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2022-05-05

irritable bowel syndrome kya hota hai | lakshan | Ilaj | Upchar

इरिटेबल बाउल सिंड्रोम के बारे में जानकारी

खानपान की गलत आदतें व असंयमित दिनचर्या बनती है इरिटेबल बाउल सिंड्रोम का कारण, उपचार और परहेज से इसे किया जा सकता है दूर...

आपको इस blog में यह टॉपिक मिलेगा -

  • इरिटेबल बाउल सिंड्रोम क्या होता है?
  • इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम के लक्षण
  • इरिटेबल बाउल सिंड्रोम का उपचार

इरिटेबल बाउल सिंड्रोम क्या होता है?


पेट साफ न होना, कुछ खाते ही शौच के लिए जाना, कब्ज, सिरदर्द और थकान होना। यदि इस  तरह की समस्या है तो घबराएं नहीं, यह इरिटेबल  बाउल सिंड्रोम (आइबीएस) के कारण हो सकता है। यह पाचनतंत्र से जुड़ी एक आम समस्या है। इरिटेबल बाउल सिंड्रोम एक डिसआर्डर है, जिसका असर बड़ी आंत पर पड़ता है। इससे बड़ी  आंत अधिक संवेदनशील हो जाती है और इसकी गतिविधियों में असंतुलन पैदा हो जाता है। इससे भोजन का प्रवाह और पाचनतंत्र प्रभावित होता है। जब आंत अपना कार्य तेज करती है तो डायरिया की स्थिति और जब यह प्रक्रिया धीमी होती है तो कब्ज की परेशानी होती है।  शोधों के अनुसार, इरिटेबल बाउल सिंड्रोम का कारण गलत खानपान, तनाव और मस्तिष्क की कार्यप्रणाली का प्रभावित होना है। पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में यह रोग अधिक होता है।
जिन लोगों में इस रोग का पारिवारिक इतिहास होता है, उन्हें भी इस समस्या की आशंका अधिक रहती है।


इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम के लक्षण

  • पेट में ऐंटन व दर्द
  • पेट फूलना या भरा महसूस होना
  • गैस बनना
  • कब्ज रहना
  • कुछ खाते ही शौच के लिए जाना


ध्यान रखने वाली बातें

  • अल्कोहल, काफी व कोल्ड ड्रिंक के सेवन से बचें।
  • पानी पर्याप्त मात्रा में पिएं।
  • पर्याप्त नींद लें।
  • भोजन समय पर करें।
  • फास्ट फूड, जंक फूड व मसालेदार भोजन से बचें।
  • तंबाकू उत्पादों का सेवन न करें
  • रात को खाना खाने के बाद थोड़ी देर टहलें ।
  • हरी सब्जियों व मौसमी फलों का नियमित सेवन करें।
  • भोजन में मोटे अनाज को शामिल करें।
  • योग व मेडीटेशन करें।

इरिटेबल बाउल सिंड्रोम का उपचार


चिकित्सक इरिटेबल बाउल सिंड्रोम का उपचार रोगी की समस्या और जीवनशैली के आधार पर करते हैं। ऐसे रोगियों को दवाओं के साथ खानपान में सावधानी बरतने और डाइट चार्ट के आधार पर आहार लेने की सलाह दी जाती है। कुछ मामलों में एंग्जायटी भी एक बड़ा कारण होती है। ऐसे रोगियों को पाचनतंत्र व मानसिक स्थिति को सामान्य करने वाली दवाओं का सेवन कराया जाता है।

stan cancer ke lakshan | upchar | ilaj | karan

ब्रेस्ट कैंसर लक्षण(Symptoms) व बचाव के तरीके, उपचार (Treatment)  इन हिंदी में जानकारी


यदि सही पहचान और समय पर मिले उपचार तो लाइलाज नहीं है स्तन कैसर जानते है इसके कारण, लक्षण और उपचार के बारे में.........

ब्रेस्ट कैंसर के बारे में जानकारी

जब शरीर की कोशिकाओं में अनियंत्रित विभाजन होता है तो ये आसामान्य कोशिकाएं एक जगह एकत्र होकर ट्यूमर बना देती हैं। यह एक उभार या गांठ के रूप में नजर आता है। यदि शुरुआत में इसकी पहचान हो जाए और उपचार किया जाए तो यह पूरी तरह ठीक हो सकता है, लेकिन चौथी स्टेज पर पहुंचने पर इसका उपचार संभव नहीं है, इसलिए इस संबंध में जागरूकता बेहद आवश्यक है।

स्तन कैंसर के प्रमुख कारण


स्तन कैंसर कई बार आनुवांशिक वजहों से होता है, पर इसकी कई और वजह भी होती हैं, जिन्हें समझना जरूरी है जैसे धूमपान व अल्कोहल का सेवन, मोटापा, स्तनपान न कराना, हार्मोनल थेरेपी में दी जाने वाली दवाएं, अधिक उम्र में शादी और गर्भधारण, अनियमित जीवनशैली, लंबे समय तक गर्भ निरोधक गोलियों का सेवन इत्यादि। इन परिस्थितियों से यथासंभव दूरी बनाने का प्रयास कर सकती हैं।

स्तन कैंसर के प्रमुख लक्षण

  • स्तन में गांठ होना।
  • निप्पल से डिस्चार्ज निकलना।
  • स्तन के आकार में बदलाव होना।
  • निप्पल के आकार या त्वचा में बदलाव।
  • स्तन की त्वचा पर चकत्ते या खुजली होना।
  • स्तन में दर्द होना।

इस तरह करें बचाव

  • 40 की उम्र के बाद साल में एक बार मैमोग्राफी समय कराएं।
  • सप्ताह में कम से कमपाचदिन 30 मिन्ट योग
  • एक्सरसाइज अवश्य करें।
  • भोजन में मौसमी फलों वहरीसब्जियों की अधिक
  • मात्रा में शामिल करें।
  • प्रोसेस्ड फूडसके सेवन से बचें।
  • धूमपानव अल्कोहल से परहेज करें।
  • वसा युक्त भोजन का सेवन सीमित मात्रा में करें।

2022-04-23

corona thik hone ke baad kya kare

कोरोना वायरस ठीक होने के बाद क्या करे


बड़ी संख्या में लोगों ने कोरोना संक्रमण को मात दी है, लेकिन संक्रमण से उबरने के बाद भी कुछ  हफ्तों तक सजग रहना जरूरी है...


कोरोना संक्रमण से बचने हेतु सावधानियां



पोस्ट कोविड केयर यानी कि अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद और कोविड-19 टेस्ट के निगेटिव आने के बाद भी रोगी की देखभाल बहुत जरूरी है। जब इस रोग के लक्षण एक महीने  से अधिक समय तक बने रहते हैं तो इन्हें पोस्ट  कोविड सिंड्रोम या क्रोनिक कोविड-19 की सूची में रखा जाता है।



चिकित्सक के संपर्क में रहें :

हर एक रोगी के ठीक होने की दर उसकी उम्र, संपूर्ण सेहत और खास रोगों जैसे डायबिटीज, रक्तचाप, दिल से जुड़े रोग यां कैंसर आदि पर निर्भर करती है। इसके अलावा अस्पताल में भर्ती होने के दौरान या इलाज के बाद कई रोगियों को स्टेरॉयड दिए जाते हैं। इसलिए चिकित्सक के मार्गदर्शन में जरूर रहें।

कितने दिनों तक है संक्रमण का असर:

12 से 14 दिन के बाद आपसे संक्रमण फैलने का खतरा कम हो जाता है और 17 दिन के बाद यह पूरी तरह से समाप्त हो जाता है। जिन लोगों को कैंसर या एचआईवी जैसे रोग हैं या जो ऐसी दवाओं  का सेवन कर रहे हैं, जिससे प्रतिरोधक क्षमता  प्रभावित हो रही है, उन लोगों से संक्रमण फैलने का खतरा अधिक समय तक बना रहता है।


बेहतर हो आहार : 

संक्रमण के बाद हमें डाइट पर विशेष ध्यान देना चाहिए। पोषक तत्वों से भरपूर संतुलित आहार का सेवन करने से क्षतिग्रस्त ऊतकों के निर्माण में मदद मिलती है। यदि आप डायबिटिक हैं तो डाइटीशियन की सलाह पर आहार लें। पोषक आहार के साथ ही पानी खूब पिएं। बेहतर रहेगा कि गुनगुने पानी का सेवन करें। इससे सूखी, खांसी और गले की खराश में राहत मिलेगी।

थोडा इंतजार करें: 

वापस से सामान्य जिंदगी में लौटने या व्यायाम शुरू करने के लिए अपने शरीर की सुनें। ध्यान रखें कि आप एक बड़ी बीमारी से बाहर आए हैं। इसलिए शरीर कमजोर है और पूर्ण स्वस्थ होने में समय लगेगा। शुरुआत ब्रीदिंग या प्राणायाम जैसे व्यायामों से करें। आपकी मानसिक सेहत भी उतनी ही जरूरी है, जितनी की शारीरिक। इसलिए नियमित समय पर सोएं और अनुशासित जीवन जीने की आदत डालें। पल्स

ऑक्सीमीटर से ऑक्सीजन की जांच करते रहें। क्या दोबारा

हो सकता है

संक्रमण: जिन

लोगों की आयु

अधिक अथवा गंभीर या प्रतिरक्षा से

समझौता करने


वाली बीमारियों जैसे डायबिटीज या दिल से

जुड़े रोगों से जूझ रहे हैं। उनके दोबारा संक्रमित

होने की अधिक संभावना होती है। जिन लोगों में

कोविड-19

होने के बाद सशक्त रोग प्रतिरोधक

क्षमता का निर्माण हो गया है, उनमें पहले तीन

महीने तक इसकी कम संभावना होती है। इसलिए

फेस मास्क, सामाजिक दूरी और स्वच्छता बनाए

रखना जरूरी है। वैक्सीन लगवाने से हम खुद के

साथ ही दूसरों को भी कोविड-19 से सुरक्षित कर

सकते हैं। खतरे को कम करने के लिए वैक्सीन

अवश्य लगवाएं।


parkinson bimari ka ilaaj | lakshan | Upchar | Upay

पार्किंसन रोग का इलाज (Treatment), लक्षण (symptoms), उपचार, उपाय के बारे में जानकारी इन हिंदी


डीप ब्रेन स्टिमुलेशन के प्रयोग से पार्किंसन रोग के तीव्र लक्षणों को नियंत्रित करने में मिल रही है मदद...



मस्तिष्क का कार्य विभिन्न इंद्रियों
द्वारा प्राप्त जानकारी का विश्लेषण करके
शरीर को सुचारु रूप से संचालित करना
है। इसके लिए मस्तिष्क शरीर में फैली
अनगिनत तंत्रिकाओं के जाल में प्रवाहित
विद्युत तरंगों के माध्यम से आवश्यक
निर्देशों को पूरा करता है। जब मस्तिष्क
में विकृति आती है तो यह विश्लेषण व
शारीरिक संचालन अनियंत्रित
हो जाता है। इसी का
परिणाम होता है पार्किंसन
रोग।
यह रोग समय के साथ
बढ़ता है और शरीर के
संचालन को प्रभावित
करता है। हल्के कंपन,
मांसपेशियों की जकड़न और
कड़ापन, शारीरिक गति का धीमा होना
इस रोग के प्रमुख लक्षणों में शामिल
हैं। हालांकि यह बीमारी लाइलाज है पर
दवाओं से इसे नियंत्रित करने में मदद
मिलती है, लेकिन जब लक्षण तीव्र हो
जाते हैं और दवाओं से आराम नहीं
मिलता है तो डीप ब्रेन स्टिमुलेशन
(डीबीएस) का प्रयोग पार्किंसन रोगियों
के लिए बहुत प्रभावी विकल्प है।
क्या है डीप ब्रेन स्टिमुलेशनः डीप ब्रेन
स्टिमुलेशन मस्तिष्क की एक शल्य
क्रिया है। यह एक न्यूरो सर्जिकल प्रक्रिया
है, जो पार्किंसन की बीमारी के लक्षणों
में सुधार लाती है। डीबीए को पार्किंसन
रोगियों में होने वाले कंपन के इलाज के
लिए 1997 में मान्यता मिली और 2002
में पार्किंसन बीमारी के बढ़े लक्षणों में
इसे प्रयोग किया जाने लगा। अब इससे
उन रोगियों को उपचार दिया जा रहा है,

जिनमें दवाएं प्रभावहीन हो रही हैं।
ऐसे दिया जाता है उपचारः डीबीए में
मस्तिष्क के प्रभावित सूक्ष्म बिंदुओं
में एक विशेष तार को आरोपित किया
जाता है। इस तार में आवश्यकता
अनुसार चार से आठ इलेक्ट्रोड्स
के माध्यम से मस्तिष्क के विकृत
सूक्ष्म बिंदुओं पर विद्युत प्रवाह देकर
मांसपेशियों का संचालन प्रभावी किया
जाता है। इस प्रक्रिया के दूसरे चरण में
छाती के ऊपरी हिस्से में त्वचा के नीचे
एक न्यूरोस्टिम्युलेटर(पेसमेकर जैसी
डिवाइस) को रखा जाता है।
त्वचा के नीचे से एक तार की
मदद से न्यूरोस्टिम्युलेटर
को मस्तिष्क से संबद्ध
इलेक्ट्रोड्स से जोड़ा
जाता है। इस उपकरण
द्वारा उत्पन्न विद्युत प्रवाह
मस्तिष्क की असामान्य गतिविधि
(पार्किंसन रोग के लक्षणों) को
नियंत्रित करने में मदद करता है। यह
भी ध्यान देने वाली बात है कि डीबीएस
केवल पार्किंसन बीमारी के लक्षणों को
दूर करने में मदद करता है। इससे बीमारी
का पूरी तरह इलाज नहीं हो सकता है।
किन मरीजों के लिए है उपयोगी: जैसे-
जैसे ये रोग पुराना होता है, रोगी में इसकी
तीव्रता बढ़ने लगती है। यह अनियंत्रित
गतिविधियां चेहरे, हाथ, पैर व धड़ की
हलचल को और बढ़ा देती हैं। ऐसे में
रोगी अपने कार्य करने में पूरी तरह अक्षम
हो जाता है। इस स्थिति में दवाएं काम
करना बंद कर देती हैं। ऐसे में उपचार
की यह तकनीक मददगार साबित होती
है। इसे अनुभवी न्यूरोलाजिस्ट से
करवाना चाहिए। यदि रोगी को पार्किंसन
बीमारी के अलावा अवसाद, स्मृतिलोप
या अधिक कमजोरी की समस्या है तो
डीबीएस कारगर नहीं है।

गर्मी में त्वचा की देखभाल | गर्मी त्वचा की देखभाल

गर्मी त्वचा की देखभाल


सूरज कि तेज रोशनी मे देर तक रहने से त्वचा से जुड़ी कई समस्याएं खडी होने लगती है। लम्बे समय बाद घर से बाहर निकल रहे लोगों के लिये त्वचा का खास ध्यान रखना जरुरी है,,,,,,



त्वचा पर गर्मी की मार कई तरह से पड़ती
है। पर, इस बार लंबे समय बाद घर से
बाहर निकल रहे लोगों में ये समस्याएं
और ज्यादा बढ़ने की आशंका है। तापमान
बढ़ने के साथ खुजली, दाने, त्वचा का
लाल पड़ना, एलजी और सनबर्न के
मामले बढ़ने भी लगे हैं।
त्वचा के अलावा बालों पर भी
धूल
और धूप का असर बुरा पड़ता है। सूरज
की यूवीए और यूवीबी किरणें बालों की
बाहरी परत को नुकसान पहुंचाती हैं,
जिससे बाल बेजान होकर टूटने लगते हैं।
लगातार मास्क पहनने के कारण भी
त्वचा से जुड़ी समस्याएं बढ़ी हैं। मास्क
पहने के कारण ढके हुए हिस्से में पसीना
जमा होने लगता है। त्वचा का तेल, पसीना
और बैक्टीरिया, ये सब मिलकर त्वचाके
रोमछिद्रों कोबंद कर देते हैं। इससे त्वचा
परदाने निकलने लगते हैं। इन्हें 'मास्कने'


का नाम दिया गया है। इसके अलावा, कई
बार पहने हुए मास्क को पहनने से त्वचा
का लचीलापन कम होने लगता है और
रोमछिद्रों का आकार बढ़ने लगता है।
मास्क के अंदर का तापमान बढ़ने से
त्वचा लाल पड़ने लगती है। साथ ही,
त्वचा में पीएच स्तर कम हो जाता है,
जिससे त्वचा धूप
और धूल
से ज्यादा
प्रतिक्रिया करने लगती है।



घर से बाहर निकलते समय कुछ बातों
का ध्यान रखना जरूरी है-

. हाइड्रेटेड रहें: गर्मियों में दो से
तीन लीटर पानी जरूर पिएं। इससे
त्वचा शुष्क नहीं होती और त्वचा
को
धूप से नुकसान कम होता है।
शरीर से विषैले पदार्थ बाहर
निकलने से पिगमेंटेशन व झुर्रियों
से भी राहत मिलती है।
- खान-पान सही रखेंः आहार में
विटामिन-सी युक्त फल ज्यादा
मात्रा में लें। तली-भुनी ज्यादा
मसालेदार चीजें खाने से बचें।
मौसमी फल व सब्जियां खाएं।
अच्छा मॉइस्चराइजर व
सनस्क्रीन लगाएं। कम से कम
30 एसपीएफ वाले सनस्क्रीन का
इस्तेमाल करें। मॉइस्चराइजर
लगाने के बाद एक परत
सनस्क्रीन लगाने से सूरज की
हानिकारक किरणों से त्वचा का
बचाव हो सकेगा।
त्वचा को मल्टीविटामिन का
पोषण दें त्वचा में पोषण का
अभाव देखते हुए विशेषज्ञ आहार
व खास क्रीम के जरिए विटामिन
सी, के, ई और डी के पोषण पर
जोर देते हैं। इससे त्वचा में
ताजगी बनी रहती है। काले धब्बे,
झुर्रियां व रूखापन भी दूर होते हैं।
. त्वचा रखें साफः साफ तौलिए
या मुलायम कपड़े से चेहरा साफ
करें। मास्क के नीचे पसीना जमा
न होने दें। कपड़े को त्वचा पर
तेज न रगड़ें। ऑयली त्वचा है,
तो ऑयल-फ्री प्रोडक्ट ही खरीदें।
सूती कपड़े से बने मास्क पहनें।

2022-04-22

energy ke liye kya piye | energy ke liye kya pina chahiye

energy ke liye kya lena chahiye

हमारे लिए रोज पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थों

का सेवन करना जरूरी है। ऐसे पेय पदार्थ,
जिनसे पोषण और ऊर्जा दोनों मिल सके।
यं बाज़ार में कई तरह के एनर्जी ड्रिंक्स हैं,
पर हम इन्हें घर में भी बना सकते हैं।
पानी
शरीर से विषैले पदार्थों को बाहर करने में
पानी से बेहतर कोई नहीं है। पानी के कारण

ही किडनी विषैले तत्वों को बाहर निकालने
का काम ढंग से कर पाती है। हम सादा,
गुनगुना, कैसा भी पानी पी सकते हैं।
हैं
सुबह पिएं नारियल पानी
इससे शरीर को तुरंत ऊर्जा, ठंडक और
ताजगी मिलती है। इसके पोषक तत्व
पोटैशियम, सोडियम और मैग्नीशियम,
शरीर में पानी की कमी नहीं होने देते। सुबह


नारियल पानी पीने से शरीर को कई पोषक
तत्व मिलते हैं। किसी भी तरह के संक्रमण
में आराम मिलता है। लिवर रोगों में नारियल
पानी में नीबू मिलाकर ले सकते हैं।

अदरक और नींबूकीचाय


अदरक और नींबू का मिश्रण सेहत को
कई तरह से फायदा पहुंचाता है। इसे पीने
से तुरंत ऊर्जा मिलती है और तनाव भी कम
होता है। अदरक में प्रचुर मात्रा में
-एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं और नीबू में
विटामिन सी। इस चाय से इम्यूनिटी भी
बढ़ती है और घाव भी जल्दी भरते हैं।
गर्म और ठंडी, इस चाय को कैसे भी
पिया जा सकता है।
इसके अलावा आपकभी-कभी
दूध की चाय की जगह ग्रीन टी और
ब्लैक कॉफी भी पी सकते हैं।



सब्जियों का रस
हरी सब्जियों में कई तरह के पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो शरीर
को ताकत देते हैं। जिन्हें भूख कम लगती है या
जिनका पाचन तंत्र कमजोर है, उन्हें कच्ची या
उबली हुई सब्जियों का रस नियमित पीना
चाहिए। मौसमी सब्जियों को थोड़ा-थोड़ा
लेकर ग्राइन्डर में इनका रस निकाल लें।
फिर इसमें काला नमक और नीबू का
रस मिलाकर पिएं। एक ग्लास
वेजिटेबल जूस में प्रोटीन की भी
अच्छी मात्रा होती है।

फेक न्यूज़ कैसे पहचाने या फेक न्यूज़ कैसे चेक करें

फेक न्यूज़ कैसे पहचाने या फेक न्यूज़ कैसे चेक करें


आज के दौर में सूचनाओं को बिना

के
जांचे-परखे एक-दूसरे के साथ
साझा करना काफी खतरनाक हो सकता
है। इंटरनेट मीडिया ने जहां सूचनाओं को
साझा. करना बहुत आसान बना दिया है,
वहीं इसका गलत उपयोग भी खूब हो रहा
है। इंटरनेट मीडिया पर फर्जी खबरें तेजी
से वायरल की जाती हैं। मगर आपको
गलत सूचनाओं को साझा करने से बचना
चाहिए। अगर कुछ बातों का ध्यान रखें,
तो आप भी फर्जी खबर, वीडियो आदि को
पहचान सकते हैं....


आगे भेजने से पहले सोचें : आमतौर पर
लोगों की आदत होती है कि वे इंटरनेट
मीडिया यानी वाट्सएप, फेसबुकं आदि
पर आई किसी भी खबर, फोटो या वीडियो
को बिना सोचे-समझे एक-दूसरे के साथ
साझा करने लगते हैं। लोग यह भी ध्यान
नहीं देते कि जो वे साझा कर रहे हैं, वह
सही है भी या नहीं और उसका क्या प्रभाव
हो सकता है। जब भी इंटरनेट मीडिया पर



किसी मजेदार खबर या जरूरी सलाह के
नाम पर मैसेज आए, तो उसे तुरंत शेयर
करने से बचें। थोड़ा रुकें और सोचें
कि क्या वह खबर सच है या क्या उसे
भेजना जरूरी है? इससे आप फेक न्यूज
को साझा करने से बच जाएंगे। खासकर
आपको जब भी फारवर्ड मैसेज मिले, तो
उसकी जांच जरूर करें। फारवर्ड मैसेज के
दावों, तथ्यों की जांच पहले गूगल पर सर्च
करके किसी भरोसेमंद सोर्स से करें। आप
पीआइबी के फैक्ट चेक की भी मदद ले
सकते हैं। मैसेज पर भरोसा होने के बाद
ही उसे आगे किसी को भेजें, अन्यथा उसे



तुरंत डिलीट कर दें।
फोटो के संदर्भ की करें जांच : इमेज बहुत
ही पावरफुल टूल है। जो लोग आनलाइन
गलत सूचना बनाते और फैलाते हैं, उन्हें
इसका एहसास होता है। जो भी इमेज या
वीडियो वाट्सएप आदि पर मिले, उसकी
जांच करें। आमतौर पर ऐसा होता है कि
फेक न्यूज फैलाने के लिए इमेज और
वीडियो को एडिट करके आगे भेजा जाता
है। इतना ही नहीं, इमेज के कुछ हिस्सों को
क्राप कर उसका अर्थ बदला जा सकता है।
अगर तस्वीरों को लेकर कोई संदेह है, तो
आनलाइन मिलने वाली अधिकांश तस्वीरों


की सत्यता को गूगल के माध्यम से जांचा
जा सकता है। इसके लिए आपको ज्यादा
कुछ करने की जरूरत नहीं है। तस्वीर जब
ब्राउजर पर खुली हो, तो उसपर राइट-
क्लिक करें, फिर सर्च गूगल फार इमेज
पर क्लिक करें। आपको तस्वीर से जुड़ी
जानकारी मिल जाएगी।
फैक्ट-चेकिंग टूल का करें उपयोग : आप
सही-गलत सूचनाओं को परखने के लिए
फैक्ट चेकिंग टूल का उपयोग कर सकते
हैं। इससे कभी भी गलत सूचनाओं में
नहीं फंसेंगे। जब आपके सामने कोई ऐसी
जानकारी आती है और आप तय नहीं कर
पाते हैं कि वह सही है या नहीं, तो फिर
गूगल के 'फैक्ट चेक एक्सप्लोर' जैसे
आनलाइन टूल का उपयोग कर सकते हैं।
वाट्सएप या अन्य एप्लिकेशन पर आपको
जो फारवर्ड मैसेज मिलते हैं, उसे जांचने
के लिए यह एक अच्छा तरीका हो सकता
है। इसके अलावा, आप पीआइबी फैक्ट-
चेक या फिर विश्वास न्यूज' की भी मदर्द
ले सकते हैं। विश्वास न्यूज फैक्ट चेक
और वेरिफिकेशन वेबसाइट है।


गूगल अर्थ भी है उपयोगी
गूगल अर्थ के माध्यम से विशेष क्षेत्रों,
माल, स्मारकों या अन्य भौगोलिक चीजों
के बारे में गलत सूचना को भीजांचा जा
सकता है। आप किसी स्थान के बारे में
जानने के लिए गूगल अर्थ का उपयोग
कर सकते हैं।

कैंसर बीमारी का इलाज क्या है | उपचार | इलाज | ट्रीटमेंट

कैंसर ठीक कैसे होता है, उपचार,  उपाय,  ट्रीटमेंट,  इलाज के बारे में


आजादी के समय लाइलाजकहे जाने वाले कैंसर की रोकथाम में नई तकनीकों व दवाओं ने लादी है क्रांति...

भारत 1947 में आजाद हुआ
परंतु यह बड़ी समस्या थी कि
आखिर देश का समेकित विकास
कैसे किया जाए। कई संक्रामक
बीमारियों के साथ ही टीबी और
कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियां
उपयुक्त उपचार के अभाव में बड़ी
चुनौती थीं। चिकित्सा संसाधनों की
कमी और जागरूकता न होने के
कारण कई बार कैंसर जैसी बीमारी
के बारे में लोग जान ही नहीं पाते थे।
आजादी के अमृत महोत्सव के
वर्ष में यह जानना सुखद है कि
चिकित्सा जगत ने इस बीमारी की
रोकथाम की कई तकनीकें व दवाएं
विकसित की हैं और इस दिशा में
निरंतर शोधकार्य जारी हैं। कैंसर
एक जटिल बीमारी है, लेकिन यदि
समय पर इसके संक्रमण का पता
चल जाए और उपचार के लिए
वक्त मिले तो स्वस्थ होने की काफी
संभावना बढ़ जाती है। समय के
साथ चिकित्सा के विभिन्न क्षेत्रों में
प्रगति हुई और इस बीमारी पर भी
बहुत काम हुआ। 1975 में नेशनल
कैंसर कंट्रोल प्रोग्राम संचालित हुआ
जिसके तहत रीजनल कैंसर सेंटर्स
बनाने की शुरुआत हुई। इसके बाद
1985 में कैंसर की रोकथाम व रोग
को जल्दी पहचानने के लिए कई
योजनाएं और जागरूकतापरक

कार्यक्रम शुरू किए गए।
सबसे अच्छी बात यह है कि
समय के साथ कैंसर की पहचान
एवं इलाज में उल्लेखनीय प्रगति
हुई है। इससे रोगियों के स्वस्थ
होने की संभावनाएं काफी बढ़
गई हैं। उपचार की तकनीकों में
इम्युनोहिस्टो केमिस्ट्री, लिक्विड
बायोप्सी एवं नैक्सट जीन
सिक्वेसिंग से कैंसर की शीघ्र व
सही पहचान हो जाती है, जिससे
रोगी को समय पर सटीक उपचार
मिल जाता है। पीईटी व बोन स्कैन
जैसी जांचें कैंसर को पहचानने में
बड़ी उपलब्धि हैं। इन जांचों से यह
सुनिश्चित हो जाता है कि व्यक्ति
कैंसर संक्रमित है या नहीं अथवा
रोग की स्थिति क्या है। इसके साथ
ही रेडियोथेरेपी, कीमोथेरेपी, टार्गेटेड
थेरेपी, इम्युनोथेरेपी का प्रयोग भी
बहुत कारगर साबित हो रहा है।
इम्युनोथेरपी व टार्गेटेड थेरेपी ने
उन रोगियों के जीवन में उम्मीद की
किरण जगाई है जो आर्थिक रूप से
'कमजोर हैं। इसके साथ ही सरकार
की आयुष्मान भारत स्वास्थ योजना
कैंसर रोगियों के लिए बहुत सहायक
सिद्ध हो रही है।
अब आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस
से यह जानना आसान हो गया है कि
भविष्य में संक्रमण किस तरह का
परिवर्तन करेगा। इससे चिकित्सक
पहले से ही आवश्यक दवाएं शुरू
कर देते हैं और इन दवाओं का कोई
दुष्प्रभाव भी नहीं होता है।

अर्थराइटिस के लक्षण और उपचार | इलाज | उपाय | बचाव

अर्थराइटिस बीमारी के लक्षण (Symptoms) और उपचार के बारे में

अर्थराइटिस से बचाव आपके हाथ में है। इससे ग्रसित होन पर तुरंत जांच और समय रहते उपचार कराने के पश्चात जिया जा सकता है सामान्य जीवन...

arthritis-ke-lakshan-aur-upchar

विश्वभर में अर्थराइटिस (गठिया) सबसे सामान् स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है। इस बीमारी के प्रत लोगों में उतनी जागरूकता नहीं है, जितनी हृदय रोगो या डायबिटीज को लेकर है। लोगों को अर्थराइटिस के बारे में जागरूक करने, बचाव के उपाय और उपचार के विकल्पो के बारे में जानकारी देने के लिए हर साल 12 अक्टूबर को 'वर्ल्ड
अर्थराइटिस डे' मनाया जाता है।
अर्थराइटिस से बचाव भी आपके
हाथ में है और इससे ग्रसित होने पर
तुरंत जांच और समय
रहते उपचार कराने के
पश्चात सामान्य जीवन जीना भी। अर्थराइटिस जोड़ों से संबंधित
एक स्वास्थ्य समस्या है। इसमें जोड़ों में
सूजन आ जाती है, तेज दर्द व जलन

के साथ उन्हें हिलाने-डुलाने में भी तकलीफ होती है।
अर्थराइटिस किसी को किसी भी उम्र में हो सकता
है, लेकिन उम्र बढ़ने के साथ इसके मामले अधिक
देखे जाते हैं। बदली जीवनशैली, खानपान की गलत
आदतें, शारीरिक सक्रियता की कमी के कारण युवा
भी तेजी से इसके शिकार हो रहे है। अर्थराइटिस के
कई प्रकार हैं, लेकिन आस्टियो अर्थराइटिस और
रूमेटाइड अर्थराइटिस इसके सबसे सामान्य रूप हैं।
आस्टियो अर्थराइटिस: सभी प्रकार के अर्थराइटिस में
से आस्टियो अर्थराइटिस के मामले सर्वाधिक होते
हैं। यह तब होता है, जब हड्डियों का सुरक्षात्मक
आवरण जिसे कार्टिलेज कहते हैं, क्षतिग्रस्त हो
जाता है। कार्टिलेज जोड़ों की हड्डियों को आपस
में रगड़ने, घिसने और क्षतिग्रस्त होने से बचाता है।
रूमेटाइड अर्थराइटिस: रूमेटाइड अर्थराइटिस में
जोड़ों के आसपास के ऊतक क्षतिग्रस्त हो जाते
हैं। इसके कारण मांसपेशियां और
लिगामेंट्स भी क्षतिग्रस्त हो
सकते हैं। शुरुआती स्टेज में यह शरीर के छोटे जोड़ों को प्रभावित करता है, लेकिन बाद में बड़े जोड़ जैसे कंधे, कूल्हे और घुटने भी इससे प्रभावित हो जाते हैं। रूमेटाइड अर्थराइटिस स्थायी दिव्यांगता का कारण भी बन सकता है।

अर्थराइटिस के उपचार
  • संतुलित, पोषक औरघरके बने पौष्टिक खाने का सेवन करें।
  • खानपान में फलों, सब्जियों औरसाबुत अनाज को
  • अधिक मात्रा में शामिल करें।
  • शारीरिक रूप से सक्रिय रहें।
  • हल्की-फुल्की एक्सरसाइजयावाक करें।
  • सुबह के समय 20 से 30 मिनटधूप में बिताएं।


अर्थराइटिस के लक्षण

  • जोड़ों का कड़ा और कमजोरहोजाना।
  • जोड़ों को हिलाने-डुलाने में परेशानी होना।
  • जोड़ों में दर्द, सूजन औरजलन होना।
  • सुबहनींद से उठने परतेज दर्द महसूस होना।
  • सीढ़ियां चढ़ने-उतरने और नीचे फर्श पर बैठने में परेशानी होना।
  • हड्डियों के चटकने की आवाज आना।

2022-04-18

सिर पर गंभीर चोट लग जाए तो क्या करें | उपचार | निदान | लक्षण | इलाज

सिर पर चोट की समस्याओं का उपचार व निदान कैसे करे?


सिर पर लगने वाली चोट कई बार बनती है गभीर समस्या। इसलिए इसके उपचार में देरी ठीक नहीं...



हमारे देश में प्रति वर्ष लाखों लोग सड़क दुघर्टना में जान गंवा देते हैं। सरकारी व गैरसरकारी प्रयासों के बाद भी लोगों में अभी भी यातायात नियमों के प्रति जागरूकता व जिम्मेदार नागरिक होने का भाव नहीं है। इन हादसों की मूल वजह नशे की हालत में वाहन चलाना, वाहन चलाते समय मोबाइल
का प्रयोग, हेलमेट न पहनना और गाड़ी का
तेज रफ्तार में होना जैसी गलतियां शामिल हैं।
आंकड़ों के अनुसार, इन घटनाओं में सिर की
चोट के मरीजों की संख्या सर्वाधिक होती है।
कई बार सिर में चोट लगने पर किसी तरह के
गंभीर लक्षण न दिखने और पीड़ित के होश
में होने के कारण इसे सामान्य चोट मानकर
नजरअंदाज कर दिया जाता है। ध्यान रहे कि
सिर में लगी चोट का असर कई घंटों बाद भी
होता है और तब स्थिति बिगड़ सकती है।
सावधानी: सिर पर चोट खाए व्यक्ति के सिर
में यदि कोई चीज घुस गई है तो उसे निकालें
नहीं और मरीज को करवट देकर लिटा दें। सिर
में जहां से रक्तस्राव हो रहा हो, उस जगह को
साफ कपड़े से दबाएं, जिससे रक्तस्राव रुक
जाए। उल्टी होने पर ठीक से सफाई करें,
जिससे सांस बाधित न हो। बच्चे के सिर पर
चोट लगने पर यदि वह सो जाए तो एक-दो
घंटे में जगाकर मानसिक स्थिति पर नजर रखें। बच्चों के सिर पर चोट लगने पर यदि बच्चा सो जाता है तो अभिभावक समझते हैं कि सिर पर कोई क्षति नहीं हुई और इसलिए वह सो रहा है, लेकिन बच्चों के मामले में 24 घंटे तक निगरानी रखने की जरूरत होती है।


प्रमुख लक्षण

● सिरके दर्द का बढ़ना
● तेज नीद और बेहोशीआना
● उल्टी होना
● मिर्गी के दौरे पड़ना
● बच्चों में चिड़चिड़ापन, रोनाव उल्टी होना
● कमजोरीवसुन्नता आना
● आंखों की रोशनी, स्वादव सुनने की क्षमता का प्रभावित होना

कब जरूरी है सीटी स्कैन

● चोट के दो घंटे बाद भी होश न आने पर
●अनियंत्रित हृदयगति व ब्लडप्रेशर
● सिर की हड्डी में फ्रैक्चर होने पर
● बच्चों में सिर का फूलना
● 60 साल से ज्यादा उम्र के मरीज


उपचार

सिर में चोट लगने पर लक्षणों व सीटी स्कैन के आधार पर प्रारंभिकउपचार दवाओं व इंजेक्शन से किया जाता है। सिर की चोट गंभीर है और अंदरूनी रक्तस्राव अधिक हुआ है तो सर्जरी से निदान किया जाता है।

2022-04-17

how to set dark mode in twitter in hindi

ट्विटर  में डार्क मोड कैसे से करे?

अगर आप ट्विटर का बहुत ज्यादा इस्तेमाल करते हैं, तो फिर यहां पर डार्क मोड आपके लिए उपयोगी हो सकता है। आपको बता दें कि डार्क मोड में बैकग्राउंड का थीम पूरी तरह से बदल

जाता है। इसमें स्क्रीन का अधिकतर

हिस्सा डार्क यानी काले रंग का हो जाता

है और टेक्स्ट सफेद रंग के हो जाते हैं।

ऐसे में डार्क मोड को ज्यादा साफ तरीके

से पढ़ा जा सकता है। साथ ही, आखों पर

दबाव भी कम पड़ता है।


आइफोन व एंड्रॉयड पर डार्क मोड:

आइफोन और एंड्रॉयड डिवाइस पर

ट्विटर पर डार्क मोड के दो विकल्प

मौजूद हैं। एक में 'डार्क ब्लू बैकग्राउंड

है, जिसे 'डिम' कहा जाता है, जबकि

दूसर विकल्प 'ब्लैक' बैकग्राउंड का है,

जिसे 'लाइट्स आउट' कहा जाता है,

जिसे एमोलेड स्क्रीन को ध्यान में रखकर

डिजाइन किया गया है। आप इसे अपनी

सुविधा के हिसाब से चुन सकते हैं।


• इसके लिए ट्विटर के मुख्य मेन्यू

में जाना होगा। यहां पर 'सेटिंग्स ऐंड

प्राइवेसी' सेक्शन का ऑप्शन मिलेगा।

जब इस पर क्लिक करेंगे, तो नीचे

आपको 'जनरल' सेक्शन में 'डिस्प्ले ऐंड

साउंड' का विकल्प दिखाई देगा।


• यहां पर 'डिस्प्ले के अंदर 'डार्क मोड'

और 'डार्क मोड एपीयरेंस' का ऑप्शन

दिखेगा। डार्क मोड में आपको ऑफ,

ऑन और ऑटोमेटिक एट सनसेट का

ऑप्शन नजर आएगा। यहां पर 'ऑन'

बटन पर क्लिक कर 'डार्क मोड' अप्लाई

कर सकते हैं। अब आपको डार्क मोड में

डिम या फिर लाइट्स आउट में क्या पसंद


है, उसे सलेक्ट करने के लिए डार्क मोड

एपीयरेंस में जाना होगा। यहां पर डिम

और लाइट्स आउट का ऑप्शन है।


• लाइट्स आउट का ऑप्शन आइओएस

यूजर के साथ एंड्रॉयड यूजर्स के लिए भी

उपलब्ध है। अगर यह ऑप्शन मेन्यू में

नजर नहीं आ रहा है, तो फिर ट्विटर

एप को अपडेट कर लें या फिर फोन की

सेटिंग्स में एप्स वाले सेक्शन को ओपन

करें। यहां लिस्ट में ट्विटर को खोजने

के बाद इस पर टैप करें और फोर्स स्टॉप

को सलेक्ट करें। इसके बाद एप डाटा को

क्लियर कर दें और फिर से ट्विटर को

रीलॉन्च करें। इसके बाद आपको लाइट्स

आउट का ऑप्शन दिखाई देने लगेगा।


डेस्कटॉप पर डार्क मोड


अगर डेस्कटॉपपरट्विटर के बैकग्राउंड

को डार्क करना चाहते हैं, तो यहां भी यह

विकल्प मौजूद है। इसके लिए आपको

ट्विटर के मैन मेन्यू में जाना होगा।यहां

पर आपको सेटिंग्सऐंडप्राइवेसीका

विकल्प दिखेगा।जब आपइसपरटैप

करेंगे, तो आपको बायीं तरफ जनरल में

डिस्प्ले के ऑप्शन में जानाहोगा।यहां

पर आपको फॉन्ट साइज, कलर और

बैकग्राउंड को बदलने का विकल्प मिलता

है।बैकगाउंड में डिफॉल्ट, डिम और

लाइट्स आउट का विकल्प है। यहां पर

अपनी सुविधा के हिसाब के बैकग्राउंड

को बदल सकते हैं।

ऑटिज्म बीमारी क्या है | उपचार | उपाय | लक्षण | बचाव

ऑटिज्म कौन सी बीमारी है, उपचार, उपाय, लक्षण के बारे मे 



ऑटिज्म कोई बीमारी नहीं है। यह मानसिक विकास से जुड़ी एक अवस्था है। इसके लिए बच्चे के माता-पिता या खुद बच्चा जिम्मेदार नहीं है। ऑटिज्म के लक्षण सबमें अलग होते हैं और इसका ये मतलब नहीं कि बच्चे का कोई भविष्य नहीं होगा...

ऑटिज्म बीमारी क्या है?

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसॉर्डर को आम बोलचाल में ऑटिज्म कहा जाता है। यह मानसिक विकास से जुड़ी एक ऐसी अवस्था है, जो व्यक्ति के स्वभाव, बोलचाल और समाज में एक-दूसरे से घुलने-मिलने की क्षमता तथा अपनी भावनाओं को जाहिर करने व उन पर काबू पाने की क्षमता को भी प्रभावित
करती है। ऑटिज्म से प्रभावित ज्यादातर
बच्चे औसत से लेकर विलक्षण बुद्धि
वाले होते हैं। महान वैज्ञानिक आइंस्टीन,
न्यूटन व चार्ल्स डार्विन उन कुछ लोगों में
से हैं, जो ऑटिज्म से प्रभावित थे। ये अवस्था जन्मजात होती है। उम्र बढ़ने के साथ धीरे-धीरे इसके लक्षण उभरते हैं। किसी में इसका प्रभाव कम, तो किसी में ज्यादा देखने को मिल सकता है। जन्म के बाद के एक-दो वर्ष में इसके लक्षण कुछ खास नजर नहीं आते, पर उसके बाद कुछ खास लक्षणों पर ध्यान देकर इसे पहचान सकते हैं

आटिज्म के लक्षण

●बच्चे का नाम पुकारे जाने पर प्रतिक्रिया ना देना
अपनी ही दुनिया में खोए रहना
एक ही खेल या एक्टिविटी को बार-
बार दोहराना
. आंखों में आंखें डालकर बात ना कर
पाना, दूसरी तरफ देखना
एक अलग टोन में बात करना
- बातचीत के बीच कुछ अलग तरह
के शब्द या ध्वनियां शामिल करना,
कभी बहुत गुस्सा हो जाना और गुस्से
में सिर पटकना
बिना बात चीखना-चिल्लाना
कई बार हम इन लक्षणों को बचपना या
स्वभाव समझकर नजरअंदाज कर देते हैं।
जीवन के शुरुआती साल ऑटिज्म को
पहचानने और उसके सही मैनेजमेंट की
दिशा तय करने में जरूरी होते हैं।



परिवार के सब सदस्य रोज
एक निश्चित समय बच्चे के
साथ खेलें। ऐसा करना बच्चे
को परिवेश के प्रति जागरूक
बनाता है। बच्चे के साथ हर
दिन पिक्चर कार्ड खेलें।ये
कार्ड आसानी से घर में बनाए
जा सकते हैं। ध्यान रखें, बच्चे
को सिखाने में जल्दबाजी न
'करें। एक समय में एक लक्ष्य
लेकर चलें।




कईथेरेपी हैं फायदेमंद

ऑटिज्म का कोई एक इलाज नहीं है, पर
इसे सही तरीके से मैनेज किया जा सकता
है। इसके लिए जितनी कम उम्र में हो सके,
इसकी पहचान होना और सही उपचार
मिलना जरूरी है। बच्चे का मजबूत पक्ष
कौन-सा है, उसकी कमजोरी क्या है,
बच्चे को किस तरह की थेरेपी चाहिए, उसे
स्पेशल एजुकेशन की जरूरत है या नहीं,
आदि पर ध्यान देने की जरूरत है। इसके
लिए सही डॉक्टर मिलना और परिवार का
सपोर्ट बेहद अहम है।
ऑटिज्म प्रभावित बच्चों के लिए
स्पीच थेरेपी, सामाजिक व्यवहार से जुड़ी
थेरेपी, फिजियोथेरेपी और व्यावसायिक
शिक्षा देने वाली थेरेपी फायदेमंद साबित
होती आई हैं। ज्यादातर राज्यों में राज्य
सरकारें अस्पतालों या गैर-सरकारी
संस्थाओं के साथ मिलकर इस तरह के
थेरेपी सेंटर चलाती हैं।
राज्य के मुख्य सरकारी अस्पतालों से
ये जानकरी मिल सकती है। सकारात्मक
सोच और सही जानकारी के साथ
ऑटिज्म का प्रबंधन करके बच्चे को
बेहतर जीवन दिया जा सकता है।

2022-04-16

oven plastic bowl ya oven plastic glass ke bare me

 oven plastic bowl


ओवन के लिए प्लास्टिक या ग्लास


अवसर हमबिना सोचे-समझे ओवन में

प्लास्टिक के बर्तनों का इस्तेमाल करने

लगते हैं। अमेरिका में हुए एक अध्ययन

के मुताबिक प्लास्टिक के बर्तन में जाना

गर्म करने से प्लास्टिक सेकछ केमिकल

खाने में चले जाते हैं, जिससे डायबिटीज

होने का खतरा बढ़ता है।

प्लास्टिक है,तोओवन फ्रेंडली है!

प्लास्टिक कंटेनर को लेकर अगर

आपकी भी धारणा यही है, तो आप

गलत हैं। ओवन के लिए बर्तन

खरीदते वक्त 'सेफ मार्क देखकर

हम निश्चिंत हो जाते हैं। लेकिन क्या

आपको पता है कि 'सेफ' मार्क

लिखा होना ही सिर्फ इसकी गारंटी

नहीं है? विशेषज्ञ कहते हैं कि

प्लास्टिक बॉडी वाले कंटेनर्स ओवन

के लिए सुरक्षित नहीं होते। चाहे उन

पर सेफ मार्क ही क्यों न हो?

गर्म होने पर प्लास्टिक के बर्तनों से

'बिसेफनॉल ए नाम का रसायन

निकलता है,जो भोजन में जा

मिलता है। शरीर के लिए

'बिसेफनॉल ए हानिकारक होता है।

विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि

प्लास्टिक कंटेनर्स एक बार प्रयोग

होने के बाद अगले प्रयोग के लिए

ठीक से साफ नहीं होते। इसलिए

ओवन के लिए ये सुरक्षित नहीं होते।

प्लास्टिक की बजाय शीशे के मोटे

(ग्लासवेयर) बर्तनों को ही ओवन में

इस्तेमाल करें। इसमें भी डेकोरेटिव

ग्लास प्लेट्स के इस्तेमाल से बचें।

इसकी बजाय पेपर प्लेट में खाना

गर्म करें।


जॉब चेंज करने के उपाय | नौकरी बदलने के उपाय

करियर कैसे बदला जाता है करियर कैसे 

करियर बदलने की बात सोचने पर एक बेचैनी महसूस होती ही है। कुछ ऐसे प्रश्न मन में आते हैं कि क्या यह सही समय है?

हमारे अनुभव और डिग्री का फिर क्या होगा? पर, अगर कुछ तैयारी से करियर बदलने का फैसला लें, तो यह सफलता की राह बन जाता है...


आप अपना करियर बदलना चाहते हैं या नौकरी बदलना चाहें, तो सबसे पहले इसके कारण ढूंदें। इसके एक या कई कारण हो सकते हैं। जैसे, आपका जुनून आपको प्रेरित कर रहा हो, या आपके वर्तमान ऑफिस में
नकारात्मक कार्य संस्कृति हो या
काम व जीवन के बीच संतुलन
नाबिठा पा रहे हों, या आय और
विकास के पयाप्त अवसर, न
मिल रहे हों या फिर जीवन अधेड़
पड़ाव पर हो। या ऐसा भी हो सकता
है कि यह सिर्फ आपके मन की इच्छा हो। नौकरी
या करियर का क्षेत्र बदलना क्यों चाहते हैं,


इसका सही कारण खोजने से आपको इस दौरान
आने वाली बाधाओं के बावजूद प्रेरित रहने में
मदद मिलती है। वित्तीय पहलू के अलावा,
करियरबदलते समय विचारकिए जाने की कुछ
और भी बातें हैं-

भविष्य के लक्ष्य तय करें

विभिन्न जॉब प्रोफाइल
के बारे में जानकारी और उस क्षेत्र में
संभावनाओं के बारे में जानेंगे, तो आपको
अपने लक्ष्य तय करने में मदद मिलेगी।

सीखें भी

नौकरियों की बदलती प्रकृति के साथ लोग प्रमुख रूप से डेटा साइंस, बिजनेस एनालिटिक्स, क्लाउड कंप्यूटिंग और ब्लॉकचेन जैसे क्षेत्रों में शिफ्ट हो रहे हैं। ये नए और उभरते करियर क्षेत्र हैं।

Simplilearn, UpGrad और Futurelearn जैसे विभिन्न पोर्टल पर इससे सम्बंधित मुफ्त या सशुल्क सर्टिफिकेट कोर्स बेशुमार मिलेंगे। इसके
अलावा, हार्वर्ड, येल, ऑक्सफोर्ड और
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट जैसे कई
संस्थान तथा विश्वविद्यालय सर्टिफिकेट
कोर्स करा रहे हैं। एक ऑनलाइन पाठ्यक्रम
में शामिल होने, प्रमाणपत्र, कार्यशालाओं
और संगोष्ठियों में भाग लेने से करियर
परिवर्तन करने के लिए एक आवश्यक
पोर्टफोलियो बनाने में मदद मिल सकती है।
साक्षात्कारकीतैयारी करें: कई बार, जोलोग वर्षों
से काम कर रहे हैं, वे नए सिरे से साक्षात्कार
प्रक्रिया के साथ तालमेल बिठाने में भी
असहज हो सकते हैं। इसलिए इसकी तैयारी
करें। साक्षात्कार तैयारी की टिप्स और
पाठ्यक्रमों के लिए geeksforgeeks,
preplaced और नोटिसबोर्ड जैसे




ऑनलाइन पोर्टलों को आजमा सकते हैं।
स्वयं का आकलन करें: जीवन आज हम जो
चुनाव करते हैं, उसका आईना होता है।
इसीलिए अपने अंतिम लक्ष्य और वहां
पहुंचने के लिए आवश्यक शर्तों को
समझना, अपनी कमियों, जैसे कमाई की
अस्थिरता, अपनी अधीरता, रिजेक्ट कर
दिए जाने के डर को जानना आपको जॉब
स्विच करने में सही दिशा देगा।
अस्वीकृति की अपेक्षा करें: खासकर तब, जब
हम पूरी तरह अपना करियर फील्ड बदल
रहे हों और हमारा पिछला कार्यअनुभव
इससे एकदम अलग हो।
यथार्थवादी बनेंः अवास्तविक समय-सीमा
निर्धारित करना आपकी प्रेरणा कम कर
सकता है। छोटे-छोटे चरणों में विभाजित
करके एक बार में एक काम करें। एक
विकल्प भी रखें।विकल्पहोने से तनाव कम -
करने में मदद मिलती है।



करियर स्विच करना आसान ना होने
के बावजूद यह देखा गया है कि
करियर स्विच करने वाले 70% से
अधिक लोग अपने पिछले कार्य-
जीवन की तुलना में नए काम से
अधिक खुश होते हैं। हालांकि इस
संदर्भ में करियर बदलने से पहले
कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है।

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आगामी तीन से चार महीने में सिविल सर्विसेज
(प्रिलिम्स-2021), एनडीए/एनए, एसएससी
समेत कई कॉम्पिटिटिव एग्जाम्स आयोजित होने
वाले हैं। इन एग्जाम्स में जनरल नॉलेज, करेंट
अफेयर और जनरल अवेयरनेस से जुड़े सवाल
जरूर पूछे जाते हैं। तमाम प्रिपरेशन एप्स के आ
जाने से पहले की तरह अब इनकी अच्छी तैयारी
करना बहुत मुश्किल नहीं रहा। आइए, ऐसे कुछ
उपयोगी एप्स के बारे में जानते हैं, जिन्हें डाउनलोड
करने के बाद हर समय आपको लेटेस्ट अपडेट
मिलते रहेंगे...


डेली करेंट अफेयर्स ऐंड जीके क्विजः सरकारी
नौकरियों की तैयारी और प्रैक्टिस के लिए यह एक
उपयोगी एप है, जो हिंदी और इंग्लिश दोनों भाषाओं
में है। यह मुख्य रूप से सरकारी नौकरी के लिहाज
से ही बनाया गया है। इसकी मदद से यूपीएससी
समेत सभी तरह के स्टेट एग्जाम्स जैसे कि
एसएससी, रेलवे, बैंक, पुलिस की तैयारी की जा
सकती है। यहां पर रोजाना करेंट अफेयर्स क्विज,
जीके मल्टीपल टेस्ट, इंग्लिश क्विज, साइंस
क्विज, इकोनॉमिक्स क्विज, पॉलिटिकल साइंस
क्विज, कांस्टिट्यूशन क्विज, जियोग्राफी क्विज
तथा आर्ट क्विज जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं। साथ
ही, वीकली और मंथली करेंट अफेयर्स क्विज तथा
टेस्ट सीरीज की भी सुविधाएं यहां दी गई हैं। सबसे
अच्छी बात है कि यह एप पूरी तरह से मुफ्त है।
इसकी रेटिंग 4.6 है। 5 लाख से अधिक यूजर इसे
अब तक डाउनलोड कर चुके हैं।
करेंट अफेयर्स जनरल नॉलेज क्विज: यह एप भी
गवर्नमेंट एग्जाम्स की जरूरतों को देखते हुए करेंट
अफेयर्स एवं जीके क्विज के लिए तैयार किया गया
है। एप के इस समय 50 लाख से अधिक यूजर्स
हैं, जो सिविल सर्विसेज, बैंक, एसएससी, रेलवे
तथा एमबीए एग्जाम्स के लिए इसकी सेवाएं ले
रहे हैं। यहां हिंदी व इंग्लिश में जनरल नॉलेज व
अवेयरनेस के अपडेट्स नियमित आते रहते हैं।


जांच-परख कर चुनें सही एस

प्रतियोगी परीक्षाओं की अच्छी तैयारी और प्रैक्टिस
के लिए गूगलप्ले स्टोर पर ऐसे और भी तमाम
उपयोगी एप्स उपलब्ध हैं, जहां से अपनीजरूरत
के अनुसारइनकी सेवाएं ले सकते हैं। लेकिन इस
तरह के किसीभी एप को डाउनलोड करने से पहले
यह जरूरदेखें कि संबंधित एपकी रेटिंग क्या है
औरउसे अब तक कितने लोगों ने डाउनलोड किया
है।कुल मिलाकर, ज्यादा रेटिंग और डाउनलोड्स
वाले एपकोहीअधिक तरजीहदें।