटरफेस विकास के लिए कोडिंग पर विशेष ध्यान देते हैं। उन्हें एचटीएमएल, सीएसएस, जावास्क्रिप्ट की अच्छी नालेज होती है।
वहीं, वेबसाइट एवं वेब एप्लीकेशन के जिस हिस्से के साथ यूजर्स इंटरैक्ट नहीं कर पाते, जो वेबसाइट को चलाने एवं
उसे मेंटेन करने के लिए पीछे से जिम्मेदार होता है, उसे बैक एंड (सर्वर या लाजिक लेयर) डेवलपर कहते है। उनके पास जावा, पाइथन, पीएचपी, रूबी आदि की जानकारी होती है। इस प्रकार, एक फुल स्टैक डेवलपर फ्रंट एंड एवं बैक एंड, दोनों तरह की प्रोग्रामिंग का विशेषज्ञ होता है। यही वेब एप्लीकेशन को तैयार करते हैं।

शैक्षिक योग्यताएं: 

साफ्टवेयर डेवलपमेंट में दस वर्ष से अधिक का अनुभव रखने वाले सतीश बताते हैं कि फुल स्टैक डेवलपर बनने के लिए कोडिंग और प्रोग्रामिंग में रुचि होनी आवश्यक है। इसके लिए आफलाइन के साथ आनलाइन (यूडेमी, अपग्रेड, करियरएरा, उडेसिटी) आदि से कोर्स कर सकते हैं। कई विश्वविद्यालयों में इससे संबंधित सर्टिफिकेशन कोर्स चलाए जा रहे हैं। बीएससी (कंप्यूटर साइस) एवं बीटेक के बाद भी स्टूडेंट्स इसमें विशेषज्ञता हासिल कर आगे बढ़ रहे हैं।

करियर संभावनाए : 

विशेषज्ञों की मानें तो भारत के अलावा अमेरिका, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, न्यूजीलैंड में फुल स्टैक डेवलपर्स की काफी डिमांड है। इन्हें टेक्नोलाजी इंडस्ट्री का भविष्य कहा जा रहा है। बड़ी आइटी कंपनियों, स्टार्टअप, एमएनसी और बिजनेस हाउसेज में इनके लिए अवसर दिनो दिन बढ़ रहे हैं। यहां शुरुआती सैलरी पांच लाख रुपये के करीब होती है।


प्रमुख संस्थान

डीवाईपाटिल यूनिवर्सिटी, पुणे
https://adypu.edu.in
आइआइटीकानपुर
www.link.ac.in
जिगशा एकेडमी, बेंगलुरु
www.jigsawyacademy.com
-बिट्स पिलानी, राजस्थान
www.bits-pilaniac.in
आइआइटी रुड़की
https://new.itr.ac.in


कुशल डेवलपर्स की बढ़ रही मांग

टेक्नोलाजी दिन प्रतिदिन अपग्रेडहोती रहती है। जो कंपनिया इसे अपनाती हैं, वे आगे बढ़ जाती है। जैसे नोकिया ने खुद को अपग्रेड नहीं किया तो वह मार्केट से ही बाहर हो गई। आज की बात करेंतो कपनियां सेफ्टी पर जोर दे रही हैं। इसलिए कुशलफुल स्टेक डेवलपर्स की मांग तेजी से बढ़ रही है।

cds ki taiyari kaise karen in hindi

cds की तैयारी कैसे करे


सशस्त्र सेनाओं (थलसेना, नौसेना और वायुसेना) में अधिकारी पदों पर भर्ती के लिए संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) साल में दो बार संयुक्त रक्षा सेवा (सीडीएस) परीक्षा आयोजित करता है, जिसके तहत दो तरह के पदों के लिए परीक्षा होती है। इसमें एक परीक्षा सीडीएस-आइएमए (इंडियन मिलिट्री एकेडमी) के लिए होती है और दूसरी सीडीएस ओटीए (आफिसर ट्रेनिंग एकेडमी) के लिए। दोनों ही पदों की परीक्षा में अंग्रेजी और सामान्य ज्ञान का प्रश्नपत्र एक जैसा होता है। लेकिन सीडीएस- आइएमए में गणित का एक अतिरिक्त प्रश्नपत्र होता है यानी अगर सीडीएस क्रैक करना है, तो गणित, अंग्रेजी और सामान्य ज्ञान तीनों ही मजबूत होना चाहिए।

जैसा कि आप जानते हैं कि इस साल पहले चरण की सीडीएस परीक्षा हर महीने शम्भवतः 10 अप्रैल को प्रस्तावित है। ऐसे में आपके पास अपनी तैयारी को अंतिम रूप देने के लिए करीब दो सप्ताह का ही समय बचा है। ऐसे में आइये जानें, इस परीक्षा को अच्छे अंकों से क्रैक करने के लिए अगले कुछ दिनों तक क्या रणनीति होनी चाहिए....

अगले 15 दिनों की रणनीतिः

यदि आप सीडीएस आइएमए की तैयारी कर रहे हैं, तो गणित, अंग्रेजी और सामान्य ज्ञान के पिछले साल के पेपर को निर्धारित समय के अंदर परीक्षा जैसे माहौल में हल करें। इसी तरह, अगर आप सीडीएस ओटीए के लिए तैयारी कर रहे हैं, तो अंग्रेजी और सामान्य ज्ञान के पेपर को हल करें। उसके एक-एक प्रश्न की एनालिसिस करें और यह देखें कि आपका कौन-सा विषय/टापिक कमजोर है। फिर उसी के अनुसार तैयारी करें,

जैसेः

  • अपने कमजोर एरिया को मजबूत करने के लिए टापिक वाइज तैयारी करें, उसके बेसिक कांसेप्ट को समझें।क्योंकि इसके बिना इस परीक्षा को क्रैक नहीं कर सकते हैं। इसलिए अगले 10 दिन में विषयवार कम से कम 10 टापिक के बेसिक कांसेप्ट को अवश्य मजबूत बना लें।
  • परीक्षा के आखिरी पांच दिनों में 2015 से 2021 तक के प्रश्नपत्रों की प्रैक्टिस करें। प्रतिदिन हर विषय के दो प्रश्नपत्र की प्रैक्टिस करें। ये सभी पेपर व्याख्या के साथ गूगल पर उपलब्ध हैं। इस दौरान जिन प्रश्नों के जवाब गलत हुए हैं, उन्हें फिर से तैयार कर लें और उससे संबंधित टापिक को संक्षेप में फिर से पढ़ भी लें।
  • आखिरी दो दिनों में कम से कम पांच माक टेस्ट पेपर की प्रैक्टिस करें। ये पेपर्स आपको बाजार में मिल जाएंगे।
  • परीक्षा के पहले की रात में खुद को तनावमुक्त रखने के लिए कोई कामेडी फिल्म या सीरियल देखें और ज्यादा से ज्यादा आराम करें।
  • परीक्षा में किसी भी प्रश्न का उत्तर ऊपर वाले के भरोसे पर न दें और न ही कोई तुक्का लगाएं, अन्यथा गलत होने पर आपके सही अंक में से एक तिहाई अंक काट लिए जाएंगे। इसलिए विश्वास के साथ उत्तर दें।
  • इस परीक्षा में यदि आपने 30 प्रतिशत से अधिक प्रश्नों को पूरी शुद्धता साथ हल कर लिया, तो आपका चयन होने का अवसर बन सकता है।

ईपीएफ ई नामांकन - epf e nomination kaise kare

(भविष्य निधि कर्मचारी) इपीफ मे कैसे ई-नामांकन करें?





अगर आप कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के सदस्य हैं, तो ईपीएफ एकाउंट में ई-नामांकन करना अब जरूरी हो गया है। इसके बिना ई-पासबुक को एक्सेस करना मुश्किल हो जाएगा। आपको बता दें कि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन अपने सब्सक्राइबर्स को कई तरह की सुविधाएं और फायदे देता है। इसमें ईपीएफओ के सदस्य को कर्मचारी जमा लिंक्ड बीमा योजना का लाभ भी मिलता है। इसके तहत ईपीएफओ के सदस्य को गारंटीशुदा पेंशन और बीमा का लाभ मिलता है, मगर इसके लिए अब ई-नामांकन करना जरूरी हो गया है। इसमें प्रत्येक ईपीएफ सदस्य को नामांकित व्यक्ति चुनना होता है, ताकि मृत्यु की स्थिति में नामांकित व्यक्ति को उस खाते से जुड़े लाभ आसानी से मिल सकें। आइए आपको बताते हैं क्या है ईपीएफ में

ई-नामांकन का आनलाइन तरीका:

  • ई-नामांकन के लिए आपको ईपीएफओ की आधिकारिक वेबसाइट epfindia.gov.in पर जाना होगा। यहां पर आपको सर्विस वाले विकल्प में जाना है।
  • जब इस पर क्लिक करेंगे, तो आपको कई विकल्प दिखाई देंगे। इसमें से आपको 'फार एंप्लायी' वाले आप्शन को चुनना होगा।
  • फिर आपको मेंबर यूएएन । आनलाइन सर्विस (ओसीएस/ओटीपी) पर क्लिक करना होगा।
  • इसके बाद जब अपने यूएएन और पासवर्ड के साथ ईपीएफ एकाउंट को लागइन कर लेते हैं, तो फिर आपको एकाउंट खुलने के बाद 'मैनेज टैब' में ई-नामांकन का विकल्प दिखाई  देगा। अब आपको इसे सेलेक्ट करना होगा।
  • यहां पर आपको टैब स्क्रीन पर प्रोवाइड डिटेल दिखाई देगा और फैमिली डिक्लेयरेशन को अपडेट करने के लिए 'हां' पर क्लिक करना होगा।
  • अब यहां पर आपको 'एड फैमिली डिटेल्स' पर क्लिक करना होगा।
  • यदि आप चाहें, तो यहां पर नामांकित में एक से अधिक व्यक्तियों को जोड़ सकते हैं।
  • अब आपको नामिनेशन डिटेल्स पर क्लिक करना होगा। फिर सेव ईपीएफ नामिनेशन पर क्लिक करना होगा।
  • अंत में ओटीपी जेनरेट करने के लिए ई-साइन पर क्लिक करना होगा।
  • ओटीपी आधार से जुड़े मोबाइल नंबर पर आएगा, जिसे आपको दर्ज करना, होगा। इस तरह आसानी से ई-नामिनेशन कर पाएंगे।
  • अधिक जानकारी के लिए ईपीएफओ की आधिकारिक वेबसाइट epfindia.gov.in पर विजिट कर सकते हैं।

2022-05-08

परक्यूटेनस डिस्क न्यूक्लियोप्लास्टी - स्पाइनल डिस्क प्रॉब्लम का उपचार व इलाज के बारे में जानकारी

स्पाइनल डिस्क इलाज (ट्रीटमेंट) क्या है?


स्पाइनल डिस्क के असहनीय दर्द से जुझ रहे मरीजो के लिये परक्यूटेनस डिस्क न्यूक्लियोप्लास्टी साबित हो रही है कारगर.......


वर्तमान में स्पाइन से जुड़ी समस्याएं आम बात हैं। अब कमर व स्पाइन के दर्द की परेशानी बुजुर्गों में ही नहीं, युवाओं में भी हो रही है। इसके कई कारण हैं, जिनमें से सबसे प्रमुख हैं बैठने की गलत मुद्राएं, खाने की खराब आदतें और शारीरिक व्यायाम का अभाव। परिणामस्वरूप 23-24 साल की उम्र के युवाओं में यह तकलीफ खूब हो रही है। जब यही दर्द असहनीय होता है तो चिकित्सकीय परामर्श लिया जाता है, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। यदि रीढ़ की हड्डी में किसी भी प्रकार का विकार है तो एम.आर.आई द्वारा पता भी चल जाता है और दवाओं व फिजियोथेरेपी से बीमारी ठीक भी हो जाती है। जबकि कुछ

मरीजों में इस तरह के उपचार से समस्या का हल नहीं निकलता है। ऐसे मरीजों के लिए परक्यूटेनस डिस्क न्यूक्लियोप्लास्टी एक बेहतरीन उपचार पद्धति है।

ऐसे की जाती है यह सर्जरी: 

परक्यूटेनस डिस्क न्यूक्लियोप्लास्टी एक मिनिमल इनवेसिव यानी कम से कम चीड़फाड़ के साथ की जाने वाली सर्जरी है, जिसमें उभरी हुई या हेर्निएटिड डिस्क की मात्रा घटाई जाती है। यह विधि छोटी हेर्निएटिड या उभरी हुई
डिस्क, जो डिस्क की मजबूत फाइबर रिंग से टूटी न हो, उसके उपचार में लाभदायक होती है। जबकि ओपन सर्जरी के माध्यम से इसका उपचार संभव नहीं है। परक्यूटेनस सर्जरी ऐसी सर्जरी है, जिसे त्वचा में बेहद छोटे चीरों के माध्यम से किया जाता है। इसमें सुइयों के प्रयोग से डिस्क के फैलाव को कम किया जाता है। इस सुई को रेडियोफ्रीक्वेंसी उपकरण की सहायता से डिस्क के बीच में भेजा जाता है, जहां यह डिस्क में मौजूद अनावश्यक पदार्थ को हटाने का काम करती है। इससे डिस्क की बाहरी दीवार पर पड़ रहे दबाव में राहत मिलती है और डिस्क के फैलाव में कमी आती है।

कारगर के साथ फायदेमंद भी

न्यूक्लियोप्लास्टी थर्मल कोब्लेशन के द्वारा भी किया जा सकता है। इसमें लेजर की हल्की सिंकाई के परिणामस्वरूप संकुचन के साथ-साथ डिस्क का फैलाव कम हो जाता है और संकुचित तंत्रिका खुल जाती है। इससे पैर और पीठ में हो रहे दर्द से राहत मिल जाती है।

इस प्रक्रिया को इंट्राडिस्कल इलेक्ट्रोथर्मल थेरेपी (आई.डी. टी.) कहा जाता है। इसमें मरीज सर्जरी के तुरंत बाद घर वापस जा सकता है। यही नहीं इसमें एनेस्थीसिया की भी जरूरत नहीं पड़ती है, इसलिए यह सुरक्षित और कारगर सर्जरी है। इसमें किसी भी तरह से रक्तस्राव न होने की वजह से इसे बुजुर्ग भी करवा सकते हैं। इसीलिए मेडिकल साइंस में न्यूक्लियोप्लस्टी स्पाइन के मरीजों के लिए एक नई उम्मीद माना जा रहा है।

हार्ट हेल्थ टिप्स - heart healthy kaise rakhe | heart ka khayal kaise rakhe

दिल की सेहत और हार्ट का ख्याल कैसे करें


ठंड बढ़ने के साथ ही हृदय रोगियों की दिक्कतें भी बढ़ने लगी हैं। हृदय रोगों का संबंध सिर्फ उम्र से नहीं होता। युवाओं को भी इसे लेकर सजग रहना चाहिए। खासकर मधुमेह, रक्तचाप, मोटापे व कोरोना से उबरे लोगों को आजकल बेहद सावधान रहने की आवश्यकता है, क्योंकि सर्दी के मौसम में शरीर में रक्त संचार व आक्सीजन के प्रवाह पर असर पड़ता है। सही जानकारी से दिल को सुरक्षित रखना। है मुमकिन.....


दिल का ख्याल कैसे रखें


सर्दी के मौसम में संपूर्ण स्वास्थ्य के साथ ही दिल की सेहत को विशेष खयाल रखने की जरूरत है। दरअसल सर्दी के मौसम में ऐसे कई कारक हैं, जो हृदय का तनाव बढ़ाते हैं। इनमें मुख्य रूप से शामिल हैं, शरीर की रक्त वाहिकाओं का संकुचन (यदि त्वचा ठंड के संपर्क में है) और पूरे शरीर के ठंड के संपर्क में आने से औसत रक्तचाप बढ़ जाना। इससे हृदय को पंप करने के लिए अतिरिक्त उच्च बल की आवश्यकता होती है। इसके अलावा ठंडी हवा में सांस लेने पर हृदय की गति बढ़ सकती है साथ ही अधिक पेशाब होने और रक्त वाहिकाओं के संकुचन के कारण खून गाढ़ा हो जाता है। ऐसे में हृदय के लिए पंप करना चुनौती बन जाता है। इस बढ़े हुए कार्य का ही नतीजा है कि हृदय की मांसपेशियों में आक्सीजन की मांग बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में हृदय की धमनियों में रक्त का प्रवाह बढ़ना बेहद जरूरी है।

कहा जा सकता है कि उच्च-मध्य दाब के विरुद्ध विभिन्न अंगों को पर्याप्त मात्रा में गाढ़ा रक्त पंप करने के लिए न केवल हृदय का कार्य बढ़ जाता है, बल्कि रक्त की आपूर्ति की जरूरत भी बढ़ जाती है।
ये सभी समस्याएं अंतर्निहित हृदय रोग, जैसे- उच्च रक्तचाप, हृदयाघात आदि के रोगियों में अधिक बढ़ जाती हैं। हृदय की मांसपेशियों में आक्सीजन की मांग बढ़ने के कारण हृदयाघात हो सकता है, क्योंकि
हृदय में रक्त का प्रवाह आवश्यकता के अनुसार नहीं बढ़ सकता है। पहले से ही उच्च रक्तचाप वाले व्यक्तियों में बढ़े हुए दबाव से मामूली रक्तस्राव हो सकता है। यह हृदय की विफलता (हार्ट फेल्यर) का
कारण भी बन सकता है।

उच्च रक्तचाप व मधुमेह के रोगी:

अनियंत्रित मधुमेह और मोटापा, दोनों ही एथेरोस्क्लेरोसिस (धमनियों का कठोर व संकीर्ण होना) की घटनाओं को बढ़ा सकते हैं। जब भी एथेरोस्क्लेरोसिस हृदय वाहिकाओं को प्रभावित करता है, इसके परिणाम सीधे हृदयाघात के रूप में सामने आ सकते हैं। धमनी की बीमारी की स्थिति में जब भी ठंड के संपर्क में आने से हृदय पर कोई दबाव आता है तो दिल का दौरा पड़ने का खतरा रहता है। इसके अलावा लंबे समय तक मधुमेह रहने से रक्त वाहिकाएं सख्त हो जाती हैं, जिससे उच्च रक्तचाप की स्थिति पैदा हो सकती है। उच्च रक्तचाप से ग्रसित रोगी के संदर्भ में इस बात पर जोर दिया जाता है कि अचानक रक्तचाप बढ़ने से कहीं जानलेवा रक्तस्राव न होने लगे।

इस प्रकार मोटापे, उच्च रक्तचाप और मधुमेह के रोगियों को अपने हृदय के स्वास्थ्य की समय-समय पर जांच कराने की आवश्यकता पड़ती है। वर्तमान में पोस्ट कोविड रोगियों के हृदय रोग से पीड़ित होने की सूचना मिल रही हैं। इन हालात में हृदय की पंप करने की क्षमता घट जाती है, क्योंकि कोरोना से हृदय की मांसपेशियां भी प्रभावित होती हैं। यह मरीज के हार्ट फेल्यर (हार्ट की पंप करने की गति कम हो जाना) की आशंका को बढ़ा सकता है और ठंड के संपर्क में आने से पैदा होने वाला कोई भी तनाव गंभीर हृदय रोग का कारण बन सकता है।

क्या करें मोटापा, उच्च रक्तचाप व मधुमेह के रोगी: 

ऐसे रोगियों को चाहिए कि जितना हो सके घर के अंदर रहें, गिरते तापमान या ठंडी हवाओं के संपर्क में आने से बचें, पर्याप्त गर्म भोजन और गर्म पेय पदार्थ लें स्वयं को एक मोटी परत के बजाय पतले कपड़ों की कई परत से ढकें। यह उपक्रमे अधिक बचाव करता है। घर के अंदर रहते हुए भी नियमित रूप से हल्के व्यायाम करें। जिन लोगों को दिल की बीमारी है, उन्हें कठिन व्यायाम से बचना चाहिए।

बुजुर्ग और गर्भवती महिलाओं की सुरक्षा:

जब बात दिल को सेहतमंद रखने की हो तो बुजुर्गों और गर्भवती महिलाओं के लिए ठंड.के जोखिम की प्रकृति एक समान होती है। एक गर्भवती महिला में पहले से ही रक्त की मात्रा में वृद्धि के कारण हृदय पर कार्य का भार बढ़ जाता है और अतिरिक्त तनाव से सामान्य वयस्कों की तुलना में उनकी हृदय गति रुकने की आशंका बढ़ जाती है।
गर्भावस्था में हृदय की किसी भी समस्या के कारण गर्भस्थ शिशु पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका होती है। इसलिए हृदय संबंधी तनाव को बढ़ाने वाले किसी भी परिस्थिति से गर्भवती स्त्रियों को बचना चाहिए। बुजुर्गों को भी विशेष सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है, क्योंकि किसी भी तरह के तनाव के परिणामस्वरूप उन्हें हृदय रोग आसानी से हो सकता है।
तनाव देने वाली परिस्थितियों को दूर रखते हुए स्वस्थ खानपान, व्यायाम व प्राणायाम को दिनचर्या का हिस्सा बनाकर वे हृदय रोगों से सुरक्षित रह सकते हैं

पर्यावरण का भी रखें ध्यान 

पर्यावरण प्रदूषण का दुष्प्रभाव उच्च रक्तचाप, हृदय रोग और हृदय संबंधी मौतों की बढ़ती घटनाओं के रूप में सामने आता है। इसलिए आटोमोबाइल का उपयोग कम करें, जहां भी संभव हो वाहनों को साझा करें, मास्क का उपयोग करें, लेड या कैडमियम का उपयोग करने वाले उद्योगों के संपर्क में आने से बचें, खाना पकाने के लिए एलपीजी जैसे स्वच्छ घरेलू ईंधन का उपयोग करें।


दिल की बीमारी के कारण

युवाओं में धूमपान, तंबाकू और नशीली दवाओं के सेवन की प्रवृत्ति, अनियमित जीवनशैली के कारण उच्च रक्तचाप की समस्या, फास्ट फूड और वसायुक्त भोजन के अत्यधिक सेवन से हाइपरलिपिडिमिया (रक्त में उच्च मात्रा में वसा) की शिकायत सामान्य बात है। ये स्थितियां हृदय की धमनी के लिए जोखिम पैदा करती हैं। मानसिक तनाव से हृदय की सेहत सीधे प्रभावित होती है, इसलिए उपरोक्त से बचाव जरूरी है


दिल को सुरक्षित रखने के उपाय

सर्दी के मौसम में दिल को सेहतमंद रखने और युवाओं में दिल के दौरे का जोखिम कम करने के लिए निम्नलिखित सावधानियां बरतना जरूरी है:-
  • नियमित रूप से सप्ताह में पांच दिन कम से कम 30 मिनट व्यायाम अवश्य करें।
  • फास्ट फूड और वसायुक्त खाद्य पदार्थों के सेवन से पूरी तरह परहेज करें।
  • मानसिक एवं भावनात्मक तनाव को कम करें साथ ही आराम के लिए समय जरूर निकालें।
  • नियमित रूप से व्यायाम व प्राणायाम करें। इससे रक्त में आक्सीजन का प्रवाह बेहतर होता है।
  • घूमपान या किसी भी नशीली दवा के सेवन से पूरी तरह दूर रहें।

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भारत ही नही, पुरे विश्व मे डाटा का इस्तेमाल और उस पर व्यवसायों की निर्भरता बढ़ती जा रही है। डाटा एनालिस्ट इसी काम से जुड़ा करियर है। इससे जुड़े कोर्स और अवसरों के बारे मे........


    तकनीक के बढ़ते इस्तेमाल की वजह से आज चुनौतीपूर्ण उसके डाटा को सहेजना और व्यवस्थित तरीके से विश्लेषित करना होता है, क्योंकि किसी भी कंपनी की ग्रोथ के पैटर्न उसके डाटा में छिपे होते हैं। डाटा एनालिटिक्स इस काम को बखूबी अंजाम देते हैं। वे डाटा को रिपोर्ट व चार्ट में प्रदर्शित करते हैं, ताकि हर कोई इसे आसानी से समझ सके।
    इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रोद्यौगिकी मंत्रालय की पूर्व में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, 2018 के अंत तक देश में करीब पांच लाख डाटा एनालिटिक्स प्रोफेशनल की जरूरत थी। यह 2021 तक बढ़कर साढ़े सात लाख के करीब पहुंच गई। अनुमान है कि इस साल के अंत तक यह संख्या और बढ़ जाएगी। इसलिए युवाओं के लिए यह नए जमाने का करियर है, जिसमें तरक्की के पर्याप्त मौके हैं।

क्या है डाटा एनालिटिक्स


वर्तमान में जो भी डाटा एकत्र किया जाता है, वह काफी जटिल होता है। इसका बारीकी से अध्ययन कर अपने काम की चीज निकालना ही डाटाएनालिस्ट का काम होता है। साथ ही, व्यवसाय बढ़ाने में इस डाटा का किस प्रकार उपयोग हो सकता है, ये परखना भी इन्हीं का काम होता है। यही वजह है कि इन्हें बिजनेस डाटा एनालिस्ट भी कहा जाता है। इनका पहला कदम यह होता है कि वे जिस कंपनी या संस्था के लिए कार्य कर रहे हैं, उसके लक्ष्य को समझें। डाटा एनालिस्टविभिन्न स्रोतों से एकत्र किए गए डाटा की जांच कर फैक्ट निकालता है। इसे डाटा क्लीनिंग कहा जाता है। डाटा के निष्कर्ष की व्याख्या व उस आधार पर बिजनेस प्लान बनाना इसका कार्य है।

कुछ प्रचलित कोर्स

  • पीजी प्रोग्राम इन डाटा एनालिटिक्स
  • एडवांस कोर्स इन बिग डाटा एनालिटिक्स
  • एग्जीक्यूटिव प्रोग्राम इन बिजनेस डाटा एनालिटिक्स
  • सर्टिफिकेट प्रोग्राम इन बिग डाटा एनालिटिक्स
  • पीजी सर्टिफिकेट प्रोग्राम इन डाटा एनालिटिक्स
  • पीजीडीएम इन एनालिटिक्स स्पेशलाइजेशन

कब कर सकेंगे कोर्स

डाटाएनालिटिक्स से सम्बंधित कोर्स स्नातक के बाद किए जा सकते हैं। इसके लिए आर्ट, साइंस या इंजीनियरिंग स्ट्रीम में स्नातक की डिग्री जरूरी है। कई संस्थान मास्टर डिग्री के बाद एडवांस सर्टिफिकेट या पीजी डिप्लोमा कराते हैं। इसके लिए स्टैटिस्टिक्स, कम्प्यूटर साइंस, मैथमेटिक्स व अकाउंटिंग के छात्रों को वरीयता दी जाती है। इसमें छह माह से लेकर दो साल तक के कोर्स उपलब्ध हैं। हाल ही में आईआईएम, कोलकाता व आईआईटी, खड़गपुर ने दो साल का डाटा एनालिटिक्स शुरू किया है। कई तरह के ऑनलाइन कोर्स भी प्रचलन में हैं।


प्रमुख प्रशिक्षण संस्थान

  • इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस, हैदराबाद
  • ब्रिज स्कूल ऑफ मैनेजमेंट, गुरुग्राम
  • इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मार्केट रिसर्च एंड एनालिटिक्स, बेंगलुरु
  • इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, लखनऊ
  • आईएमटी, गाजियाबाद
  • आईआईएम बेंगलुरु

इन गुणों का होना भी जरूरी

चूंकि ये काम आंकड़ों से सम्बंधित है, ऐसे में आपको आंकड़ों से प्रेम करना सीखना होगा। प्रोफेशनल्स को सही निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए लंबे समय तक जूझने की कुव्वत होनी चाहिए। उन्हें सांख्यिकी, गणित, प्रोग्रामिंग, जावा, पाइथॉन की अच्छी समझ होनी चाहिए। अपने डाटा विजुअलाइजेशन के जरिए बिजनेस को किस प्रकार सपोर्ट कर सकते हैं, यह गुण होना भी जरूरी है।

रोजगार के असीम अवसर

विदेशी कंपनियों के भारत में तेजी से पैर पसारने के चलते यहां भी व्यवसाय व जॉब का ट्रेंड बदला है। इसके चलते डाटा एनालिक्सि की बहुत मांग है। अभी सबसे अधिक मांग ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट, मार्केट रिसर्च फर्म, एनालिटिक्स यूनिट, आईटी सॉफ्टवेयर कंपनियों, कंसल्टिंग सर्विस, एनजीओ, केपीओ आदि में है।
कंस्ट्रक्शन, मैन्युफैक्चरिंग, हेल्थकेयर, टेलिकॉम, रिसर्च विंग, ई-कॉमर्स से जुड़े क्षेत्रों में भी डाटा एनालिस्ट की जरूरत पड़ती है। इसमें जो भी मौके मिलते हैं, वे बिजनेस डाटा एनालिस्ट, डाटा विजुअलाइजर, डाटा मैनेजर, डाटा आर्किटेक्ट, बिजनेस इंटेलिजेंस एनालिस्ट आदि के रूप में होते हैं। टीचिंग में भी लोग हाथ आजमाते हैं।

क्या होगी सैलरी

शुरू में वेतन 25-30 हजार रुपये प्रतिमाह होता है। तीन-चार साल के अनुभव के बाद सैलरी 50-55 हजार रुपये प्रतिमाह हो जाती है। टीचिंग में अमूमन 60-65 हजार रुपये वेतन मिलता है। मल्टीनेशनल व कारपोरेट कंपनियां बहुत आकर्षक पैकेज देती हैं।


एक्सपर्ट की राय

निश्चित रूप से बीते तीन-चार साल में डाटा का इस्तेमाल बढ़ा है। आज सोशल मीडिया एडवरटाइजिंग के जरिए
कम समय व कम खर्च में बड़ी आबादी तक पहुंचना आसान हो गया है। शारीरिक रूप से मौजूद न रहते हुए अपनी
बात आंकड़ों के जरिए सफलता के साथ समझाई जा रही है। डाटा एनालिटिक्स टूल्स व टेक्निक के जरिए इसमें
बड़ा योगदान दे रहे हैं। इस क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौती कस्टमर की जरूरत को समझना व तुरंत निर्णय लेते हुए
उन्हें डाटा के जरिए संतुष्ट करना है। यह तेजी से उभरता हुआ क्षेत्र है, जिसमें मांग के मुताबिक सप्लाई नहीं हो पा
रही है। स्किल्ड प्रोफेशनलों की आज भी भारी मांग है।

2022-05-07

ghutno ka dard kaise theek karen | Ilaaj | Upchar

घुटने का दर्द दूर कैसे करें, इलाज व उपचार के बारे में 


घुटनों के विकारग्रस्त होने पर होती है दर्द और चलने- फिरने की समस्या । जानते हैं इसके कारण और निवारण के बारे में...


निष्क्रिय जीवनशैली, जंक फूड व फास्ट फूड का सेवन, बिगड़ी दिनचर्या, अनिद्रा और मोटापे के कारण बुजुर्ग ही नहीं, युवाओं में भी जोड़ों के दर्द की समस्या हो रही है।  शरीर के अन्य जोड़ों की तुलना में  घुटने के जोड़ों से जुड़ी समस्याओं के मामले अधिक होते हैं। एक तो इनका प्रयोग बहुत अधिक होता है, दूसरा यह पूरे शरीर का भार भी सहते हैं। इसके अतिरिक्त  मौसम का प्रभाव भी घुटनों की सेहत पर पड़ता है।

अस्थिरोग विशेषज्ञों के अनुसार, सर्दियों में घुटनों के दर्द से ग्रसित लोगों की संख्या में 15 से 20 फीसद तक की बढ़ोतरी हो जाती है। घुटनों में लिगामेंट्स, टेंडन, मांसपेशियां और हड्डियां होती हैं। इनमें विकार होने पर दर्द होने
लगता है। जो लोग घुटनों के दर्द से जूझ रहे हैं, सर्दियों का मौसम उनकी समस्या को बढ़ा देता है। इसका कारण है कि सर्दियों में  जोड़ की रक्त वाहिकाएं संकुचित हो जाती हैं और इससे रक्त संचार प्रभावित होता है। इससे घुटने के जोड़ कड़े हो जाते हैं और दर्द होता है। सर्दियों में टेंडन, मांसपेशियों और ऊतकों में  सूजन बढ़ जाती है। ये भी शरीर के विभिन्न जोड़ों में होने वाले दर्द का कारण है।

लक्षण
  • घुटनों में तेज दर्द होना।
  • दर्द का लगातार बना रहना।
  • घुटनों को मोड़कर या सीधा न रख पाना।
  • चलने में लचक आना।
  • सूजन और लालिमा रहना।
  • उठने-बैठने में कमजोरी महसूस होना।
  • दर्द के साथ उठने-बैठने में हड्डियों के चटकने की आवाज आना।
  • कभी-कभी दर्द के साथ बुखार आना।

प्रारंभिक उपचारः

यदि घुटने के दर्द की शुरुआती अवस्था है तो निम्न उपायों से राहत पाई जा सकती है।

कंप्रेसः अपने घुटनों को इलास्टिक बैंडेज से बांध लें, इससे सूजन कम होगी। ध्यान रखें कि बैंडेज
अधिक टाइट न हो।

हीट थेरेपी: यदि घुटनों में कड़ापन आ गया है तो हीटिंग पैड्स लगाएं या गर्म पानी से सिकाई करें। इससे ऊष्मा से जोड़ों की ओर रक्त का संचार बढ़ेगा और दर्द में आराम मिलेगा।

मसाजः घुटनों में तेल या मेडीकेटेड क्रीम से मसाज करना भी फायदेमंद रहता है। इससे जोड़ लचीले रहते हैं, लेकिन ध्यान रहे कि मसाज हल्के हाथों से तीन या चार मिनट तक ही करें।


चिकित्सकीय परामर्श लें:

घुटनों में असहनीय दर्द की परेशानी होने पर लोग खुद से किसी भी दवा का सेवन करते हैं या तरह-तरह के नुस्खे प्रयोग करते हैं। कई बार इससे समस्या बढ़ जाती है। इसलिए चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए। समस्या के हिसाब से यह चिकित्सक सुनिश्चित करेंगे कि आपको दवा, इंजेक्शन या सर्जरी की जरूरत है।

इन बातों का रखें ध्यान

  • ताजीहरी सब्जियों व फलों का सेवन करें।
  • मेवे, दूध व दूध से बने उत्पादों को भोजन में शामिल करें।
  • फलियों व अंकुरित अनाज का सेवन करें।
  • सर्दियां हैं तो घरपरहीथोड़ा समय व्यायाम के लिए अवश्य निकालें।
  • धूप जरूर लें, इससे शरीर में विटामिन-डीकी पूर्ति होती है।
  • शरीरको अच्छी तरह ढककर रखें, जिससे
  • जोड़ों में गरमाहट बनी रहे।
  • वजन नियंत्रित रखें।
  • यदि घुटनों से जुड़ी समस्या है तो कठिन
  • योगासनों व व्यायाम कीजगह वाक करें।

kamar dard ke karan | illaj | Upay | Lakshan | Upchar

कमर का दर्द कैसे ठीक करें उपाय, इलाज, कारण, उपचार के बारे में जानकारी हिंदी में


कमर की बनावट में प्रमुख रूप से कार्टिलेज, जोड़, मांसपेशियां और लिगामेंट शामिल हैं। इनके विकारग्रस्त होने पर हो सकती है कमर दर्द की परेशानी ....


कमर दर्द दूर या ठीक कैसे करे या क्या करना चाहिए?



कमर दर्द की समस्या सुनने में जितनी सामान्य लगती है, हो सकता है उसका कारण उतना सामान्य न हो। कमर दर्द की समस्या मामूली कारणों से हो सकती है। तो कई बार गंभीर समस्याएं भी इसका कारण होती हैं। वर्तमान में सिरदर्द के बाद कमर दर्द सबसे आम स्वास्थ्य समस्या  है। कमर दर्द स्पाइन में फ्रैक्चर होने और चोट लगने के अलावा आस्टियोपोरोसिस, ट्यूमर या अन्य स्वास्थ्य समस्या के कारण हो सकता है। इससे खड़े होने, झुकने और मुड़ने में तकलीफ होती है। ठंड के दिनों में इसका दर्द अधिक होता है। यदि अनदेखी की गई तो भविष्य में यह गंभीर समस्या बन सकती है।

इसे जरूर करें

  • अनियमित जीवनशैली से बचें।
  • भोजन में कैल्शियम और विटामिन-डी को शामिल करें।
  • पैदल चलने कीआदत डालें।
  • योग और व्यायाम को दिनचर्या का हिस्सा बनाएं।
  • वजन नियंत्रित रखें।
  • उठने-बैठने का तरीका सही रखें।

कमर दर्द का प्रमुख कारण

  • शारीरिक रूप से निष्क्रिय रहना ।
  • धूमपान
  • मोटापा।
  • रीढ़ की हड्डी का संक्रमण ।
  • स्पाइनल कार्ड कंप्रेशन।
  • स्पांडलाइटिस।
  • स्लिप डिस्क विकार।
  • सियाटिका।
  • स्पाइनल अर्थराइटिस।
  • स्पाइनल स्टेनोसिस।
  • स्पाइनल ट्यूबरकुलोसिस।

उपचार के विकल्प

कमर के सामान्य दर्द को जीवनशैली में परिवर्तन और दवाओं द्वारा ठीक किया जा सकता है, लेकिन गंभीर मामलों में अन्य विकल्प अपनाने पड़ते हैं। डिस्क खराब होने पर डिस्क को निकालकर कृत्रिम डिस्क लगा दी जाती है। इसके अतिरिक्त कमर और डिस्क के दर्द के लिए ओजोन थेरेपी भी एक विकल्प है। इसमें माइक्रोस्कोपिक सर्जरी
द्वारा ओजोन को डिस्क के आंतरिक हिस्से तक पहुंचाया  जाता है। हालांकि हर तरह के कमर दर्द में यह कारगर नहीं है। कमर दर्द की परेशानी लाइलाज नहीं है, लेकिन समय पर पहचान और उपचार से इसे पूरी तरह ठीक किया जा सकता है। अत्याधुनिक उपचारों द्वारा कमर दर्द से जुड़ी हर समस्या का निदान हो सकता है और मरीज सामान्य जीवन जी सकता है।

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सूर्य नमस्कार आसन करने की विधि, लाभ व फायदे


सूर्य नमस्कार आसन कैसे किया जाता है?


शक्तिमान व निरोगी तन प्रदान करने वाला माना जाता है सूर्यदेव को। योग मे सुर्य नमस्कार को विशिष्ट स्थान दिया गया है, यह योग का प्रारंभ भी है और शरीर का सम्पुर्ण व्यायाम भी........


5 प्रमुख लाभ

सुडौल शरीर, मजबुत मेरुदंड, बेहतर पाचन, एकाग्र मन, विश्रांती 



तन-मन जगाएं 12 मुद्राएं पहली सुबह दैनिक क्रिया के बाद हल्के कपड़े पहनकर उगते. हुए सूर्य की तरफ मुंह करके सीधे खड़े हो जाएं।

इसके पश्चात दोनों हाथ नमस्कार की मुद्रा में जोड़कर आखें बंद करके अपने हाथों का सीने पर दबाव बनाते हुए हाथ की बीच वाली अंगुली को ठोढ़ी से स्पर्श कराएं।

दूसरी: गहरी सांस लेते हुए दोनों हाथों को सिर के ऊपर ले जाकर कमर से पीछे की ओर धीरे से झुकते हुए सांस रोककर जितना संभव हो सके, रुकें।

तीसरी: इसको पादहस्त आसन भी कहते हैं। इसमें सांस को धीरे-धीरे छोड़ते हुए आगे की ओर झुककर दोनों हाथों को पंजों के बगल में रखते हैं। इसके बाद माथे को घुटनों से लगाते हैं।

चौथी: इसमें बाएं पैर को पीछे की तरफ ले जाते हैं। इसके बाद दाहिने पैर को घुटने से 90 अंश पर मोड़ते हुए दोनों हाथों को पंजे के बगल में जमीन पर रखते हैं। इस दौरान निगाह सामने और गर्दन सीधी रखें।

पांचवी: दोनों हाथों को सांस भरते हुए ऊपर की ओर उठाएं। इसके पश्चात कमर से ज्यादा से ज्यादा पीछे की तरफ झुकते हुए सांस रोककर अपनी क्षमता अनुसार रुकें।

छठवीं: सांस छोड़ते हुए दोनों हाथों को फिर से पैर के बगल में रखते हैं और फिर उछलते हुए पैरों की स्थिति में परिवर्तन करते हैं। इसमें आगे वाले पैर को पीछे और पीछे वाले पैर को आगे ले जाकर सामने की ओर देखते हैं।

सातवी: इसमें भी पांचवीं की तरह ही गहरी सांस भरते हुए दोनों हाथों को सिर के ऊपर से आकर कमर से पीछे की ओर झुककर जितना संभव हो सके रुके।


आठवी: इसमें सांस छोड़ते हुए दोनों हाथों को पैर के बगल से रखकर आगे वाले पैर को भी पीछे ले जाते हैं। पैरों के घुटने व रीढ़ को सीधा रखकर पैर की एड़ियों को जमीन से लगाकर रखना है।

नौवी: इसमें सांस छोड़ते हुए दोनों हाथों को कंधे के बगल में रखते हुए सीने को जमीन की तरफ ले जाते हैं। इसमें मस्तक, कंधा, हाथ, सीना, दोनों घुटने व पैर के पंजे जमीन से स्पर्श करते हैं, लेकिन पेट जमीन से स्पर्श नहीं होना
चाहिए। इस अवस्था को अष्टांग प्रतिपादासन कहते हैं।

दसवीं: सूर्य नमस्कार की इस अवस्था को सर्पासन भी कहा जाता है। इसमें दोनों हाथ कंधे के बगल में रखकर सांस भरते हुए नाभि से आगे वाले भाग को ऊपर उठाते हुए कमर से पीछे की ओर मोड़ देते हैं। इसके पश्चात आसमान को निहारते हुए रुकते हैं।

ग्यारहवीं: इसमें सांस छोड़ते हुए वापस आते हुए उछल कर माथे को पैर के घुटनों से स्पर्श कराते हैं और तीसरी अवस्था की तरह इस स्थिति में भी सामर्थ्य अनुसार रुकते हैं।

बारहवीं: सीधे होकर दोनों हाथों को गोलाकार घुमाते हुए नमस्कार की मुद्रा में जोड़ते हैं। इसके पश्चात सीने पर हाथों का दबाव बनाते हुए भगवान सूर्य को नमन करते हुए सामान्य अवस्था में आ जाते हैं।

acupressure therapy kya hai | fayde | therapy

एक्यूप्रेशर थेरेपी(Acupressure therapy)


किसी तरह की दवा नहीं, बल्कि शरीर के विभिन्न अंगों के कुछ खास बिंदुओं पर दबाव के जरिए हर बीमारी का उपचार किया जाता है एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति में। इसके प्रयोग से शारीरिक रोगों के साथ ही तनाव व अवसाद का निदान भी संभव है...

एक्यूप्रेशर क्या होता है?


उत्तर प्रदेश के प्रयागराज शहर निवासी 11 वर्षीय अपूर्व अग्रवाल को फिट्स आने की समस्या ने उनकी मां रानी अग्रवाल को बेहद व्यथित कर दिया था, जब चिकित्सा की अन्य पद्धतियों से आराम नहीं मिला तो उन्होंने बेटे को एक्यूप्रेशर थेरेपी दिलाने का फैसला किया। अंगुलियों की नसों पर पड़े दबाव और ब्रेन के उससे सीधे संपर्क ने बहुत थोड़े समय में ऐसा असर दिखाया कि मां के चेहरे पर संतोष नजर आता है। यह सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि एक्यूप्रेशर थेरेपी से आराम की तस्दीक करने वाले ऐसे अनेक उदाहण हैं। आजकल की व्यस्त जीवनशैली में असंतुलित खानपान, प्रतिस्पर्धी माहौल व आफिस में काम के तनाव के कारण शारीरिक व मानसिक समस्याओं के बढ़ते मामलों के बीच प्राचीन भारत की यह चिकित्सा पद्धति तेजी से लोकप्रिय हो रही है।


ऊर्जा पर आधारित है एक्यूप्रेशर:


एक्यूप्रेशर उपचार पद्धति ऊर्जा के सिद्धांत पर आधारित है। हमारा मस्तिष्क संपूर्ण शरीर में ऊर्जा को संचारित करता है। किसी कारणवश जब इस ऊर्जा में असंतुलन उत्पन्न हो जाता है, तब पंचतत्वों से बने शरीर को व्याधि घेर लेती है। एक्यूप्रेशर पद्धति से इलाज में एक्यू बिंदुओं पर दबाव देकर इसी ऊर्जा में स्पंदन करके रोगों को दूर किया जाता है।

थेरेपी की विधियां: 


एक्यूप्रेशर में शरीर के जिन बिंदुओं पर दबाव देकर उपचार किया जाता है, उन्हें एक्यू प्वाइंट्स कहते हैं। उपचार इन बिंदुओं पर सुई चुभोकर होता है तो इस विधि को एक्यूपंक्चर भी कहते हैं। जब इन बिंदुओं पर पर मेथी, दाना, चना, मटर, राजमा को पेपर टेप से  चिपका कर उपचार करते हैं तो यह सीड थेरेपी कहलाती है। कुछ रोगों में जब छोटे मैग्नेट लगाकर उपचार किया जाता है तो उसे मैग्नेट थेरेपी और जब विभिन्न रंगों को लगाकर थेरेपी दी जाती है तो उसे कलर थेरेपी कहा जाता है।


तनाव से उबारने में मददगार: 


एक्यूप्रेशर पद्धति से सिर्फ शारीरिक व्याधियों का ही निदान सुनिश्चितं नहीं किया जाता, बल्कि तनाव, अवसाद जैसी मानसिक समस्याओं में भी इसके प्रयोग से राहत मिलती है। प्रयागराज की शिल्पा चंद्रा अनुभव कहती हैं, प्रतियोगी परीक्षाओं में निरंतर मेहनत के बावजूद सफलता न मिलने के कारण मैं स्ट्रेस का शिकार हो गई थी। तब एक्यूप्रेशर
थेरेपी से मुझे बेहद राहत मिली।


दर्द से राहत: 


एक्यूप्रेशर थेरेपी दर्द से राहत प्रदान करती है। प्रयागराज की सुधा प्रसाद अनुभव साझा करती हैं कि एक दुर्घटना में घायल हुई तो कमर दर्द की समस्या लाइलाज बनकर रह गई। बीपी, शुगर के अलावा थायराइड की भी समस्या थी। बहुत से चिकित्सकों को दिखाया, पर परेशानी दूर नहीं हुई। अंततः एक्यूप्रेशर थेरेपी से मुझे आराम मिला।

सेहतमंद रखने में सहायक:



एक्यूप्रेशर थेरेपी न सिर्फ बीमारियों से राहत दिलाने, बल्कि सेहतमंद बनाए रखने में भी मदद करती है। दिल्ली की ऊषा डडलानी इसका जीवंत उदाहरण हैं। वह कहती हैं, 'मैं कैंसर सर्वाइवर हूं। सर्जरी के बाद कीमोथेरेपी भी हो चुकी हैं। चिकित्सकों ने हालत गंभीर बता कर डरा दिया था। एक्यूप्रेशर शोध संस्थान प्रयागराज से संबद्ध प्रशिक्षक से उपचार लिया। अब आराम के साथ मन में विश्वास जगा है कि सब ठीक हो जाएगा।'

विभिन्न रोगों में कारगर


एक्यूप्रेशर मालिश एवं नसों पर दबाव देने की कला नहीं, बल्कि ऊर्जा के सिद्धांत पर आधारित वैज्ञानिक उपचार विधि है, जिसके माध्यम से शरीर की हथेली, अंगुलियों, पंजों पर प्रेशरप्वाइंट्स को दबाते हुऐ अर्थराइटिस, हृदय रोग, सर्वाइकल, स्पांडलाइटिस, स्लिप डिस्क, पथरी, लिवर सहित रक्त जनित रोगों का उपचार किया जाता है।

stan cancer se bachne ke upay | stan cancer ke bare mein bataiye

स्तन कैंसर से बचने के तरीके के बारे में जानकारी इन हिंदी




स्तन कैंसर के प्रति जागरूकता लाने के लिए अक्टूबर माह को 'विश्व स्तन कैंसर जागरूकता माह' के रूप में मनाते हैं। जानिए इससे जुड़ी सावधानियों व बचाव के बारे में...


चिकित्सा के क्षेत्र में हो रहे शोध और उपचार की नई-नई तकनीकों के आने के बाद भी देश में प्रति वर्ष हजारों की संख्या में महिलाएं जाने-अनजाने स्तन कैंसर की चपेट में आ जाती हैं। आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर चार मिनट में एक महिला स्तन कैंसर की जांच कराती है, जबकि हर 13 मिनट में एक महिला की मृत्यु स्तन कैंसर के कारण होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के सर्वे के मुताबिक भारत में 28 में से एक महिला स्तन कैंसर का शिकार होती है। यदि समय रहते इस बीमारी के लक्षणों और परेशानी को गंभीरता से लिया जाए तो यह लाइलाज नहीं है, लेकिन हमारे देश में शर्म या स्वभावगत रूप से टालने की आदत के चलते यह बीमारी विकराल रूप लिए हुए है, इसलिए जरूरत है इसके प्रति जागरूकता लाने की।

कहीं देर न हो जाए: 


भारत में 57 प्रतिशत स्तन कैंसर से पीड़ित महिलाएं चिकित्सक के पास तब पहुंचती हैं, जब रोग अपनी प्रारंभिक अवस्था पार कर चुका होता है। यानी प्रारंभिक अवस्था में रोगी इसके लक्षण या तो पहचान नहीं पाते या फिर शर्म अथवा किन्हीं अन्य कारणों से परेशानी छुपा जाते हैं। अगर समय रहते इस बीमारी के बारे में पता चल जाए तो अच्छी बात यह है इसे पूरी तरह ठीक किया जा सकता है। बीमारी के दूसरी या तीसरी अवस्था में पहुंचने पर ही यह जानलेवा साबित होती है।


बीमारी के प्रमुख लक्षण


  • यदि स्तन के आकार में बदलाव, सूजन, दर्द, गांठ, लालपन, रक्त का आना, निप्पल का सिकुड़ना, लगातार जलन रहना आदि
  • परेशानी हो तो इसे सामान्य समस्या मानकर नजरअंदाज न करें। तत्काल चिकित्सक से परामर्श लें। इस तरह की परेशानी स्तन कैंसर का संकेत हो सकती है।

रोग का कारण

  • परिवार में कैंसर का आनुवंशिक होना ।
  • बच्चे को स्तनपान न कराना ।
  • अधिक उम्र मे मां बनना।
  • हार्मोंस का असंतुलन।
  • अत्यधिक या नियमित शराब का सेवन।




obstructive sleep apnea syndrome bimari kya hota hai in hindi

ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया सिंड्रोम लक्षण symptoms) इलाज (treatment) व उपचार इन हिंदी


बढ़ा वजन, खर्राटे की समस्या और अनियमित दिनचर्या इस रोग आब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया के खतरे को बढ़ा देते हैं। इसलिए यदि इसके लक्षण नजर आएं तो नजरअंदाज करने के बजाय लें चिकित्सकीय परामर्श व कराएं जांच, जिससे टाला जा सके इसके खतरे को....


ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया रोग क्या होता है?

शहूर संगीतकार बप्पी लाहिड़ी के निधन के बाद आब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया (ओएसए) यानी नींद के दौरान सांस रुकने की बीमारी चर्चा में है। समय पर इस रोग की पहचान नहीं होने के कारण उपचार में देरी से इसके रोगियों की नींद में ही हृदयाघात से मौत हो जाती है। इसमें सांस नली के चिपकने से आक्सीजन की कमी व सांस फूलने से हुए कंपन के कारण हृदय की गति बिगड़ती है। चिकित्सा विज्ञान के अनुसार, शरीर में 50 फीसद से कम आक्सीजन होने पर हृदयाघात से मौत होने की आशंका बढ़ जाती है। दुनिया में करीब 100 करोड़ लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। देश की करीब 10 फीसद, खासकर शहरी आबादी को स्लीप एपनिया की समस्या हैं। इसके कारण रात में ठीक से नींद नहीं आने और दिन में झपकी से सड़क हादसे की आशंका भी काफी बढ़ जाती है। अभी तक इस रोग के उपचार की कोई दवा नहीं है। आटो सी-पैंप मशीन लगाकर सोने से इसके दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है।

खर्राटे लेने वालों को ज्यादा खतरा:


अधिक वजन और खर्राटा लेने वालों को आब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया से पीड़ित होने की आशंका ज्यादा होती है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि खर्राटा लेने वाले हर व्यक्ति को यह समस्या होगी। खर्राटे लेने वालों को इसका खतरा इसलिए ज्यादा होता है, क्योंकि इससे होने वाला कंपन हृदय की कार्य प्रणाली पर दुष्प्रभाव डालकर हृदय रोगी बना सकता है। इस कंपन के कारण हृदय ऐसे हार्मोन का स्राव करता है, जिससे व्यक्ति को रात में कई. बार यूरिन पास करने जाना पड़ता है। वहीं हृदय की चाल अनियमित होने से लकवा का खतरा भी बढ़ जाता है।
लक्षणों की जानकारी है जरूरी: यह रोग बढ़े वजन के लोगों में अधिक होता है।
खासकर उन पुरुषों में जिनका गला बहुत छोटा और थुलथुला होता है। यदि सुबह  उठने पर सिर में भारीपन या दर्द हो, कार्यालय या वाहन चलाते समय झपकी आए, घरवाले खर्राटे की शिकायत करें या व्यक्ति एक तेज खर्राटे के साथ नींद से उठ जाए तो स्लीप एपनिया की जांच कराना' अंतिआवश्यक है। वहीं यदि किसी व्यक्ति का वजन अनियंत्रित है और बीपी व शुगर भी धीरे-धीरे अनियंत्रित होने लगे तब भी चिकित्सकीय परामर्श जरूरी हो जाता है।

45 इंच से ज्यादा कमर व अधिक उम्र हैं खतरे की निशानी: 


यह स्पष्ट है कि ओएसए की समस्या मोटापे के कारण होती है। खासकर जिन लोगों की कमर 45 इंच से ज्यादा हो और उम्र भी अधिक हो,, उन्हें बहुत सजग रहने की जरूरत है। ऐसे लोग बहुत जल्दी इसकी चपेट में आते हैं।. अल्कोहल या धूमपान का सेवन इसका बड़ा कारण नहीं माना जाता है। हालांकि, यदि मधुमेह व उच्च रक्तचाप धीरे-धीरे अनियंत्रित होता जाए और बार-बार दवा की मात्रा बढ़ानी पड़े तो हो सकता है कि ओएसए की शुरुआत हो गई हो।


जांच से होती है पुष्टि: 


    इसकी पुष्टि पाली सोमनोग्राफी जांच से होती है। इसमें एक मशीन लगाकर नींद लेनी होती है। यह मशीन निगरानी करती है कि प्रति घंटे सांस की नली कितनी बार चिपकती है और उस दौरान शरीर में आक्सीजन की मात्रा कितनी कम होती है। इससे यह भी पता चल जाता है कि मरीज को हल्का, मध्यम या गंभीर, किस प्रकार का ओएसए है।इसकी जांच सरकारी व निजी अस्पतालों के माध्यम से हो जाती है।

मध्यम या गंभीर ओएसए का इलाज आटो सी-पैप मशीन: 


यदि ओएसए मध्यम या गंभीर है तो इसका एकमात्र उपचार आटो सी-पैप मशीन है। इसे लगाकर नींद लेने से जब सांस नली चिपकने लगती है तो इसका माइक्रो सेंसर उसकी पहचान कर लेता है और उस वक्त कृत्रिम सांस छोड़कर उसे खुला रखता है। इससे रातभर शरीर में आक्सीजन का पूर्ण संचार होता है और सांस अटकने जैसी समस्या नहीं होती है। इसकी कोई दवा नहीं है, ऐसे में मध्यम व गंभीर रोगियों को इस मशीन के साथ नींद लेना ही इसके गंभीर परिणामों से बचाव है। इसका उपचार होम आक्सीजन या आक्सीजन सप्लीमेंट नहीं होता है। यह मशीन अभी देश में नहीं बनती है। इसलिए गुणवत्ता के हिसाब से
थोड़ी महंगी है। 

बढ़े वजन के साथ दमा की शिकायत है तो जरूरी है जांच: 


फिजीशियन इनहेलर देकर दमा रोगियों का उपचार करते हैं, लेकिन यदि कोई वजंनी व्यक्ति दमा से पीड़ित,
है तो उनमें ओएसए की आशंका बढ़ जाती है। इनका उपचार सिर्फ इनहेलर से नहीं करना चाहिए। यदि इनहेलर से दमा नियंत्रित नहीं हो रहा हो तो ऐसे लोगों की पाली सोमनोग्राफी जांच करानी चाहिए। उन्हें दमा के साथ ओएसए होने की आशंका रहती है।

लकवा रोगियों को भी ज्यादा खतरा


मोटापे के कारण जिस प्रकार हृदय रोग, गाल ब्लैडर में स्टोन, आर्थराइटिस, डायबिटीज, उच्च रक्तचाप की आशंका बढ़ जाती है, उसी प्रकार आब्सट्रेक्टिव स्लीप एपनिया का भी खतरा बढ़ जाता है। यदि किसी को अचानक लकवा मार जाए, बीपी व शुगर अनियंत्रित होने लगे, नींद से जागने के बाद भारीपन रहे तो उसे स्लीप स्टडी जांच
करानी चाहिए। स्लीप एपनिया का समय पर इलाज नहीं करने पर आक्सीजन स्तर घटने व कार्बन डाईआक्साइड बढ़ने से पैरों, एड़ी और चेहरे में सूजन, हृदयाघात या लकवा भी हो सकता है।


आब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया 


सोते समय हर घंटे में सांस नली कई बार चिपकती और खुलती है। इस दौरान कई बार सांस का रास्ता 10 सेकेंड के लिए पूरी तरह या 50 फीसद चिपक जाता है और फिर खुलता है। ऐसा बार-बार होने से शरीर में आक्सीजन की मात्रा 50 फीसद से ज्यादा तक कम हो जाती है और कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है। इससे हृदय तक रक्त पहुंचाने वाली मुख्य नसों में रक्तचाप काफी बढ़ जाता है। इससे बीपी व शुगर पर नियंत्रण कमजोर हो जाता है।



स्वस्थ जीवनशैली और स्लीप हाइजीन से मिल सकती है राहत हल्की श्रेणी का ओएसए स्वस्थ जीवनशैली व स्लीप हाइजीन से काफी हद तक ठीक हो जाता है:

  • निश्चित समय पर सोए व जगें
  • सोने के दो-तीन घंटे पहले हल्का भोजन लें
  • नींद के पहले अल्कोहल न लें
  • आधे से एक घंटा व्यायाम करें
  • वजन घटाने की कोशिश करें
  • कमर पतली करने का प्रयास करें
  • दोपहर में न सोएं
  • रात को हल्का खाना खाएं
  • एक दिन कम सोएं तो अगले दिन अधिक न सोएं

2022-05-05

cbse board exam ki taiyari kaise kare tips in hindi

CBSE बोर्ड एग्जाम की तैयारी कैसे करें या बोर्ड एग्जाम की तैयारी कैसे करनी चाहिए


एग्जाम का तैयारी कैसे करें?


अब जब दो साल बाद फिर से सीबीएसई बोर्ड की आफलाइन परीक्षाएं होने को हैं, तो ऐसे में जरूरी है कि आप शारीरिक और मानसिक रूप से चुस्त- दुरुस्त रहें। पढ़ाई के साथ-साथ अपनी जीवनशैली को भी सही रखना आप सभी के लिए आवश्यक है। आप सक्षम हैं। कर सकते हैं, तो अब अपने प्रयास बढ़ाकर कहना होगा कि इन परीक्षाओं के लिए हैं तैयार हम....


Cbse board की आफलाइन परीक्षाओं की तारीखें घोषित होने पर आप कुछ परेशान तो नहीं हैं? ऐसा हो सकता है, क्योंकि आपकी आदत आनलाइन पढ़ाई करने की जो हो गई है। दूसरे, वार्षिक परीक्षा की अच्छी तैयारी करना भी आसान नहीं है। इसके लिए जमकर पढ़ना होता है। शरीर और मस्तिष्क, दोनों अगर आपका बेहतर साथ देंगे, तभी आप ऐसा कर पाएंगे। फिर खुशी-खुशी परीक्षा भवन में प्रश्नों के उत्तर अच्छी तरह से लिख सकेंगे।

तन की ऊर्जा महत्वपूर्ण: 


    अगर आपका शरीर थका-थका सा रहता है, पढ़ाई के लिए देर तक बैठने की हिम्मत नहीं होती तो पढ़ने या दोहराने में पीछे हो जाने का तनाव महसूस करने लगेंगे। इसलिए आपको उन बातों को मानना है, जो आपके शरीर को चुस्ती और फुर्ती दें। पढ़ते हुए अगर आपको नींद आ रही है तो 15 मिनट का अलार्म सेट करें और पावर नैप (कुछ मिनटों की झपकी) ले लें। चाइल्ड काउंसलर कहती हैं कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य अच्छा रखने के लिए बच्चों का पूरी नींद लेना बहुत जरूरी है। इससे पढ़ने के लिए जरूरी ऊर्जा मिलेगी। कल क्या पढ़ना है, इसे रात में ही लिख लें। फिर खुद को रिलैक्स करते हुए आराम से सो जाएं।

करें नियमित व्यायाम: 


    यह सीबीएसई की परीक्षा है और वह भी आफलाइन यानी आप पहले की तरह परीक्षा केंद्र में तीन घंटे बैठकर परीक्षा देंगे। दोस्तो, कोरोना के दिनों में आनलाइन परीक्षाएं होने के कारण आपकी देर तक बैठकर लिखने की आदत तो बिल्कुल ही छूट गई होगी, तो सबसे पहले देर तक बैठने और लिखने की प्रैक्टिस करें। इसके लिए आपमें शारीरिक ऊर्जा होनी चाहिए और यह आएगी व्यायाम से। न्यूट्रिशनिस्ट कहती हैं. 'परीक्षाओं से पहले आप जुबा, एरोबिक्स आदि के जरिए व्यायाम कर सकते हैं। अपने रूटीन में कम से कम एक घंटा जरूर निकालें, जिसमें शारीरिक व्यायाम हो। थोड़ी देर के लिए विराम लें और टहलें। इससे पढ़े हुए को दोहराने में मदद मिलेगी। आप घर में रहकर योग भी कर सकते हैं।'

स्मार्टफोन से दूरी है जरूरी: 


परीक्षाएं सिर पर हैं तो आपने अपने मम्मी-पापा से एक स्मार्टफोन की मांग तो की ही होगी। आप कहते होंगे कि आपके दोस्त और अध्यापक फोन के जरिए आपसे जुड़े हैं। वाट्सएप पर आपके कई ग्रुप बने हैं, जिन पर पढ़ाई को लेकर बातचीत होती है। लेकिन ध्यान रहे कि आप इनमें ज्यादा फंसें नहीं। दूसरी तरफ स्क्रीन पर ज्यादा देर तक रहना आपको मानसिक रूप से बीमार कर सकता है और आंखों को थका सकता है, इसलिए इन दिनों स्मार्टफोन से भरसक दूरी ही बेहतर है। कैलिफोर्निया में एक शोध में पाया गया कि जो किशोर दिन में अपना ज्यादा समय इंटरनेट मीडिया पर बिताते हैं, उन पर एडीएचडी (अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसआर्डर)
नामक मानसिक विकार का खतरा अधिक रहता है। ऐसे में किशोर किसी विषय पर ध्यान लगाने में परेशानी महसूस करते हैं। उनका ध्यान बार-बार भटकने लगता है।

प्राणायाम सिर्फ आधा घंटा: 


अभी नंबरों की परवाह मत कीजिए। परीक्षा से पहले ही परिणाम को लेकर तनाव मत पालिए। बस खुद को तंदुरुस्त रखिए, मन लगाकर पढ़ाई कीजिए। जो पढ़ें, उसे दिमाग में बिठा लीजिए। इसके लिए योग आपको शारीरिक और मानसिक सुदृढ़ता देगा। अयंगर योग सिखाने वाली गुरु निवेदिता जोशी कहती हैं, 'योग का शुरू से ही अभ्यास किया गया हो तो बहुत अच्छा रहता है। लेकिन जिन्होंने नहीं भी किया है, वे भी परीक्षा के पहले से ही योग के लिए आधा घंटा निकालना शुरू कर दें। सुबह ही अभ्यास कर लें। फिर पढ़ाई में लगें। सुबह का अभ्यास पूरे दिन मस्तिष्क को तरोताजा रखता है।'


लें एंटी-आक्सीडेंट: 


तन और मन को  हल्का रखने के लिए हल्का खाएं, ताकि आलस नहीं आए और आपकी ऊर्जा बनी रहे। इसके लिए बस थोड़ा-सा सजग रहना होगा। चिप्स, बर्गर, कोल्ड ड्रिंक, पिज्जा जैसे जंक फूड बिल्कुल न खाएं। कोलंबिया एशिया अस्पताल की डायटिशियन कौर बताती हैं कि परीक्षाओं में एंटी-आक्सीडेंट चीजें खाना बेहतर है। ये आंखों के लिए भी अच्छे हैं और संक्रमण रोकते हैं। इसके लिए विटामिन-ए और बीटा कैरोटिन चाहिए। विटामिन-ए अंडे, डेयरी प्रोडक्ट, गाजर और पालक से मिलेगा। कैरोटिन पीली, लाल शिमला मिर्च, ब्रोकली, पपीता, मटर, गोभी जैसी सब्जियों और फलों में पाया जाता है। लाल, पीले और गहरे रंग के फल व सब्जियां बीटा कैरोटिन के स्रोत हैं। मेमोरी के लिए ओमेगा फ्री फैटी एसिड फूड जैसे अलसी, अखरोट और अगर नानवेज हैं तो मछली ले सकते हैं। साथ ही पर्याप्त मात्रा में पानी जरूर पीना चाहिए। इससे दिमाग तरोताजा रहता है। न्यूट्रिशनिस्ट श्रुति टंडन कहती हैं, 'नींबू पानी, फलों का ताजा रस और नारियल पानी पावर हाउस आफ मिनरल्स होते हैं।'  खाते समय पूरा ध्यान खाने पर रखें। यह पाचन के लिए जरूरी होता है।



बच्चों पर करें भरोसा, उन्हें करते रहें प्रोत्साहित


जो बच्चे बोर्ड की परीक्षा देने जा रहे हैं, वे पिछले सत्र की तुलना में इस सत्र में अधिक सहज हैं। उनके पास टर्म वन का अनुभव है, जो काफी मददगार होगा। बस एक चीज है, जो नई है। वह यह है कि दो साल बाद वे उस परीक्षा में बैठेंगे, जो तीन घंटे की होगी। साथ में यह सब्जेक्टिव मोड में होगी। उन्हें इसकी तैयारी करनी है। लिखने का अभ्यास करना है ताकि अगले माह तक वे मिशन परीक्षा के लिए तैयार हो सकें। बच्चों को घबराना नहीं है। अपने स्कूल में शिक्षकों की मदद लेनी है। मुश्किले आएं तो उसे हल करने की दिशा में खुद पहल करनी है। अपनी दिनचर्या तय करें। खानपान को हल्के में न लें। जंक फूड से दूरी रखना है और मन-चित्त को शांत रखना है। अभिभावकों से बस इतना कहना है कि घर में बच्चों को एक बेहतर माहौल दें। प्रदर्शन  को लेकर उन पर नकारात्मक टिप्पणियां न करे। टोका-टाकी से उनके आत्मविश्वास पर असर होगा। उन पर भरोसा करना जरूरी है। उन्हें प्रोत्साहित करते रहें।


यही है वार्मअप का समय


बच्चे इस अवधि को वार्मअप पीरियड मानें यानी वह समय, जब खुद को धीरे-धीरे परीक्षा के अनुरूप ढालने का अभ्यास करना है। इसके लिए जरूरी है कि वे अध्यापक के साथ सहज हों, क्योंकि आनलाइन कक्षाओं के कारण आपके बीच दूरियां बढ़ी हैं। मुश्किलें आने पर उनसे चर्चा करें। इसके अलावा, तीन घंटे एक जगह बैठने का अभ्यास करना है। यह काम मुश्किल हो रहा है, क्योंकि आनलाइन में बच्चे पढ़ते तो थे, पर वे ज्यादा देर तक एक जगह नहीं बैठते थे। लेकिन यदि तीन घंटे नहीं बैठ पा रहे हैं तो शुरुआत में एक घंटे बैठने की प्रैक्टिस कर सकते हैं और इसे धीरे-धीरे बढ़ा सकते हैं।


दिनचर्या हो संतुलित



शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए हमें नियमित रूप से आठ घंटे तो सोना ही चाहिए। छह घंटे में अपने शौक जैसे गाने सुनने, टहलने, व्यायाम करने को देना चाहिए। फिर भी दस घंटे बचते हैं पढ़ाई के लिए। यही संतुलित रूटीम रखकर मैंने अपनी आइएएस की तैयारी की थी, क्योंकि लंबी परीक्षा को पार करने के लिए आपको लंबी
रेस का घोड़ा बनना पड़ता है। परीक्षा तो परीक्षा है, चाहे सीबीएसई हो या आइएएस। अगर आप शुरू में ही 12 घंटे पढ़ लेंगे और खुद को थका देंगे तो शायद एक-दो महीने पढ़कर अपनी किताबें एक तरफ रख देंगे कि अब हमसे न हो पाएगा। इसलिए भटकाव को रोके और एकाग्र होकर आगे बढ़ें।

ब्रेन ट्यूमर के लक्षण और इलाज | कारण | रोकथाम | इलाज | उपाय | उपचार बारे में

ब्रेन ट्यूमर होने के कारण, लक्षण, रोकथाम व इलाज के बारे में जानकारी

लाइलाज नहीं है ब्रेन ट्यूमर सटीक पहचान और समुचित इलाज से दी जा सकती है इसे मात...


ब्रेन ट्यूमर होने के लक्षण क्या है?


जब ब्रेन (मस्तिष्क) में ट्यूमर विकसित होने लगता है तो शरीर कुछ संकेत देता है। यदि हम इन संकेतों को पहचान लें और समय रहते उपचार शुरू हो जाए तो संभावित खतरों को टाला जा सकता है। अगर लगातार सिरदर्द रहने लगे, सुबह-सुबह इतना तेज सिरदर्द हो कि नींद खुल जाए, जी मिचलाए, अचानक देखने, सुनने व बोलने में परेशानी होने लगे तो इसे सामान्य समस्या मानकर अनदेखी न करें। ये ब्रेन ट्यूमर के प्रारंभिक लक्षण हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में पीड़ित को तत्काल न्यूरोलाजिस्ट को दिखाना चाहिए। यदि जांच में ब्रेन ट्यूमर की पुष्टि होती है तो उपचार से इसे ठीक किया जा सकता है।

ट्यूमर बीमारी क्या है?


जब सामान्य कोशिकाएं असामान्य रूप से विकसित होकर गुच्छे का रूप ले लेती हैं तो उसे ट्यूमर कहते हैं। ट्यूमर कैंसर से ग्रसित व बिना कैंसर वाला हो सकता है। ब्रेन ट्यूमर के अधिकतर मामलों में तंत्रिका तंत्र की कार्य प्रणाली गंभीर रूप से प्रभावित होती है। ब्रेन ट्यूमर धीरे (लो ग्रेड) या तेजी (हाई ग्रेड) से विकसित हो सकता है। कुछ मामलों में ये दोबारा विकसित हो जाता है।

प्रमुख जांचें

  • न्यूरोलाजिकल टेस्ट
  • इमेजिंग टेस्ट
  • कंप्यूटराइज्ड टोमोग्राफी (सीटी) और पोजीट्रान
  • इमिशन टोमोग्राफी (पीईटी)
  • बायोप्सी।

उपचार

ट्यूमर का उपचार इस पर निर्भर करता है कि उसका ग्रेड क्या है और मस्तिष्क के किस भाग में है। इसी के आधार पर सर्जरी की जाती है। यदि ट्यूमर कैंसरग्रस्त है तो उपचार में रेडिएशनथेरेपी, कीमोथेरेपी, टारगेट ड्रग थेरेपी आदि का प्रयोग भी किया जाता है।

माइक्रो एंडोस्कोपिक सर्जरी: 


पहले ब्रेन ट्यूमर को एक घातक बीमारी माना जाता था, लेकिन अत्याधुनिक तकनीकों ने इसके उपचार को न केवल आसान बना दिया है, बल्कि स्वस्थ होने का प्रतिशत भी बढ़ा है। माइक्रो एंडोस्कोपिक सर्जरी (एमईएस) पारंपरिक सर्जरी की तुलना में बहुत सुरक्षित व कारगर है।

उपचार के बाद की प्रक्रिया: 


अगर उपचार के बाद दैनिक गतिविधियां करने और बोलने में समस्या हो रही हो तो फीजियो थेरेपी, स्पीच थेरेपी और आक्युपेशनल थेरेपी की सहायता लेनी पड़ती है। अगर ब्रेन ट्यूमर मस्तिष्क के उस भाग में भी विकसित हुआ था, जहां से बोलने, सोचने और देखने की क्षमता नियंत्रित होती है तो सर्जरी के बाद भी ये गतिविधियां सामान्य रूप से एक सीमा तक ठीक हो पाती हैं। ऐसे मरीजों को स्पीच थेरेपी दिलाई जाती है। जिन लोगों में मांसपेशियों की अक्षमता बनी रहती है, उन्हें फीजियो थेरेपी के सेशन दिए जाते हैं। कुछ मामलों में मरीज की सामान्य दैनिक गतिविधियों को फिर से प्राप्त करने के लिए आक्युपेशनल थेरेपी का सहारा लेना पड़ता है।


सावधानी है जरूरी

  • अपनी फिटनेस का ध्यान रखे, वजन न बढ़ने दें
  • रोजाना 30-40 मिनट योग और एक्सरसाइज करें
  • तंबाकू का सेवन न करें।
  • अल्कोहल व मटन-चिकन के सेवन से बचें
  • अत्यधिक वसा युक्त खाद्य पदार्थ, ड्रिंक्स व जंक फूड्स से परहेज करें
  • पत्तेदार सब्जियों को भोजन में अवश्य शामिल करें